अनुष्टुप् छंद-
नमो वृषभसेनादि गौतमान्त्यगणेशिने।
मूलोत्तरगुणाढ्याय, सर्वस्मै मुनये नम:।।१।।
बसंततिलका छंद-
श्रीशान्तिसागर! मुनीन्द्र! नमोऽस्तु तुभ्यं,
सूरिस्त्वमेव प्रथम: किल संप्रतीह।
पट्टाधिप: प्रथम एव च य: प्रसिद्ध:,
तं वीरसागरगुरुं प्रणमामि भक्त्या।।२।।
तुभ्यं नमोऽस्तु शिवसागर सूरिवर्य!
श्री धर्मसिन्धु मुनिनाथ! नमोऽस्तु तुभ्यं।
ख्यातो जगत्यजितसागरजातरूप:।
श्रेयांससागरमुनीन्द्र! नमोऽस्तु तुभ्यं।।३।।
अनुष्टुप् छंद-
षष्ठ: पट्टाधिपोमान्यो, योऽभिनन्दनसागर:।
भक्त्या नमामि तं नित्यं, अक्षुण्णमार्गसिद्धये।।४।।
बसंततिलका छंद-
तुभ्यं नमोऽस्त्वनेकान्तगुरुं सुभक्त्या,
त्वं वर्तमानकाले पट्टाधिपोऽसि।
वन्दामहे वयं पादसरोजयुगलं,
श्रीसप्तमोऽस्ति सूरि: जगति प्रसिद्ध:।।५।।
सदी बीसवीं के श्रीप्रथमाचार्य शांतिसागर को नमन।
वीर सिन्धु-शिव-धर्म-अजित-श्रेयांस व अभिनंदन को नमन।।
सप्तम पट्टाचार्य सूरि श्री अनेकान्तसागर को नमन।
गुरुपथ के अनुयायी हे गुरु! तव पद में शत-शत वन्दन।।