हम अपने स्वास्थ्य के प्रति हमेशा सजग रहते हैं। नियत समय पर जागना, सोना और भोजन लेना स्वस्थ रहने का मूल मंत्र है। फिर भी हम कभी न कभी बीमार पड़ ही जाते हैं । ऐसे समय में हमें बीमार व्यक्ति व उसके परिवार वालों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए कि आपकी सहानुभूति से मरीज स्वयं में हीनता या बेचारगी महसूस न करे, अत: मिलने वालों का व्यवहार संयमित होना चाहिए। स्वास्थ्य संबंधी छुट—पुट समस्याओं का समाधान घरेलू इलाज से हो सकता है तथा गंभीरता की स्थिति में वह अस्पताल में भर्ती भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में मरीज से मिलने जाने वाले व्यक्तियों को कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। मरीज से मिलने कम से कम व्यक्ति जायें । अनावश्यक भीड़ अस्पताल के शांत माहौल में खलल डालती है। भड़कीले / चमकीले वस्त्रों की अपेक्षा हल्के रंग के वस्त्र पहनकर जायें। टक—टक आवाज करने वाले सैंडिल की अपेक्षा फ्लैट चप्पल पहनकर जायें।
अत्यधिक सुगन्धित एवं तीखी खुशबू /इत्र आदि लगाकर न जायें। ‘हाय बेचारे/बेचारी को ये क्या हो गया’ जैसे हतोत्साहित करने वाले वाक्यों का प्रयोग न करें। मरीज के पलंग को चारों ओर से घोरकर खड़े होना व ऊंची आवाज में बात करने से मरीज मानसिक रूप से परेशान हो सकता है। बीrमार से मिलने पर अपनी आदतानुसार बीड़ी/सिगरेट के कश न उडायें। वार्ड में रहने वाला ऑक्सीजन सिलेण्डर आपकी गलत आदतों के कारण किसी भयंकर दुर्घटना को जन्म दे सकता है। छोटे बच्चों को अस्पताल ले जाना बीमारी के संक्रमण को बुलावा देना है। बीमार व्यक्ति की बातों पर विशेष ध्यान दें। बीमार व्यक्ति के सामने घर की समस्याओं का खुलासा करना उसके स्वास्थ्य लाभ में बाधक हो सकता है। मरीज से हल्का —फुल्का मजाक कर उसे हंसाने का प्रयास करें। इसके अलावा भी अनेक बातें है जिन पर हमें अमल करना चाहिए। आमतौर पर देखा गया है कि मरीज से मिलने आये हुए रिश्तेदार पलंग से सटकर एक बड़ी सी चादर डालकर एक छोटी सी दावत का मजा लेना चाहते हैं। खाने पीने का ऐसा दौर चलता है कि अस्पताल किसी पिकनिक प्लेस से कम नहीं लगता ।लोग यह भूल जाते हैं कि अस्पताल बीमारियों का घर है जहाँ विभिन्न प्रकार की बीमारियों के रोगाणु वातावरण में फैले रहते हैं । अधिकाधिक यही कोशिश होनी चाहिए कि हम स्वयं को बीमारियों से बचाने का प्रयास करें। घर आकर भी हाथ पैर को किसी एन्टीसेप्टिक साबुन (डेटॉल) से अच्छी तरह रगड़कर धोएं और इसके बाद ही किसी खाने पीने की वस्तु को हाथ लगायें।
आपका व्यवहार इतना रूखा भी नहीं होना चाहिए कि मरीज के मन को ठेस पहुंचे। बीमारी की अवस्था में व्यक्ति स्वयं में निराशा व हीनता की भावना लिये हुए रहता है। उसकी मानसिक स्थिति स्वस्थ व्यक्ति की तुलना में अत्यधिक संवेदनशील होती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी बीमार व्यक्ति से निराशा या नाउम्मीदी की बातें न करें। हमेशा उसका उत्साहवर्धन करें। उसकी मनपसन्द पुस्तके/उपन्यास आदि पढ़ने को दें। खाली समय उसे विश्राम करने दें या उससे मनबहलाव की बातें करें ताकि अत्यधिक एकान्त में वह अपनी बीमारी के बारे में गहराई से चिन्तन मनन करके अपने भविष्य के प्रति उदासीन न हो। आपकी कुछ मिनटों की ही अच्छी व उत्साह बढ़ाने वाली बातों से मरीज स्वस्थ होने का अनुभव करता है । अन्य सामान्य व्यक्तियों की तरह मरीज के साथ व्यवहार करने पर उसके मन—मस्तिष्क पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। इस तरह हम उसके चिड़चिड़े स्वभाव को नियंत्रित कर सकते हैं। लगातार एक ही बीमारी से ग्रसित होने के कारण व्यक्ति का चिड़चिड़ा और गुस्सैल होना स्वभाविक है। बीमार व्यक्ति से विदा लेते समय उसे शीघ्र ही स्वस्थ होकर घर आने का निमंत्रण दें। आपका सभ्यतापूर्ण एवं शांत व्यवहार बीमार व्यक्ति में आकर्षक एवं स्वस्थ रहने की भावना जागृत करता है।