प्रभु आरति करने से, सब आरत टलते हैं।
जनम-जनम के पाप सभी, इक क्षण में टलते हैं।
मन-मंदिर में ज्ञानज्योति के दीपक जलते हैं।।प्रभु.।।टेक.।।
श्री ऋभषदेव जब जन्में-हां-हां जन्में,
कुछ क्षण को भी शांति हुई नरकों में।
स्वर्गों से इन्द्र भी आए….हां-हां आए,
प्रभु जन्मोत्सव में खुशियां खूब मनाएं।।
ऐसे प्रभु की आरति से, सब आरत टलते हैं।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति………।।प्रभु.।।१।।
धन-धन्य अयोध्या नगरी-हां-हां नगरी,
पन्द्रह महीने जहां हुई रतन की वृष्टी।
हुई धन्य मात मरूदेवी-हां-हां देवी,
जिनकी सेवा करने आईं सुरदेवी।।
उन जिनवर के दर्शन से सब पातक टलते हैं।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति………।।प्रभु.।।२।।
सुख भोगे बनकर राजा-हां-हां राजा,
वैराग्य हुआ तो राजपाट सब त्यागा।
मांगी तब पितु से आज्ञा-हां-हां आज्ञा,
निज पुत्र भरत को बना अवध का राजा।।
वृषभेश्वर जिन के दर्शन से, सब सुख मिलते हैं।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति………।।प्रभु.।।३।।
इक नहीं अनेकों राजा-हां-हां राजा,
‘चंदनामती’ प्रभु संग बने महाराजा।
प्रभु हस्तिनागपुर पहुंचे-हां-हां पहुंचे,
आहार प्रथम हुआ था श्रेयांस महल में।।
पंचाश्चर्य रतन उनके महलों में बरसते हैं।।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति………।।प्रभु.।।४।।
तपकर वैâवल्य को पाया-हां-हां पाया,
तब धनपति ने समवसरण रचवाया।
फिर शिवलक्ष्मी को पाया-हां-हां पाया,
वैâलाशगिरि पर ऐसा ध्यान लगाया।।
दीप जला आरति करने से आरत टलते हैं।
मन मंदिर में ज्ञानज्योति………।।प्रभु.।।५।।