‘प्राणायाम’ संस्कृत के दो शब्द ‘प्राण’ और ‘आयाम’ से मिलकर बना है। प्राण का अर्थ—जीवनी शक्ति (वायु) तथा आयाम का अर्थ है—विकास अथवा नियन्त्रण।
प्राणायाम शब्द का अर्थ हुआ—जीवनी शक्ति को विकसित अथवा नियंत्रित करने की क्रिया।
प्राणायाम की कुछ आवश्यक बाते हमें समझ लेनी चाहिए। हम नाक के बायें और दायें छिद्रों श्वासोच्छ्वास की क्रिया करते हैं। दाहिने नथुने का प्राण प्रवाह सूर्य नाड़ी और बायें नथुने का प्राण प्रवाह चन्द्र नाड़ी के द्वारा होता है। ये दोनों प्राण प्रवाह अन्दर आते ही मिलकर तीसरा प्राण प्रवाह बनाते हैं और जो दोनों नथुनों से प्रभावित होता है उसे सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं। इन तीनों नाड़ियों का कार्य इस प्रकार है।
१. इडा या चन्द्र नाड़ी—यह ठण्डी नाड़ी है और शरीर के बायें भाग का नियन्त्रण करती है तथा विचारों को संतुलित रखती है। जब शरीर को ठण्डक की आवश्यकता होती है तो चन्द्र नाड़ी चलती है। इसको गंगा भी कहते हैं।
२. पिंगला या सूर्य नाड़ी—यह शरीर के दायें भाग का नियन्त्रण करती है तथा शरीर को गर्मी देती है। यह प्राण शक्ति को नियंत्रित करती है। इसको यमुना भी कहते हैं।
३. सुषुम्ना नाड़ी —यह मध्य नाड़ी है न गरम न ठण्डी; परन्तु दोनों के सन्तुलन में सहायक है, प्रकाश तथा ज्ञान देती है। इसको सरस्वती भी कहते हैं।
प्राणायाम का उद्देश्य इडा तथा पिंगला में ठीक सन्तुलन स्थापित करके सुषुम्ना के द्वारा प्रकाश तथा ज्ञान प्राप्त कराकर आध्यात्मिक उन्नति करना है।
इसके साथ तीन बन्ध भी होते हैं।
जालन्धर बन्ध—ठोड़ी को हृदय से चार अंगुल ऊपर कण्ठकूप में लगाने से होता है।
उड्डियान बन्ध— श्वास को बाहर निकालकर पेट को अन्दर खींचना।
मूल बन्ध—गुदा के आकुंचन से होता है।
प्राणायाम में श्वास की तीन क्रियाएँ होती हैं।
१. पूरक—श्वास को अन्दर लेना।
२. रेचक–श्वास को बाहर निकालना।
३. कुम्भक—श्वास को अन्दर या बाहर रोकना। श्वास को अन्दर रोकने को आन्तरिक कुम्भक व श्वास को बाहर रोकने को बर्हिकुम्भक कहते हैं।
नाड़ी शोधन, भ्रामरी, भस्त्रिका, कपालभाती, सूर्य भेदी, शीतली व शीतकारी आदि। भस्त्रिका व सूर्य भेदी, सर्दियों में लाभदायक होते हैं तथा शीतली व शीतकारी ग्रीष्म ऋतु में लाभ देते हैं।
नाड़ी—शोधन प्राणायाम (अनुलोम—विलोम प्राणायाम) विधि : सुखासन में बैठकर दायें हाथ के अंगूठे से दायीं नासिका बंद करें तथा अनामिका को बायीं नासिका पर रखें तथा तर्जनी व मध्यमा दोनों भौहों के बीच वाले स्थान पर रखें। अब दायीं नासिका बन्द कर बायीं नासिका से धीरे—धीरे जितना श्वास अन्दर की ओर खींच सकते हों खींचें। अब बायीं नासिका भी बन्द करें तथा कुछ क्षण आन्तरिक कुम्भक करें। अब दायीं नासिका से अंगूठे को हटा लें तथा उसी गति से श्वास बाहर निकालें। कुछ क्षण बहिकुम्भक करें। फिर दायीं नासिका से ही श्वास को लें, आन्तरिक कुम्भक करें तथा बायीं नासिका से श्वास बाहर निकाल दें। यह नाड़ी शोधन प्राणायाम एक बार हुआ। श्वास लेने और छोड़ने की लय एक जैसी हो।
जब श्वास छोड़ें तो आपका श्वास एकदम से न निकलकर नियंत्रित होकर धीमी गति से बाहर निकले। इसे तीन चार बार प्रतिदिन करते हुए अभ्यास करें कि आप आन्तरिक कुम्भक अधिक देर तक कर सकें। उतनी देर ही श्वास रोकना है जितनी देर रोकने से जब श्वास छोड़ा जाये तो छोड़ने की गति श्वास लेने की गति से धीमी हो। श्वास लेने, रोकने और छोड़ने के समय का अनुपात एक दो और दो का हो। धीरे—धीरे अभ्यास करके इसको एक, चार और दो का अनुपात कर सकते हैं।
प्राणायाम में श्वास लेते समय मन की गतिविधियों का सूक्ष्म निरीक्षण करना चाहिए तथा बाहर निकालते समय निर्विचार रहना चाहिए। कुम्भक के समय प्राणों को ‘आज्ञा चक्र’ अर्थात् दोनों भौहों के बीच वाली जगह में एकाग्र करना चाहिए। इससे मानसिक शक्तियों का विकास तथा आत्मा में शांति और आनन्द की अनुभूति होती है।
१. प्रकृति ने इस जीव जगत में मनुष्य को सबसे श्रेष्ठ जीव बनाया है तथा धर्ममय एवं सुखमय जीवन जीने के लिये बहुत कुछ दिया है।
अत: मनुष्य को चाहिये इस शरीर के द्वारा दूसरे प्राणियों की रक्षा करते हुए हर तरह से सेवा करे एवं समस्त प्राणियों को तकलीफों से बचाने की कोशिश करते रहें।
इसलिए मनुष्य को २४ घंटे में २४ मिनट समय निकाल कर (सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन के माध्यम से) स्वस्थ शरीर द्वारा सत्कर्म एवं सेवा करते हुये जीवन में अपने आपको श्रेष्ठ जीव प्रमाणित करना चाहिये।
२. सूक्ष्म प्राणायाम एवम् सूक्ष्म योगासन करने के लिए सुखासन (सिद्धासन), पद्मासन एवम् वङ्काासन में बैठकर ही करें तथा दोनों अंगुठे और तर्जनी अंगुलियों से रिंग बनाकर दोनों हाथों को सीधा करके घुटनों के ऊपर रखकर करना चाहिए। उपरोक्त तीनों आसन में बैठकर करने में असमर्थ होने पर कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते है।सूक्ष्म प्राणायाम एवम् सूक्ष्म योगासन शान्त और खुले वातावरण (घर पर या मैदान) में पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके आसन (वुॅलन या कॉटन)पर बैठकर ही करना चाहिए।
३. सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन का अभ्यास करते समय पीठ,मेरूदण्ड, वक्ष तथा गर्दन को हमेशा सीधा रखना चाहिए। इसीलिए यह दोनों प्रक्रिया करने के लिये पद्मासन या सुखासन का प्रयोग करना चाहिए। जब आप जमीन पर बैठतें हो तब सुखासन में ही बैठने की आदत डालें, क्योंकि इस आसन में बैठने से आपका सिर, पीठ, वक्ष व मेरूदंड सीधा रहेगा, जो कि बहुत लाभकारी है।
४. सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन की विभिन्न विधियों के अलग अलग गुण हैं। आपको सब विधियां करने का समय नहीं मिलता है तब जिस विधि से आपको फायदा लगे, उसका प्रतिदिन नियम से नियत संख्या में करने की कोशिश करें एवं धीरे धीरे विधियों की संख्या बढ़ाते रहें। अगर किसी कारणवश कभी कभी या कुछ दिन नही कर सकें तो लाभ में कमी नहीं आयेगी और न ही कोई नुकसान होगा। धीरे धीरे समय और संख्या बढ़ाकर करने से ज्यादा फायदा होता है।
५. प्राणायाम एवं योगासन करते समय नासिका द्वारा ही श्वास लें एवं छोड़ें।श्वास लेने एवं छोड़ने के अन्तर में कमी होने से आयु बढ़ती है। जैसे कछुवा १ मिनट में ५/६ बार श्वास लेने पर प्राय: २०० साल, मनुष्य १ मिनट में १५/१६ बार श्वास लेने पर प्राय: १०० साल, एवं पशु—पक्षी १ मिनिट में २० से ३० बार श्वास लेने से प्राय: १५ से ३० साल की आयु प्राप्त करते हैं। श्वास के इस अन्तर को कम करने की प्रक्रिया प्राणायाम द्वारा ही सम्भव है।
अन्तर कम करने के लिए श्वास को हठपूर्वक रोक कर नहीं करना चाहिए।
६. प्रात:काल निद्रा से (जब भी जागते हैं) उठने के बाद पूर्ण शौच (पेट साफ) से निवृत्त होकर तुरन्त सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करना चाहिये। पूर्ण शौच (पेट साफ) के बाद आत्मा एवं शरीर को अति आनन्द की अनुभूति होने से ज्यादा से ज्यादा प्राणायाम एवं योगासन करने की भावना होती है।
पूर्ण शौच (पेट साफ) के लिए रोजाना (रात्रिकाल में ताम्बे के बर्तन में छान कर रखा हुआ) शुद्ध पानी (छान कर) कम से कम २ गिलास पीना चाहिए।
यदि सम्भव हो तो रात्रिकाल में पानी को खूब गर्म करके ताम्बे के बर्तन में (ठण्डा कर) रख लें। सुबह इस पानी को पीने से पेट साफ रहता है। यह पानी शरीर के लिए महौषधी है एवं पीने में सर्वोत्तम है। भोजन करते समय पानी नहीं पीना चाहिए। इससे पाचन क्रिया में बाधा उत्पन्न होने के कारण भोजन ठीक से हजम नहीं होता है। इसलिए भोजन करने के पहले पानी पी लेना चाहिए या भोजन करने के आधा घंटे बाद पानी पीना चाहिए।
भोजन करने के पहले या भोजन करने के पांच घंटे पश्चात् ही प्राणायाम एवं योगासन करना चाहिए। भोजन के पहले ही करना सर्वोत्तम है।
नोट—दिन में मात्र एक बार भोजन करने वाले दिगम्बर जैन साधु—साध्वियों के लिए यह नियम लागू नहीं होता है, उन्हें तो भोजन के साथ ही अधिकतम पानी लेना चाहिए, ताकि बदहजमी न होने पाए।
७. शरीर को स्वस्थ और सुडौल रखने के लिए अन्न से बना हुआ भोजन सूर्यास्त के बाद रात्रि काल में आहार नहीं करना चाहिए। इससे मोटापा, शुगर, ब्लड प्रैशर आदि बीमारियां होने की सम्भावना रहती है। रात्रिकाल में जब सो जाते हैं तब शरीर को भोजन पचाने मेंं सहजता होती है (ज्यादातर पशु, पक्षी, जानवर आदि रा़ित्रकाल में आहार नहीं लेते) प्राणायाम एवं योगासन करने से पाचन क्रिया में फायदा होता है निरामिष (शाकाहारी) भोजन ही शरीर के लिये सर्वोत्तम है जो आसानी से पच जाता है।
८. मानव का शरीर हल्का, चुस्त एवं सुडौल रहने से सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करने से सहजता होती है। इसके लिए भोजन के बाद सीजनल फल का सेवन करना चाहिये। जिस सीजन में जो फल आता है वह फल खाने से सीजनल बीमारियों से शरीर को लड़ने की क्षमता बढ़ती है तथा पेट की बीमारियों में भी फायदा तथा मुख मण्डल कान्तिमय होता है। इसलिए भोजन के बाद सीजनल फल अवश्य खाना चाहिए।
९. अगर आप नियमितरूप से सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करते हैं तब आपका शरीर ही आपको सचेत करने लगेगा कि आप कितने स्वस्थ एवं क्रियाशील हैं। मनुष्य का शरीर ही खुद का डाक्टर या वैद्य है। कारण हर मनुष्य के शरीर का गठन अलग अलग है। सब नियम एवं सब बातें सबके लागू नहीं होते हैं। शरीर ही बीमारियों के माध्यम से आपको समझाता रहता है कि क्या खाना चाहिये और क्या नहीं खाना चाहिये। पशु—पक्षी, जानवर भी जब बीमार पड़ते है तब खाना पीना सब बन्द कर देते हैं और ठीक भी हो जाते हैं। यह सब उनको किनने सिखाया, प्रकृति एवं शरीर ही सिखा देता है। इसलिए मनुष्य को प्रकृति के नियम एवं माध्यम से जीने का अभ्यास करना चाहिए।
१०. प्राचीन काल से दही (छाछ या मट्ठा) को अमृत माना जाता है। पुरुषों में बहुमूत्र रोग (प्रोस्टेट) की बीमारी एवं पेशाब में जलन होती है। इसके लिए कपालभाती—प्राणायाम प्रक्रिया और भोजन के बाद वङ्काासन में १० मिनट बैठना चाहिए एवं रोजाना छाछ या मट्ठा कम से कम २५० ग्राम, भूना हुआ जीरा मिला कर पीने से बहुत ही फायदेमंद है। ५००ग्राम दही से पूरे परिवार के लिए छाछ या मट्ठा बन सकता है जो कि बहुत सस्ता होने के साथ—साथ कई कठिन बीमारियों में लाभ देता है।
११. सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करने के १५/२० मिनट पश्चात् ही स्नान करें, कारण यह सब करने से शरीर का तापमान बढ़ जाता है। तापमान सामान्य होने पर ही स्नान करना चाहिये।
आप स्नान करने व्ाâे पश्चात् भी प्राणायाम एवं योगासन कर सकते हैं।
सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करने के पश्चात् अपनी पसन्द के तैल से २/५ मिनट तक मालिश करने के बाद नहा ले। तत्पश्चात् कॉटन का बिना रोएं वाले तौलिये से रगड़ कर शरीर को साफ कर लें। इससे आपको रोजाना नई ताजगी एवं स्फूर्ति मिलेगी।
१२. सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन किसी भी हालत में खाली फर्श या जमीन पर बैठकर या खड़े होकर नहीं करना चाहिए। कारण यह सब आसन करते समय शरीर की गर्माहट जमीन की ठण्डक पकड़ लेने से कमर के दर्द की बीमारी हो जाने की सम्भावना है। यह दोनों प्रक्रिया करते समय जमीन पर वॅूलन या कॉटन का कारपेट प्रयोग करें। पैदल चलते समय या जोगिंग करते समय कोई भी प्राणयाम एवं योगासन नहीं करना चाहिये। बैठकर करने वाला और खड़े होकर करने वाला प्राणायाम एवं योगासन नियमानुसार शान्त तथा प्रसन्न मुद्रा में करने की आदत डालें।
१३. सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन तनाव मुक्त होकर, धैर्य के साथ अपने अपने इष्टदेव भगवान का स्मरण करते हुए करना चाहिये। शरीर का हर अंग बहुत नाजुक होता है अत: इसके किसी भी अंग को विकृत करके या जोर लगाकर जबरदस्ती कोई भी प्रक्रिया नहीं करनी चाहिये।
शरीर में किसी जगह दर्द या तकलीफ के कारण सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करने में अगर तकलीफ होती है तब नमक की पोटली (कॉटन के कपड़े से बंधा हुआ) या गर्म पानी की बोतल से दर्द की जगह सिकाई करें एवं पांच मिनट पश्चात् कोई भी दर्द नाशक तेल आदि लगाकर दोनों प्रक्रिया करने से सजहता होगी और आराम भी मिलेगा।
१४. समय ही नहीं मिलता है ऐसा कहकर प्राणायाम और योगासन करने में व्यवधान न डालें, क्योंकि अच्छे स्वास्थ्य के द्वारा ही आप धर्माराधना तथा परिवार—समाज एवं देश की सेवा कर सकते हैं।
अपने व्यस्त समय में भी कुछ क्षण प्राणायाम हेतु निकालने का नुस्खा यहां प्रस्तुत है।
१. सुबह निद्रा से | ५ मिनट पहले उठना |
२. बैड टी पीने में | ५ मिनट बचाना |
३. अखबार पढ़ने में | ५ मिनट बचाना |
४. टी.वी. देखने में | ५ मिनट बचाना |
५. बातें करने में | ४ मिनट बचाना |
इस प्रकार कुल | २४ मिनट बच गये। |
१५. सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करने के पहले यदि सम्भव हो तो शुद्ध ऑक्सीजन लेने के लिये प्रात:काल उठकर वृक्ष वाले मैदान या खुले मैदान में १५/२० मिनट तेज चलकर या जोगिंग करके चलने की आदत डालनी चाहिए। अगर मैदान की सुविधा न हो या मैदान में जाने का मन हो तो अपने मकान की छत पर २५/५० बार चक्कर लगाकर ऑक्सीजन ले सकते हैं। छतों पर फूल और पत्तों के पौधे रखने की प्राचीन परम्परा रही है सैर करने की आदत होने पर मोटापा, शूगर, ब्लडप्रेशर आदि बीमारियों में लाभ मिलने की पूर्ण सम्भावना है।
सुबह सैर करते समय या जोगिंग करते समय अपने मन में अपने—अपने इष्ट देवता का नाम, मंत्र या भजन बोलते रहने से मानसिक शान्ति मिलेगी, मन प्रसन्न रहेगा। इससे आपको सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करने में सहजता रहेगी।
१६. इस दुनिया में सबसे सच्चा मित्र, भरोसेमन्द मित्र, जीवन भर साथ देने वाला मित्र यह अपना शरीर ही है। लेकिन ज्यादातर मनुष्य अपने शरीर के प्रति वफादार नहीं है, फालतू बातों से मन को फुसलाकर एवं समझाकर अपने शरीर को स्वस्थ रखने का कर्तव्य नहीं करते। फिर इस भरोसेमन्द व सच्चे मित्र को किसी के आश्रित नहीं बनने दें और ना ही किसी को अपने ऊपर आश्रित रखने की भावना रखें। अगर अपने ऊपर कोई आश्रित है तो उसे सूक्ष्म प्राणायाम एवं कर्म के माध्यम से स्वावलम्बी बनने में सहायक बनाएं।
१७. वर्तमान के इस कम्प्यूटर युग में बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करना अति आवश्यक हो गया है।
इसके लिए बच्चों को स्वस्थ सुडौल, एकाग्र एवं प्रसन्नचित होना जरूरी है। जो सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन द्वारा हो सकता है।
बच्चे ही देश की धरोहर हैं। आगे चलकर देश के श्रेष्ठ नागरिक बनेंगे।
सुशिक्षाओं एवं सुसंस्कारों के माध्यम से सत्कर्मों द्वारा धनोपार्जन करते हुए कर्मशील होकर समस्त संसार में देश का नाम रोशन करने के साथ अपना जीवन तथा पारिवारिक जीवन भी सुखमय बना सकते हैं।
१८. प्राणायाम एवं योगासन गर्भवती महिला और ज्वर रोगी को नहीं करना चाहिए। रोग पीड़ित व्यक्ति अपनी शक्ति एवं समझ के अनुसार ही करें। प्राणायाम एवं योगासन करते समय थकान अनुभव होने पर चार पांच बार लम्बी श्वास के माध्यम से विश्राम लेकर पुन: शुरू करें।
तंग कपड़े पहनकर प्राणायाम एवम् योगासन नहीं करने चाहिए।
१९. मनुष्य को अपने शरीर के पाचन तंत्र को चुस्त एवं तन्दुरुस्त रखने के लिए सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करने के साथ—साथ कभी—कभी निर्जल उपवास भी करना चाहिए।
७ दिन, १५ दिन या ३० दिन में एक बार २४ घंटे (रात-दिन) का निर्जल उपवास करने से पाचन तंत्र को पूर्ण आराम मिलता है। निर्जल उपवास में पानी, फल तथा दवाई आदि का भी सेवन नहीं करना चाहिए। इस उपवास से पाचन तंत्र पहले की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय एवं तेज होता है। इससे शरीर स्वस्थ और सुडौल होने की प्रबल सम्भावना है।
२०. वर्तमान समय में हार्ट अटैक के दौरे से बचने के उपाय
सीने में दर्द का होना, स्वास फूलना, पसीने का ज्यादा आना एवं अत्यधिक बैचेनी महसूस होना हार्ट अटैक का लक्षण है। युवा अवस्था से ही अपने जीवन चर्या में परिवर्तन करने से हार्ट अटैक एवं अन्य कई बिमारियों से बचा जा सकता है।
(१) सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन का करना, सुबह सैर और ज्यादा से ज्यादा पैदल चलने के माध्यम से शरीर को सुडौल (मोटापन नही होने देना) रखना।
(२) शाकाहारी भोजन करने की आदत तथा रात्रि काल का भोजन सोने के कम से कम ४—५ घंटे पहले करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना फायदेमंद होता है.
(३) तनावमुक्त होकर खुश रहने के साथ उम्र के हिसाब से ६ से ८ घंटे तक (बिना नींद की दवाई लिए) सोने की कोशिश करना चाहिए।
(४) भोजन में तली हुई चीजें, मिठाईयों का कम से कम सेवन एवं धूम्रपान का त्याग करना चाहिए। इन सब आदत से उच्च रक्तचाप, शूगर और कोलेस्ट्रोल में कन्ट्रोल होता है।
२१. मानव के सम्पूर्ण शरीर में वायु भरी हुई है तथा शरीर का सब कार्य वायु द्वारा ही संचालित होता है। पाचन तन्त्र में खराबी होने के कारण वायु गैस में परिवर्तित होकर कई बीमारियों को जन्म देता है। इसलिए दोनों समय के भोजन के पश्चात् वङ्काासन में बैठने से पाचन तन्त्र के मजबूत होने के कारण गैस की बीमारी में फायदा होता है। प्राय: सभी साधु संत भी आहार लेने के बाद वङ्काासन में कम से कम १० मिनट तक बैठते हैं। गैस की बीमारी में आंवला, लौकी (घिया) और करेला की सब्जी या फलों का रस बहुत लाभदायक है।
२२. प्रकृति ने प्रत्येक मानव के शरीर के हर जोड़ो में मोबिल आयल जैसा चिकना तरल पदार्थ दिया है जो कि मानव के ४०/५० वर्ष की उम्र होने के बाद से कम बनने लगता है जिससे दर्द का अनुभव होता है। इसलिए मनुष्य को ३०/४० वर्ष की उम्र से ही सूक्ष्म योगासन करना चाहिए।
सूक्ष्म योगासन करते रहने से तरल पदार्थ बनता रहता है और अगर तरल पदार्थ सूखने के नजदीक हो तब भी तरल पदार्थ के फिर से बनने की सम्भावना रहती है।
कैल्शियम की कमी होने से भी जोड़ों में दर्द होने लगता है इसलिए कैल्शियम की कमी नहीं होने देना चाहिए।
२३. मनुष्य जीवन भर न तो कसरत, जिम या पहलवानी कर सकता है, ना ही फुटबाल, हॉकी, बैडमिंटन आदि खेल सकता है। यह सब क्रिया छुटने के बाद शरीर में कोई न कोई बीमारी और जोड़ों में दर्द होने की सम्भावना रहती है। लेकिन सूक्ष्म योगासन जीवन भर कर सकते हैं तथा इसे छोड़ने पर कोई परेशानी नहीं होती। यह प्रक्रिया करते रहने से ज्यादा से ज्यादा निरोग, चुस्त, स्वस्थ रहने की सम्भावना है।
२४. सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन क्या हैं? इन्हें क्यों करना चाहिए?
मानव शरीर का सिर से पैर तक के बाहरी एवं भीतर के कुछ अंगों का दैनिक कार्य करने से, चलते फिरते रहने से एवं योगासन करने से सूक्ष्म योगासन हो जाता है।
लेकिन शरीर के मुख मंडल से लेकर पेट के अन्दर में जो मशीनें (कम्प्यूटर) हैं उसका व्यायाम वैâसे होगा तथा शरीर के अन्दर लाखों नसें हैं उनकी अवरुद्धता (Blockage) कैसे खुलेगी। यह सब काम सूक्ष्म प्राणायाम द्वारा भी होता है। हजारों वर्ष पहले अपने साधु सन्त, मुनिराज एवं महापुरुष पर्वत पर भयंकर ठण्ड में तथा पहाड़ों पर भयंकर गर्मीयों में कैसे तपस्या करते थे तथा कैसे जीवित रहते थे एवं उन्हें कहां से ऊर्जा मिलती थी। यह सब सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन द्वारा ही सम्भव था।
आइए हम सब जहां भी रहते है रोजाना कम से कम २४ घंटे में २४ मिनट का समय निकाल कर सूक्ष्म प्राणायाम एवं सूक्ष्म योगासन करके और वहां की जल वायु एवं माटी के साथ संबंध बनाकर स्वस्थ एवम् सुडौल, ऊर्जावान नागरिक बनें।
१. भस्त्रिका प्राणायाम-इस प्राणायाम में नाक द्वारा लम्बी श्वांस लेकर अन्दर तक भरे एवं पूरी शक्ति के साथ श्वांस को लम्बा करके बाहर छोड़े।
लेकिन जिनके फेफड़े व हृदय कमजोर हों, उन्हें यह प्राणायाम धीमी गति से करना चाहिए।
लाभ : इस प्राणायाम को करने से श्वांस रोग, दमा, एलर्जी, सर्दी, जुखाम, टान्सिल, साइनस एवं सभी कफ रोगों में फायदा होता है।
समय : यह प्राणायाम कम से कम २ मिनट या ३० बार करें।
‘‘जो छोटे छोटे प्राणियों से प्यार नहीं कर सकता,
वह ईश्वर से प्यार क्या करेगा।’’
२. कपालभाती प्राणायाम-इस प्राणायाम में श्वांस को दोनों नासिका द्वारा पूरी शक्ति के साथ निकालते रहें। इसकी विधि भस्त्रिका प्राणायाम से थोड़ी अलग है। भस्त्रिका में समानरूप से श्वांस लेना और छोड़ना पड़ता है जबकि कपालभाती में केवल श्वांस छोड़ना पड़ता है श्वांस को भरने की कोशिश नहीं करते हैं, बल्कि पूरी एकाग्रता के साथ श्वांस को छोड़ते रहना चाहिए।
लाभ : इस प्राणायाम से चेहरा कान्तिमय एवं तेजमय होता है तथा दमा, ब्लडप्रेशर, शुगर, मोटापा, कब्ज, गैस, डिप्रेशन, प्रोस्टेट एवं किडनी सम्बन्धित सभी रोगों में बहुत ही लाभ होता है।
समय : इस प्राणायाम को कम से कम ३ तीन मिनट या १०० बार करना चाहिए।
मोटापा सब बीमारियों की जड़ है
३. अनुलोम-विलोम प्राणायाम-इस प्राणायाम में दाएं हाथ के अंगूठे से दायी नासिका को दबाएं और बायीं नासिका से श्वांस लें, फिर बायीं नासिका को मध्यमा अंगुलि से दबाएं एवं दांयी नासिका से श्वांस को पूरी ताकत से छोड़कर फिर उसी नासिका से श्वांस ले, फिर बांयी नासिका से श्वांस लें और दूसरी नासिका से श्वांस को छोड़ें, इस क्रम को बार बार दोहराएं।
लाभ : इस प्राणायाम को करने से विचार एवं संस्कारों में शुद्धि आती है। शरीर के रोग जैसे अस्थमा, सर्दी , वातरोग, साइनस, खांसी, डिप्रेशन एवं स्नायु दुर्बलता आदि में बहुत लाभ होता है तथा नियमित अभ्यास से शिराओं में आए हुए ब्लाकेज भी खुलने की सम्भावना है।
समय : इस प्राणायाम को कम से कम ५० बार करें।
‘‘बुद्धिमान व्यक्ति दूसरों की भूल से अपनी भूल सुधारता है’’
४. भ्रामरी प्राणायाम-इस प्राणायाम में श्वांस को पूरा अंदर भरकर दोनों हाथों के अंगूठे से दोनों कानों को कानों के बाहरी पर्दा द्वारा बन्द करें और नीचे की तीनों अँगुली से आंखों को बंद करें एवं दोनों तर्जनी अंगुली को दोनों आँखों के भौंहो पर रखें तत्पश्चात् मुँह को बंद करके नाक से भंवरे की आवाज की तरह ज्यादा समय तक आवाज निकालते रहें।
लाभ : इस प्राणायाम से भगवान के प्रति ध्यान करने में एकाग्रता आती है तथा मन की अस्थिरता, डिप्रेशन, ब्लड प्रैशर एवं मानसिक तनाव आदि में काफी लाभप्रद है।
समय : इस प्रक्रिया को कम से कम ५ बार करें।
‘‘किसी भी शुभ कार्यों के लिए प्रेरणा,
प्रोत्साहन एवं योगदान देते रहें’’
५. उदर (पेट) प्राणायाम-(क) इस प्राणायाम में नासिका के द्वारा पेट के अन्दर की श्वांस को पूरी ताकत के साथ बाहर निकाल दें। श्वांस निकालने के बाद श्वांस को न लेने व छोड़ने की स्थिति में २ सेकेन्ड के लिए स्थिर हो जाएं।
(ख) अब दोनों हाथों को घुटनों पर रखकर पेट को कम से कम १५ सेकेण्ड तक पूरी शक्ति के साथ अन्दर दबाएं fफर धीरे धीरे श्वांस लेना शुरू करें।
लाभ : इस प्राणायाम को करने से मन को शान्ति मिलती है, बुद्धि में तीव्र विकास होता है। पेट के अन्दर की नाड़ियों का व्यायाम होता है एवं उदर रोगों में बहु लाभदायक है।
समय : इस प्राणायाम को कम से कम तीन बार करना चाहिए।
(हृदय के रोगी को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए)
‘‘सबसे मूल्यवान वस्तु है- समय और मन’’
६. कंठ प्राणायाम-(क) इस प्राणायाम को करते समय गले को सिकोड़ लें फिर श्वाँस को अन्दर भरते समय गले में खर्राटे जैसी आवाज करते हुए श्वाँस ले।
खर्राटे की आवाज गले से ही करने की कोशिश करें, नाक से नहीं करना चाहिए।
श्वाँस छोड़ते समय दायें हाथ के अंगूठे से दांयी नाक को बन्द करके बांयी नाक से श्वाँस छोड़ना चाहिए तथा १०—१५ दिन अभ्यास करने के बाद श्वांस को १५ सैकेण्ड रोककर श्वाँस छोड़ें।
(ख) जमीन पर बैठकर दोनों पैर पीछे की तरफ करके दोनों हाथ सामने जमीन पर टिका कर सामने की तरफ झुक जाएं। जीभ पूरी तरह से बाहर निकाल कर गले से सिंह गर्जन की तरह आवाज कम से कम १०/१५ सेकेन्ड तक निकालते रहे। यह क्रिया २/३ बार करें।
लाभ : इस प्राणायाम को करने से थाइराइड, पीलिया, अनिन्द्रा, मानसिक तनाव आदि में लाभ होता है। इसमें बच्चों के हकलाने की बीमारी में फायदा होता है तथा आवाज में मधुरता आती है।
समय : इस प्राणायाम को कम से कम तीन बार करना चाहिए।
‘‘व्यंग और कटाक्ष वचन कभी नहीं बोलने चाहिए’’
७. कर्ण प्राणायाम-इस प्राणायाम में दोनों नाक द्वारा श्वाँस भरें और मुँह बन्द करके दोनों नाक को दाहिने हाथ के अंगूठे और तर्जनी अँगुली से बन्द करने के बाद मुंह फुलाकर श्वाँस को कान की तरफ कम से कम १० सैकण्ड तक ढकेलने की कोशिश करें, फिर नाक से अँगुली हठाकर श्वाँस को जोर से बाहर निकालें।
लाभ : यह प्राणायाम करने से कान की नसों में रक्त संचार एवं श्रवण इन्द्रिया ज्यादा सक्रिय तथा कर्ण सम्बन्धी रोगों में फायदा होता है।
समय : इस व्यायाम को कम से कम ३ बार करें।
‘‘अच्छी शिक्षा जहां से भी मिले तुरन्त लें’’
८. ओंकार प्राणायाम-सभी प्राणायाम को करने के बाद ॐ का ध्यान करें।
ॐ का ध्यान करते समय आधी आंख को खोलकर नासिका के अग्र भाग को देखते हुए ‘‘ॐ’’ का उच्चारण करते रहें तथा धीरे धीरे इस अभ्यास को बढ़ाकर कम से कम १ मिनट ‘‘ॐ’’ का जाप करने की कोशिश करें।
लाभ : ॐ का ध्यान और जाप करने से मन में एकाग्रता आती है मानसिक शान्ति मिलती है तथा लगातार अभ्यास करने से हम अपनी आत्मा के स्वरूप को पहचान कर खुद को अपने इष्ट देव के समीप महसूस कर सकते हैं।
समय : इस प्राणायाम को कम से कम एक मिनट या तीन बार करें।
‘‘फूल और संगीत से जो प्रेम नहीं करता उस मनुष्य का मन कभी
निर्मल एवं दयावान नहीं हो सकता’’