मेरुपर्वत के पूर्व दिशा में पूर्व से पश्चिम को २२००० योजन विस्तार वाला वेदी सहित भद्रसाल वन है। उससे पूर्व दिशा में कर्मभूमि नामक पूर्व विदेह है। वहाँ नील नामक कुलाचल से दक्षिण दिशा में और सीता नदी के उत्तर भाग में मेरु की प्रदक्षिणा रूप से जो ८ क्षेत्र हैं उनके विभागों का कथन करते हैं।
मेरु से पूर्व दिशा के भाग में जो पूर्व भद्रसाल वन की वेदिका है उससे पूर्व दिशा भाग में प्रथम क्षेत्र है, उसके बाद दक्षिण से उत्तर तक लंबा वक्षार है, उसके बाद क्षेत्र है उसके आगे विभंगा नदी है उसके आगे क्षेत्र है, उस क्षेत्र के अनंतर वक्षार पर्वत है फिर क्षेत्र है, फिर विभंगा नदी है, उसके अनंतर क्षेत्र है, उसके पश्चात् वक्षार है, उसके आगे फिर विभंगा है, उसके आगे फिर क्षेत्र है, उसके आगे वक्षार फिर क्षेत्र है तदनन्तर पूर्व समुद्र के पास जो देवारण्य वन है फिर उसकी वेदिका है। ऐसे नौ भित्तियों से आठ क्षेत्र हो जाते हैं जिनके नाम क्रम से कच्छा, सुकच्छा आदि हैं। ऐसे ही सीता नदी से दक्षिण में निषध से उत्तर में आठ क्षेत्र हैं एवं सीतोदा के उत्तर दक्षिण में आठ-आठ क्षेत्र हैं। ८±८±८±८·३२ क्षेत्र हो गये हैं।