भगवान पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र संकटहरण पार्श्वनाथ, कुशलगढ़
—जयंतीलाल नथमल सेठ (अध्यक्ष)
क्षेत्र विवरण- श्री १००८ संकटहरण अतिशययुक्त पार्श्वनाथ दि. जैन जूना मंदिर, कुशलगढ़, राजस्थान राज्य में बांसवाड़ा जिले के दक्षिण छोर पर गुजरात, मध्यप्रदेश व राजस्थान इन तीनों राज्यों की सीमा सन्धि स्थल पर स्थित है। आज से लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व कुशलगढ़ नगर सुरम्य प्रकृति के अंचल में बसाया गया था। इसके पश्चात् दि. जैन समाज ने इस मंदिर का निर्माण करवाकर इसमें वर्तमान मूलनायक अतिशययुक्त श्री १००८ संकटहरण पार्श्वनाथ भगवान की अत्यन्त मनोहर एवं आकर्षक अष्टधातु की नौ फणायुक्त संवत् १६२३ की प्रतिमा विराजमान की।
मूर्ति का विवरण- संकटहरण भगवान पार्श्वनाथ की यह अष्टधातु प्रतिमा १६वीं शताब्दी की है। मूर्ति की ऊँचाई १८ इंच तथा वजन २० किलोग्राम है। मूर्ति के ऊपर अत्यन्त मनमोहक ९ फण हैं एवं मूर्ति के पद्मासन के नीचे भी नागफणों को बांधे रखने हेतु त्रिशूल बना हुआ है। पुरातत्त्व विभाग इस मूर्ति को अत्यधिक मूल्यवान घोषित कर राजस्व मण्डल अजमेर में पुरातत्त्व विभाग के म्यूजियम में रखने हेतु निवेदन कर चुका था।
अतिशययुक्त मंदिर का परिचय- संकटहरण मंदिर में मूर्ति स्थापना से ही कुशलगढ़ नगर धन-धान्य से परिपूर्ण था, धीरे-धीरे दिगम्बर जैन समाज के परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही थी अत: इसी मार्ग से कुछ दूरी पर वटवृक्ष के समीप विशाल दि. जैन बीसपंथी मंदिर समाज द्वारा बनवाया गया तथा उसमें मूलनायक श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाकर विराजमान की गई। सन् १९७७ के ४० वर्ष पूर्व अर्थात् सन् १९३४ में यह जूना मंदिर क्षतिग्रस्त हो जाने से इस मंदिर जी की समस्त प्रतिमाएँ दिगम्बर जैन बड़वाले बीसपंथी मंदिरजी के एक कमरे में विराजमान की गई। उसके बाद जूना मंदिरजी की पेड़ी बनाने का निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया। कुछ समय के बाद रात्रि में चोरों द्वारा मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा एवं चौविष्टा ये दोनों प्रतिमाएँ चुराकर कुशलगढ़ से ८ किमी. की दूरी पर एक भयानक जंगल में छिपा दी गई। उसके पश्चात् समाज द्वारा काफी प्रयास के बाद चौविष्टा का पता लगने से उस प्रतिमा को लाकर वापस विराजमान किया गया। चूँकि मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा जंगल में जमीन खोदकर चोरों द्वारा जमीन में छिपा दी गई थी जिससे पता नहीं लग पाया। पता नहीं लगने से मंदिर में जीर्णोद्धार का कार्य नहीं हो सका और कार्य नहीं होने से मंदिर के स्थान पर अशुद्ध पदार्थ, कूड़े व करकट के ढ़ेर तथा झाड़ियों के समूह के रूप में यह स्थान परिवर्तित हो गया। मूर्ति चोरी चले जाने से तथा मूर्ति वापस प्राप्त नहीं होने से दिगम्बर जैन बीसपंथी समाज ने इस जूना मंदिरजी के पुन:निर्माण की ओर ध्यान नहीं दिया। इस अविनय परिणाम स्वरूप दिगम्बर जैन समाज कुशलगढ़ व नगरवासियों का व्यवसाय एवं आर्थिक स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय होने लगी। संयोग से दिगम्बर जैन समाज एवं नगरनिवासियों के सौभाग्य एवं प्रबल पुण्योदयवश परमपूज्य वात्सल्य दिवाकर आचार्य श्री १०८ विमलसागरजी का संघ सहित कुशलगढ़ में पदार्पण हुआ। दिगम्बर जैन समाज ने आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज को जूना मंदिरजी का स्थान दिखलाया तथा चोरी की घटना व क्षतिग्रस्त होने से अवगत करवाया। तब आचार्य महाराज ने कहा कि यहाँ से वूâड़ा-करकट हटवाकर यहाँ पर जीर्णोद्धार स्वरूप भवन का निर्माण करवाओ, साथ ही कुछ प्रतिमाएं विराजमान करने की भी प्रेरणा दी और कहा कि इस पवित्र भूमि की यह दशा होने से ही नगरवासियों व दिगम्बर जैनों की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही है इसका यही कारण है। इसलिए जीर्णोद्धार कार्य करवाकर एक मूर्ति स्थापित की जावे। तब समाज ने जीर्णोद्धार एवं निर्माण कराने का निर्णय लिया। आचार्यश्री के विहार के १५ दिन बाद नगरवासियों व दिगम्बर जैन समाज के पुण्योदय से चोरी में गई मूलनायक १००८ पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा कुशलगढ़ से करीब ८ किमी. की दूरी पर ग्रामीण क्षेत्र के पास एक खेत में काश्तकार द्वारा खेत की जुताई करते समय हल के टकराने से प्रगट हुई। काश्तकार ने मूर्ति को उपर्युक्त स्थान पर विराजमान किया और ग्रामवासियों को ढोल बजाकर सूचित किया। अब प्रतिदिन समस्त ग्रामवासी इकट्ठे होकर बाजे-बजाकर तेल, सिंदूर, अगरबत्ती, धूप, श्रीफल व पैसे आदि चढ़ाकर भगवान की श्रद्धापूर्वक भक्ति करने लगे। इस प्रकार वहाँ पर लोगों का भारी मात्रा में तांता लग गया। संयोगवश इस ग्राम में स्थित पंचायत समिति, कुशलगढ़ के प्राथमिक विद्यालय में सेवारत श्रीमान जयन्तिलाल जी/नथमल जी सेठ, प्रधानाध्यापक जो दिगम्बर जैन बीसपंथी समाज, कुशलगढ़ के अध्यक्ष सेठ नथमल जी/मूलचंद जी कुशलगढ़ के सुपुत्र हैं। उनको जानकारी प्राप्त हुई, उन्होंने उक्त स्थल पर पहुँचकर मूर्ति प्रगट होने संंबंधी जानकारी प्राप्तकर श्रद्धापूर्वक भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन किये एवं कुशलगढ़ आकर उन्होंने अपने पिताश्री को एवम् समाज के महानुभावों को इस अभूतपूर्व घटना की सूचना दी। तब अध्यक्ष महोदयजी ने समाज को इकट्ठा करके मूर्ति निकलने के संबंध में समाज को अवगत कराया। तत्पश्चात् समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा बुजुर्गों ने मौके पर पहुँचकर मूर्ति के दर्शन करके बताया कि यह ही जूना मंदिरजी की मूर्ति है और ग्रामवासियों से यह मूर्ति उन्हें सुपुर्द करने के लिए निवेदन किया। परन्तु ग्रामवासियों ने यह मूर्ति सुपुर्द करने से इंकार कर दिया। ग्रामवासियों द्वारा मूर्ति नहीं देने से तहसील कार्यालय कुशलगढ़ में दिगम्बर जैन बीसपंथी समाज द्वारा कार्यवाही की गई। तब माननीय तहसीलदार साहब द्वारा घटनास्थल पर पहुँचकर मूर्ति तहसील कार्यालय में सुरक्षित लाकर रख दी गई। उक्त क्षेत्र के ग्रामवासियों ने भी इस भूमि से प्राप्त मूर्ति पर अपना अधिकार जताते हुए उन्हें मूर्ति वापस लौटाने हेतु आपत्ति-पत्र प्रेषित कर दिया। इस प्रकार श्री १००८ अतिशययुक्त पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा विवादित स्थिति में पहुँच गई और यह मूर्ति श्री तहसीलदार साहब ने श्री जिलाधीश महोदयजी बांसवाड़ा के कार्यालय में पहुँचा दी। तब दोनों पक्षों को श्रीमान जिलाधीश महोदय ने अपना-अपना सबूत पेश करने को कहा। दिगम्बर जैन बीसपंथी समाज द्वारा ठोस सबूत देने पर भी जिलाधीश महोदय ने विरोधी पक्षों को प्रमाणित मानकर उनके पक्ष में अपना निर्णय प्रदान कर दिया। श्री नथमल जी/मूलचंद जी सेठ दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष ने समाज के कहे अनुसार जिलाधीश द्वारा दिये गये निर्णय की प्रमाणित प्रति प्राप्तकर रेवेन्यू बोर्ड अजमेर में इस अनुचित निर्णय के विरुद्ध अपील कर दी तथा अपने ठोस प्रमाण प्रस्तुत कर विजय श्री का वरण किया। रेवेन्यू बोर्ड अजमेर में अपील का न्यायोचित निर्णय अध्यक्ष दिगम्बर जैन बीसपंथी समाज, कुशलगढ़ के पक्ष में (मूर्ति का स्वामित्व सिद्ध) होने से तथा भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा अध्यक्ष दिगम्बर जैन बीसपंथी समाज कुशलगढ़ को अविलम्ब सुपुर्द करने का आदेश जिलाधीश बांसवाड़ा को प्रदान किये जाने से समाज मेें हर्ष की लहर दौड़ गई। जिलाधीश महोदय (बांसवाड़ा) ने यह मूर्ति दिगम्बर जैन बीसपंथी समाज के अध्यक्ष श्री नथमल जी/मूलचंद जी सेठ, निवासी कुशलगढ़ के सुपुर्द कर दी। श्री अतिशय युक्त १००८ पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति लाने के पश्चात् दिगम्बर जैन समाज बीसपंथी कुशलगढ़ के जूना मंदिर जी का निर्माण कार्य शुरू करके सन् १९८६ में समापन किया गया। २३ जून १९८८ में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करवायी गई और मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा जूना मंदिर में यथास्थान विराजमान की गई। कहते हैं कि मूर्ति के समक्ष अगरबत्ती जलाकर आराधना करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। मूर्ति पर प्रशस्ति (लेख) अंकित है जिसके अनुसार यह संवत् १६२३ में भट्टारक सुमतकीर्ति द्वारा प्रतिष्ठित है। कुशलगढ़ के अन्य दर्शनीय मंदिरों में दिगम्बर जैन बीसपंथी मंदिर (बड़वाला), श्री तेरहपंथी पार्श्वनाथ मंदिर, समवसरण मंदिर, आचार्य सुधर्मसागर नसिया आदि हैं।
आवागमन के साधन- अतिशय क्षेत्र कुशलगढ़ बांसवाड़ा जिले से ६० किमी., दाहोद (गुज.) से ९० किमी., रतलाम (म.प्र.) से ९० किमी. दूरी पर स्थित है। अतिशय क्षेत्र पर आने-जाने के लिए बांसवाड़ा, दाहोद, रतलाम से सीधी बस सुविधा उपलब्ध है। अतिशय क्षेत्र के लिए मुम्बई-दिल्ली बड़ी लाइन के रेलवे स्टेशन दाहोद, थान्दलारोड तथा रतलाम जंक्शन से सीधी बस सेवा उपलब्ध है। क्षेत्र का संचालन दि. जैन दशाहूमड़ पंच बीसपंथी समाज, कुशलगढ़ द्वारा किया जाता है।