-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती
तर्ज—मैं तो…………
मैं तो आरती उतारूँ रे, कैलाशगिरिवर की।
जय जय कैलाशगिरि, जय जय जय-२।।टेक.।।
युग की आदी में प्रभु ऋषभदेव, इस गिरि पर पहुँचे।इस गिरि…
अपने योगों का करके निरोध, मुक्तिपुरी पहुँचे।। मुक्तिपुरी……
इन्द्रों ने झूम-झूम, नृत्य किया घूम-घूम, उत्सव मनाया रे,
हो निर्वाण उत्सव मनाया रे।मैं तो…………..।।१।।
चक्रवर्ती भरत ्नो वहाँ, मंदिर बनवाए। मंदिर………..
उनके अंदर रतन प्रतिमा, उन्होंने पधराईं।।उन्होंने…….
भक्ती का रंग था, वैभव के संग था, खुशियाँ मनाई थीं,
उन्होंने खुशियाँ मनाई थीं।।मैं तो ………….।।२।।
वैसी प्रतिमा गिरी पर आज, दिखती हैं कलियुग में। दिखती….
आरती का करो खूब ठाठ, मानो है सतयुग यह।। मानो है…..
‘‘चंदनामति’’ भक्ति करूँ, आतम में शक्ति भरूँ, पर्वत निहारूँ रे,
हो प्यारा-प्यारा पर्वत निहारूँ रे।।मैं तो………।।३।।