हिमालय की गोद में स्थित हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला एक ठण्डे भू भाग में बसा हुआ है। जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य एवं अनुकूल वातावरण के लिये अतुलनीय होकर पर्यटकों के लिये सहज उपलब्ध स्वर्ग है। १९वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में अंग्रेजों द्वारा बसाये गये शहर में एक १२५ वर्ष प्राचीन दिगम्बर जिनालय मालरोड स्थित लोवर माल रोड पर स्थित है। लुप्त हो रही इस धरा एवं जैन प्रभावना को उपाध्याय श्री १०८ गुप्तिसागरजी महाराज द्वारा १० मई १९९८ को शिमला में विहार करके र्धािमक प्रभावना के पट खोले थे। वहाँ के नागरिकों ने प्रथम बार जैन मुनि एवं उनकी साधना देखकर प्रभावित एवं आश्चर्यचकित हुए थे। उसके उपरांत ५ जुलाई २००९ से २५ अक्टूबर २००९ में आचार्यश्री विरागसागरजी के शिष्य मुनिश्री विशोकसागर जी ने चातुर्मास किया। उपरोक्त दोनों मुनिश्री के प्रवास ने पुराने मंदिर का कायाकल्प ही कर दिया। जो अब वर्तमान में काँच की सुंदर कारीगरी से सुशोभित मंदिर की दीवारें तथा वेदी पर भगवान पाश्र्वनाथ महावीर एवं चंद्रप्रभ की प्रतिमाएँ विराजित हैं। प्रतिमाओं के दर्शन मात्र से शांति प्राप्त होती है तथा वहाँ से हटने का मन ही नहीं होता है। मालरोड पर जाने के लिये दो लिफ्ट लगी हैंं लिफ्ट के बाद मालरोड आ जाता है और वहीं से लोवर मालरोड का रास्ता आ जाता है। बच्चों के लिये बेबी गाड़ी तथा बुजुर्गों के लिये व्हील चेयर किराये पर उपलब्ध हो जाती है। आवास हेतु मंदिर जी से लगी हुई सर्वसुविधायुक्त जैन धर्मशाला में ए. सी. अटैच तथा नॉन अटैच कमरे उपलब्ध हैं। जो पहले से बुक कराये जा सकते हैं। साथ ही शिमला में सभी प्रकार के होटल उपलब्ध हैं। भोजन व्यवस्था—माल रोड पर कई भोजनशालाओं के साथ जैन मंदिर के प्रबंधक पूर्व सूचना पर उपलब्ध करा देते हैं। नियमित भोजनशाला है।