भगवान ऋषभदेव और सम्राट् भरत ही आदिपुराण के प्रमुख कथानायक हैं। भगवान वृषभदेव और सम्राट् भरत इतने अधिक प्रभावशाली पुण्य पुरुष हुए हैं कि उनका जैनग्रंथों में तो उल्लेख आता ही है, उसके सिवाय वेद के मंत्रों, जैनेतर पुराणों, उपनिषदों आदि में उल्लेख मिलता है। भागवत में भी मरुदेव, नाभिराय, वृषभदेव और उनके पुत्र भरत का विस्तृत विवरण दिया है। यह दूसरी बात है कि वह कितने ही अंशों में भिन्न प्रकार से दिया गया है। इस देश का भारत नाम भी भरत चक्रवर्ती के नाम से ही प्रसिद्ध हुआ है।१
निम्नांकित उद्धरणों से हमारे उक्त कथन की पुष्टि होती है-
अग्नीन्द्रासूनोर्नाभेस्तु ऋषभोऽभूत् सुतो द्विज:।
ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीर: पुत्रशताद् वर:।।३९।।
सोऽभिषिच्यर्षभ: पुत्रं महाप्राव्राज्यमास्थित:।
तपस्तेपे महाभाग: पुलहाश्रमसंशय:।।४०।।
हिमाह्वं दक्षिणं वर्षं भरताय पिता ददौ।
तस्मात्तु भारतं वर्षं तस्य नाम्ना महात्मन:।।४१।।
-मार्कण्डेयपुराण, अध्याय ४०
हिमाह्वयं तु यद्वर्षं नाभेरासीन्महात्मन:।
तस्यर्षभोऽभवत्पुत्रो मरुदेव्या महाद्युति:।।३७।।
ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीर: पुत्र: शताग्रज:।
सोऽभिषिच्यर्षभ: पुत्रं भरतं पृथिवीपति:।।३८।।
-कर्मपुराण, अध्याय ४१
जरामृत्युभयं नास्ति धर्माधमौ युगादिकम्।
नाधर्म मध्यमं तुल्या हिमादेशात्तु नाभित:।।१०।।
ऋषभो मरुदेव्यां च ऋषभाद् भरतोऽभवत्।
ऋषभोदात्तश्रीपुत्रे शाल्यग्रामे हरिं गत:।।११।।
भरताद् भारतं वर्षं भरतात् सुमतिस्त्वभूत्।’’
-अग्निपुराण, अध्याय १०
नाभिस्त्वजनयत्पुत्रं मरुदेव्या महाद्युति:।
ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूर्वजम्।।५०।।
ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीर: पुत्रशताग्रज:।
सोऽभिषिच्याथ भरतं पुत्रं प्रव्राज्यमास्थित:।।४१।।
हिमाह्वं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।
तस्माद् भारतं वर्षं तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।।४२।।
-वायुमहापुराण पूर्वार्ध, अध्याय ३३
नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं मरुदेव्या महाद्युतिम्।।५९।।
ऋषभं पार्थिवं श्रेष्ठं सर्वक्षस्य पूर्वजम्।
ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीर: पुत्रशताग्रज:।।६०।।
सोऽभिषिच्यर्षभ: पुत्रं महाप्राव्राज्यमास्थित:।
हिमाह्वं दक्षिणं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:।।६१।।
-ब्रह्माण्डपुराण पूर्वार्ध, अनुषङ्गपाद, अध्याय १४
नाभिर्मरुदेव्यां पुत्रमजनयत् ऋषभनामानं तस्य भरत: पुत्रश्च तावदग्रज: तस्य भरतस्य पिता ऋषभ: हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्षं महद् भारतं नाम शशास।
-वाराहपुराण, अध्याय ७४
नाभेर्निसर्गं वक्ष्यामि हिमांकेऽस्मिन्निबोधत।
नाभिस्त्वजनयत् पुत्रं मरुदेव्यां महामति:।।१९।।
ऋषभं पार्थिवश्रेष्ठं सर्वक्षत्रस्य पूजितम्।
ऋषभाद् भरतो जज्ञे वीर: पुत्रशताग्रज:।।२०।।
सोऽभिषिच्याथ ऋषभो भरतं पुत्रवत्सल:।
ज्ञानं वैराग्यमाश्रित्य जित्वेन्द्रियमहोरगान्।।२१।।
निराशस्त्यक्तसंदेह: शैवमाप परं पदम्।
हिमाद्रेर्दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।।२३।।
तस्मात्तु भारतं वर्षं तस्य नाम्ना विदुर्बुधा:।
-लिङ्गपुराण, अध्याय ४७
न ते स्वस्ति युगावस्था क्षेत्रेष्वष्टसु सर्वदा।
हिमाह्वयं तु वै वर्षं नाभेरासीन्महात्मन:।।२७।।
तस्यर्षभोऽभवत्पुत्रो मरुदेव्यां महाद्युति:।
ऋषभाद्भरतो जज्ञे ज्येष्ठ: पुत्रशतस्य स:।।२८।।
-विष्णुपुराण, द्वितीयांश, अध्याय १
नाभे: पुत्रश्च ऋषभ: ऋषभाद् भरतोऽभवत्।
तस्य नाम्नां त्विदं वर्षं भारतं चेति कीर्त्यते।।५७।।
-स्कन्धपुराण, माहेश्वरखण्ड, कौमारखण्ड, अध्याय ३७