तर्ज—इह विधि……….
मल्लिनाथ प्रभु आरति कीजे,
पंचम गति का निज सुख लीजे ।।टेक.।।
मिथिला नगरी जन्में स्वामी,
प्रजावती माँ हैं जग नामी।।मल्लिनाथ ………….।।१।।
कुंभराज पितु तुम सम शिशु पा,
कहलाए सचमुच रत्नाकर।।मल्लिनाथ ……………..।।२।।
मगशिर सुदि ग्यारस तिथि प्यारी,
जन्में त्रिभुवन में उजियारी।।मल्लिनाथ …………।।३।।
जन्म तिथी में ली प्रभु दीक्षा,
कहलाए प्रभु कर्म विजेता।।मल्लिनाथ ……………..।।४।।
पौष कृष्ण दुतिया तिथि आई,
घातिकर्म ध्यानाग्नि जलाई।।मल्लिनाथ ………..।।५।।
फाल्गुन सुदी पंचमी तिथि में,
मोक्ष गये सम्मेदशिखर से।।मल्लिनाथ ……………..।।६।।
कर्म मल्ल के जेता स्वामी,
कहलाए प्रभु अन्तर्यामी।।मल्लिनाथ ……………।।७।।
मेरे भी दुष्कर्म मल्ल को,
नष्ट करो मुक्तिश्री वर दो।।मल्लिनाथ ……………..।।८।।
एक यही पद में अभिलाषा,
नमे ‘इन्दु’ तुम त्रिभुवनज्ञाता।।मल्लिनाथ ………..।।९।।