कुन्दकुन्द के ग्रन्थ नव, चिंतन कर चिरकाल।
‘ज्ञानमती’ गुम्फित करी, कुन्दकुन्द मणिमाल।।१।।
पच्चीस सौ सत्याशिवां, चैत्र त्रयोदशि शुद्ध।
वीर जनम दिन पूर्ण कीr, यह मणिमाल विशुद्ध।।२।।
भविजन पहनो कण्ठ में, इसका अतिशय तेज।
पूर्ण ‘ज्ञानमति’ रवि उगे, खिलें स्वगुण पंकेज।।३।।
अर्थ—श्रीकुन्दकुन्ददेव के नौ ग्रन्थों का बहुत दिनों तक चिंतन करके ‘‘आर्यिका ज्ञानमती’’ मैंने यह ‘कुन्दकुन्द मणिमाला’ गूँथी है। पच्चीस सौ सत्यासीवें वीर जयंती दिवस चैत्रसुदी तेरस को यह विशुद्ध मणिमाला पूरी की है। हे भव्य जीवों! तुम इसे अपने कंठ में पहनो, यह अतिशय तेजोमयी है। इससे पूर्ण केवल ज्ञानमती सूर्य उदित होगा जिससे अपने गुणरूपी कमल खिल जाएँगे।
भावार्थ—श्रीकुन्दकुन्ददेव के दशभक्ति, अष्टपाहुड़, द्वादशानुप्रेक्षा, रयणसार, मूलाचार, पंचास्तिकाय, नियमसार, प्रवचनसार और समयसार ये नौ ग्रन्थ हैं। छत्तीस वर्ष के दीक्षित—संयमी जीवन में मैंने उनका चिंतन-पठन-पाठन-अभ्यास किया है पुन: उनमें से १०८ गाथाओं को चुनकर यह ‘कुन्दकुन्द मणिमाला’ पिरोई है। वीर निर्वाण संवत् २५१५ और भगवान महावीर की आयु के ७२ वर्ष मिलाकर चैत्र सुदी तेरस के दिन अर्थात् २५८७वें वीर जयंती दिन यह मणिमाला पूरी हुई है। हे भव्य नर-नारियों! तुम इसे कंठाग्र कर लो, इसके तेज के प्रभात में केवलज्ञानमय सूर्य उदित होगा जिसके उगते ही अपनी आत्मा के अनंत ज्ञान- दर्शन आदि अनंत गुण प्रकट हो जाएँगे।
इति शं भूयात्।
दोहा
कुन्दकुन्द के नवरतन, इस युग में वरदान।
जो करते इनमें रमण, पाते पद निर्वाण।।१।।
युग की पहली ज्ञानमति, गणिनी माता ख्यात।
इक सौ अठ पद युक्त कृति, जग को दीनी मात।।२।।
मणिमाला की पद्यमय, रचना पूरण जान।
किया ‘‘चंदनामति’’ सुगम, मावस ज्येष्ठ सुमान।।३।।