श्रीमान् ऋषभदेवस्त्वं, प्रथमस्तीर्थकृन्मत:।
सर्वा विद्याकला युष्मद्, नमस्तुभ्यं शिवाप्तये।।१।।
प्रथमश्चक्रवर्ती यो, भरतेशो भुवि श्रुत:।
नमस्तस्मै सुभक्त्याहं, यस्य नाम्नेह भारतम्।।२।।
प्रथम: कामदेवो यो, बाहुबली महाबली।
वर्षैक: प्रतिमायोगी, बलर्द्धिप्राप्तये नम:।।३।।
गणीन्द्र: प्रथमो ज्ञेय:, ऋषभसेननामभाक्।
चतुर्ज्ञानर्द्धिसंपन्नो, नमस्तुभ्यं स्वसंपदे।।४।।
प्रथमो मोक्षगामी योऽ-नंतवीर्य: प्रभो: सुत:।
गुणानन्तर्द्धिसंप्राप्त्यै, ते नमोऽस्तु सदा मुदा।।५।।
पंचमहापुरूषांस्तान्, युगादौ प्रथमान् भुवि।
पंचमज्ञानमत्याप्त्यै, एषां च प्रतिमा: स्तुवे।।६।।
जय जय आदीश्वर ऋषभदेव, इस युग के प्रथम तीर्थकर हो।
जय जय कर्मारिजयी जिनवर, तुम परमपिता परमेश्वर हो।।
जय युगस्रष्टा असि मषि आदिक, किरिया उपदेशी जनता को।
त्रय वर्ण व्यवस्था राजनीति, गृहिधर्म बताया परजा को।।१।।
निज पुत्र पुत्रियों को विद्या-अध्ययन करा निष्पन्न किया।।
भरतेश्वर को साम्राज्य सौंप, शिवपथ मुनिधर्म प्रशस्त किया।।
इक सहस वर्ष तप करके प्रभु, कैवल्यज्ञान को प्रकट किया।
अठरह कोड़ाकोड़ी सागर, के बाद मुक्ति पथ प्रकट किया।।२।।
तुम प्रथम पुत्र भरतेश प्रथम, चक्रेश्वर हो षट्खंडजयी।
जिन भक्तों में थे प्रथम तथा, अध्यात्म शिरोमणि गुणमणि ही।।
सब जन मन प्रिय थे सार्वभौम, यह भारतवर्ष सनाथ किया।
दीक्षा लेते ही क्षण भर में, निज केवलज्ञान प्रकाश किया।।३।।
हे ऋषभदेव सुत बाहुबली, तुम कामदेव प्रथमे प्रगटे।
सुत थे द्वितीय पर अद्वितीय, चक्रेश्वर को भी जीत सके।।
तुमने दीक्षा ले एक वर्ष का, योग लिया ध्यानस्थ हुए।
वन लता भुजाओं तक फैली, सर्पों ने वामी बना लिये।।४।।
इक वर्ष पूर्ण होते ही तो, भरतेश्वर ने आ पूजा की।
उस ही क्षण तुम हुए निर्विकल्प, तब केवलज्ञान की प्राप्ति की।।
श्री ऋषभदेव के तृतीय पुत्र, माँ यशस्वती के नंदन हो।
तज पुरिमतालपुर नगर राज्य, मुनि बने जगत अभिनंदन हो।५।।
सब ऋद्धि समन्वित गणधर गुरु, हे ‘‘ऋषभसेन’’ तुमको वंदन।
तुम प्रथम तीर्थकर के पहले, गणधर हम करते नित्य नमन।।
ऋषभेश्वर सुत श्री अनंतवीर्य, ये सबसे पहले मोक्ष गये।
इनके चरणों में नित्य नमूँ, इन वंदत वांछित सिद्ध भये।।६।।
युग के ये पाँच प्रथम माने, ये महापुरुष सुरवंदित हैं।
इन भक्ती स्तुति करने से, होता मुझ हृदय प्रफुल्लित है।।
मैं पंचम ज्ञानमती हेतू, पंचांग प्रणाम करूँ नित ही।
भव पंच परावर्तन छूटे, पंचमगति प्राप्ती चहूँ सही।।७।।
वीर अब्द पच्चीस सौ, पैंतालिस विख्यात।
आश्विन शुक्ला प्रतिपदा, स्तवन किया नतमाथ।।८।।
पढो पढ़ावो भक्ति से, मनुज जन्म हो धन्य।
पंचम चारित प्राप्त कर, पावो परमानन्द।।९।।