प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से लेकर अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर तक तीर्थंकर परम्परा में प्रतिपादित जैन आगम में मध्यलोक के अन्दर असंख्यात द्वीप-समुद्र हैं, इसमें सर्वप्रथम द्वीप का नाम ‘जम्बूद्वीप’ है। इस जम्बूद्वीप के १९०वें भाग में भरत क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ६ खण्ड के अन्तर्गत आर्यखण्ड में भारत की राजधानी दिल्ली में प्रीतविहार कॉलोनी है। यहाँ पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से मैंने अपने मकान के प्रांगण में भगवान ऋषभदेव कमल मंदिर का निर्माण किया है, जिसका संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार है-
२७ नवम्बर सन् १९९५ को दिगम्बर जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी, हस्तिनापुर में निर्मित जम्बूद्वीप रचना की पावन प्रेरिका पूज्य गणिनी आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी अपने संघ सहित मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र (महाराष्ट्र) की यात्रा हेतु हस्तिनापुर से मंगल विहार कर १० दिसम्बर १९९५ को प्रीतविहार पधारीं, तब मैंने पूज्य माताजी के समक्ष अपने मकान में एक चैत्यालय की स्थापना हेतु भावना व्यक्त की। मेरी भावनानुसार उन्होंने मकान परिसर के यथायोग्य स्थान पर ११ दिसम्बर को प्रात: अपने करकमलों से भूमि में मंत्रोच्चारणपूर्वक एक रक्षायंत्र स्थापित किया, जैसे वटवृक्ष के लिए बीज डाला हो।इसे गुरुकृपा कहूँ या यंत्र का चमत्कार ? इसके पश्चात् संघ का तो दिल्ली से विहार हो गया और मैंने पूज्य माताजी के आदेशानुसार एक कुशल कारीगर से इस लघुकाय कमल मंदिर का निर्माण प्रारंभ कराया, जो देखते ही देखते एक भव्य जिनालय के रूप में परिणत हो गया।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा-
पूज्य माताजी मांगीतुंगी से विशाल महामहोत्सव कराने के पश्चात् अनेक प्रदेशों में व्यापक धर्मप्रभावना के बाद जब पुन: ३० मार्च १९९७ को दिल्ली पधारीं, तब मेरे निवेदन पर वीर निर्वाण संवत् २५२३, ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया से दशमी, दिनाँक ८ जून १९९७ से १५ जून १९९७ तक अपने ससंघ सान्निध्य में इस कमल मंदिर में विराजमान भगवान ऋषभदेव के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव को अत्यन्त धर्मप्रभावनापूर्वक सम्पन्न कराया।
इस प्रतिष्ठा समारोह में मुझे एवं मेरी धर्मपत्नी श्रीमती अनीता को सौधर्म इन्द्र-इन्द्राणी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरे जीवन काल की प्रथम वृहद् पंचकल्याणक प्रतिष्ठा होने के कारण मुझे अपार प्रसन्नता थी। अत: मैंने स्वरुचि से अपने संबंधीजनों तथा प्रीतविहार दिगम्बर जैन समाज के विशिष्ट महानुभावों को बिना किसी न्यौछावर राशि के इस महोत्सव में अन्य इन्द्र आदि पदों पर प्रतिष्ठित करने हेतु आमंत्रित किया। जिसे सभी ने सहृदयता से स्वीकार कर मुझे असीम स्नेह प्रदान किया। प्रतिष्ठा के समापन अवसर पर जैन समाज प्रीतविहार ने मुझे ‘धर्मपुत्र’ की उपाधि से अलंकृत कर रजत प्रशस्ति द्वारा मेरा सम्मान किया।
मंदिर पर कलशारोहण-
पूज्य माताजी ने २ अप्रैल १९९७, चैत्र कृष्णा नवमी से २२ मार्च १९९८, चैत्र कृष्णा नवमी तक भगवान ऋषभदेव जन्मजयंती महोत्सव वर्ष घोषित किया था। उस महोत्सव समिति में मुझे केन्द्रीय उपाध्यक्ष के पद पर मनोनीत कर यथायोग्य कार्य करने का अवसर दिया। कमल मंदिर की प्रतिष्ठा भी जन्मजयंती महोत्सव वर्ष के अवसर पर ही सम्पन्न करने का सुयोग प्राप्त हुआ। इस वर्ष के अन्तर्गत केन्द्रीय समिति की घोषणा कर राजधानी दिल्ली में अक्षयतृतीया पर्व मनाया गया तथा अक्टूबर १९९७ में रिंग रोड पर आयोजित चौबीस कल्पद्रुम महामण्डल विधान ने तो दिल्ली को एक धार्मिक नगरी बना दिया। इसके साथ ही समस्त प्रान्तों में भी महोत्सव वर्ष के अन्दर अनेकानेक धार्मिक एवं शैक्षणिक आयोजन सम्पन्न हुए।
चैत्र कृष्णा नवमी, दिनाँक २२ मार्च १९९८, भगवान ऋषभदेव जन्मजयंती महोत्सव वर्ष के समापन अवसर पर दिल्ली के लाल किला मैदान से पूज्य माताजी की प्रेरणानुसार भगवान ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार रथ का प्रवर्तन किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी ने उसे भारत भ्रमण हेतु प्रवर्तित किया। उसमें मुझे धनकुबेर बनने का अवसर प्राप्त हुआ। इस समवसरण का मंगल पदार्पण अक्षय तृतीया, दिनाँक २९ अप्रैल १९९८ को प्रीतविहार में हुआ। इसी शुभ अवसर पर पूज्य माताजी के ससंघ सान्निध्य में २४ अप्रैल से ३० अप्रैल १९९८ तक भगवान महावीर की लघु पंचकल्याणक प्रतिष्ठा का सुयोग प्राप्त हुआ और ३० अप्रैल १९९८, वैशाख शुक्ला नवमी को कमल मंदिर में उनके ससंघ सान्निध्य में स्वर्ण कलशारोहण सम्पन्न हुआ।
कमल मंदिर की द्वितीय प्रतिष्ठापना लघु पंचकल्याणक सहित सम्पन्न-
पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी पिछले कई वर्षों से जैनधर्म की प्राचीनता एवं उसकी सार्वभौम सिद्धान्तों को जन-जन तक पहुँचाने हेतु अत्यधिक प्रयत्नशील रही हैं। इसीलिए अक्टूबर १९९८ में हस्तिनापुर में ‘‘भगवान ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन’’ करवाया। जिसमें देश के २५ विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं शताधिक प्रोफेसर विद्वान पधारे और पाठ्य पुस्तकों में जैनधर्म की स्थापना भगवान महावीर से हुई, उक्त पाठ को संशोधित कराने का प्रस्ताव पारित किया। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के जयंती आदि महोत्सवों को आधारशिला बनाकर देशभर के समाजों को उन्हें मनाने की प्रेरणा प्रदान काr।
प्रेरणा की शृंखला में उन्होंने भगवान ऋषभदेव का अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महोत्सव मनाने का आह्वान किया। इस निमित्त से वे पुन: १३ मई १९९९ को कमल मंदिर, प्रीतविहार, दिल्ली में पधारीं और २३ मई को दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप-हस्तिनाुपर के आमंत्रण पर सारे देश से दिगम्बर जैन समाज के वरिष्ठ प्रतिनिधि एकत्र हुए। उस बैठक में पूज्य माताजी की भावनानुसार भगवान ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव समिति का पूर्णरूपेण गठन होकर ४ फरवरी २००० से ४ फरवरी २००१ तक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निर्वाण महोत्सव मनाने की अनेक रूपरेखाएं बनाई गई। इस निर्वाण महोत्सव समिति ने भी मुझे केन्द्रीय उपाध्यक्ष एवं दिल्ली प्रदेश मंत्री के रूप में यथाशक्ति कार्य करने का सौभाग्य प्रदान किया। ऋषभदेव कमल मंदिर के द्वितीय प्रतिष्ठापना के दिवस के उपलक्ष्य में १८ जून से २३ जून १९९९ तक भगवान आदिनाथ एवं भगवान पार्श्वनाथ की छोटी प्रतिमा की लघु पंचकल्याणक प्रतिष्ठा भी सम्पन्न हुई।
अनेक ऐतिहासिक निर्णय यहाँ लिए गए-
इस मंदिर में विराजमान भगवान ऋषभदेव के विषय में पूज्य माताजी प्रारंभ से ही कहती थीं कि यह एक अतिशयकारी प्रतिमा हैं। उपर्युक्त ऐतिहासिक निर्णय के पश्चात् इसी मंदिर परिसर के हाल में बैठकर लालकिला मैदान से ४ फरवरी २००० को वैâलाश पर्वत बनाने एवं उस पर तीन चौबीसी तीर्थंकरों की ७२ रत्न प्रतिमाओं को विराजमान कर उनके समक्ष महामस्तकाभिषेक की रूपरेखा तथा १००८ निर्वाणलाडू चढ़ाने का पूरा प्रारूप निर्णीत हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी एवं वित्त राज्यमंत्री श्री वी. धनंजय कुमार जैन ने लालकिला मैदान में पधारकर वैâलाशपर्वत के समक्ष प्रथम निर्वाणलाडू चढ़ाकर निर्वाण महोत्सव एवं ऋषभदेव मेले का उद्घाटन किया। पुन: हजारों श्रद्धालुओं ने १००८ से अधिक निर्वाणलाडू चढ़ाये। यह कार्यक्रम पंचकल्याणक महोत्सव एवं मेले के साथ १० फरवरी को सम्पन्न हुआ। इस भव्य पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में मुझे कुबेर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। माताजी का सन् १९९९ का चातुर्मास दिल्ली के कनाटप्लेस क्षेत्र के राजाबाजार अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर में हुआ।इस निर्वाण महोत्सव को जहाँ देश भर के नर-नारियों ने मनाया, वहीं विदेश में भी टोरंटो, कनाडा, न्यूजर्सी आदि स्थानों पर भी लोगों ने निर्वाणलाडू चढ़ाये पुन: निर्वाण महोत्सव वर्ष के अन्तर्गत जगह-जगह ऋषभदेव जयंती, अक्षय तृतीया पर्व, व्याख्यानमाला, संगोष्ठी प्रतियोगिता एवं ऋषभदेव विधान आदि कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं।
वर्षायोग का स्वर्णिम अवसर-
मैं इसे भगवान ऋषभदेव प्रतिमा का साक्षात् चमत्कार ही मानता हूँ कि इस कमलमंदिर में इनके विराजमान होने के बाद यहाँ निरन्तर २ वर्ष पंचकल्याणक प्रतिष्ठाएं सम्पन्न हुईं। पुन: मेरे नम्र निवेदन पर समस्त निर्माण एवं कार्यक्रम की सम्प्रेरिका पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने संघ सहित इस मंदिर परिसर में १५ जुलाई सन् २००० को मंगल वर्षायोग स्थापित किया। मेरी आशाओं के मंदिर पर चढ़ें स्वर्णिम कलश के अनुसार इस वर्षायोग के मध्य गुरुभक्ति का जो अपूर्व अवसर मुझे प्राप्त हुआ, उस गुरु उपकार को मैं जीवन भर भूल नहीं सकता। इस चातुर्मास में प्रीतविहार जैन समाज ने भी माताजी से सर्वतोमुखी लाभ प्राप्त किया है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रचार की एक नई कड़ी जुड़ी-
इस वर्षायोग के अन्तर्गत न्यूयार्क (अमेरिका) में २८ अगस्त से ३१ अगस्त २००० तक होने वाले सहस्राब्दि विश्वशांति शिखर सम्मेलन हेतु प्राप्त निमंत्रण के आधार पर पूज्य माताजी ने अपने शिष्य कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन को दिगम्बर जैन धर्माचार्यों के प्रतिनिधि के रूप में अमेरिका भेजा। वहाँ उन्होंने लगभग १५० देशों से पधारे ७५ धर्मों के १५०० धर्माचार्यों, अध्यात्मवेत्ताओं एवं राजनेताओं के मध्य भगवान ऋषभदेव के अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव, विश्वमान्य अहिंसा धर्म का परिचय एवं पूज्य माताजी का आशीर्वाद संदेश प्रस्तुत किया।
प्रयाग यात्रा एवं महाकुंभ मस्तकाभिषेक का ऐतिहासिक निर्णय-
भगवान ऋषभदेव की दीक्षा भूमि प्रयाग-इलाहाबाद (उ.प्र.) में पूज्य माताजी की प्रेरणानुसार दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर समिति ने तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली नामक नूतन तीर्थ के निर्माण हेतु निर्णय लिया। प्रयाग में उस तीर्थ स्थल पर दीक्षा कल्याणक प्रतीक में वटवृक्ष के नीचे ध्यानस्थ ऋषभदेव भगवान की एक खड्गासन प्रतिमा विराजमान करने का, केवलज्ञान के प्रतीक में गंधकुटी में चार जिनप्रतिमाओं के विराजमान करने का और क्षेत्र के मध्य में ७२²१०८ फुट में ५० फुट ऊँचा एक वैâलाश पर्वत निर्मित करने का निर्णय किया गया। वैâलाश पर्वत के ऊपर भगवान ऋषभदेव की माणिक्यवर्ण जैसी १४ फुट उत्तुंग पद्मासन प्रतिमा प्रतिष्ठित की जायेगी। पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव ४ फरवरी से ८ फरवरी २००१ तक होगा तथा वैâलाशपर्वत पर विराजमान भगवान ऋषभदेव की विशाल प्रतिमा का
८ फरवरी २००१ को १००८ महाकुंभों से मस्तकाभिषेक सम्पन्न होगा। प्रयाग में होने वाले इस महोत्सव में सान्निध्य प्रदान करने हेतु पूज्य माताजी ने इस चातुर्मास के पश्चात् १ नवम्बर २००१, कार्तिक शुक्ला पंचमी को प्रयाग यात्रा के लिए प्रीतविहार से मंगल विहार करने का निर्णय लिया। प्रयाग-तीर्थ की चयन समिति में भी मुझे कोषाध्यक्ष पद पर मनोनीत कर यथाशक्ति कार्य करने का सौभाग्य दिया गया है।उपर्युक्त समस्त कार्यक्रमों में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा, आशीर्वाद एवं सान्निध्य व प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी का मार्गदर्शन एवं क्षुल्लक धर्मदिवाकर श्री मोतीसागर जी महाराज का निर्देशन एवं कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन का विशेष दिशानिर्देश रहा है।
गुरु प्रेरणा ही मेरे जीवन का सम्बल है-
पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की आर्ष परम्परानुसार प्रेरणा के आधार पर इस ऋषभदेव कमल मंदिर में महिलाओं द्वारा अभिषेक मान्य रहेगा तथा पूजा पद्धति के अन्तर्गत वर्तमान दिगम्बर जैन आम्नाय में प्रचलित तेरहपंथ एवं बीसपंथ का कोई भेद-भाव नहीं रखा गया है।
चूँकि मैंने पूज्य माताजी की प्रेरणा एवं अपनी मातेश्वरी आनन्दमती जैन की भावनानुसार व्यक्तिगतरूप से इस कमल मंदिर का निर्माण करवाकर एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आदि महोत्सव अपनी यथाशक्ति अनुसार सम्पन्न कराये हैं अत: इसका पूर्ण स्वामित्व एवं समस्त व्यवस्थाओं का संचालन मेरे व्यक्तिगत अधिकार क्षेत्र में ही रहेंगे।
इन सभी कार्यक्रमों को सम्पन्न कराने में मुझे अपनी धर्मपत्नी श्रीमती अनीता जैन का पूर्ण सहयोग प्राप्त होता रहा तथा सुपुत्री कु. अनामिका,
कु. अंतिमा एवं चिरंजीव अतिशय जैन सदा प्रसन्नचित रहे हैं।
यह जैन मंदिर, इसमें विराजमान जिनेन्द्र भगवान एवं प्रेरणादायिनी गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी हम सबका सदा कल्याण करें, यही हार्दिक भावना है।
दिनाँक-१ नवम्बर २०००
धर्मपुत्र अनिल कुमार जैन
सुपुत्र स्व. श्री सलेकचंद जैन
कमल मंदिर
डी-१०७, प्रीतविहार, दिल्ली