ब्रह्म युगल के ४ इंद्रक में अंतिम इंद्रक का नाम ‘ब्रह्मोत्तर’ है। उस ब्रह्मोत्तर इंद्रक के दक्षिण में चौदहवें श्रेणीबद्ध विमान में ‘ब्रह्मेन्द्र’ का नगर है। उसका विस्तार ६०००० योजन है। इसका प्राकार १२-१/२ योजन विस्तृत, २०० योजन ऊँचा है। इस प्राकार की प्रत्येक दिशा में २०० गोपुर द्वार हैं, गोपुर द्वारों का विस्तार ८० योजन, ऊँचाई २०० योजन है। ब्रह्मेन्द्र का प्रासाद ९० योजन विस्तृत, ४५० योजन ऊँचा है। ब्रह्मेन्द्र की आठ अग्रदेवियों के प्रासाद ८० योजन विस्तृत, ४०० योजन ऊँचे हैं। ३४००० देवियाँ निरंतर उसके आश्रित रहती हैं। उसकी वल्लभा का नाम ‘नीला’ है। इसका प्रासाद इन्द्र प्रासाद के पूर्व में है।
ब्रह्मोत्तर इंद्र की उत्तर दिशा गत पंक्ति के चौदहवें श्रेणीबद्ध विमान में ‘ब्रह्मोत्तर’ इंद्र रहता है। उसकी वल्लभा देवी का नाम ‘नीलोत्पला’ है।