-दोहा-
शांतिनाथ तीर्थेश को, नमूँ अनन्तों बार।
कुंथुनाथ अरनाथ को, नमूँ भक्ति उरधार।।१।।
कुंदकुंद आम्नाय में, गच्छ सरस्वती मान्य।
बलात्कारगण सिद्ध है, उनमें सूरि प्रधान।।२।।
सदी बीसवीं के प्रथम, शांतिसागराचार्य।
उनके पट्टाचार्य थे, वीरसागराचार्य।।३।।
देकर दीक्षा आर्यिका, दिया ज्ञानमती नाम।
गुरुवर कृपा प्रसाद से, सार्थ हुआ कुछ नाम।।४।।
वीर अब्दपच्चीस सौ, छ्यालिस ज्येष्ठ सुमास।
सित दशमी चौबीसवाँ, प्रतिष्ठापनादिन आज।।५।।
भारत की राजधानी में, दिल्ली शहर प्रधान।
प्रीतविहार कालोनी में, कमल जिनालय मान्य।।६।।
ऋषभदेव प्रतिमा यहाँ, अतिशय महिमापूर्ण।
आर्ष प्रसिद्ध परम्परा, करे कामना पूर्ण।।७।।
अनिलकुमार प्रसिद्ध ये, श्रावकगुण सम्पन्न।
जिनमंदिर निर्माणकर, किया जन्म को धन्य।।८।।
पत्नी, पुत्र व पुत्रियाँ, सभी धर्म में श्रेष्ठ।
यह परिवार सदा रहे, सुख संपत्ति में ज्येष्ठ।।९।।
परम अहिंसा धर्म यह, जब तक जग में मान्य।
कमल जिनालय ऋषभ प्रभु, करें जगत कल्याण।।१०।।
ऋषभदेव गुणगान कर, करें मनोरथ सिद्ध।
‘‘ऋषभदेव स्तुति’’ पुस्तिका, तब तक दे सुख सिद्धि।।११।।