== ब्रह्मचारी के पाँच भेद-उपनयन, अवलम्ब, अदीक्षा, गूढ़ और नैष्ठिक। उपनयन ब्रह्मचारी – जो मौंजी बंधन विधि के अनुसार गणधर सूत्र को (यज्ञोपवीत को) धारण कर उपासकाध्ययन आदि शास्त्रों का अभ्यास करते हैं और फिर गृहस्थ धर्म स्वीकार करते हैं, उन्हें उपनयन ब्रह्मचारी कहते हैं। अवलम्ब – क्षुल्लकरूप से समस्त शास्त्रों का अध्ययन करने वाले (बाद में गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने वाले) अवलम्ब ब्रह्मचारी हैं। अदीक्षा – जो ब्रह्मचारी के वेश को धारण किये बिना ही शास्त्रों का अभ्यास करते हैं, फिर गृहस्थ धर्म स्वीकार करते हैं, उन्हें अदीक्षा ब्रह्मचारी कहते हैं। गूढ़ ब्रह्मचारी – जो बाल्यावस्था में ही गुरु के पास रहकर शास्त्रों का अध्ययन करते हैं, नग्न रहकर ही संयम का पालन करते हैं (किन्तु दीक्षा नहीं ली है) पुन: कुछ कारणवश गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते हैं, वे गूढ़ ब्रह्मचारी कहलाते हैं। नैष्ठिक – जो व्रत के चिन्ह शिरोलिंग (चोटी) उरोलिंग (जनेऊ) कटिलिंग (लंगोटी, करधनी) को धारण करते हैं, सदा भिक्षावृत्ति से भोजन करते हैं, जो स्नातक व व्रती हैं, सदा जिनपूजा आदि के करने में तत्पर हैं, वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं। विशेष-इन चार आश्रमों में सबसे प्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम बतलाया गया है, इसका अभिप्राय यह है कि कोई भी पहले कुमारकाल में ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश कर अर्थात् गुरुकुल आदि में रहकर यज्ञोपवीत संस्कार से सुसंस्कृत होकर शास्त्रों का अभ्यास करता है पुन: यदि उसकी इच्छा हो, तो मुनि बन जाता है, जैसे भद्रबाहु श्रुतकेवली और जिनसेनाचार्य आदि के उदाहरण हैं। कोई गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते हैं, जैसे जीवंधर कुमार आदि। इसके बाद दूसरे आश्रम का वर्णन करते हैं।