
अर्चन करो रे, श्री आदिनाथ के चरण कमल का, अर्चन करो रे।
युग के प्रथम जिनेश्वर को हम, शत-शत वन्दन करते हैं।




प्रभु के पद तल स्वर्णकमल की, रचना इन्द्र रचाते हैं।






कई भवों की पुण्य प्रकृतियों, से तीर्थंकर पद पाया।


भक्तामर के अधिपति जिनवर की, पूजन से शिवद्वार मिले।