वर्तमान समय मेें हो रही माँ जिनवाणी की उपेक्षित दुर्दशा को देखकर हृदय में पीड़ा उत्पन्न होती है। कई वर्षों से मन में विचार उठकर रह जाते थे लेकिन मन में आए विचार निरर्थक नहीं जाते हैं। हमारे आचार्यों द्वारा स्वानुभूत ज्ञान प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों में सुरक्षित है। इन ग्रंथों को पूर्ण विनय के साथ सुरक्षित रखना हमारा गुरतर दायित्व है। देव, शास्त्र और गुरु ये तीनों आत्म—कल्याण में साधक बनते हैं। शास्त्रों के द्वारा ही देव और गुरुओं के स्वरूप को समझते हैं। वर्तमान समय में देव और गुरुओं की जितनी विनय की जाती है उतनी शास्त्रों की नहीं होती बल्कि होना अधिक चाहिये। यदि एक मंदिर गिर भी जाता है तो उससे भी अच्छा सुन्दर दूसरा मंदिर निर्मित करवा सकते हैं। एक मूर्ति के टूटने पर दूसरी मूर्ति विराजमान करवा सकते हैं लेकिन पाण्डुलिपि का एक पृष्ठ नष्ट होता है तो उसके स्थान पर दूसरा पृष्ठ नहीं लगा सकते हैं। जिस बुन्देलखण्ड क्षेत्र में पूज्य क्षु. १०५ गणेश प्रसादजी वर्णी ने सारा जीवन ज्ञान के प्रचार—प्रसार के लिये समर्पित किया, विद्वानों को तैयार किया, विद्यालय पाठशालाएं खुलवार्इं, उसी बुन्देलखण्ड में आज शास्त्र भण्डारों की क्या दयनीय दशा हो रही है। बुन्देलखण्ड के उन प्राचीन उपेक्षणीय मंदिरों में प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों की खोज का एक सर्वेक्षण प्रारंभ किया। इसको हमने श्री सरल ग्रन्थालय, छोटी बजरिया, बीना (सागर) को माध्यम बनाकर एवं श्री सरल ग्रन्थालय की सेवा समर्पित नवयुवकों को साथ में लेकर एवं न्यायदिवाकर डॉ. दरबारी लाल जी कोठिया के परामर्श से एक ‘‘शास्त्रोद्धार शास्त्र सुरक्षा अभियान’’ का श्रीगणेश किया। अभियान का प्रथम दौरा २४ मार्च ९५ को सनाई (मण्डी बामोरा) का किया। इधर से उपेक्षित अवस्था में पड़ी १४ पाण्डुलिपियों को प्राप्त किया। अभियान का द्वितीय दौरा २७ मार्च ९५ को जरुवाखेड़ा (सागर) का किया, इधर से भी ८ पाण्डुलिपियों को प्राप्त किया। अभियान का तृतीय दौरा ३ अप्रैल ९५ को बसारी (सागर) का किया। बहुमूल्य सम्पदा को उपेक्षित देखकर स्मरण आया उन पूर्वजों का कि जिन्होेंने अपना सब कुछ त्यागकर ग्रन्थों के प्रणयन में अमूल्य परिश्रम किया। लेकिन हम लोगों का दुर्भाग्य ऐसा है कि उनके मूल्य को नहीं आंक पाये और उस विराट सम्पदा को चूहों और दीमकों को सौंप दिया। इधर से भी ७४ पाण्डुलिपियाँ मिलीं जिनमें से कुछ अपूर्ण, कुछ जीर्ण—शीर्ण एवं कुछ पूर्ण हैं। इन पाण्डुलिपियों में एक ‘‘सम्यक्त्वलीला पाण्डुलिपि” मिली है, जो कई विद्वानों की दृष्टि से अप्रकाशित हैं, इसकी खोज विद्वानों को करना चाहिये। अभियान का चतुर्थ दौरा १५ अप्रैल ९५ को पिठोरिया, जलन्धर (सागर) का किया। पिठोरिया में काफी पाण्डुलिपियां हैं। मंदिर काफी कलात्मक एवं प्राचीन है। सारी समाज उधर से शहरों की ओर चली गई, एक पुजारी मात्र पूजा करता रहता है, इधर की पाण्डुलिपियों को देखने का सौभाग्य नहीं मिल पाया। जलन्धर पहुंचे इधर से २२ पाण्डुलिपियां प्राप्त हुईं जो यदि इसी प्रकार रखी रहतीं तो कुछ ही दिनों में अपनी जिन्दगी पूरी कर लेतीं। अभियान का पांचवां दौरा २३ अप्रैल ९५ को भानगढ़ निवासी भरछा बालाबेहट (अतिशय क्षेत्र सांवलिया पारसनाथ) का किया। भानगढ़ और बालाबेहट में भी कुछ पाण्डुलिपियां देखने को मिलीं लेकिन लोगों का ध्यान इस ओर नहीं है कि इनको सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखें। अभियान का छठवां दौरा २ मई ९५ को सूर्य की भीषण तपन को ज्ञानामृत जल से शान्त करते हुए भौंरासा (कुरवाई) का किया, जिनालय काफी प्राचीन है। मंदिरों में लगभग ८०० वर्ष प्राचीन भगवान पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा दर्शनीय है इधर भी कुछ पाण्डुलिपियां हैं। अभियान का सांतवा दौरा गंजबासौदा का किया। इधर लगभग ५०० पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित दशा में रखी हुई हैं। गंजबासौदा पूर्व में काफी पाण्डुलिपियों का केन्द्र रहा है लेकिन श्रावकों के ध्यान न देने के कारण हजारों पाण्डुलिपियां बाहर चली गर्इं। अभियान का आठवां दौरा २७ जून ९५ को महाराजपुर (सागर) का किया, इधर पूज्य गुरुवर श्री १०८ सरलसागर जी महाराज से इस विषय पर चर्चा की, इधर से भी ४ पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हुईं। अभियान का ९वां दौरा १ जुलाई ९५ को ललितपुर का किया। पाली मंदिर में लगभग ५० से भी अधिक पाण्डुलिपियां चूहों का भोजन बन रही थीं। सभी पाण्डुलिपियों को व्यवस्थित करके वहीं पर रखवाया। अभियान का १० वां दौरा २ जुलाई ९५ को बन्ट (जाखलोन), गौना, नारहट, डोंगरा का किया। बन्ट गांव से १२ पाण्डुलिपियां प्राप्त हुईं। जिनमें एक विशेष पाण्डुलिपि ‘‘जैन प्रबोध श्रावकाचार संग्रह’’ भी मिली है जो कि अप्रकाशित प्रतीत होती है। गौना मंदिर से विराट संपदा के रुप में एक साथ ७५ पाण्डुलिपियां इतनी बुरी दशा में पड़ी मिलीं कि देखते ही हृदय में काफी पीड़ा महसूस हुई। यदि कुछ ही महीनों में इन्हें नहीं देखा जाता तो वह बहुमूल्य सम्पदा पूर्ण रुप से क्षत—विक्षत हो जाती क्योंकि दीमक लगना प्रारंभ हो गया था। इधर की पाण्डुलिपि लगभग ४०० वर्ष पुरानी मिली है। नारहट मंदिरों से भी ३४ पाण्डुलिपियां प्राप्त हुईं। डोगरा मंदिर से भी २० पाण्डुलिपियां देखने को मिली हैं। अभियान का ११वां दौरा ९ जुलाई को पीपरा करैया (खिमलासा) का किया। यहाँ भी काफी पाण्डुलिपियां उपेक्षणीय हैं लेकिन देखने को भी नहीं मिल पाईं। अभियान का ११ वां दौरा पीपरा, पड़ा, ईशुरवारा आदि गांवों का किया। इन गांवों से काफी जर्जर अवस्था में पड़ी हुई पाण्डुलिपियां प्राप्त हुईं जो मात्र दर्शनीय हैं। अभियान के कुल ११ दौरे इस अल्प समय में किये जिनमें लगभग २६ गांवों से लगभग ३०० पाण्डुलिपियों को प्राप्त किया गया है, इन सभी पाण्डुलिपियों को पूर्ण व्यवस्थित कर सूची पत्र तैयार करके श्री सरल ग्रन्थालय, छोटी बजरिया, बीना में सुरक्षित रखा गया है।
पाण्डुलिपियों की सुरक्षा
जिन प्राचीन पाण्डुलिपियों में हमारी सभ्यता, आचार, विचार तथा अध्यात्म विकास की कहानी समाहित है, उस अमूल्य धरोहर को हमारे पूर्वजों ने अनुकूल सामग्री एवं वैज्ञानिक साधनों के अभाव में रात—दिन खून—पसीना एक करके हमें विरासत में दिया। अफसोस! आज की पीढ़ी इस अमूल्य धरोहर की कीमत नहीं आंक पा रही है। धन की अंधी दौड़ में हमारा ध्यान इस ओर बिल्कुल भी नहीं है। यदि इस प्रकार की दशा बनी रही तो जो कुछ भी थोड़ा शेष बचा है वह भी नष्ट हो जायेगा। अभी भी समय रहते सावधान हो जायें एवं सुरक्षा में जुट जायें। हम अपने श्रीमंत लोगों से अपेक्षा करेंगे जो कि पंचकल्याणक विधान, नवीन मंदिरों के निर्माण में ही अपने धन का सदुपयोग करके पुण्यार्जन मानते हैं उन लोगों का ध्यान इस ओर हो, सारी पाण्डुलिपियों का सूचीकरण करके व्यवस्थित रखवाया जावे एवं अप्रकाशित पाण्डुलिपियों को प्रकाशित किया जावे। हमारा मुनि संघों से सविनय नमोस्तु सहित निवेदन है कि जहां भी विहार हो वहां के शास्त्र भण्डारों को अवश्य सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय। प्राचीन पाण्डुलिपियों को पूर्ण सुरक्षित रखने की प्रेरणा दी जावे। विद्वान वर्ग से भी सादर निवेदन है कि पर्यूषण पर्व, महावीर जयन्ती आदि पर्वों पर प्रवचन करने के लिये बाहर जाते हैं उस समय वहां से शास्त्र भण्डारों का निरीक्षण ही नहीं अपितु पूर्ण व्यवस्थित, सुरक्षित करवाने के साथ लोगों को उसका महत्व बतलायें। मैं आशा करूंगा उन सभी समाज के जिनवाणी उपासकों से, ज्ञानरसिक विद्वतवर्ग से एवं त्याग कर्म पर आरूढ़ त्यागीवर्ग से कि यदि आप सभी का अपेक्षित सहयोग, मागदर्शन श्री सरल ग्रन्थालय, छोटी बजरिया, बीना (सागर) को मिलता है तो अवश्य छोटे—छोटे गांवों में पड़ी पाण्डुलिपियों को सुरक्षित एवं संग्रहीत किया जा सकता है।
संदीप जैन ‘सरल’ सरल ग्रन्थालय, छोटी बजरिया, बीना (सागर) ४७०११३