प्यारे बच्चों! पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा सन् १९७४ में बालक-बालिकाओं के लिए जैनधर्म की प्राथमिक शिक्षा हेतु लिखी गई बाल विकास पुस्तक सभी के लिए बहुत ही उपयोगी है। इस बाल विकास के ४ भाग हैं, इन चारों भागों का अध्ययन करके जैनधर्म के मूलभूत सिद्धान्तों को पूर्णरूप से समझा जा सकता है। यहाँ मैं बाल विकास भाग-१ की पुस्तक के माध्यम से आप सभी बच्चों को शिक्षण प्रदान करना चाहती हूँ। अनादिनिधन णमोकार महामंत्र से इस पुस्तक का शुभारंभ हुआ है। यह मंत्र मातृका मंत्र, अपराजित मंत्र आदि नामों से भी जाना जाता है। सर्वप्रथम इसका शुद्ध उच्चारण आवश्यक है, पुन: यह माता के समान सदैव आपकी रक्षा करेगा और प्रत्येक संकट के समय इस मंत्र के स्मरण व जाप्य से आपकी विजय होगी। प्रतिदिन प्रात:काल सोकर उठते ही इसे ९ बार पढ़ें और रात्रि में सोते समय ९ बार पढ़ें। आपका पूरा दिन मंगलमय होगा और रात्रि में अच्छे-अच्छे सपने आयेंगे।
णमोकार मंत्र णमो अरिहंताणं अर्हंतों को नमस्कार हो। णमो सिद्धाणं सिद्धों को नमस्कार हो।
णमो आइरियाणं आचार्यों को नमस्कार हो। णमो उवज्झायाणं उपाध्यायों को नमस्कार हो।
णमो लोए सव्वसाहूणं लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो।
इस मन्त्र में अर्हंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इन पाँच परमेष्ठियों को नमस्कार किया गया है। इसमें ३५ अक्षर होते हैं और अट्ठावन मात्राएँ होती हैं। णमोकार मंत्र का सुन्दर चालीसा भी है, आप उसे पढ़कर ज्ञान का लाभ प्राप्त कीजिए। इसके बाद इस पुस्तक के दूसरे पाठ में आप णमोकार मंत्र की महिमा को एक कहानी के माध्यम से जानेंगे-
णमोकार मंत्र का माहात्म्य
जीवंधर कुमार ने मरते हुए कुत्ते को णमोकार मंत्र सुनाया जिसके प्रभाव से वह मरकर देवगति में सुदर्शन यक्षेन्द्र हो गया। उसने वहाँ से आकर जीवंधर कुमार को नमस्कार किया और स्तुति की।
एसो पंचणमोयारो, सव्व पावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेिंस, पढमं हवइ मंगलं।।
अर्थ-यह पंच नमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में पहला मंगल है। शिष्य-गुरूजी! क्या हम लोग पांचों परमेष्ठी में से किसी का पद प्राप्त कर सकते हैं? अध्यापक-हाँ! आप लोग मनुष्य पर्याय से पाँचों परमेष्ठी के पद प्राप्त कर सकते हैं। देखो! दिगम्बर मुनियों के संघ में आचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीनों परमेष्ठी रहते हैं। ये ही मुनि आगे अर्हंत, सिद्ध भी बन सकते हैं।’
Lovely Children!
Pujya Ganini Pramukh Aryika Shri Gyanmati Mataji wrote Bal Vikas Books in 1974. These books are very useful for everyone for knowing the fundamentals of Jainism. There are four parts of Bal Vikas. I want to teach all of you from the book of Bal Vikas part-1. This book begins with Namokar Mantra, Which is eternal and is the mother to all of the Mantras. Firstly, you should understand its correct pronunciation, then it will save you like a Mother and you will get victory in all adverse conditions by reciting this Mantra. You should recite it nine times every morning, when you wake up and also in the night, when you go to the bed. Thus, the whole day of you will be very fruitful and auspicious. You will also see good dreams in the night.
NAMOKAR MANTRA NAMO ARIHANTANAM NAMO SIDDHANAM NAMO
AYARIYANAM NAMO UVAJJHAYANAM NAMO LOE SAVVASAHUNAM1.
Bow to the Worthy Souls (Arhants). 2.Bow to the Liberated Souls (Siddhas). 3.Bow to the Preceptors (Acharyas). 4.Bow to the Spiritual Teachers ( Upadhyayas). 5.Bow to all the Saints (Sadhus) of the World. In the above holy verse we have bowed our head to the Worthy Souls, Liberated souls, Preceptors, Spiritual Teachers and Saints. We should worship all the five Supreme Spiritual Guides (Panch Permeshthis). This Mantra is having 35 letterse and 58 Matras. The chalisa of Namokar Mantra is also available, you should recite this also. After this you will know about the greatness of Namokar Mantra by the means of a story.
Greatness of Namokar Mantra
Once upon a time prince Jivandhar recited Namokar Mantra to a dying dog and due to its effect the dog became a heavenly deity called Sudarshan Yakshendra . From there he came down to Jivandhar and greeted him with much respect.
AISO PANCH NAMOYARO, SAVVA PAVAPPANASANO.
MANGALANAM CHA SAVVESIM, PADHAMAM HAVAI MANGALAM.
The meaning of the above verse is that reciting of the Namokar Mantra destroys all evil-effects and this mantra is supreme in auspiciousness. Disciple: Can we attain any one out of these five worthy posts? Teacher: Yes, you can attain all the five posts from the human life. We can see that the last three souls are present even today in a group of Jain Saints called Sangh and they practice the scriptures to become Worthy and Liberated Souls.