मन, वचन, काय के भेद से यह ऋद्धि तीन प्रकार की है।
१. मनबल ऋद्धि – इस ऋद्धि के बल से मुनि अन्तर्मुहूर्त मात्र काल में सम्पूर्ण श्रुत का चिंतवन कर लेते हैं।
२. वचनबल – इस ऋद्धि के प्रगट होने से मुनि श्रमरहित और अहीनकंठ होते हुए मुहूर्त मात्र के भीतर सम्पूर्ण द्वादशांग श्रुत का उच्चारण कर लेते हैं।
३. कायबल – इस ऋद्धि से मुनि मास, चार मास आदि पर्यंत कायोत्सर्ग करते हुए भी श्रम से रहित रहते हैं तथा तीनों लोकों को भी कनिष्ठा अंगुली के ऊपर उठाकर अन्यत्र स्थापित करने में समर्थ हो जाते हैं।