जनसंख्या की वृद्धि भारतवर्ष में निरन्तर होती जा रही है। शहरी एवं ग्रामों में स्थानाभाव होता जा रहा है। स्थानाभाव का विकल्प बन चुका है। आज की जरूरत अनूकूल यह प्रयास सराहनीय है। परिवार में हम दो हमारे दो का चलन बढ़ता जा रहा है। छोटे परिवार के लिए एक मकान की सुरक्षा महंगी होती जा रही है। ऑनरशिप फ्लैट में काफी सुविधाएँ आज के युग एवं जरूरतानुसार मिल जाता है। बहुमंजिली इमारत बनाने के लिए म्यूनिसिपलिटी या नगरपालिका से परमीशन लेना पड़ता है। सरकारी नियमानुसार इमारत के चारों ओर खुली जगह छोड़नी पड़ती है यह नियम वास्तुशास्त्र का मुख्य नियम है। मकान की परिक्रमा लगाना, परिक्रमा लगाने की जगह होना तभी लागू हो सकता है, जब मकान के चारों ओर खुली जगह हो। पाठकगण काफी जिज्ञासु हैं। यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या बहुमंजिला भवन या इमारत पर भी वास्तुनियम लागू होता है या नहीं। फ्लैटों पर भी वास्तु नियम लागू होते हैं इसमें कोई संशय नहीं। जहां भी चहारदीवारी बनकर एक द्वार का निर्माण हो जाता है, उनके आने जाने के रास्ते अलग —अलग हो जाते हैं । वहां वास्तु के नियम लागू हो जाते हैं। बहुमंजिला इमारत में फ्लैट खरीदतें समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
१. बहुमंजिली इमारत का जहां निर्माण होता है, उस भूखंड का आकार महत्व रखता है। भूखण्ड का आकार आयताकार सर्वश्रेष्ठ माना गया है। अगर वर्गाकार हो तो उसको आयताकार कर लेना चाहिए।
२. इमारत के निर्माण के समय विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए, ‘‘सिढ़ी, लिफ्ट, कॉलम या पीलर के निर्माण से ब्रह्मस्थान को दूषित न किया जाए। लिफ्ट का निर्माण पूरब या उत्तर दिशा में कराया जाए।
३. जल संग्रह की भूमिगत टंकी या बोरिंग पूर्वी या उत्तरी ईशान में हो, मगर ईशान में न हो।
४. इलेक्ट्रिक ट्रांसफार्मर आग्नेय कोण में लगाना सर्वश्रेष्ठ है। किसह कारणवश स्थानाभाव में वायव्य में लगा सकते हैं।
५. सेप्टिक टैंक वायव्य दिशा में हो।
६. ईशान कोण में छोटा—सा गार्डन जरूर होना चाहिए, जो भूखंड के सबसे नीचे हो।
७. फ्लैट का आकार आयताकार हो।
८. फ्लैट का मार्मिक स्थल दूषित न हो।
९. फ्लैट के मध्य में कोई पिलर नहीं होना चाहिए अन्यथा ब्रह्म स्थान दूषित हो जाता है। ईशान एवं नैऋत्य कोण में लैट्रिन व किचन नहीं होना चाहिए।
१०. नैऋत्य कोण ९० डिग्री में हो, ईशान ९० डिग्री या उससे बड़ा हो सकता है। अग्नि एवं वायव्य कोण आयताकार से बाहर न हो।
११. मुख्यद्वार शास्त्रानुकूल हो। रसोईघर अग्निकोण या वायव्य में हो। उत्तर एवं पूरब में खिड़कियाँ हो सूर्य की रोशनी फ्लैट में आती हो।
१२. फर्श की ढलान लेबल में हो। या फिर ईशान की ओर हो।
१३. कमरों में द्विछतों या टांड उत्तर या पूरब में न हो । दक्षिण या पश्चिम में हो । फ्लैट में बालकनी जरूर हो मगर वो नैऋत्व में नहीं हो।
१४. छत पर पानी की टंकी किसी भी बेडरूम के ऊपर न हो।
१५. खाना बनाते समय मातृशक्ति का मुँह पूरब में हो।
१६. सीढ़ियाँ क्लॉक वाईज हो एवं दक्षिण पश्चिम में बनी होनी चाहिए।
१७. लैट्रिन की फर्श रूम की फर्श से ऊँची नहीं होनी चाहिए।
१८. बेसमेंट में कार पार्किंग का रास्ता नैऋत्य में न हो कम से कम इन सब बातों का विशेष रूप से ध्यान रखें। मर्म स्थान एवं शुभगेट की जानकारी स्थानीय विद्वान से ले लें।
डॉ. सम्पत सेठी (वास्तु एवं निर्मोलॉजिस्) जैन सन्देश २८ जनवरी २०१५