तर्ज—फूल तुम्हें भेजा…….
आओ सभी मिल आरति करके, श्री सुपार्श्व गुणगान करें।
मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें।।टेक.।।
धनपति ने आ नगर बनारस, में रत्नों की वर्षा की,
गर्भ बसे भादों सुदि षष्ठी, पृथ्वीषेणा माँ हरषीं,
गर्भकल्याणक की वह तिथि भी, मंगलमय भगवान करें।
मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें।।१।।
ज्येष्ठ सुदी बारस जिनवर का, सुरगिरि पर अभिषेक हुआ,
उस ही तिथि दीक्षा ली प्रभु ने, राज-पाट सब त्याग दिया,
फाल्गुन वदि षष्ठी शुभ तिथि में, केवलज्ञान कल्याण करें।
मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें।।२।।
फाल्गुन वदि सप्तमि को प्रभुवर, श्री सम्मेदशिखर गिरि से,
मुक्तिरमा को वरने हेतू, चले सिद्धिपति बन करके,
कर्मनाश शिव वरने वाले, हमको सिद्धि प्रदान करें।
मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें।।३।।
रत्नथाल में मणिमय दीपक, को प्रज्वलित किया स्वामी,
मोहतिमिर के नाशन हेतू, तव शरणा आते प्राणी,
इसी हेतु ‘‘चंदनामती’’, हम भी तेरा गुणगान करें।
मुक्ति रमापति की आरति, सब भव्यों का कल्याण करें।।४।।