ॐ जय वृषभेष प्रभो, स्वामी जय वृषभेश प्रभो ।
पंचकल्याणक अधिपति, प्रथम जिनेश विभो।।ॐ जय.।।टेक.।।
वदि आषाढ़ दुतीया, मात गरभ आए। स्वामी…….।
नाभिराय मरुदेवी के संग, सब जन हरषाए।।ॐ जय.।।१।।
धन्य अयोध्या नगरी, जन्में आप जहाँ।स्वामी…….।
चैत्र कृष्ण नवमी को, मंगलगान हुआ।।ॐ जय.।।२।।
कर्मभूमि के कर्ता, आप ही कहलाए।स्वामी …….।
असि मसि आदि क्रिया बतलाकर, ब्रह्मा कहलाए।।ॐ जय.।।३।।
नीलांजना का नृत्य देखकर, मन वैराग्य हुआ।स्वामी……।
चैत्र कृष्ण नवमी को, दीक्षा धार लिया।।ॐ जय.।।४।।
सहस वर्ष तप द्वारा, केवल रवि प्रगटा।स्वामी……।
फाल्गुन कृष्ण सुग्यारस, समवसरण बनता।।ॐ जय.।।५।।
माघ कृष्ण चौदस को, मोक्ष धाम पाया।स्वामी……।
गिरि वैâलाश पे जाकर, स्वातम प्रगटाया।।ॐ जय.।।६।।
ऋषभदेव पुरुदेव प्रभू की, आरति जो करते।स्वामी……।
क्रम-क्रम से ‘‘चंदनामती’’ वे, पूर्ण सुखी बनते।।ॐ जय.।।७।।