यह बाल विज्ञान ज्योति नामक लघु पुस्तक बच्चों के लिए बहुत कार्यकारी है, इसमें पूज्य माताजी ने प्रश्न-उत्तर के माध्यम से अनेक जटिल विषयों को सरलता से प्रस्तुत किया है। जिन विषयों को लोग अच्छी तरह से नहीं भी जानते हैं, उन्हें इन प्रश्न-उत्तरों के माध्यम से समझकर सभी लोग अच्छी प्रकार से अपने ज्ञान की वृद्धि कर सकते हैं।
उनमें से विविध विषयों के कुछ प्रश्न-उत्तरों को आपके ज्ञानवर्धन हेतु यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है-
प्रश्न १ -णमोकार मंत्र एवं उसका अर्थ बताओ?
उत्तर -मंत्र एवं अर्थ-
णमो अरिहंताणं-अरिहंतों को नमस्कार हो।
णमो सिद्धाणं-सिद्धों को नमस्कार हो।
णमो आइरियाणं-आचार्यों को नमस्कार हो।
णमो उवज्झायाणं-उपाध्यायों को नमस्कार हो।
णमो लोए सव्वसाहूणं-लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो।
प्रश्न २ -णमोकार मंत्र में किसको नमस्कार किया है?
उत्तर -णमोकार मंत्र में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु ऐसे इन पंच परमेष्ठी को नमस्कार किया है।
प्रश्न ३ -सबसे बड़ा मंत्र कौन सा है?
उत्तर -सबसे बड़ा णमोकार मंत्र है क्योंकि ये पंच परमेष्ठी वाचक है।
प्रश्न ४ -णमोकार मंत्र के कितने नाम हैं?
उत्तर -णमोकार मंत्र, महामंत्र, अपराजित मंत्रादि अनेकों नाम हैं।
प्रश्न ५ -णमोकार मंत्र को किसने बनाया?
उत्तर -किसी ने नहीं बनाया। ये मूल मंत्र स्वयंसिद्ध अनादिनिधन है।
प्रश्न ६ -णमोकार मंत्र से कितने मंत्रों की उत्पत्ति हुई?
उत्तर -णमोकार मंत्र से ८४ लाख मंत्रों की उत्पत्ति हुई।
प्रश्न ७ -इस मंत्र में प्रथम अरिहंतों को क्यों नमस्कार किया?
उत्तर -मोक्ष मार्ग का निर्देशन सर्वप्रथम अरिहंतों ने ही किया है अत: परोपकार की दृष्टि से प्रथम अरिहंतों को नमस्कार किया है।
प्रश्न ८ -इस मंत्र में कितने पद, अक्षर व मात्राएं हैं?
उत्तर -इस मंत्र में ५ पद, ३५ अक्षर व ५८ मात्राएं हैं।
प्रश्न ९ -यह मंत्र कौन से छंद में बना है?
उत्तर -यह मंत्र आर्याछंद में बना है।
प्रश्न १० -णमोकार मंत्र का हम क्यों ध्यान करते हैं?
उत्तर -सभी विघ्न बाधाओं को दूर करने के लिए हम णमोकार मंत्र का ध्यान करते हैं।
प्रश्न ११ -इस मंत्र का क्या फल है?
उत्तर -इस मंत्र से पाप का क्षय एवं पुण्य का बंध होकर परम्परा से मुक्ति मिलती है।
प्रश्न १२ -मंत्र जपने की विधि क्या है?
उत्तर -पूरब या उत्तर दिशा में या भगवान के सामने बैठकर मंत्र जपें। मंत्र जपते समय मन- वचन-काय शुद्ध रखें।
प्रश्न १३ -इस मंत्र के अपमान से क्या फल मिलता है?
उत्तर -नरक निगोद का सामना करना पड़ता है।
प्रश्न १४ -इस मंत्र का क्या माहात्म्य है?
उत्तर -ऐसो पंच णमोयारो सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होइ मंगलं।
अर्थ-यह पंच णमोकार मंत्र सभी पापों का नाश करने वाला है और सभी मंगलों में पहला मंगल है।
प्रश्न १ -मंगल शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर -जो ‘‘मं’’ यानी पाप मल धोवे अथवा ‘‘मंग’’ यानी पुण्य को प्राप्त करावे, उसका नाम मंगल है।
प्रश्न २ -मंगल कितने व कौन-कौन से हैं?
उत्तर – मंगल -अर्थ
चत्तारि मंगलं -चार मंगल हैं।
अरिहंत मंगलं -अरिहंत मंगल हैं।
सिद्ध मंगलं -सिद्ध मंगल हैं।
साहू मंगलं -साधु मंगल हैं।
केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं -केवली प्रणीत धर्म मंगल है।
प्रश्न ३ -उत्तम शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर -जो सबसे श्रेष्ठ हो, उसका नाम उत्तम है।
प्रश्न ४ -उत्तम कितने एवं कौन-कौन से हैं?
उत्तर – चत्तारि लोगुत्तमा -लोक में चार उत्तम हैं।
अरिहंत लोगुत्तमा -अरिहंत भगवान लोक में उत्तम हैं।
सिद्ध लोगुत्तमा -सिद्ध भगवान लोक में उत्तम हैं।
साहू लोगुत्तमा -साधु लोक में उत्तम हैं।
केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा -केवली प्रणीत धर्मलोक में उत्तम है।
प्रश्न ५ -शरण का क्या अर्थ है?
उत्तर -जिसके द्वारा जीवों की रक्षा हो उसका नाम है शरण।
प्रश्न ६ -शरण कितने व कौन-कौन से हैं?
उत्तर – चत्तारि सरणं पव्वज्जामि -शरण चार हैं, मैं इनकी शरण लेता हूँ।
अरिहंत सरणं पव्वज्जामि -मैं अरिहंत की शरण लेता हूँ।
सिद्ध सरणं पव्वज्जामि -मैं सिद्ध की शरण लेता हूँ।
साहू सरणं पव्वज्जामि -मैं साधु की शरण लेता हूँ।
केवलि पण्णत्तो धम्मो सरणं पव्वज्जामि-मैं केवलि प्रणीत धर्म की शरण लेता हूँ।
प्रश्न १ -तीर्थंकर किसे कहते हैं?
उत्तर -जो धर्म तीर्थ की प्रवृत्ति करते हैं एवं गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-मोक्ष ये पंच कल्याणक से शोभित हैं उन्हें तीर्थंकर कहते हैं।
प्रश्न २ -तीर्थंकर कितने होते हैं?
उत्तर -तीर्थंकर चौबीस होते हैं, न कम होते हैं न अधिक।
प्रश्न ३ -तीर्थंकरों के चिन्ह क्यों होते हैं?
उत्तर -प्रत्येक तीर्थंकर की पहिचान के लिए चिन्ह होते हैं।
प्रश्न ४ -चिन्ह कौन रखता है?
उत्तर -तीर्थंकर के जन्माभिषेक के समय दाहिने पैर के अंगूठे में जो चिन्ह होता है वही चिन्ह तीर्थंकरों के नाम के साथ इंद्र रखता है।
प्रश्न ५ -चिन्ह रहित कौन सी प्रतिमाएं हैं?
उत्तर -चिन्ह रहित अरिहंत-सिद्ध की प्रतिमाएँ हैं।
प्रश्न ६ -तीर्थंकर केवली एवं अरिहंत केवली में क्या अंतर है?
उत्तर -तीर्थंकर २४ एवं अरिहंत अनंत हैं। तीर्थंकर के चिन्ह, पंचकल्याणक और समोशरण की रचना होती है अरिहंतों के मात्र गंधकुटी होती है। सभी तीर्थंकर अरिहंत होते हैं पर सभी अरिहंत तीर्थंकर नहीं होते।
प्रश्न ७ -एक से अधिक नाम के कौन-कौन से तीर्थंकर हैं?
उत्तर -आदिनाथ के ऋषभदेव, पुरुदेव, नाभेय ब्रह्मा आदि अनेकों नाम हैं। पुष्पदंत के सुविधनाथ और भगवान महावीर के ५ नाम कहे हैं।
प्रश्न ८ -तीन पद के धारी कितने तीर्थंकर हैं?
उत्तर -कामदेव, चक्रवर्ती, तीर्थंकर ये तीन पद के धारी-शांति, कुंथु, अरहनाथ ये ३ तीर्थंकर हैं।
प्रश्न ९ -बाल ब्रह्मचारी कितने तीर्थंकर हैं?
उत्तर -५ तीर्थंकर हैं-वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर।
प्रश्न १० -किस क्षेत्र एवं किस काल में कितने तीर्थंकर होते हैं?
उत्तर -भरत-ऐरावत क्षेत्र के तीनों काल में चतुर्थकालसंबंधी २४-२४ तीर्थंकर होते हैं।
प्रश्न ११ -वर्तमान में कौन से तीर्थंकर का तीर्थ चल रहा है?
उत्तर -भगवान महावीर का तीर्थ चल रहा है।
प्रश्न १२ -२४ तीर्थंकरों के शरीर का वर्ण कौन सा है?
उत्तर -चंद्रप्रभु-पुष्पदंत का वर्ण श्वेत, पद्मप्रभु-वासुपूज्य का वर्ण लाल, सुपार्श्व व पार्श्वनाथ का वर्ण हरा, मुनिसुव्रत-नेमिनाथ का वर्ण काला, तथा शेष १६ तीर्थंकर का वर्ण स्वर्ण जैसा है।
प्रश्न १३ -क्या हम तीर्थंकर बन सकते हैं?
उत्तर -योग्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव मिलने से हम भी तीर्थंकर बन सकते हैं।
प्रश्न १४ -योग्य द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव कौन से हैं?
उत्तर -द्रव्य-पुरुष लिंग, क्षेत्र-भरत-ऐरावत-विदेह क्षेत्र, काल-चतुर्थ काल, भाव-परमविशुद्ध क्षायिकभाव।
प्रश्न १५ -तीर्थंकर प्रकृति का बंध कौन करता है?
उत्तर -सोलह कारण भावनाओं से युक्त कर्मभूमि मनुष्य पर्याय का भव्य सम्यग्दृष्टी जीव, केवली श्रुतकेवली के पादमूल में तीर्थंकर प्रकृति का बंध करता है।
प्रश्न १६ -१६ भावनाओं में किस भावना से तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है?
उत्तर -मुख्य दर्शन विशुद्धि भावना भाने से ही तीर्थंकर का बंध होता है शेष भावनाएं तो स्वयं हो जायेंगी।
प्रश्न १७ -तीर्थंकर के वैराग्य के समय कौन से देव आते हैं?
उत्तर -लौकांतिक देव आते हैं जो शुद्ध ब्रह्मचारी एक भवावतारी होते हैं।
प्रश्न १८ -क्या तीर्थंकर के भी गुरु होते हैं?
उत्तर -नहीं, तीर्थंकर स्वयं दीक्षित स्वयंभू होते हैं।
प्रश्न १९ -कौन से तीर्थंकर कहाँ-कहाँ से मोक्ष गये?
उत्तर -आदिनाथ वैâलाशपर्वत से, वासुपूज्य चंपापुर से, नेमिनाथ गिरनार जी से, महावीर स्वामी पावापुर से, शेष बीस तीर्थंकर सम्मेदशिखर से मोक्ष गये।
प्रश्न २० -सबसे अधिक व सबसे कम तप कौन से तीर्थंकर ने किया?
उत्तर -सबसे अधिक तप भगवान आदिनाथ और सबसे कम तप भगवान मल्लिनाथ ने मात्र ६ दिन तप करके केवलज्ञान को प्राप्त किया।
प्रश्न २१ -सबसे अधिक व सबसे कम आयु कौन से तीर्थंकर की है?
उत्तर -सबसे अधिक ८४ लाख वर्ष पूर्व की आयु भगवान आदिनाथ की और सबसे कम ७२ वर्ष की आयु भगवान महावीर की कही है।
प्रश्न २२ -धर्मतीर्थ की व्युच्छित्ति कौन से तीर्थंकर के समय हुई?
उत्तर -धर्म तीर्थ की व्युच्छित्ति पुष्पदंत से लेकर धर्मनाथ तक ७ तीर्थंकर के समय हुई। शेष १७ तीर्थंकर के समय धर्म की परम्परा अक्षुण्णरूप से चलती रही।
प्रश्न २२ -ढाईद्वीपसंबंधी एक समय में कितने तीर्थंकर हो सकते हैं?
उत्तर -अधिक से अधिक १७०, ५ भरत, ५ ऐरावत, १६० विदेह क्षेत्र के और कम से कम २० तीर्थंकर (५ विदेह क्षेत्र के) एक समय में हो सकते हैं।
प्रश्न २४ -ऐसे कौन से तीर्थंकर हैं जिनके एक ही जगह ५ कल्याणक हुए हैं?
उत्तर -ऐसे भगवान वासुपूज्य हैं जिनके पाँचों कल्याणक चंपापुर में हुए।
प्रश्न २५ -क्या सभी तीर्थंकरों के ५ कल्याणक होते हैं?
उत्तर -भरत-ऐरावत क्षेत्र के तीर्थंकरों के ५ कल्याणक और विदेह क्षेत्र के तीर्थंकरों के ५ या २-३ भी कल्याणक होते हैं।
प्रश्न २६ -चौबीस तीर्थंकरों के नाम व चिन्ह बताइये?
उत्तर – १. वृषभनाथ जी-बैल २. अजितनाथ जी-हाथी
३. संभवनाथ जी-घोड़ा ४. अभिनंदननाथ जी-बंदर
५. सुमतिनाथ जी-चकवा ६. पद्मप्रभू जी-कमल
७. सुपार्श्वनाथ जी-साथिया ८. चंद्रप्रभू जी-चन्द्रमा
९. पुष्पदंत जी-मगर १०. शीतलनाथ जी-कल्पवृक्ष
११. श्रेयांसनाथ जी-गेंडा १२. वासुपूज्य जी-भैंसा
१३. विमलनाथ जी-शूकर १४. अनंतनाथ जी-सेही
१५. धर्मनाथ जी-वङ्कादंड १६. शांतिनाथ जी-हिरण
१७. कुंथुनाथ जी-बकरा १८. अरहनाथ जी-मछली
१९. मल्लिनाथ जी-कलश २०. मुनिसुव्रतनाथ जी-कछुवा
२१. नमिनाथ जी-नीलकमल २२. नेमिनाथ जी-शंख
२३. पार्श्वनाथ जी-सर्प २४. महावीर स्वामी जी-सिंह
प्रश्न १ -तीर्थंकर की माता को कितने स्वप्न दिखे थे?
उत्तर -तीर्थंकर की माता को १६ स्वप्न दिखे थे।
प्रश्न २ -तीर्थंकरों की माता को १६ स्वप्न ही क्यों दिखे थे?
उत्तर -क्योंकि पूर्व भव में तीर्थंकर सोलहकारण भावना भाकर तीर्थंकर प्रकृति को बांधते हैं इसीलिए माता को १६ स्वप्न दिखे।
प्रश्न ३ -तीर्थंकर की माता को १६ स्वप्न कब व किस समय दिखते हैं?
उत्तर -तीर्थंकर के गर्भ में आने के पूर्व ही माता को रात्रि के पिछले प्रहर में शुभसूचक १६ स्वप्न दिखते हैं।
प्रश्न ४ -स्वप्न के पहले कौन सा चमत्कार होता है?
उत्तर -स्वप्न के छ: माह पूर्व ही भगवान के आंगन में रत्नों की वर्षा होती है और इंद्र की आज्ञा से कुबेर नगरी की अनुपम रचना करते हैं।
प्रश्न ५ -स्वप्न देखने के बाद क्या होता है?
उत्तर -स्वप्न देखने के बाद तीर्थंकर माता के गर्भ में आते हैं, तब इंद्र देवगण आकर गर्भकल्याणक मनाते हैं एवं इंद्र की आज्ञा से ५६ कुमारी आदि देवियाँ आकर भक्तिपूर्वक माता की सेवा करती हैं।
प्रश्न ६ -ये ५६ कुमारियाँ कौन हैं एवं कहाँ से आती हैं?
उत्तर -ये श्री, ह्री आदि ५६ कुमारियाँ षट्कुलाचल, रुचकगिरि आदि से आती हैं।
प्रश्न ७ -इन्हें दिक्कुमारियाँ क्यों कहा?
उत्तर -दिशाओं में इनका निवास होने से एवं बाल ब्रह्मचारिणी रहने से इन्हें दिक्कुमारियाँ कहा है।
प्रश्न ८ -तीर्थंकर की माताएँ १६ स्वप्नों का फल किससे पूछती हैं?
उत्तर -तीर्थंकर की माताएँ १६ स्वप्नों का फल अपने पतिदेव से पूछती हैं।
धार्मिक शिक्षा (जीव व अजीव के भेद)
प्रश्न १ -तुम कौन हो?
उत्तर -मैं चैतन्य ज्योतिस्वरूप जीव हूँ।
प्रश्न २ -जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -जिसमें ज्ञान-दर्शनरूप चेतना शक्ति है, वह जीव है।
प्रश्न ३ -अजीव किसे कहते हैं?
उत्तर -जिसमें चेतना शक्ति नहीं है, वह अजीव है।
प्रश्न ४ -घड़ी, मोटर,रेडियो आदि जीव हैं या अजीव?
उत्तर -ये सब अजीव हैं क्योंकि इ्नामें चेतना शक्ति नहीं है।
प्रश्न ५ -शरीर जीव है या अजीव?
उत्तर -संसारी प्राणी का शरीर जीव सहित है।
प्रश्न ६ -जीव के कितने भेद हैं?
उत्तर -जीव के २ भेद हैं-संसारी एवं मुक्त।
प्रश्न ७ -संसारी जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनके साथ आठों कर्म लगे हुए हैं, वे संसारी जीव हैं।
प्रश्न ८ -तुम संसारी हो या मुक्त?
उत्तर -हम संसारी जीव हैं।
प्रश्न ९ -मुक्त जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -कर्मों से रहित जीव को मुक्त जीव कहते हैं।
प्रश्न १० -मुक्त जीव के कितने भेद हैं?
उत्तर -दो भेद हैं-जीवन मुक्त (अर्हंत) पूर्ण मुक्त (सिद्ध)
प्रश्न ११ -क्या जीव कभी अजीव हो सकता है?
उत्तर -नहीं, जीव कभी अजीव एवं अजीव कभी जीव नहीं हो सकता।
प्रश्न १२ -क्या हम सभी संसार से मुक्त हो सकते हैं?
उत्तर -हाँ! यदि मोक्षमार्ग में लगें तो मुक्त हो सकते हैं।
प्रश्न १३ -जीव की पहिचान वैâसे होती है?
उत्तर -इन्द्रियों के द्वारा जीव की पहिचान होती है।
प्रश्न १४ -अर्हंत भगवान संसारी हैं या मुक्त?
उत्तर -अर्हंत भगवान न संसारी हैं न मुक्त, अपितु जीवनमुक्त हैं।
प्रश्न १५ -जीवन मुक्त और मुक्त जीव में क्या अंतर है?
उत्तर -४ घातिया कर्मों के नाश करने से अर्हंत भगवान जीवनमुक्त एवं ८ कर्मोें के नाश करने से सिद्ध भगवान पूर्णमुक्त या मुक्त जीव कहलाते हैं। यही दोनों में अंतर है।
प्रश्न १६ -जीव-अजीव इन दोनों में से अधिक शक्ति किसकी होती है?
उत्तर -जीव में अधिक शक्ति है क्योंकि जीव अर्थात् आत्मा के प्रदेशों के सहयोग से ही नाक- कानादिक द्रव्येन्द्रिय अपना कार्य करने में समर्थ हैं अन्यथा नहीं।
प्रश्न १ -इंद्रिय किसे कहते हैं?
उत्तर -जिसके द्वारा जीव की पहिचान हो, उसे इन्द्रिय कहते हैं।
प्रश्न २ -इंद्रियाँ कितनी होती हैं?
उत्तर -इन्द्रियाँ पाँच होती हैं-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण।
प्रश्न ३ -पाँचों इन्द्रियों का विषय क्या है?
उत्तर -स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द ये पाँचों इन्द्रियों के ५ विषय हैं।
प्रश्न ४ -स्पर्शन इन्द्रिय किसे कहते हैं?
उत्तर -जिसे छूकर ज्ञान हो, वह स्पर्शन इन्द्रिय है। जैसे-हल्का, भारी, रुखा, चिकना, कड़ा, नरम, ठंडा, गर्म।
प्रश्न ५ -रसना इन्द्रिय किसे कहते हैं?
उत्तर -जिससे चखकर पदार्थ का ज्ञान हो, वह रसना इन्द्रिय है। जैसे-खट्टा, मीठा, कड़ुवा, कसायला, चरपरा।
प्रश्न ६ -घ्राण इन्द्रिय किसे कहते हैं?
उत्तर -जिससे सूंघने का ज्ञान हो, वह घ्राण इन्द्रिय है। जैसे-सुगंध, दुर्गंध।
प्रश्न ७ -चक्षु इन्द्रिय किसे कहते हैं?
उत्तर -जिससे देखने का ज्ञान हो, वह चक्षु इन्द्रिय है। जैसे-काला, पीला, नीला, लाल, सफेद।
प्रश्न ८ -कर्ण इन्द्रिय किसे कहते हैं?
उत्तर -जिससे सुनने का ज्ञान हो, वह कर्ण इन्द्रिय है। जैसे-मनुष्य, पशु, पक्षी, आदि की आवाज-अक्षरात्मक, अनक्षरात्मक।
प्रश्न ९ -हम सबकी मिलकर कितनी इन्द्रियाँ हैं?
उत्तर -हम सभी की अलग-अलग पाँचों इन्द्रियाँ हैं।
प्रश्न १० -एक-एक इन्द्रिय में कौन-कौन जीव फंसे?
उत्तर -स्पर्शेन्द्रिय में हाथी, रसनेन्द्रिय में मछली, घ्राणेन्द्रिय में भौंरे, चक्षु इन्द्रिय में पतंगे, कर्णेन्द्रिय में हिरण ने फंसकर कष्ट भोगे। फिर जो पाँचों इन्द्रियों में फंसे हैं, उनका तो कहना ही क्या?
प्रश्न १ -संसारी जीव के कितने भेद हैं?
उत्तर -दो भेद हैं-त्रस और स्थावर।
प्रश्न २ -स्थावर जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -स्थावर नामकर्म के उदय से एकेन्द्रिय में जिनका जन्म हो, वह स्थावर जीव है। जैसे-वृक्षादिक।
प्रश्न ३ -स्थावर जीव के कितने भेद हैं?
उत्तर -५ भेद हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं वनस्पतिकायिक।
प्रश्न ४ -पृथ्वीकायिक जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -पृथ्वी ही जिनका शरीर हो, वह पृथ्वीकायिक जीव हैं। जैसे-मिट्टी, पत्थर, सोना-चाँदी आदि।
प्रश्न ५ -जलकायिक जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -जल ही जिनका शरीर हो, वह जलकायिक जीव हैं। जैसे-पानी, बर्फ, ओला, ओस आदि।
प्रश्न ६ -अग्निकायिक जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -अग्नि ही जिनका शरीर हो, वह अग्निकायिक जीव हैं। जैसे-दीपक की लौ, अग्नि आदि।
प्रश्न ७ -वायुकायिक जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -वायु ही जिनका शरीर हो, वह वायुकायिक जीव हैं। जैसे-हवा, तूफान, आंधी आदि।
प्रश्न ८ -वनस्पतिकायिक जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -वनस्पति ही जिनका शरीर हो, वह वनस्पतिकायिक जीव हैं। जैसे-वृक्ष, लता, फल-फूल आदि।
प्रश्न ९ -वनस्पतिकायिक जीव के कितने भेद हैं?
उत्तर -वनस्पतिकायिक जीव के २ भेद हैं-प्रत्येक और साधारण।
प्रश्न १० -प्रत्येक और साधारण वनस्पति किसे कहते हैं?
उत्तर -जिसका स्वामी एक जीव हो, वह प्रत्येक वनस्पति है जैसे-आमादि और जिसमें अनंत जीव हों, वह साधारण वनस्पति है। जैसे-आलू आदि।
प्रश्न ११ -एकेन्द्रिय के और कौन से भेद हैं?
उत्तर -बादर जो स्वयं रुके व अन्य को रोके, इसके विपरीत सूक्ष्म-ऐसे २ भेद हैं।
प्रश्न १ -त्रस जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -त्रस नाम कर्म के उदय से दो इन्द्रियादिक में जिनका जन्म हो, उन्हें त्रस जीव कहते हैं।
प्रश्न २ -त्रस जीव के कितने भेद हैं?
उत्तर -चार-दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, पंचेन्द्रिय।
प्रश्न ३ -दो इन्द्रिय जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनके स्पर्शन, रसना ये दो इन्द्रियां हैं, वे दो इन्द्रिय जीव हैं। जैसे-लट, केंचुआ, शंख आदि।
प्रश्न ४ -तीन इन्द्रिय जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ हों, वे तीन इन्द्रिय जीव हैं। जैसे-चींटी, खटमल, बिच्छू, जूँ आदि।
प्रश्न ५ -चार इन्द्रिय जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु ये चार इन्द्रियाँ हों, वे चार इन्द्रिय जीव हैं। जैसे-मधुमक्खी, बर्र, ततैया आदि।
प्रश्न ६ -पंचेन्द्रिय जीव किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण, ये पाँचों इन्द्रियां हों, वे पंचेन्द्रिय जीव हैं। जैसे-मनुष्य, देव, नारकी, तिर्यंच आदि।
प्रश्न ७ -पंचेन्द्रिय के कितने भेद हैं?
उत्तर -२ भेद हैं-सैनी (मन सहित जीव) असैनी (मन रहित जीव)।
प्रश्न ८ -मन किसे कहते हैं?
उत्तर -अच्छे-बुरे विचार करने की शक्ति को मन कहते हैं।
प्रश्न ९ -तुम सैनी हो या असैनी?
उत्तर -हम सैनी हैं। एकेन्द्रिय से चार इन्द्रिय तक सभी जीव असैनी हैं।
प्रश्न १० -पंचेन्द्रिय तिर्यंच के कितने भेद हैं?
उत्तर -३ भेद हैं-जलचर-जो जल में रहें-मगर, मछली आदि, थलचर-जो पृथ्वी पर चलें-बन्दर, कुत्ता, गाय आदि, नभचर-जो आकाश में उड़ें-कबूतर, कौवा, चीलादि।
प्रश्न १ -मूलगुण किसे कहते हैं?
उत्तर -आत्मशुद्धि हेतु जीवन के जो मुख्यगुण हैं उसे मूलगुण कहते हैं, इनके ८ भेद हैं। जैसे- जड़ बिना वृक्ष नहीं, वैसे ही अष्टमूलगुण बिना जैन श्रावक कहने के योग्य नहीं।
प्रश्न २ -ये अष्ट मूलगुण कौन-कौन से हैं?
उत्तर -मद्य त्याग, मांस त्याग, मधु त्याग, पंच उदुंबर फलों का त्याग, रात्रि भोजन त्याग, जीव दया पालन, पानी छानकर पीना एवं देवदर्शन करना, ये ८ मूलगुण हैं।
प्रश्न ३ -मद्य क्या चीज है एवं इसके पीने से क्या हानि है?
उत्तर -अनेक सड़ी-गली नशीली वस्तु से जो बने, वह मद्य यानी शराब है। इसके पीने से मनुष्य मतवाले हो जाते हैं।
प्रश्न ४ -मांस क्या चीज है एवं इसमें क्या दोष हैं?
उत्तर -अनंत जीवों का कलेवर माँस है। मांस भक्षी नारकी होते हैं।
प्रश्न ५ -मधु क्या चीज है एवं इसमें क्या दोष हैं?
उत्तर -मधु मक्खियों के लार से जो बने, वह मधु-शहद है। इसमें अनंत जीव हैं। एक बूंद शहद खाने से सात गाँव जलाने का दोष लगता है।
प्रश्न ६ -पंच उदुंबर कौन-कौन से हैं इसमें क्या दोष है?
उत्तर -बड़, पीपल, पाकर, गूलर, कठूमर ये ५ उदुंबर फल हैं इनके खाने से अगणित सूक्ष्म जीवों का घात होने से इनमें महान दोष है।
प्रश्न ७ -वैज्ञानिक दृष्टि से मद्य, मांस, मधु व ५ उदुंबर में क्या दोष हैं?
उत्तर -वैज्ञानिक दृष्टि से भी अनंत जीवों का पिंड ऐसे मांसादिक में महान दोष हैं इन सभी का त्याग करके अष्टमूलगुण पालने में ही लाभ है।
प्रश्न ८ -अष्टमूलगुण पालन करने से क्या लाभ है?
उत्तर -पुरुरवा भील मुनि को मारने चला, पर स्त्री के रोकने से उसने मुनि को नमस्कार किया। पुन: गुरु के उपदेश से मांसादि का त्याग करके अष्टमूलगुण पालन किया। जिसके प्रभाव से स्वर्ग में देव होकर कालांतर में भगवान महावीर बन गया।
प्रश्न १ -देवदर्शन की विधि क्या है?
उत्तर -मंदिर में प्रवेश करते ही-ॐ, जय जय जय, नि:सही नि:सही नि:सही, नमोस्तु नमोस्तु, नमोस्तु बोलकर भगवान के चरणों में हाथ जोड़कर नमस्कार करें। पुन: णमोकार मंत्रादि स्तुति पढ़ते हुए भगवान की ३ परिक्रमा देवें, फिर अभिषेकादि करके मंदिर से निकलते समय असही, असही बोलें।
प्रश्न २ -नि:सही, असही का क्या अर्थ है?
उत्तर -नि:सही का अर्थ है मंदिर के रक्षक देव से पूछकर जाना और असही यानी देव से बोलकर निकलना कि मैं जा रहा हूँ।
प्रश्न ३ -भगवान को वैâसे नमस्कार करना चाहिए?
उत्तर -पुरुष वर्ग पंचांग व अष्टांग और महिलाएँ गवासन से चावल आदि चढ़ाकर नमस्कार करें, खाली हाथ नहीं। क्योंकि देव, गुरु, राजा, वैद्य एवं ज्योतिषी इनके पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। खाली हाथ जाने से खाली आना पड़ेगा अत: भगवान को ५, शास्त्र को ४, गुरु को ३ चावल के पुंज चढ़ाकर नमस्कार करें।
प्रश्न ४ -हम मंदिर क्यों जाते हैं?
उत्तर -मन की शुद्धि हेतु देवदर्शन को हम मंदिर जाते हैं।
प्रश्न ५ -हम देवदर्शन क्यों करते हैं?
उत्तर -पाप का क्षय एवं सातिशय पुण्य फल हेतु हम देवदर्शन करते हैं।
प्रश्न ६ -देवदर्शन का माहात्म्य क्या है?
उत्तर -देवदर्शन का अचिन्त्य माहात्म्य है इससे सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है।
प्रश्न ७ -देवदर्शन से क्या लाभ है?
उत्तर -देवदर्शन से १ करोड़ उपवास का फल एवं परम्परा से मुक्ति अर्थात् शाश्वत सुख मिलते हैं।
प्रश्न १ -पूजा का मतलब क्या है?
उत्तर -भगवान की भक्तिरूप जो पुण्य क्रिया है वह पूजा कहलाती है।
प्रश्न २ -पूजा के कितने भेद हैं?
उत्तर -दो-द्रव्य एवं भाव पूजा। भाव पूजा मुनि एवं भाव सहित द्रव्य पूजन सभी श्रावक करते हैं।
प्रश्न ३ -द्रव्यपूजा के कितने भेद हैं?
उत्तर -५-नित्यमह, अष्टान्हिक, इंद्रध्वज, महामह, कल्पद्रुम।
प्रश्न ४ -नित्य नैमित्तिक पूजन का लक्षण क्या है?
उत्तर -जो प्रतिदिन पूजन होती है वह नित्यमह पूजन है और जो विशेषरूप से महायज्ञ उत्सव करते हैं वह नैमित्तिक पूजन है।
प्रश्न ५ -हम पूजन क्यों करते हैं?
उत्तर -मात्र आत्म शांति के लिए हम पूजन करते हैं।
प्रश्न ६ -पूजन किसकी करनी चाहिए?
उत्तर -अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु इन पंचपरमेष्ठी की पूजा करनी चाहिए, ये ही हमारे लिए पूज्य हैं।
प्रश्न ७ -पूजन में चढ़ाने वाले अष्टद्रव्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर -जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, फल ये अष्टद्रव्य हैं, इन्हें क्रम-क्रम से पूजन में चढ़ाते हैं।
प्रश्न ८ -पूजा का फल क्या है?
उत्तर -स्वर्गादि विभूति एवं परम्परा से मुक्ति प्राप्ति, य्ाही पूजा का फल है।
प्रश्न ९ -क्या अष्टद्रव्य चढ़ाना जरूरी है?
उत्तर -हाँ जरूरी है, बिना अष्टद्रव्य के पूजन अधूरी है, ऐसा आगम का नियम है।
प्रश्न १० -पूजा वैâसे करनी चाहिए?
उत्तर -पूजा आगम के अनुसार शांतिपूर्वक मौन से करनी चाहिए।
प्रश्न ११ -पूजा की चढ़ी द्रव्य किसे लेने का अधिकार है?
उत्तर -माली को लेने का अधिकार है यदि और कोई जैन द्रव्य लेता है तो उसे निर्माल्य खाने का दोष लगता है, जो नरक निगोद का कारण है।
प्रश्न १२ -पूजन में वस्त्र वैâसे होना चाहिए?
उत्तर -पूजन में फटे पुराने सिले वस्त्र न होकर शुद्ध नये वस्त्र होना चाहिए तथा धोती, दुपट्टा, जनेऊ सहित दो वस्त्र से ही पूजन करने का आगम में विधान है अन्यथा लाभ के सिवाय उल्टे हानि होती है।
प्रश्न १३ -पूजन में जल क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -जन्म-जरा-मृत्यु रोग को नाश करने के लिए हम जल चढ़ाते हैं।
प्रश्न १४ -चंदन क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -भवताप को दूर करने के लिए।
प्रश्न १५ -अक्षत क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -अक्षय पद की प्राप्ति के लिए।
प्रश्न १६ -पुष्प क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -काम वासना दूर करने के लिए।
प्रश्न १७ -नैवेद्य क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -क्षुधा को शांत करने के लिए।
प्रश्न १८ -दीप क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -मोहतम दूर करने के लिए।
प्रश्न १९ -धूप क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -अष्टकर्म को नाश करने के लिए।
प्रश्न २० -फल क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -मोक्ष फल पाने के लिए।
प्रश्न २१ -अर्घ्य क्यों चढ़ाते हैं?
उत्तर -अनर्घ्य पद पाने के लिए।
प्रश्न २२ -जयमाला किसे कहते हैं?
उत्तर -भगवान के गुणों की आरती को।
प्रश्न २३ -पूजा का फल किसे मिला, दृष्टांत दीजिए?
उत्तर -मैना सुंदरी ने मुनिराज के कहने से आष्टान्हिक पर्व में सिद्धचक्र का मंडल रचाकर बड़े ठाठ के साथ पूजा की और भगवान के अभिषेक का गंधोदक अपने पति एवं ७०० कुष्ट रोगियों के शरीर पर छिड़का। उस गंधोदक के प्रभाव से श्रीपाल कोटिभट और सभी का कुष्ट रोग दूर हो गया। काया कंचन सी हो गई, ये है पूजन का प्रभाव! अत: सभी को पूजन करने का नियम लेना चाहिए।
प्रश्न १ -रात्रि भोजन लोग क्यों करते हैं?
उत्तर -मात्र उदर की पूर्ति एवं जिह्वा इंद्रिय की लंपटता के कारण लोग रात्रि भोजन करते हैं।
प्रश्न २ -जैनधर्म के अनुसार रात्रि भोजन से क्या हानि है?
उत्तर -रात्रि के प्रकाश में सूक्ष्म जीव नहीं दिखते। यदि चींटी पेट में चली जावे तो बुद्धि नष्ट होती है। जूँ से जलोदर रोग, मक्खी से वमन, मकड़ी से कुष्ठ रोग, गले में बाल जाने से स्वरभंग आदि रोग हो जाते हैं और बहुत सी हानियाँ रात्रि भोजन से होती हैं।
प्रश्न ३ -वैज्ञानिक दृष्टिकोण से रात्रि भोजन में क्या हानि है?
उत्तर -वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि रात्रि में कीटाणु नष्ट करने की शक्तिरूप प्रकाश नहीं होता, इससे जीव जंतु प्रवेश कर भोजन को विषाक्त कर देते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
प्रश्न ४ -हमें भोजन कब करना चाहिए?
उत्तर -हमें भोजन सूर्योदय के ४८ मिनट बाद एवं सूर्यास्त के ४८ मिनट पूर्व करना चाहिए।
प्रश्न ५ -चर्तुप्रकार आहार कौन-कौन से हैं?
उत्तर -खाद्य (अन्न) स्वाद्य (सौंफ-लौंगादि) लेय (हलवा आदि) पेय (दूधादि) ये ४ प्रकार के आहार कहे हैं।
प्रश्न ६ -रात्रि भोजन से क्या कुफल मिलता है, दृष्टांत दो?
उत्तर -एक बार की बात है कि रात्रि को एक घी की कढ़ाई में सर्प गिर गया, पूड़ी उतार कर बराती को खिलाई गई, सब बराती मर गये। सुबह देखा तो घी में सर्प मरा पड़ा है। ऐसे ही अनेकों दुर्घटनाएं हो जाती हैं अत: रात्रि भोजी पशु तुल्य हैं।
प्रश्न ७ -रात्रि भोजन त्याग से क्या फल मिलता है?
उत्तर -जो मात्र एक रात्रि भोजन नहीं करे, उसे १ उपवास का फल और १ वर्ष रात्रि भोजन त्याग करे तो ६ माह उपवास का फल मिलता है।
प्रश्न ८ -रात्रि भोजन त्याग व्रत की प्रतिज्ञा किसने ली थी?
उत्तर -सोमासती ने रात्रि भोजन त्याग व्रत की प्रतिज्ञा ली थी जिसके फलस्वरूप सर्प भी पुष्पमाला बन गई थी।
प्रश्न १ -जल छानकर क्यों पीना चाहिए?
उत्तर -बिना छना जल पीने से अनंत जीवों का घात होता है इसलिए पानी छानकर ही पीना चाहिए।
प्रश्न २ -अनछना जल पीने से क्या हानि है?
उत्तर -जैन जैनेतर कोई भी हो, स्वास्थ्य की दृष्टि से सबके लिए ही अनछना जल विशेषरूप से हानिकारक है क्योंकि इससे पेट में कीड़े जाकर तरह-तरह के रोग उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न ३ -जैनाचार्यों ने पानी में कितने जीव माने हैं?
उत्तर -जैनाचार्यों ने पानी की एक बूंद में असंख्यात जीव माने हैं।
प्रश्न ४ -वैज्ञानिकों ने एक बूंद पानी में कितने जीव सिद्ध किये हैं?
उत्तर -वैज्ञानिकों ने एक बूंद पानी में यंत्र के द्वारा ३६४५० जीव सिद्ध किये हैं और कहा है ‘‘वस्त्र पूतं पिबेत् जलं’’।
प्रश्न ५ -पानी वैâसे छानना चाहिए?
उत्तर -पानी मोटे कपड़े के दोहरे छन्ने से छानना चाहिए पुन: जीवानी निकालकर यथास्थान कुएँ में ही डाल देना चाहिए, ऐसा आगम में कहा है।
प्रश्न ६ -जैन धर्मानुसार पानी की मर्यादा कितनी है?
उत्तर -जैन धर्मानुसार छने पानी की मर्यादा ४८ मिनट की, लौंग, सौंफ आदि डाले हुए पानी की ६ घंटे की और गरम किए हुए पानी की मर्यादा २४ घंटे की है।
प्रश्न ७ -जैन होकर अनछना पानी पियेगा क्या?
उत्तर -यदि सच्चे रूप में जैन है तो वह अनछने जल का प्रयोग कभी नहीं करेगा। अन्यथा जैन कहलाने के योग्य नहीं है।
प्रश्न १ -अभक्ष्य किसे कहते हैं?
उत्तर -जो पदार्थ खाने योग्य नहीं है, उसे अभक्ष्य कहते हैं।
प्रश्न २ -जिनागम की अपेक्षा अभक्ष्य में क्या हानि है?
उत्तर -जिनागम की अपेक्षा जैन-जैनेतर सभी के लिए अभक्ष्य पदार्थ हानिकारक हैं। इसके सेवन से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है क्योंकि वह जीवों का पिंड है।
प्रश्न ३ -वैज्ञानिक मत की अपेक्षा अभक्ष्य में क्या हानि है?
उत्तर -वैज्ञानिक मत की अपेक्षा भी अनंत त्रस एवं स्थावर जीवों का कलेवर होने से स्वास्थ्य की दृष्टि से अभक्ष्य पदार्थ हानिकारक हैं, इससे वैंâसर आदि रोग हो जाते हैं।
प्रश्न ४ -अभक्ष्य के कितने भेद हैं?
उत्तर -५ भेद हैं-त्रसघातक, स्थावरघातक, प्रमादवर्धक, अनिष्ट, अनुपसेव्य।
प्रश्न ५ -त्रसघातक अभक्ष्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर -जिसके खाने से त्रस जीवों का घात हो, वह त्रसघातक अभक्ष्य है। जैसे-पंच उदंबर, द्विदल आदि।
प्रश्न ६ -द्विदल किसे कहते हैं?
उत्तर -कच्चे दूध से जमे हुए दही में दो दल वाले मूंग-चनादि से बनी चीज को द्विदल कहते हैं।
प्रश्न ७ -स्थावर घातक अभक्ष्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर -जिस वस्तु के खाने से अनंत स्थावर जीवों का घात हो, वह स्थावरघातक अभक्ष्य है। जैसे-मूली, गाजर आदि कंदमूल।
प्रश्न ८ -प्रमादवर्धक अभक्ष्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर -जिसके खाने से प्रमाद बढ़े, वह प्रमादवर्धक अभक्ष्य हैं। जैसे-शराब, अफीम, भांग आदि नशीली चीजें।
प्रश्न ९ -अनिष्ट क्या चीज है?
उत्तर -जो वस्तु भक्ष्य होने पर भी अपने लिए हितकर न हो, वह अनिष्ट है। जैसे-खांसी के रोग में बर्फ।
प्रश्न १० -अनुपसेव्य क्या चीज है?
उत्तर -जो पदार्थ सेवन करने योग्य न हो, वह अनुपसेव्य है। जैसे-लार, मूत्र आदि।
प्रश्न ११ -मर्यादा किसे कहते हैं?
उत्तर -समय की सीमा को मर्यादा कहते हैं।
प्रश्न १२ -आटे, मसाले व घी में भुने बेसन आदि की क्या मर्यादा है?
उत्तर -शीत में ७ दिन, गर्मी में ५ दिन, वर्षा ऋतु में ३ दिन की मर्यादा है।
प्रश्न १३ -चीनी के बने बूरे व काष्टिक वस्तु की कितनी मर्यादा है?
उत्तर -शीत में १ माह, गर्मी में १५ दिन, वर्षा में ७ दिन की है।
प्रश्न १४ -भोजन आदि की कितनी मर्यादा है?
उत्तर -दाल, कढ़ी आदि व प्रासुक जल की मर्यादा ६ घंटे की, पूड़ी-कचौड़ी आदि की १२ घंटे, तली हुई चीज एवं उबले हुए पानी, दूध, दही, अचार, मुरब्बा आदि की २४ घंटे की मर्यादा है और घी, तेल, गुड़ आदि की मर्यादा स्वाद न बिगड़ने तक है।
प्रश्न १ -विद्यार्थी किसे कहते हैं?
उत्तर -जो विद्या प्राप्ति के इच्छुक हैं, उन्हें विद्यार्थी कहते हैं।
प्रश्न २ -विद्यार्थी के कितने एवं कौन-कौन से गुण हैं?
उत्तर -कौवे सम चेष्टा करना, बगुले सम ध्यान करना, कुत्ते के समान नींद लेना, अल्पाहार एवं घर त्याग करके गुरुकुल में पढ़ना ये विद्यार्थी के ५ गुण हैं।
प्रश्न ३ -विद्यार्थी जीवन वैâसा होना चाहिए?
उत्तर -शिष्टाचार, सदाचार का पालन एवं गुरु के प्रति विनयवृत्ति होना चाहिए।
प्रश्न १ -सत्संग का क्या अर्थ है?
उत्तर -सत्संग का अर्थ है कि सज्जन पुरुषों की संगति करना।
प्रश्न २ -सत्संग से क्या लाभ है?
उत्तर -सत्संग से हम गुणवान, चरित्रवान बनते हैं।
प्रश्न ३ -दुर्जनों की संगति से क्या-क्या हानि होती है?
उत्तर -दुर्जनों की संगति हमें नरक-निगोद में ले जाती है।
प्रश्न ४ -आज सत्संग की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर -क्योंकि सत्संग में रहकर हम आत्म उन्नति कर सकते हैं।
प्रश्न ५ -सज्जन एवं दुर्जन की पहिचान क्या है?
उत्तर -सज्जन नि:स्वार्थी रहकर सदा दूसरों के प्रति शुद्ध भावना रखते हैं, पर दुर्जन पुरुष स्वार्थी होकर सदा दूसरों के प्रति कूटनीति षड्यंत्र करते हैं।
प्रश्न १ -आत्मा के कितने भेद हैं?
उत्तर -३ भेद हैं-बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा।
प्रश्न २ -बहिरात्मा किसे कहते हैं?
उत्तर -जो शरीर और जीव को एक समझे, वो बहिरात्मा है।
प्रश्न ३ -अन्तरात्मा किसे कहते हैं?
उत्तर -जिस प्रकार उड़द की दाल छिलकों से भिन्न है उसी प्रकार मेरी आत्मा शरीर से भिन्न है ऐसा भेदज्ञान होना इसका नाम है अंतरात्मा।
प्रश्न ४ -अंतरात्मा के कितने भेद हैं?
उत्तर -उत्तम, मध्यम, जघन्य के भेद से अन्तरात्मा के ३ भेद हैं।
प्रश्न ५ -उत्तम अन्तरात्मा किसे कहते हैं?
उत्तर -शुद्धोपयोगी मुनि को उत्तम अन्तरात्मा कहते हैं।
प्रश्न ६ -मध्यम अन्तरात्मा किसे कहते हैं?
उत्तर -देशव्रती एवं अनगारी मुनि-आर्यिकाओं को मध्यम अन्तरात्मा कहते हैं।
प्रश्न ७ -जघन्य अन्तरात्मा किसे कहते हैं?
उत्तर -अविरत सम्यग्दृष्टी जीव को जघन्य अन्तरात्मा कहते हैं।
प्रश्न ८ -तुम कौन हो बहिरात्मा हो या अन्तरात्मा?
उत्तर -मैं सभी से भिन्न अन्तरात्मा हूँ।
प्रश्न ९ -परमात्मा किसे कहते हैं?
उत्तर -कर्मों से रहित अवस्था का नाम परमात्मा है, इसके २ भेद हैं-सकल परमात्मा एवं विकल परमात्मा।
प्रश्न १० -सकल एवं विकल परमात्मा किसे कहते हैं?
उत्तर -चार घातिया कर्म से रहित ऐसे अरिहंत भगवान सकल परमात्मा एवं आठ कर्मों से रहित सिद्ध भगवान विकल परमात्मा हैं।
प्रश्न ११ -क्या हम भी परमात्मा बन सकते हैं?
उत्तर -क्यों नहीं बन सकते, मात्र पुरुषार्थ की आवश्यकता है।
प्रश्न १२ -वह पुरुषार्थ क्या है?
उत्तर -संयम चारित्र को धारण करना यही सच्चा पुरुषार्थ है। इसी से मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि होती है।
प्रश्न १ -जैनधर्म में कितने पूज्य देवता माने हैं?
उत्तर -जैनधर्म में नवदेवता माने हैं।
प्रश्न २ -नव देवताओं के नाम क्या है?
उत्तर -पंच परमेष्ठी जिसकी व्याख्या पहले की है और जिनधर्म, जिनागम, जिनचैत्य, जिनचैत्यालय ये ९ देवता कहे हैं।
प्रश्न ३ -जिनधर्म किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनेन्द्र देव के द्वारा दर्शाये गये सन्मार्ग को जिनधर्म कहते हैं।
प्रश्न ४ -जिनागम किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनेन्द्र देव द्वारा कथित एवं गणधर आचार्यों द्वारा रचित ऐसे युक्तिप्रमाण से अविरोधी निर्दोषशास्त्र को जिनागम कहते हैं।
प्रश्न ५ -जिनचैत्य किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनदेव की प्रतिमा को जिनचैत्य कहते हैं।
प्रश्न ६ -जिन चैत्यालय किसे कहते हैं?
उत्तर -जिनेन्द्र देव की प्रतिमाएं जहाँ पर विराजमान हैं ऐसे स्थान विशेष को जिनचैत्यालय अथवा मंदिर कहते हैं।
प्रश्न ७ -जिन किसे कहते हैं?
उत्तर -जिन्होंने इन्द्रिय व मन पर विजय पा लिया, उन्हें जिन कहते हैं। ऐसे जिन (अर्हंत) के उपासक को जैन कहते हैं।
प्रश्न ८ -इन देवताओं की भक्ति एवं अपमान से क्या फल मिलते हैं?
उत्तर -इन देवताओं की भक्ति करने से स्वर्ग व मोक्ष फल मिलते हैं और इनका अपमान करने वाले संसार में भ्रमण करते हैं।
प्रश्न ९ -इस समय भरत क्षेत्र में कितने देवता माने हैं?
उत्तर -इस समय अरिहंत-सिद्ध को छोड़कर ७ देवता माने हैं।
प्रश्न १० -देवताओं की परम्परा कब से चली?
उत्तर -ये परम्परा अनादिनिधन है, किसी के द्वारा ये परम्परा नहीं चली।
प्रश्न ११ -ये नव देवता कहाँ-कहाँ पर रहते हैं?
उत्तर -ये नव देवता ढाई द्वीप में रहते हैं, इसके आगे द्वीपों में मात्र चैत्य और चैत्यालय ये दो देवता ही रहते हैं।
प्रश्न १ -वे कौन ऋषि थे, जिन्हें बांधकर ४८ ताले में बंद रखा गया?
उत्तर -वे परम ऋषि घोर उपसर्ग विजयी मानतुंगाचार्य थे।
प्रश्न २ -वे कौन ऋषि थे, जिनके सिर पर सिगड़ी जलाई गई थी?
उत्तर -वे परम तपस्वी गजकुमार मुनि थे।
प्रश्न ३ -वे कौन मुनि थे, जिन्हें गरम-गरम आभूषण पहनाये गए थे?
उत्तर -वे वीतरागी संत पांचों पांडव मुनि थे।
प्रश्न ४ -वे कौन संत थे जिनने मुनियों का उपसर्ग दूर किया था?
उत्तर -वात्सल्य भाव से ओतप्रोत वे संत विष्णुकुमार मुनि थे।
प्रश्न ५ -वे कौन मुनिराज थे जिन्हें भस्मक व्याधि हो गई थी?
उत्तर -वे महामुनि समंतभद्र मुनिराज थे।
प्रश्न ६ -वे कौन मुनि थे जिन्हें ३ दिन तक स्यालनी खाती रही?
उत्तर -वे परम तपस्वी सुकुमाल मुनि थे।
प्रश्न ७ -वे कौन वीतरागी थे जिनके गले में मरा हुआ सर्प डाला गया था?
उत्तर -वे सच्चे वीतरागी यशोधर ऋषि थे।
प्रश्न ८ -वे कौन ऋषि थे जिन्हें सिंह ने भक्षण किया था?
उत्तर -वे सुकौशल ऋषि थे।
प्रश्न ९ -वे कौन ऋषि थे जिनकी परीक्षा लेने देव आये थे?
उत्तर -वे परम निस्पृही सनत्कुमार ऋषि थे।
प्रश्न १० -वे कौन मुनि थे जिन्हें वन देवताओं ने आहार दिया?
उत्तर -वे परम गुरु भक्त चंद्रगुप्त मुनि थे।
प्रश्न ११ -वे कौन मुनि थे जिन्होंने धर्म की रक्षा हेतु बौद्धों से विवाद किया?
उत्तर -वे धर्मप्रभावक अकलंकदेव सूरि थे।
प्रश्न १२ -वे कौन मुनि थे जिनका उपसर्ग राम-लक्ष्मण ने दूर किया?
उत्तर -वे उपसर्ग विजेता कुलभूषण और देशभूषण मुनि थे।
प्रश्न १३ -वे कौन मुनि थे जो शादी के एक दिन बाद ही दीक्षित हो गये?
उत्तर -वे निर्मोही जंबूस्वामी महामुनि थे।
प्रश्न १४ -वे कौन मुनि थे जिनके क्रोध से द्वारिका जली थी?
उत्तर -वे द्वीपायन मुनि थे।
प्रश्न १ -सीता सती ने अग्नि परीक्षा क्यों दी?
उत्तर -अपने निर्दोष पतिव्रत को सिद्ध करने हेतु सीता ने अग्नि परीक्षा दी।
प्रश्न २ -अंजना को २२ वर्ष तक पति वियोग क्यों सहन करना पड़ा?
उत्तर -क्योंकि पूर्वभव में अंजना कनकोदरी रानी थी, उसने सौत की ईर्ष्या से मात्र २२ घड़ी जिनप्रतिमा को बावड़ी में डालकर अपमान किया था।
प्रश्न ३ -सती चंदना की बेड़ियाँ वैâसे टूटी थीं?
उत्तर -भगवान महावीर के दर्शन करते ही चंदना की बेड़ियाँ टूट गईं और आहार देते ही कोदों चावल खीर बन गये, वस्त्राभूषण केशों से चंदना शोभने लगी।
प्रश्न ४ -देवदर्शन की प्रतिज्ञा किसने की थी?
उत्तर -मनोवती ने गजमोती चढ़ाकर प्रतिदिन देवदर्शन की प्रतिज्ञा ली थी।
प्रश्न ५ -राजा अशोक की रानी रोहिणी को रोना क्यों नहीं आता था?
उत्तर -ये पूर्वकृत रोहिणी व्रत का ही प्रभाव था जो उसे रोना नहीं आता था।
प्रश्न ६ -उज्जयिनी नगरी के फाटक वैâसे खुले थे?
उत्तर -मनोरमा के शील के प्रभाव से स्पर्श करते ही फाटक खुल गये थे।
प्रश्न ७ -विशल्या में ऐसी कौन सी शक्ति थी जिससे लक्ष्मण की बेहोशी दूर हुई?
उत्तर -विशल्या पूर्व भव में चक्रवर्ती की अनंगशरा नाम की पुत्री थी। उसने निर्जन वन में ६६ हजार वर्ष तक घोर तप किया था, जभी उसे ऐसी शक्ति प्राप्त हुई, जिसके स्नान के जल से सभी रोगी निरोग हो जाते थे।
प्रश्न ८ -दु:शासन द्वारा खींचा हुआ द्रौपदी का चीर बढ़ता ही क्यों गया?
उत्तर -ये सती द्रौपदी के शील का ही प्रभाव था, जो चीर बढ़ता गया।
इस प्रकार ‘‘बाल विज्ञान ज्योति’’ पुस्तक के कुछ प्रश्न-उत्तरों को आपके ज्ञानवर्धन हेतु यहाँ प्रस्तुत किया गया।
ऐसे ही लगभग ५० मौलिक कृतियों की लेखिका पूज्य माताजी ने साहित्य लेखन की शृँखला में ‘वसुदेव चरित्र’ नामक रोमांचक कथानक लिखकर सभी को राजा वसुदेव के चरित्र से परिचित करा दिया है। बड़े-बड़े पुराण ग्रंथों का आलोढन करके उसमें से साररूप निकालकर इस पुस्तक में सुन्दर ढंग से लेखनीबद्ध किया है। इसके साथ ही इस पुस्तक के अंत में कई शिक्षास्पद कविताएँ आदि प्रकाशित हैं।
‘‘भव्य स्तोत्र’’ नामक पुस्तक भी पूज्य आर्यिकाश्री की सुन्दर कृतियों में से एक है। इसमें णमोकारमंत्र माहात्म्य, अकलंकस्तोत्र, सरस्वती स्तोत्र, मंगलाष्टक, दर्शनपाठ, महावीराष्टक स्तोत्र, भक्तामर स्तोत्र आदि का पद्यानुवाद है।
इस प्रकार पूज्य आर्यिका श्री अभयमती माताजी द्वारा रचित विभिन्न साहित्य के माध्यम से आप अपने ज्ञान की निरन्तर वृद्धि करें, यही मंगलकामना है।