वीर अब्द पच्चीस सौ-अड़तीस आश्विन मास।
शरदपूर्णिमा शुभ तिथी, पाया ज्ञान प्रकाश।।१।।
जम्बूवृक्षादिक कहे, शाश्वत वृक्ष महान्।
इनमें जिनमंदिर नमूँ बनूँ स्वात्मनिधिमान्।।२।।
ग्रन्थ पूर्णता प्राप्त यह, करे भव्य मन वास।
तब तक यह जग में रहे, जब तक रवि आकाश।।३।।
समाप्तम्