तर्ज—हे वीर तुम्हारे द्वारे पर………
हे वीतराग सर्वज्ञ देव! तुम हित उपदेशी कहलाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।टेक.।।
संसार दुखों से घबराकर, इक मानव हितपथ ढूंढ़ रहा।
निर्ग्रन्थ दिगम्बर गुरु को लख-कर प्रश्न एक वह पूछ रहा।।
आत्मा का हित वैâसे होता, वैâसे प्राणी निजसुख पाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।१।।
रत्नत्रय ही है मोक्षमार्ग, जो आतमसुख का कारण है।
गुरु कहते इससे ही होता, दु:खों का सहज निवारण है।।
पाँचों ही सम्यग्ज्ञानों से, मानव सच्चा सुख पा जाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।२।।
मति श्रुत अवधि ये तीन ज्ञान, मिथ्यात्वरूप भी होते हैं।
सम्यक्त्व सहित ‘‘चंदनामती’’, ये मोक्ष प्राप्ति में हेतू हैं।।
तत्त्वार्थसूत्र अध्याय प्रथम में, यही सार गुरु समझाते।
तव गुणमणि की उपलब्धि हेतु, हम भी प्रभु तेरे गुण गाते।।३।।