श्री ऋषभदेव के तृतिय पुत्र, माँ यशस्वती के नंदन हो।
तज पुरिमतालपुर नगर राज्य, मुनि बने जगत अभिनंदन हो।।
सब ऋद्धि समन्वित गणधर गुरु, हे ‘ऋषभसेन’ तुमको वंदन।
तुम प्रथम तीर्थंकर के प्रथमहि, गणधर हम करते नित्य नमन।।