हृदय में वडवानल को धारण कर भी, विष का कुलधन (उत्पत्ति—स्थान) होकर भी समुद्र ने रत्नाकर नाम धारण किया है। यह सब प्रसिद्धि का ही माहात्म्य है। (प्रसिद्धि को पाने के बाद अनेक दोष भी उसमें छिप जाते हैं।) अवरगुणेणं जाणं मउप्फरो ताण नाम को गव्वो ? वाउवसारुठन—हंगयाण धूलीण को महिमा ?
दूसरों के गुणों से यदि व्यक्ति प्रकाशित होता है (प्रसिद्धि को पाता है) तो उसमें गर्व करने जैसा क्या है ? हवा के संसर्ग से आकाश में घूमने वाले रजकणों की क्या महिमा ?