स्वस्ति श्री मूलसंघ में कुन्दकुन्दाम्नाय, सरस्वती गच्छ, बलात्कारगण में बीसवीं सदी के प्रथम दिगम्बर जैनाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टशिष्य आचार्यश्री वीरसागर महाराज हुए हैं। उनका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है-
जन्म – आषाढ़ शु. १५, सन् १८७६, वि.सं. १९३३
ग्राम – वीर (जि.-औरंगाबाद, महाराष्ट्र)
नाम – हीरालाल जैन
जाति, गोत्र – खण्डेलवाल, गंगवाल
पिता – श्री रामसुख जैन
माता – श्रीमती भाग्यवती जैन (भागू बाई)
क्षुल्लक दीक्षा – फाल्गुन शु. ७, सन् १९२३ (वि.सं. १९८०)
नाम – श्री वीरसागर महाराज
मुनिदीक्षा – आश्विन शु. ११, सन् १९२४ (वि.सं. १९८१)
ग्राम – समडोली-महाराष्ट्र
दीक्षागुरु – चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज
आचार्य पद घोषणा – कुंथलगिरि में आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज द्वारा प्रथम भाद्रपद शु. ७, सन् १९५५ (वि.सं. २०१२)
आचार्यपदारोहण – द्वि. भाद्रपद कृ. ७, सन् १९५५ (वि.सं. २०१२)
स्थान – खानिया-जयपुर (राज.)
समाधिमरण – आश्विन कृ. अमावस्या, सन् १९५७
(वि.सं. २०१४)
स्थान -खानिया-जयपुर (राज.)
आपके द्वारा दीक्षित मुनि श्री शिवसागर जी एवं मुनि श्री धर्मसागर जी इसी परम्परा के द्वितीय एवं तृतीय पट्टाचार्य बने हैं। ऐसे ही आपके द्वारा दीक्षित आचार्यकल्प श्री श्रुतसागर महाराज आदि अनेक मुनि एवं आर्यिका श्री वीरमती जी, आर्यिका श्री सुमतिमती जी, गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती जी, गणिनी आर्यिका श्री सुपार्श्वमती जी आदि अनेक आर्यिकाएँ प्रसिद्ध हुई हैं।द्वितीय पट्टाचार्य श्री शिवसागराचार्य के द्वारा दीक्षित मुनि श्री अजितसागर, मुनि श्री श्रेयांससागर व मुनि श्री अभिनंदनसागर क्रम से चतुर्थ, पंचम एवं षष्ठ पट्टाचार्य हुए हैं एवं छठे पट्टाचार्य श्री अभिनंदनसागर जी द्वारा दीक्षित मुनि श्री अनेकांतसागर जी इसी पट्ट परम्परा के सातवें पट्टाचार्य आज धर्मप्रभावना करते हुए श्री प्रथमाचार्य शांतिसागर जी की परम्परा को वृद्धिंगत कर रहे हैं।