प्रत्येक कच्छा आदि क्षेत्र में क्षेत्र विस्तार के सदृश लंबे विजयार्ध पर्वत हैं। अर्थात् २२१२-२/१९ योजन लम्बे और पचास योजन विस्तृत बत्तीस विजयार्ध हैं। इनमें से प्रत्येक के ऊपर उत्तर, दक्षिण दोनों श्रेणियों में पचपन-पचपन विद्याधर नगरियाँ हैं जहाँ नित्य ही विद्याधर निवास करते हैं। प्रत्येक विजयार्ध पर भरत क्षेत्र के विजयार्ध के सदृश नौ-नौ कूट हैं। कच्छा देश के विजयार्ध के सिद्धायतन, कच्छा, खंडप्रपात, पूर्णभद्र, विजयार्ध, माणिभद्र, तिमिश्रगुह, कच्छा और वैश्रवण ये नौ कूटों के नाम हैं। प्रत्येक विजयार्ध के नौ कूटों के नामों में दक्षिण-पूर्व का द्वितीय कूट अपने देश के नाम को और उत्तर पूर्व का द्विचरम कूट भी उसी देश के नाम को धारण करता है। शेष सात कूट कच्छा देश में कहे गये नामों से युक्त हैं।
प्रत्येक क्षेत्र में निषध पर्वत के उत्तर की ओर उपवन वेदी के उत्तर पार्श्व भाग में वेदी तोरण से सहित दो कुण्ड स्थित हैं इन कुण्डों के उत्तर तोरण द्वार से गंगा, सिंधु नामक दो नदियाँ निकलती हैं जो कि वत्सा क्षेत्र में जाती हुई विजयार्ध के गुफा द्वार से प्रविष्ट होकर दक्षिण गुफा द्वार से बाहर निकल कर पुन: वत्सा क्षेत्र में बहती हुई सीता नदी में प्रविष्ट हो जाती हैं। ऐसे ही आठों क्षेत्रों में समझना, नील पर्वत से दक्षिण की ओर उपवन वेदी के दक्षिण पार्श्व भाग में वेदी तोरण द्वारों से युक्त दो कुण्ड हैं इन कुण्डों के दक्षिण तोरण द्वार से गंगा नदी के सदृश-पृथक्-पृथक् रक्ता-रक्तोदा नदियाँ निकलती हैं, जो कि कच्छा देश में बहती हुई विजयार्ध की गुफा द्वार से निकलकर सीता नदी में प्रविष्ट हो जाती हैं। ऐसे ही आठों क्षेत्रों में समझना।इसी प्रकार से पश्चिम विदेह में निषध, नील पर्वत से गंगा, सिंधु और रक्ता-रक्तोदा नदियाँ निकलकर सीतोदा नदी में प्रविष्ट हुई हैं। अत: सभी बत्तीस विदेहों के एक-एक विजयार्ध और दो-दो नदियों से छह-छह खंड हो गये हैं। इनमें से नदी के पास का एवं दो नदियों के मध्य का खंड ‘आर्य खंड’ कहलाता है शेष पाँच म्लेच्छ खंड कहे जाते हैं।
इन गंगा सिंधु और रक्ता-रक्तोदा की परिवार नदियाँ चौदह-चौदह हजार हैं एवं इनका सारा वर्णन भरत क्षेत्र की गंगा-सिंधु के सदृश है अंतर इतना ही है कि ये कुटिल रूप न होकर सीधी बहती हैं। पर्वत के निकट के तीन म्लेच्छ खण्ड में से मध्य के म्लेच्छ खंड के मध्य भाग में चक्रवर्ती के मान को मर्दन करने वाले अनेक चक्रवर्तियों के नामों से व्याप्त ‘‘वृषभ’’ नामक पर्वत है जो कि भरत क्षेत्र के वृषभाचल सृदश है।
प्रत्येक आर्यखंड के मध्य में एक-एक राजधानी है। क्षेमा, क्षेमपुरी, अरिष्टा, अरिष्टपुरि, मंजूषा औषधि और पुण्डरीकिणी ये ८ राजधानियाँ सीता नदी के उत्तर तट पर स्थित हैं। सुसीमा, कुण्डला, अपराजिता, प्रभंकरा, अंकावती, पद्मावती, शुभा और रत्नसंचया ये आठ नगरियाँ सीता नदी के दक्षिण तट पर हैं। अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयापुरी, अरजा, विरजा, अशोका और वीतशोका ये ८ नगरियाँ सीतोदा के दक्षिण तट पर हैं। विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता, चक्रा, खड्गा, अयोध्या और अवध्या ये ८ नगरियाँ सीतोदा के उत्तर तट पर हैं। ये नगरियाँ दक्षिण-उत्तर में बारह योजन लंबी और पूर्व-पश्चिम में नौ योजन विस्तीर्ण, सुवर्णमय प्राकार से वेष्टित हैं। ये नगरियाँ एक हजार गोपुर द्वारों से पाँच सौ अल्पद्वारों से तथा रत्नों से विचित्र कपाटों वाले सातसौ क्षुद्र द्वारों से युक्त हैं। इनमें एक हजार चतुष्पथ और बारह हजार रथ मार्ग हैं, ये अविनश्वर नगरियाँ अन्य किसी के द्वारा निर्मित नहीं हैं-अकृत्रिम हैं।