-दोहा-
मोहनीय द्वय आवरण, अंतराय को घात।
ज्ञान दर्श सुख वीर्य गुण, प्राप्त किया निर्बाध।।१।।
-स्रग्विणीछंद-
जै महासौख्य दातार भरतार हो।
जै महानंद करतार भव पार हो।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।२।।
वान व्यंतर भवन वासि औ ज्योतिषी।
कल्पवासी सभी देव ध्याके सुखी।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।३।।
इंद्र धरणेंद्र मनुजेंद्र वंदन करें।
योगि नायक सदा आप गुण उच्चरें।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।४।।
मोह के वश्य हो नाथ मैं दुख सहा।
जो तिहुंलोक में भी भटकता रहा।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।५।।
नर्क के दु:ख की क्या कहूँ मैें कथा।
नाथ! तुम केवली सर्व जानो व्यथा।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।६।।
योनि तिर्यंच में काल बीता घना।
दु:ख ही दुख जहाँ सुक्ख का लेश ना।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।७।।
मैं मनुष योनि में सौख्य को चाहता।
किंतु सब ओर से क्लेश ही पावता।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।८।।।
देवयोनी मिली फिर भी शांती नहीं।
मानसिक और मृत्यू की पीड़ा सही।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।९।।
रत्न सम्यक् बिना मैं भिखारी रहा।
सौख्य की चाह से दु:ख पाता रहा।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।१०।।
नाथ! तुम भक्ति से आज सम्यक् मिला।
कर कृपा दीजिए ज्ञान सूरज खिला।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।११।।
मुक्ति जब तक न हो नाथ! मांगूँ यही।
आपके पाद की भक्ति छूटे नहीं।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।१२।।
बोधि का लाभ हो ‘ज्ञानमति’ पूर्ण हो।
सर्व संपति मिले सौख्य परिपूर्ण हो।।
पूरिये नाथ! मेरी मनोकामना।
हो सदा स्वात्मतत्वैक की भावना।।१३।।
ॐ ह्रीं अर्हं श्री संभवनाथतीर्थंकराय जयमाला महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
-गीता छंद-
जो भव्य संभवनाथ की, नित भक्ति से अर्चा करें।
वे भवभ्रमण को दूर कर, सम्यक्गती प्राप्ती करें।।
पंचमगती को प्राप्त कर, लोकाग्र पर निज में रमें।
सज्ज्ञानमति आर्हन्त्य सुख आनन्त्यगुणमय परिणमें।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:।।