बौद्धिक-धन
धन का अर्थ प्रायः रुपया पैसा तथा भौतिक संपदा से ही लिया जाता है। मां लक्ष्मी का जिक्र आते यही मन में आता है कि उनकी पूजा करने पर आर्थिक आमदनी बढ़ जाएगी। इसी क्रम में दीपावली पर भी घर-दुकान और प्रतिष्ठान संस्थान में आय की बढ़ोतरी के लिए लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा के बाद मूर्ति की स्थापना की जाती है।
पूजा-पाठ और ईश्वरीय आराधना सद्संस्कारों के लिए की जाए तो वह सर्वोत्तम है, न कि देवी- देवताओं से भौतिक संपदा की मांग की जाए। दीपावली के प्रथम पर्व की शुरुआत धन-प्रयोदशी से होती है। इसे धन्वंतरि जयंती और धनतेरस भी कहते हैं। इस दिन आयुर्वेद के देवता भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। मनुष्य का स्वास्थ्य भी एक धन है। इसके बाद नरक नरक चतुर्दशी चतुर का आशय नस-नाड़ियों से संचालित शरीर में सद्भाव का चतुर्मुखी दीप प्रज्ज्वलित करने का संदेश देता है। ऐसी स्थिति में दीपावली के दिन मनुष्य शरीर के रोम-रोम से ऊर्जा की ज्योति निश्चित रूप से जागृत होने लगेगी। रोम-रोम के ऊर्जान्वित होते ही ब्रह्मांडीय ऊर्जा भी शरीर में प्रवेश करने लगेगी। चौथे दिन का पर्व गोवर्द्धन पूजा है। ‘गो’ शब्द इंद्रियों के लिए भी प्रयुक्त होता है। इसका अर्थ यही हुआ कि इंद्रियां इतनी जागृत हो जाएं कि मनुष्य बाह्य आक्रमणों का मुकाबला करने में समर्थ हो सके। अंतिम दिन भैया दूज का पर्व भी प्रतीकों में लिया जाए और मन को भाई मान लिया जाए तथा कामनाओं को बहन तो जीवन में खुशहाली आते देर नहीं लगेगी।
दीपावली का पांच दिवसीय पर्व पांच पर्वो की नदियों के संगम जैसा है। इसमें डुबकी लगाने से जीवन में स्वास्थ्य, चरित्र, बुद्धि के धन की प्रचुरता सदैव बनी रहेगी। दीपावली पर्व पर गणेश जी के साथ लक्ष्मी जी के पूजन का आशय ही है कि बुद्धिबल से सकारात्मकता के धन के लिए प्रयत्न किया जाए। बुद्धि जीवन के लक्ष्य के प्रति सजग रहे, यही दीपावली पर्व का संदेश है।