जो आदमी अपनी भलाई चाहता है, उसे सबसे अधिक सावधानी इस बात की रखनी चाहिए कि वह महान् पुरुषों और अपने बड़ों का अपमान करने से अपने को बचावे। यदि कोई मनुष्य महात्माओं का निरादर करेगा, तो उनकी शक्ति से उसके सिर पर अनन्त आपत्तियाँ आ टूटेंगी। क्या तुम अपना सर्वनाश करना चाहते हो ? तो जाओ, किसी के सदुपदेश पर ध्यान न दो और जाकर उन लोगों के साथ छेड़खानी करो, जो जब चाहे तुम्हारा नाश करने की शक्ति रखते हैं। जो दुर्बल मनुष्य बलवान् और सत्ताधारी पुरुषों का अपमान करता है, वह मानों यमराज को अपने पास आने के लिए संकेत करता है। जो आमजन पराक्रमी शासक के क्रोध को उभारते हैं; वे चाहे कहीं जावें, कभी सुखी—समृद्ध नहीं हो सवेंगे। दावाग्रि में पड़े हुए लोग चाहे भले ही बच जाएँ; परन्तु उन लोगों की रक्षा का कोई उपाय नहीं है, जो शक्तिशाली पुरुषों के प्रति दुव्र्यव्हार करते हैं। यदि आत्मबलशाली ऋषिगण तुम पर व्रुद्ध है, तो विविध प्रकार के आनन्द से उल्लासित भाग्यशाली जीवन और समस्त ऐश्वर्य से पूर्ण तुम्हारा धन फिर कहाँ होगा ? जिन शासकों का अस्तित्व शाश्वतरूप से स्थायी भित्ति पर स्थापित हैं, वे भी समस्त बन्धु—बान्धवों सहित नष्ट हो जाएँगे; यदि पर्वत के समान शक्तिशाली महर्षिगण उनके सर्वनाश की कामना करें। और तो और, स्वयं देवेन्द्र भी अपने स्थान से भ्रष्ट हो जाये और अपना प्रभुत्व गँवा बैठे, यदि पवित्र प्रतिज्ञावाले सन्त लोग क्रोधभरी दृष्टि से उसकी ओर देखें। यदि आध्यात्मिक ऋद्धि रखनेवाले महर्षिगण रूष्ट हो जायें; तो वे मनुष्य भी नहीं बच सकते, जो अपने को सुदृढ़ रक्षा—कवचों और दुर्गों में सुरक्षित समझते हैं।