अथ नाभेरभूद्देवी मरुदेवीति वल्लभा।
देवी शचीव शक्रस्य शुद्धसंतानसंभवा१।।६।।
निश्चितश्चापि षण्मासान् पतन्त्या वसुधारया।
नाभिना मरुदेव्या च प्रार्थ्यस्तीर्थकरोद्भव:२।।५५।।
पूर्णेषु तेषु मासेषु निपतद्वसुवृष्टिषु।
जिनं सा सुषुवे देवी सोत्तराषाढसंनिधौ३।।१०३।।
ततस्तमृषभं नाम्ना प्रधानपुरुषं सुरा:।
युगाद्यमभिधायेत्थं शक्राद्या: स्तोतुमुद्यता:४।।१९६।।
मतिश्रुतावधिश्रेष्ठचक्षुषा वृषभ! त्वया।
जातेन भारते क्षेत्रं द्योतितं भुवनत्रयम्५।।१९७।।
स जगत्त्रयरूपिण्या नन्दया च सुनन्दया।
प्रौढयौवनया प्रौढश्चिकीड विधिनोढया१।।१८।।
भरतानन्दनं नन्दा नन्दनं चक्रवर्तिनम्।
भरताख्यं सुतां ब्राह्मीमपि युग्ममसूत सा२।।२१।।
सुनन्दा बाहुबलिनं महाबाहुबलं सुतम्।
तथैव सुषुवे लोके सुन्दरामपि सुन्दरीम्३।।२२।।
अष्टानवतिरस्येति नन्दायां सुन्दरा: सुता:।
जाता वृषभसेनाद्या वेद्याश्चरमविग्रहा:४।।२३।।
राजा वो रक्षणे दक्ष: स्थापितो भरतो मया।
स्वधर्मवृत्तिभिर्नित्यं सेव्यतां सेव्यतां श्रित:५।।९५।।
एवमुक्त्वा प्रजा यत्र प्रजापतिमपूजयन्।
प्रदेश: स प्रयागाख्यो यत: पूजार्थयोगत:६।।९६।।
अथानन्तर राजा नाभिराज की मरुदेवी नाम की पट्टरानी थी। ये शुद्ध कुल में उत्पन्न हुई थी तथा जिस प्रकार इन्द्रों को इन्द्राणी प्रिय होती है, उसी प्रकार राजा नाभिराज को प्रिय थी।।६।।
इस प्रकार लोक में जो दूसरों के लिए दुर्लभ थी, ऐसी देवियों द्वारा अपनी आज्ञा की पूर्ति देखकर तथा लगातार छह मास से पड़ती हुई रत्नधारा से राजा नाभिराज और मरुदेवी ने निश्चय कर लिया कि हमारे यहाँ सबके द्वारा प्रार्थनीय तीर्थंकर का जन्म होगा।।५५।।
तदनन्तर नौ माह पूर्ण होने पर जब लगातार रत्नों की वर्षा हो रही थी, तब उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के समय माता ने जिन-बालक को उत्पन्न किया।।१०३।।
तदनन्तर युग की आदि में हुए उन प्रधान पुरुष का ऋषभ नाम रखकर इन्द्र आदि देव उनकी इस प्रकार स्तुति करने के लिए तत्पर हुए।।१९६।।
हे ऋषभदेव! मति, श्रुत और अवधिज्ञानरूपी श्रेष्ठ नेत्रों को धारण करने वाले आप यद्यपि भरतक्षेत्र में उत्पन्न हुए हैं फिर भी आपने तीनों लोकों को प्रकाशमान कर दिया है।।१९७।।
जब भगवान् पूर्ण युवा हुए, तब तीनों लोकों की अद्वितीय सुन्दरी प्रौढ़ यौवनवती नन्दा और सुनन्दा के साथ उनका विधिपूर्वक विवाह हुआ और उनके साथ वे क्रीड़ा करने लगे।।१८।।
नन्दा ने भरतक्षेत्र को आनन्दित करने वाले भरत नामक चक्रवर्ती पुत्र को और ब्राह्मी नामक पुत्री को युगल रूप में उत्पन्न किया।।२१।।
और सुनन्दा नामक दूसरी रानी ने महाबाहुबल से युक्त बाहुबली नामक पुत्र तथा संसार में अतिशय रूपवती सुन्दरी नामक पुत्री को जन्म दिया।।२२।।
भरत और ब्राह्मी के सिवाय भगवान् की नन्दा रानी के वृषभसेन को आदि लेकर अठानवे पुत्र और हुए। उनके ये सभी पुत्र चरमशरीरी थे।।२३।।
अतिशय चतुर भरत को मैंने आप लोगों की रक्षा करने में नियुक्त किया है। आप लोग निरन्तर अपने धर्म में स्थिर रहते हुए उसकी सेवा करें, वह आपकी सेवा का पात्र है।।९५।।
भगवान के ऐसा कहने के बाद प्रजा ने उनकी पूजा की। प्रजा ने जिस स्थान पर भगवान की पूजा की, वह स्थान आगे चलकर पूजा के कारण प्रयाग इस नाम को प्राप्त हुआ है।।९६।।