तदनंतर सुषमसुषमा नामक काल प्रविष्ट होता है काल स्वभाव से मनुष्य तिर्यंचों की आयु, अवगाहना आदि आगे बढ़ती जाती है। उस समय यह पृथ्वी उत्तम भोगभूमि के नाम से प्रसिद्ध हो जाती है। उस काल के अंत में मनुष्यों की आयु तीन पल्य प्रमाण और ऊँचाई तीन कोस प्रमाण है। उस समय के मनुष्य सूर्य के समान स्वर्ण वर्ण वाले हैं। उन मनुष्यों की पृष्ठ भाग की हड्डियां दो सौ छप्पन होती हैं तथा वे बहुत प्रकार की विक्रिया करने में समर्थ ऐसी शक्तियों से संयुक्त होते हैं।
इस प्रकार से फिर नियम से वही अवसर्पिणी काल प्रवेश करता है। इस प्रकार आर्यखंड में छह काल प्रवर्तते रहते हैं।