वर्तमान युग में जबकि देश में वास्तुशास्त्र का महत्व बढ़ रहा है सभी का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना आवश्यक है कि तीर्थंकर ऋषभदेव सर्वप्रथम सबसे प्रमुख वास्तुशास्त्र के प्रणेता थे । भगवान आदिब्रह्मा ने इस पर जानकारी प्रदान कर विश्व को कल्याण के मार्ग दिये हैं । दिशाओं एवं उपदिशाओं के घटने और बढ़ने से क्या लाभ या हानि हो सकती है इसकी जानकारी देने का प्रयास आपको लाभान्वित करेगा ।
साउथ ईस्ट (अग्नि कोण)—
साउथ ईस्ट बढ़ने से और पूर्व अग्नि में मुख्य द्वार होने से भवन, फ्लैट में रहने वाले सदस्यों के शरीर में अग्नि का प्रभाव बढ़ जाता है। रक्त जाति की बीमारियाँ, ब्लडप्रेशर, शुगर, पेट में अम्ल—पत्त, हृदय रोग, लकवा आदि बीमारियाँ आने की संभावना होती है। अग्नि कोण का नीचा, कुआँ का गड्ढा , बोरिंग होने से घर में बीमारियों का आगमन, कोर्ट मुकदमें में पैसा खर्च होना, घर में अशांति, मातृशक्ति का घर से ज्यादा बाहर विचरण करना, पुरुषों में पुरुषत्व की कमी आना, चरित्र दूषित होना इत्यादि। उपचार— अग्नि कोण को ईशान के बराबर करें। मुख्य द्वार पूर्वी अग्नि से हटाकर अन्य स्थान पर ले जायें । कुआ, गड्ढा या सेप्टिक टैंक बंद करवा देवें।भूखण्ड का लेवल ईशान से उँचा एवं नैऋत्य से नीचा रखें। अग्नि कोण में किचन ले आवें। खाना बनाते समय मुँह पूर्व की तरफ होना चाहिए।
साउथ वेस्ट (नैऋत्य कोण)—
साउथ वेस्ट का घटना और बढ़ना दोनों ही अनुचित है। वास्तु पुरुष के पैर नैऋत्य कोण में रहते हैं। अगर किसी के पैर छोटे कर दिये जाये या एक छोटा एवं एक बड़ा कर दिया जाय तो उनके जीवनयापन करने में कितनी परेशानी है यह जिसने अनुभव किया वही बता सकता है । मुख्य रूप से कहने का तात्पर्य यह है— मनुष्य का जीवन असंतुलित रहेगा। इसका आकार सदैव ९० डिग्री में होना ही सर्वश्रेष्ठ है। उपचार— भूखण्ड, भवन या फ्लैट के नैऋत्य कोण को ऊँचा रखें। वुँआ, बोरिंग या सेप्टिक टैंक को बन्द कर स्थान परिवर्तन करें । सबसे पहले मुख्य द्वार का स्थान परिवर्तन करें। संशोधन करने से ही आपको सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होगी ।
नार्थ वेस्ट (वायव्य कोण)—
नार्थ वेस्ट के बढ़ने या घटने पर, उत्तरी वायव्य कोण को बढ़ाने से ईशान कोण घट जाता है। उस भूखण्ड, भवन या फ्लैट में रहने वाले घर से बाहर पलायन करने का प्रयास करते हैं। पैसे की कमी आती है। घर में नये बच्चे पैदा होते हैं वहाँ लड़कियाँ ही ज्यादा होती हैं अगर लड़का होता है तो उसके पोलियो ग्रस्त होने की संभावना रहती है। भूखण्ड को ईशान से उंचा और अग्नि से नीचा रखें । सेप्टिक टैंक के ए वायव्य कोण उपयुक्त स्थान है। इस कोण में कुआ, बोरिंग न करें । बढ़े हुये उत्तरी वायव्य कोण को घटाकर ईशान के बराबर ले आना चाहिए। कुआ, बोरिंग तत्काल बन्द कर देना चाहिए इत्यादि।
नार्थ ईस्ट (ईशान कोण)—
नार्थ ईस्ट का बढ़ना सुख—समृद्धि का द्योतक है। पूर्वी ईशान बढ़ने से यशकीर्ति बढ़ती है। उत्तरी ईशान बढ़ने से चौतरफी धन एवं यश कीर्ति बढ़ती है। यह देव स्थान है। ये कोण भूखण्ड का सबसे महत्वपूर्ण कोण होता है। इस कोण को स्वच्छ सुन्दर रूप से सजाकर रखना चाहिए। नार्थ ईस्ट का कटना हर तरह की विपत्तियों को निमंत्रण देने का संकेत है। भूखण्ड के इस अंग में वास्तु पुरूष का सिर होता है किसी मनुष्य का सिर निकाल दिया जाय या उसका छेदन—भेदन कर दिया जाए वह शरीर मृत समान हो जाता है। उपचार— ईशान कोण को ९० डीग्री या बढा हुआ कर लें । इन सब बातों को ध्यान में रख करके संशोधन कर ऐश्वर्य—सुख — समृ अपने घर में आने की दावत दें। विशेष— नार्थ ईस्ट की दिशाएँ अगर वास्तु अनुकूल मिल जाती है तो अन्य दिशाओं के उत्पात को अपने बल से शीतलता लाने में सहायक हो जाती है।