तीनलोक प्रश्नोत्तर
(तीनलोक के जिनमंदिर पुस्तक से – गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित )
(प्रश्नोत्तर लेखिका- आ़. सुदृष्टिमती माताजी)
प्रश्न १- तीनलोक की ऊँचाई व मोटाई का प्रमाण बतालाओ?
उत्तर- तीनलोक की ऊँचाई १४ राजु प्रमाण है एवं मोटाई सर्वत्र ७ राजु है।
प्रश्न २- तीनलोक के जड़भाग से लोक की ऊँचाई का प्रमाण बतलाओ?
उत्तर- अधोलोक की ऊँचाई ७ राजु प्रमाण है। इसमें सात भूमियाँ है ऊर्ध्वलोक की ऊँचाई ७ राजु है। इसमें प्रथम स्वर्ग से लेकर सिद्ध शिला पर्यत्न व्यवस्था है। अधोलोक के तलभाग में लोक की चौड़ाई ७ राजु हैं यह चौड़ाई घटते-२ मध्यलोक में एक राजु रह गयी है। मध्यलोक से बढ़ते-२ ब्रह्ममलोक (५ वें स्वर्ग) तक ५ राजु हो गई हैं पुन: ब्रह्मस्वर्ग के ऊपर घटते-२ सिद्धशिला तक चौड़ाई १ राजु रह गई हैं। इस प्रकार यह लोक पैर फैलाकर खड़े हुये एवं कमर पर हाथ रखे हुये पुरूष के समान बन गया है।
प्रश्न ३- त्रस नाली कहा है, उसकी चौड़ाई व ऊँचाई बतलाओं?
उत्तर- तीनो लोको के बीच में १ राजु चौड़ी तथा १४ राजु ऊँची-लम्बी त्रसनाली है।
प्रश्न ४- त्रसनाली में किन जीवों का निवास है?
उत्तर- त्रसनाली में त्रसजीव-दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव पाये जाते है।
प्रश्न ५- स्थावर जीवों का निवास स्थान कहाँ है?
उत्तर- सम्पूर्ण लोक में स्थावर- एकेन्द्रिय जीव ही रहते हैं।
प्रश्न ६- इस लोक के कितने भेद हैं उनके नाम बतलाओ?
उत्तर- इस लोक के अधोलोक, मध्यलोक और उर्ध्वलोक के भेद से ३ भेद है।
प्रश्न ७- अधोलोक में कितनी पृथ्वी है उनके नाम बतलाओ?
उत्तर- अधोलोक में ७ पृथ्वी हैं उनके नाम- रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा धुमप्रभा तम:प्रभा और महातम:प्रभा ।
प्रश्न ८- नरको के दूसरे नाम बतलाओ?
उत्तर- धम्मो, वंशा, मेघा, अंजना, अरिष्टा, मघवी और माघवी ये इन पृथवियों के अनादि निधन नाम है।
प्रश्न ९- कितने राजु में नरक का समावेश है?
उत्तर- सात राजु नरक का समावेश है-
१ राजु- रत्नप्रभा शर्वâराप्रभा
१ राजु- बालुका प्रभा
१ राजु पंकप्रभा
१ राजु धूमप्रभा
१ राजु तम:प्रभा
१ राजु महातम: प्रभा
१ राजु में नित्यनिगोद ऐसे सात राजु हुये।
प्रश्न १०- तीन लोका का धनफल क्रमश?
उत्तर- अधोलोक १९६ राजु-उर्ध्वलोक घन फल १४७ राजु उक्त १९६ १४७• ३४३ राजु लोक का घन फल है।
प्रश्न ११- राजु किसे कहते है?
उत्तर- असंख्यातो योजन का एक राजु होता है।
प्रश्न ११- प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी के ३ भाग, कौन से है?
उत्तर- रत्नप्रभा पृथ्वी के ३ भाग है, खरभाग, पंकभाग, अब्बहुलभाग।
प्रश्न १२- खरभाग पंकभाग में कौनसे देव निवास करते है?
उत्तर- खरभाग पंकभाग में भवनवासी, व्यन्तरवासी देवो के निवास हैं ।
प्रश्न १३- अब्बहुल भाग में क्या है?
उत्तर- अब्बहुलभाग में प्रथम नरक हैं जिसमें नारकियों के निवास है।
प्रश्न १४- अधोलोक के सबसे नीचे किसका स्थान है?
उत्तर- अधोलोक में सबसे नीचे निगोद स्थान है। वहाँ यह अनादि काल से एकेन्द्रिय अवस्था में है। वहाँ एक श्वास में १८ बार जन्म मरण होता है। इतनी तुच्छ अल्पायु में है। हम और आप सभी वहाँ से आकर त्रस पर्याय को प्राप्त कर मनुष्य हुये है।
प्रश्न १५- निचे निगोदस्थान के पश्चात् क्या है?
उत्तर- पुन: सातवा नरक हैं ऐसे क्रम से छठा, पाँचवा, चौथा तीसरा दूसरा एवं पहला नरक है।
प्रश्न १६- इन नरको में नारकियों को क्या दुख है?
उत्तर- इन नरको में नारकी जीव प्रतिक्षण दुख भोग रहे है। आरे से चीरा जाना, कढ़ाई में तले जान, तिल-२ बराबर टुकड़े किये जान आदि कष्ट आपस में एक दूसरे को देते रहते है।
प्रश्न १७- नरको में जाने का क्या कारण है?
उत्तर- झूठ चोरी, शिकार, व्यभिचार आदि पाप करते है वे नरको में जाकर दुख भोगते हैं। इन नारकियों के दुख देखकर हम पाप करने की प्रतिज्ञा करे।
प्रश्न १८- भवनवासी देव कितने प्रकार के है और कौन से है?
उत्तर- भवनवासी देवो को १० भेद है- असुरकुमार नागकुमार विद्युत कुमार, सुपर्ण कुमार, अग्नि कुमार वातकुमार, सानितकुमार द्वीप कुमार, दिककुमार।
प्रश्न १९- भवनवासी देवो की भवनवासी यह संज्ञा क्या है?
उत्तर- भवनों में रहने के कारण इनको भवनवासी कहते है।
प्रश्न २० – भवनवासी के असुरकुमारादि देवो के भवन कहाँ है?
उत्तर- रत्नप्रभा भूमि के पंकबहुल भाग में असुरकुमार के भवन है और खरभाग में नौ प्रकार के नागकुमारादि के भवन है।
प्रश्न २१- ये नरक ७ भूमियों कैसी है उनमें एक दूसरे कितना अंतराल है?
उत्तर- ये नरक की सातभूमियाँ न तिरछी है न एक दूसरे के ऊपर-२ है। अपितु एक दूसरे के नीचे नीचे है। एक सातो भूमियाँ एक दूसरे से एक राजु प्रमाण अंतराल में स्थित है।
प्रश्न २२- सातो नरकों में कुल कितने पटल है?
उत्तर- कुल ४७ पटल है।
प्रश्न २३- प्रथम रत्नप्रभा भूमि की मोटाई बताओ?
उत्तर- प्रथम रत्नप्रभा भूमि १ लाख ८० हजार योजन मोटी है। इसके तीन भाग पंकभाग, खरभाग, अब्बहुल भाग।
प्रश्न २४- खरभाग कितने हजार योजन का है और वहाँ कौन निवास करता है?
उत्तर- खरभाग १६ हजार योजन का है उसमें सात प्रकार के व्यन्तर और नौ प्रकार के भवनवासी देव रहते है।
प्रश्न २५- पंकभाग कितने हजार योजन का है और वहाँ कौन निवास करता है?
उत्तर- पंकभाग में ८४ हजार योजन में राक्षस और असुरों के भवन हैं
प्रश्न २६- १० प्रकार भवनवासी देवो के भवन कहाँ है और कितने कितने है?
उत्तर- अधोलोक में प्रथम पृथ्वी के ३ भाग में से खरभाग में भवनवासी देवो के भवन है। भवनवासी देवो के १० भेद हैं असुरकुमार आदि । इसके क्रमश: ६४ लाख आदि भवन है। प्रत्येक भवनो में विशाल जिनमन्दिर है।
प्रश्न २७- भवनवासी १० भेदो में, प्रत्येक के भी कुछ भेद है क्या?
उत्तर- इन प्रत्येक भवनवासी देवो में इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिस , पारिषद, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक प्रकीर्णक, आभियोग्य-किल्विषक, ऐसे १० भेद माने है।
प्रश्न २८- अधोलोक में कुल जिनालय कितने है?
उत्तर- अधोलोक में कुल जिनालय ७ करोड़ ७२ लाख जिनालय है।
प्रश्न २९- भवनवासी देवो के जिनालय की संख्या कितनी है?
उत्तर- भवनवासी देवों के चैत्यालय की संख्या इस प्रकार है- (१) असुरकुमारों के ६४ लाख
(२) नागकुमारों के ८४ लाख
(३) सुपर्णकुमारों के ७२ लाख
(४) द्वीपकुमारों के ७६ लाख
(५) उदधि कुमारों के ७६ लाख
(६) स्तनित कुमारों के ७६ लाख
(७) विद्युतकुमारों के ७६ लाख
(८) दिक्कुमारों के ७६ लाख
(९) अग्निकुमारों के ७६ लाख
(१०) वायुकुमारों के ९६ लाख कुल जिनालय संख्या ७,७२०००००।
प्रश्न ३०- व्यन्तर देवो के जिनालयो की संख्या बतलाइये?
उत्तर- व्यन्तर देवों के संख्यातीत जिनालय है।
प्रश्न ३१- अधोलोक का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर- अधोलोक का दूसरा नाम नरकलोक है।
प्रश्न ३२- तीन लोक के आकार बतलाओ?
उत्तर- अधोलोक वेत्रासन के समान है, मध्यलोक झालर के समान है और उर्ध्वलोक मृदंग के आकारवत् है।
प्रश्न ३३- नरक में जाने वाले जीव कौनसी गति के होते है?
उत्तर- कर्मभूमि के पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य ही मरकर नरक जाते है।
प्रश्न ३४- सात नरक के बिलो की संख्या बतलाओ?
उत्तर- सात नरक के बिलो की संख्या ८४ लाख प्रमाण है।
प्रश्न ३५- १० प्रकार के भवनवासी के मुकुट मे कौन कौन से चिन्ह होते है?
उत्तर- दस भवनवासी देवो के मुकुट में क्रम से चुड़ामणि, सूर्य गरूड़, हाथी, मगर, वद्र्धमान, (स्वस्तिक) वङ्का, सिंह, कलश और तुरग ये १० चिंह होते है।
प्रश्न ३६- भवनवासी के १० भेदो में प्रत्येक देव के इन्द्र के कितने भेद है?
उत्तर- भवनवासी के १० भेदो में पृथक पृथक दो-दो इन्द्र होते है। ये सब मिलाकर २० इन्द्र होते है जो अपनी अपनी विभूति से शोभायमान है।
प्रश्न ३७- भवनवासी १० देवों में प्रत्येक के पृथक पृथक वो इन्द्रो नाम बतलाओ?
उत्तर- (१) असुरकुमार में – चरमइन्द्र वैराचन इन्द्र।
(२) नागकुमार में – भूतानंद-धरणानंद।
(३) सुपर्णकुमार में- वेणुदेव वेणुधारी।
(४) द्वीपकुमार में-पूणणर््वशिष्ठि।
(५) उदधिकुमार में- जलप्रभ जलकांत
(६) स्तनित कुमार में- घोष महाघोष
(७) विद्युत् कुमार मे- हरिषेण हरिकांत
(८) दिक्कुमार में – अमितगतिअमितवाहन
(९) अग्निकुमार मे- अग्नि शिखी अग्निवाहन।
(१०) वायुकुमार – वेलंब प्रभंजन।
प्रश्न ३८- भवनवासी देवो के साथ कुमार शब्द का प्रयोग क्यो किया जाता है?
उत्तर- इन सब देवो का वय, स्वभाव, अवस्थित है सो भी इन की वेषभूषा, शस्त्र यान, वाहन और क्रीड़ा आदि कुमारों के समान होती है। इसलिये भवनवासीयों कुमार शब्द लगाया जाता है।
प्रश्न ३९- भवनवासि के १० भेदो के २० इन्द्र बताये उनमें जो दो भेद है वह बतलाइये?
उत्तर- २० इन्द्रो में प्रथम १० इन्द्र दक्षिणेन्द्र कहलाते है आगे के १० इन्द्र उतरइन्द्र कहलाते है।
प्रश्न ४०- १० दक्षिण इन्द्रो के भवनो की मन्दिरों की बतलाओ?
उत्तर- (१) चमरइन्द्रों के भवनो की संख्या- ३४ लाख
(२) भूतानंद इन्द्रो के भवनो की संख्या – ३४ लाख
(३) वेणुइन्द्रो के भवनो की संख्या ३८ लाख
(४) पूर्ण इन्द्रो के भवनो की संख्या- ४० लाख
(५) जलप्रभ इन्द्रो के भवनो की संख्या- ४० लाख
(६) घोष इन्द्रो के भवनो की संख्या- ४० लाख
(७) हरिषेण इन्द्रो के भवनो की संख्या- ४० लाख
(८) अमितगति इन्द्रो के भवनों की संख्या- ४० लाख
(९) अग्निशिखी इन्द्रो के भवनो की संख्या- ४० लाख
(१०) वेलम्ब इन्द्रो के भवनो की – संख्या ५० लाख इन दक्षिण इन्द्रो के भवनों का प्रमाण ४ करोड़ ६० लाख है।
प्रश्न ४१- उत्तर इन्द्रो के भवनो की व उनके मन्दिरों की संख्या बतलाओ?
उत्तर- उत्तरइन्द्रो के नाम- भवन संख्या
वैरोबन- ३० लाख
धरणानंद- ४० लाख
वेणुधारी- ३४ लाख
वशिष्ठ – ३६ लाख
जलकांत- ३६ लाख
महाघोष- ३६ लाख
कहरकांत – ३६ लाख
इन उत्तरइन्द्रो को कुलजोड़ ३ करोड़ ६६ लाख प्रमाण है इस प्रकार ४०,६०००००+ ३६,६०००००= ७,७२००००० हुआ।
प्रश्न ४२- भवनवासी के १० भेदो में एक-एक इन्द्र के भवन में क्या विशेषता है?
उत्तर- भवनवासी के १० भेदो में एक एक इन्द्र के भवन में ओलगशाला के आगे एक एक चैत्यवृक्ष है।
प्रश्न ४३- प्रत्येक १० इन्द्रो (भवनवासी) के प्रत्येक के चैत्यवृक्षों के नाम बतलाओ?
उत्तर- असुरकुमारेन्द्र का चैत्यवृक्ष पीपल है। इसकी कटनी पर जिनप्रतिमाये है। इसे ही नागकुमारेन्द्र का सप्तपर्ण, सुपर्ण का शाल्मलि, द्वीपकुमार का जामुन, उदधि कुमार का वेंतस, सनितकुमार का कदम्ब, विद्युत् कुमार का प्रियंगु, दिक्कुमार का शिरीष, अग्निकुमार का पलाशा, और वायुकुमार का चिरोंजी चैत्यवृक्ष है।
प्रश्न ४४- कुलमिलाकर भवनवासी देवो के भवन, उनमें मन्दिरो की संख्या, और विशेषता बतलाओ?
उत्तर- कुलमिलाकर भवनवासी देवो के भवन ७ करोड़ ७२ लाख हैं इन प्रत्येक भवनो में १-१ जिनमन्दिर है अत: भवनवासी के ७,७२,०००,०० जिनमन्दिर है। इनके चैत्यवृक्षों में भी प्रतिमायें विराजमान है।
प्रश्न ४५- भवनवासी देवों के निवास स्थानो के कितने भेद होते है?
उत्तर- भवनवासी देवो के निवास स्थान, भवन, भवनपुर और आवास के भेद से तीन प्रकार के होते है।
प्रश्न ४६- भवन, भवनपुर और आवास स्थान किसे कहते है?
उत्तर- चित्रापृथ्वी के नीचे जो में स्थित निवासस्थानो को भवन, द्वीप समुद्रो के ऊपर स्थित निवासस्थानों को भवनपूर कहते है। और रमणीय तालाब पर्वत तथा वृक्षादिक के ऊपर स्थित निवास स्थानों को आवास कहते है।
प्रश्न ४७- सभी भवनवासी देवो के निवास स्थान समान हैं क्या? या नहीं हैं।
उत्तर- नागकुमारादि देवों में से किन्हीं के तो भवन, भवनपूर व आवास रूप तीनों प्रकार के निवास स्थान हैं। किन्तु असुर कुमारों के केवल एक भवन रूप ही निवास स्थान है।
प्रश्न ४८- चित्रा पृथ्वी कहाँ है चित्रा पृथ्वी के नाम की सार्थकता बतलाओ?
उत्तर- इस मध्यलोक में सबसे प्रथम चित्रापृथ्वी है जिसके ऊपर के भाग पर ही मध्यलोक की रचना है। इस चित्रा पृथ्वी में अनेक वर्णों से युक्त महीतल, शिलातल उपपाद, बालु, शक्कर शीशा चांदी, सुवर्ण इनके उन्यति स्थान, व्रज, लोहा, तांबा, रांगा मणिशिाला, सिंगरफ, हरिताल, अंजन प्रवाल गोमेद, रूचक, कदंब, स्फटिक मणि, जलकांतमणि, सूर्यकांतमणि, चन्द्रकान्त मणि, वैडूर्य, गेरू चन्दाश्म आदि विविध वर्णवाली अधासूये है इसलिये इस पृथ्वी का चित्र नाम सार्थक है।
प्रश्न ४९- खरभाग पृथ्वी कीतनी भेदो सहित है वे कौन कौन सी है?
उत्तर- खरभाग पृथ्वी भी १६ भेदो से सहित है। चित्रा व्रजा वैडूर्याकामसारकल्पा, गोमेदा, प्रवाला, ज्योतिरसा, अंजना, अंजनमूलिका अंका, स्फटिका, चंदना सर्वाथका, वकुला और शैला ये १६ भेद हैं।
प्रश्न ५०- भवनवासी देवो १० इन्द्र, १० प्रतिन्द्र उनके मुकुट के बारे में क्या विशेषता है?
उत्तर- सब इन्द्रो के चिंह मणियों से खचित किरीट (तीन शिखर वाला मुकुट)और प्रतीन्द्रिादिक चार देवो का चिन्ह साधारण मुकुट ही जानना चाहिये।
प्रश्न ५१- भवनवासी देवो के भवन के आगे चैत्यवृक्ष होते है उनकी क्या विशेषता है?
उत्तर- भवनवासी देवो के भवन ओलगशाला के आगे विविध प्रकार के रत्नो से निर्मित चैत्यवृक्ष होते हैं । चैत्यवृक्ष असुरादिक कुलो से चिंह रूप होते है। प्रत्येक चैत्यवृक्ष के मूलभाग में चारों और पल्यंकासन से स्थित परम रमणीय पाँच पाँच ाqजनेन्द्र भगवान ने आगम में अनेक प्रकार की सम्पत्ति से युक्त भवनवासी देवो के मानस्तम्भ होते है। एक मानस्तम्भ के ऊपर चारों दिशाओं में सिंहासन के विपास से युक्त २८ जिनप्रतिमायें होती है। इसलिये २० मानस्तम्भो की कुल (२८*२०) ५६० प्रतिमायें होती है।
प्रश्न ५२- अल्पऋद्धिक महद्ऋद्धिक मद्धऋद्धिक धारक भवनवासी देवो के भवनो का विस्तार बतलाओ?
उत्तर-ये सब भवन समचतुष्कोण तथा वङ्कामय द्वारो से शोभायमान है ये भवन ऊँचाई में तीन सौ योजन और विसतार में संख्यात असंख्यात योजन प्रमाण होते है। इनमें संख्यात योजन विस्तार वाले भवनो में संख्यात और शेष असंख्यात योजन विस्तार वाले भवनों में असंख्यात भवनवासी देव रहते है।
प्रश्न ५३- भवनवासी देवो का ऐश्वर्य बतलाओ?
उत्तर- नाना प्रकार के मणियों के आभूषणों से दीप्त तथा अष्टगुण ऋद्धियों से विशिष्टा व भवनवासी देव अपने पूर्व तपश्चरण के फलस्वरूप अनेक प्रकार के इष्ट भोग भोगते है।
प्रश्न ५४- भवनवासी देवो में जन्म लेने का कारण क्या है?
उत्तर- जो जीव मनुष्य पर्याय में तपश्चरण कर पुण्यसंचय करते है और जिनके देवायु का बंध हो जाता है तथा जो बाद में सम्यक्तवादि से च्यूत हो जाते है वे जीव अनेक गुण ऋद्धियों से युक्त भवनवासी देव होकर मनोहरण इष्ट भोग भोगते है।
प्रश्न ५५- भवनो को भूमिगृह की उपमा क्यों दी गई?
उत्तर- जैसे यहाँ मकान में पृथ्वी के नीचे जो कमरा बनाते है उसे तलधर तहखाना या भूमिगृह कहते है। वैसे ही भवनवासियों के भवन रत्नप्रभा पृथ्वी में चित्रा पृथ्वी के नीचे खरभाग और पंकभाग में है आना इन्हें भूमिगृह की उपमा दी गई है।
प्रश्न ५६-भवनो की लम्बाई चौड़ाई व ऊँचाई का जघन्य व उत्कृष्ट प्रमाण और उनका आकार बतलाओ?
उत्तर- भवनों का जघन्य विस्तार संख्यात करोड़ योजन, उत्कृष्ट विस्तार असंख्यात करोड़ योजन है।उनका आकार चौकोर है।
प्रश्न ५७- प्रत्येक भवन के ठीक मध्य में क्या है?
उत्तर- प्रत्येक भवन के ठीक मध्य में सौ योजन ऊँचा एक एक पर्वत है और प्रत्येक पर्वत पर चैत्यालय है।
प्रश्न ५८- नरक बिल भी इसीप्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी में चित्रादि पृथ्वियाँ के नीचे अब्बहुल भाग में बने हुये है, फिर उन्हें भवन संज्ञा न देकर बिलसंज्ञा क्यो दी गई?
उत्तर- जिस प्रकार यहाँ सर्पादि पापी जीवों के स्थानों को बिल कहते हैं और पुण्यवान मनुष्यों के रहने के स्थानों को भूमिगृह आदि कहते हैं। उसी तरह निकृष्ट पाप के फल भोगने वाले नारकी जीवो के रहने के स्थानों की संज्ञज्ञ बिल है और पुण्यवान देवो के स्थानो की संज्ञा भवन है।
प्रश्न ५९- नरक की प्रथम रत्नप्रभा पृथ्वी में १६ हजार योजन की मोटाई में कितनी पृथ्वियों हैं उनके नाम बतलाओ?
उत्तर- चित्तो, व्रजो, बैडूर्या, लोहितांका, मसारगल्ला, गोमेदका, प्रवौला, ज्योतिरसा, अंजना, अंजनमूलका, अंकौ, स्फटिका चन्दना, वर्चका, (सर्वाथका) बहुलौ (बकुला) शिलामय इस प्रकार तलभाग में १६ हजार योजन की मोटाई में ये १६ पृथिवियाँ है।
प्रश्न ६०- रत्नप्रभा नाम की सार्थकता बतलाओ?
उत्तर- इसके तल व उपरिमभाग में रत्नादि है इसीलिये इसका नाम रत्नप्रभा जानना चाहिये।
प्रश्न ६१- शेष ६ पृथिवियाँ कहाँ है उनका प्रत्येक विस्तार कितना है?
उत्तर- शेष ६ पृथिवियाँ पंकबहुल भाग में जानना चाहिये। उन छहों पृथिवियाँ बाहल्य (विस्तार) इसक्रम से है। बत्तीस हजार, २८ हजार, २४ हजार, बीस हजार, सोलह हजार और आठ हजार इस प्रकार यह नीचे नीचे क्रम से उक्त पृथिवियों का विस्तार जानना चाहिये।
प्रश्न ६२- भवनवासी व व्यन्तरों के रहने के स्थानों को बतलाओ?
उत्तर- पंकबहुल भाग में राक्षसों और असुरकुमारों के आवास तथा खरभाग में शेष व्यन्तर और भवनवासी के आवास जानना चाहिये।
प्रश्न ६३- भवनवासी देवो के १० भेदो के नाम बतलाओं?
उत्तर- असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार, उपधिकुमार, स्तनितकुमार, विद्युतकुमार, दिक्कुमार, अग्निकुमार और वातकुमार ये १० प्रकार के कहे गये है।
प्रश्न ६४- चार प्रकार के देवो के रहने का स्थान बतलाओ?
उत्तर- भवनवासी, व्यन्तरवासी , ज्योतिषी और विमानवासी (कल्पवासी) देव के ४ प्रकार के कहे गये है। भवनवासी व व्यन्तरोें के भवन अधोलोक में है। किन्तु व्यन्तरों गृह आवास मध्यलोक में मेरूपर्वत के अग्रभाग पर्यत्न भी है। कल्पवासी देवो का निवास स्थान उध्र्वलोक में है।
प्रश्न ६५- व्यन्तरों के निवास स्थान कितने प्रकार के है?
उत्तर- त्रिलोकसार में व्यन्तरों के निवास तीन प्रकार कहे गये है। (१) भवनपुर (२) आवास (३) भवन । द्वीप समुद्रो में जो स्थान है उन्हे भवनपुर कहते है। तालाब पर्वत आदि पर जो निवास है उन्हे आवास कहते है। और चित्रा पृथ्वी के नीचे जो स्थित है उन्हें भवन कहते है।
प्रश्न ६६- ज्योतिषी देवो के विमान पृथ्वी की उपरीतल से कितने योजन की ऊँचाई पर है?
उत्तर- ज्योतिषी देवो के विमान पृथिवी के उपरीतल से ७०० योजन की ऊँचाई से लेकर ऊपर ९०० योजन तक है।चित्रा पृथ्वी तल पर देव रहते है इसलिये इसको उध्र्वलोक कहा गया हैं।
प्रश्न ६७- भवनवासी देवो के स्थान का विशेष वर्णन बतलाओ?
उत्तर- चित्रा भूमि को छोड़कर (चित्रा के) नीचे खरभाग में नागकुमार आदि ७ प्रकार के भवनवासी देवो के महान वैभवशाली (विमान) भवन है। और असुरकुमार जाति वाले भवनवासी देवो के रत्नमयी भवन दूसरे पंकभाग में है।
प्रश्न ६८- भवनवासी के उत्तम मध्यम जघन्य ऋद्धि के धारक देवो के निवास स्थान कहाँ है?
उत्तर- चित्रापृथिवी के अधोभाग से २००० योजन नीचेतक अल्पऋद्धिकधारक भवनवासी देवो के शाश्वत भवन है। भूतल में ४२ हजार महाऋद्धिधारक भवनवासी देवो के उत्तमभवन है। और चित्राभूमि के नीचे एक लाख योजन तक मध्यमऋद्धि धारक विमानवासी देवो के विपुल भवन है।
प्रश्न ६९- भवनवासी देवो १० प्रकार के देवो के व वर्ण बतलाओ?
उत्तर- सभी असुर कुमार देव कृष्णवर्ण के, नागकुमार और उदधि कुमार पाण्डु वर्ण के , स्तनित कुमार, दिक्कुमार, और सुपर्णकुमार कांचनवर्ण के विद्युतकुमार, द्वीपकुमार, एवं अग्निकुमार ये सभी देव अत्यन्तसुन्दर नील वर्ण के है और वायुकुमार देव लालवर्ण के होते है। इनमें इस प्रकार वर्णभेद है।
प्रश्न ७०- भवनवासी देवो के भवनो की क्या विशेषता होती है?
उत्तर- भवनवासी के प्रत्येक भवन उन्नत चैत्यालय से अलंकृत रत्नमय है दिव्य चैत्यवृक्षो, मानस्तम्भो, कूटो और ध्वजा समूहो से विभूजित है। देवांगनाओं के समूहो से एवं देवो के सौम्य समूहो से भरे रहते है। गीत, नृत्य एवं वाद्य आदि से और जिनपूजन के करोड़ो उत्सवो से युक्त है। देदीप्यमान उनय मणियों के भितियों से निर्मित है दिव्य आयोदो से परिपूर्ण है और पाँचो इन्द्रियों के सम्पूर्ण सुखो को देने वाले है।
प्रश्न ७१- भवनवासियों के भवनो जघन्य व्यास कितना है?
उत्तर- भवनवासियों के जघन्य भवनो का व्यास १ लाख योजन है। मध्यम भवनो का व्यास संख्यात योजन और उत्कृष्ट भवनो का विस्तार असंख्यात है।
प्रश्न ७२- भवनवासी १० कुलो के प्रत्येक के एक एक चैत्यवृक्ष है इन पर मन्दिर कितने है?
उत्तर- ये चैत्यवृक्ष रत्नपीठ पर स्थित रत्नमय किरणों से देदीप्यमान, प्रकाशमान रत्न के उपकरणों से युक्त अत्यन्त रमणीक और शाश्वत ये १० प्रकार के चैत्यवृक्ष असुरादि १० भेदो में प्रत्येक के एक एक है। उन प्रत्येक चैत्यवृक्षो के मूल में चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में देवसमूह से पूज्य परमोत्कृष्ट पाँच पाँच जिनप्रतिमायें है।
प्रश्न ७३- भवनो के प्रत्येक चैत्यवृक्ष की प्रत्येक दिशाओं कितने मानस्तम्भ है?
उत्तर- सम्पूर्ण भवनो (चैत्यवृक्षो) की प्रत्येक दिशा में तीर्थंकर की सर्वोत्कृष्ट प्रतिमाओं से जिनके शिरोभाग विभूषित है ऐसे देदीप्यमान मणियों से निर्मित स्वर्णमय घंटाओं एवं ध्वजाओं से सुशोभित रत्नपीठ स्थित महाउन्नत पाँच पाँच मानस्तम्भ है।
प्रश्न ७४- असुरकुमार का गमन कितने स्वर्ग तक गमन होता है?
उत्तर- असुरकुमार का गमन ऊपर ऐशान स्वर्ग तक होता है।
प्रश्न ७५- रत्नप्रभा का तीसरा भेद अब्बहुल भाग कितना मोटा है नारकी के बिल कहा है?
उत्तर- तीसरा अब्बहुल भाग ८० हजार मोटा है। इसमें ही नरक माने गये है।स इस पृथ्वी में नीचे अैर ऊपर एक एक हजार योजन छोड़कर नारक पटल स्थित है। इस नरकवासो प्रथम नरक बिल माने गये है। उस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे कम शर्करादि ६ पृथ्वी स्थित है।
प्रश्न ७६- शर्करादि पृथिवियों की मोटाई का प्रमाण बतलाओ?
उत्तर- शर्कराप्रभा ३२,००० बालुकाप्रभा २८,००० पंकप्रभा २४,००० धूमप्रभा, २०,००० तम:प्रभा १६०००, महातम:प्रभा, ८००० योजन प्रमाण इनकी मोटाई है। ये सातो पृथिविया तथा लोकतल के मध्य में तिर्यचलोक के विस्तार प्रमाण अर्थात् एक एक राजु अन्तर है। प्रत्येक भूमि के किनारों पर और अधसतलो पर तीन वातवलय स्थित है।
प्रश्न ७७- तीन वातवलय का अर्थ वर्ण, मोटाई बतलाओ?
उत्तर-(१) घनादधिवातवलय- घनवात-मोटीवायु । घनाम्बुवात-घनोदधि। वातवलय । (२) घनवातवलय (३) तनुवातवलय-तनु याने वातयाने वायु-सूक्ष्मवायु। तनुवातवलय में सिद्धो का निवास है। घनोदधि वातवलय गोमूत्र रंग के समान है। घनवात का रंग मूंगे के ये तीनो वातवलय बीस बीस हजार योजन मोटे है।
प्रश्न ७८- तीनो लोको का आकार बतलाइये?
उत्तर- अधोलोक का आकार वेत्रासन के समान है, मध्यलोक झालर के समान है, उध्र्वलोक मृपंग के आकारवत् है।
प्रश्न ७९- नारकियों के बिलो की संख्या कितनी है?
उत्तर- रत्नप्रभा भूमि में ३० लाख बिल, शर्कराप्रभा में पच्चीस लाख, बालुका प्रभा में १५ लाख, पंकप्रभा में १० लाख, धूमप्रभा ३ लाख, तम:प्रभा में ५ कम १ लाख, महातम:प्रभा में ५ ही बिल है। इस प्रकार कुल बिलसंख्या- ८४ लाख है।
प्रश्न ८०- नरक में नारकी की उत्पत्ति वैâसे होती है?
उत्तर- नारकी जीव पाप से नरक बिल में उमाभ होकर एक मूहूर्त काल में छहो पर्याप्ति को पूर्णकर आकस्मिक भय को प्राप्त होता है। पश्चात् वह नारकी जीव भय से कॉपता हुआ बड़े कष्ट से चलने के लिये प्रस्तुत होकर और ३६ आयुधो (शस्त्रो) के मध्य में गिरकर वहाँ से गेंद के समान उछलता है। नारकी उत्पत्ति के समय पैर ऊपर की और किये तथा मस्तक नीचे।
प्रश्न ८१- इन सातो पृथिवियों में उछलने का प्रमाण बतलाओ?
उत्तर- प्रथम पृथिवी में जीव सात योजन (उत्सेधयोजन) ६ हजार ५०० धनुष प्रमाण ऊपर उछलता है। इसके आगे शेष पृथिवियो के उछलने का प्रमाण क्रम से उत्तरोतर दूना दूना है।
प्रश्न ८२- क्षुधातृषा की वेदना होने पर उन्हें खाने पीने को कुछ मिलता है कि नहीं ?
उत्तर- मेरूप्रमाण अभ खाने की इच्छा करते है परन्तु कणमात्र भी अभ उन्हें प्राप्त नहीं होता। इसीप्रकार समुद्र प्रमाण जल पीने की इच्छा करते हैं परन्तु वहाँ पर पानी की एक बूंद भी प्राप्त नहीं होती है।
प्रश्न ८३- नारकी जीवों के दुख की अधिकता होने पर भी विंâचित् सुख भी तो होता हे या नहीं ?
उत्तर- नहीं । नारकियों को नरको में चक्षु का उन्मेष प्रमाणमात्र काल भी सुख प्राप्त नहीं होता है अर्थात् एक क्षणमात्र भी उनको सुख प्राप्त नहीं होता है।
प्रश्न ८४- सातो नरको में जीव का निरन्तर गमन कितनी बार हो सकता है?
उत्तर- प्रथम नरक में ८ बार, द्वितीय नरक में ७ बार, तृतीयनरक में ६ बार, चौथे नरक में ५ बार, पाँचवे नरक में ४ बार, षङ्गम नरक तीन बार और ७ वे नरक में दो बार जीव अवच्छिभ रूप से उमाभ हो सकते है।
प्रश्न ८५- सातो नरकों में कौन कौन जीव जा सकते है?
उत्तर- असंज्ञी प्रथम नरक तक ही जा सकता है। सरीसृप द्वितीय नरक तक ही जा सकते है। भुजंग चौथे नरक तक जाते हैं सिंह पाँचवे नरक जाते है। स्त्रियां छठे नरक तक जाती है। तथा मगर मच्छ और मानव सातवेनरक तक जाते है।
प्रश्न ८६- सातो नरको से निकलकर जीव कौन कौन हो सकते है?
उत्तर- छठे नरक से निकलानारकी, मनुष्य हो सकता है परन्तु देशव्रती नहीं बन सकता। सम्यग्दृष्टि बन सकता है।
(२) सप्तमनरक से निकला नारकी तिर्यंचगति में ही जन्म लेता है।
(३) पंचमनरक से निकलानारकी जीव मनुष्यभव प्राप्त कर देशव्रती एवं महाव्रती बन सकता हे। परन्तु उस भव से मोक्ष प्राप्त नही कर सकता है।
(४) चतुर्थनरक से निकलकर कोई प्राणी महाव्रती बनकर मोक्षपद प्राप्त कर सकता है परन्तु तीर्थंकर नही हो सकता ।
(५) प्रथम द्वितीय तृतीय नरक से निकला नारकी तीर्थंकर भी हो सकते हैं और उसी भव में मोक्ष भ्ज्ञी जा सकते है।
प्रश्न ८७- जो महात्मा नरक से निकलकर तीर्थंकर होने वाले है उसकी वहाँ क्या स्थिति रहती है?
उत्तर- जो महात्मा आगामी काल में तीर्थंकर होने वाला है तथा जिनके पाप कर्मो का उपशम हो गया है। देवलोग भक्तिवश छ:माह पहले से उनके उपसर्ग दूर कर देते है।
प्रश्न ८८- क्या सभी असुर जाति के नरक में जाकर दुख देते है?
उत्तर- मात्र अम्बाबरीज नाक असुर देव ही ऐसे है जो नारकियों को चतुर्थ नरक के पूर्व याने तीसरे पर्यत्न दुख देते है सब नहीं।
प्रश्न ८९- नारकी जीव इस प्रकार असल दुखों को सहन करते हुये असमय में मरण को प्राप्त होते हैं या नहीं?
उत्तर- मारण ताडन से शरीर के तिल तिल के समान टुकड़े हो जाने पर भी नारकियो का अकाल मरण नहीं होता है। अनपवत्र्य आयु वाले होने से उन नारकियों का शरीर पारे के समान टुकड़े टुकड़े हुआ भी पुन: मिलकर एक हो जाता है।
प्रश्न ९०- नारकियों को कौनसी विक्रिया होती है?
उत्तर- नारकियों की अपृथक विक्रिया होती है एक समय में वे एक ही विक्रिया करते है।
प्रश्न ९१- नारकियों में शीत उष्ण बिलो का प्रमाण बतलाइये?
उत्तर- पहली दूसरी, तीसरी चौथा पृथिवी तथा पाँचवी पृथ्वी के चार भागो में से तीन भाग प्रमाण बिल आयत्न उष्ण होने से वहाँ रहने वाले जीवो को तीव्र गर्मि की पीड़ा पहुँचाने वाले है। पाँचवी पृथ्वी के अवशिष्ट १ ४ मात्र प्रमाण बिल तथा छठी सातवी पृथ्वी में स्थित नारकियों के बिल आयत्न शीत होने से वहाँ रहने वाले जीवों को भयानक शीतवेदना देने वाले है।
प्रश्न ९२- नारकियों के ८४ लाख बिलो में शीत व उष्ण बिलो की संख्या बतलाओ?
उत्तर- नारकियों उपर्युक्त ८४ लाख बिलो में ८२,२५,०० बिल उष्ण एवं १,७५,००० बिल अत्यन्त शीत है।
प्रश्न ९३- नरक की शीत और उष्णता का उदाहरण से स्पष्ट करो?
उत्तर- यदि उष्णबिल में मेरू के बराबर लोहे का शीतल पींड डाल दिया जाय तो वह तल प्रदेश तक न पहुँचकर बीच में ही मोम के टुकड़े के समान पिघलकर नष्ट हो जायेगा। इसी प्रकार मेरूपर्वत के बराबर लोहे का उष्ण पिंड शीत बिलमें डाल दिया जाय तो वह भी तल प्रदेश तक न पहुँचकर बीच में ही नमक के टुकड़े के समान विली हो जायेगा।
प्रश्न ९४- नारकियों के बिल की भयानकता बतलाओ?
उत्तर- बकरी, हाथी, घोड़ा, भैंस, गधा, ऊँट, बिल्ली, सर्प आदि मनुष्यादिक के सड़े हुये मांस की गंध की अपेक्षा नारकियों के बिल अतंनगुणी दुर्गंध से युक्त है। स्वभावत: गाढ़ अंधकार से परिपूर्ण ये नारकियों के बिल क्रकच कृपाण, छुरिका, खेर की आग, अतिसीक्षण सुई और हाथी के चिघाड़ से भी अत्यन्त भयानक है।
प्रश्न ९५- नारकियों के बल कितने प्रकार के और कौन कौन से है?
उत्तर- वे नारकियों के बिल इन्द्रक, श्रेणीबद्ध, और प्रकीर्णक के भेद से ३ प्रकार के है।
प्रश्न ९६- इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिल किसे कहते है?
उत्तर- इन्द्रकबिल- जो अपने पटल के सब बिलो के बीच में हो वह इन्द्रक कहलाता है।(२) श्रेणीबद्ध बिल- जो बिल चारों दिशाओं चारो विदिशाओं में पंक्ति से स्थित रहते है वे श्रेणीबद्ध है। (३) प्रकाीर्णक बिल- श्रेणीबद्ध बिलो के बीच में इधर उधर रहने वाले बिलो का प्रकीर्णक संज्ञा है।
प्रश्न ९७- रत्नप्रभादि ७ पृथिवियो में क्रम से कुल कितने पटल अथवा इन्द्रक बिल है?
उत्तर- रत्नप्रभा आदि सात पृथिवियों मे क्रम १३, ११, ९,७, ५, ३, १, इस प्रकार कुल ४९ इन्द्रक बिल है। इन्हें प्रसार एवं पटल भी कहते है।
प्रश्न ९८- नारकियों के जन्म लेने के उपपाद स्थान कहाँ है?
उत्तर- इन्द्रक श्रेणिबद्ध और प्रकीर्णक बिलो में ऊपर के भाग में (छत में) अनेक प्रकार के तलवारों से युक्त अर्धवृत, अधोमुख वाले जन्म स्थान हैं।
प्रश्न ९९- ये जन्म स्थान धम्मा वंशा और मेघा पृथिवियों में किस प्रकार के है?
उत्तर- ये जन्मस्थान धम्मा, वंशा, और मेघा नाम की तीसरी पृथिवी तक उष्ट्रिका, कोथली, कुंभि मुदगलिका, मुदगर और नाली के समान है।
प्रश्न १००- नारकियो के चौथी, पाँचवी छठी, सांतवी पृथिवी में जन्म भूमियाँ का स्थान किस प्रकार है?
उत्तर- चौथी पाँचवी पृथिवी में जन्मभूमियों के आकार गाय, हाथी, घोड़ा, भस्त्रा, अष्जपुट, अम्बरीष और द्रोणी (नाव) जैसे है। छठी सांतवी पृथिवी की जन्मभूमियाँ झालर द्वीपी चक्रवाक, भृगाल गधा बकरा, ऊट और रीछ के सदृश आकार वाली है। नारकियों की से सब जन्मभूमिया अंत में करोंंत के सदृश चारो तरफ से गोल और भयंकर है। कषाय से अनंरंतिजस प्रवृति को लेश्या कहते है।