१. ‘‘वीरसेन महाराज (आचार्य वीरसेन स्वामी) द्वारा धवला एवं जयधवला में लिखे गये वचन अकाट्य हैं। इनमें कुण्डलपुर का ही उल्लेख है। वैशालिक का अर्थ वैशाली से लगाना उचित नहीं। इस बाबत प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी का तर्क एवं विवेचन पुस्तक में बहुत अच्छा है।’’
(उक्त विचार ७ मई २००४ को चार वरिष्ठ पत्रकारों के एक दल द्वारा पूज्य आचार्यश्री को विद्वत् महासंघ द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘‘भगवान महावीर जन्मभूमि प्रकरण-मनीषियों की दृष्टि में’’ समर्पित करने पर व्यक्त किये गये। पुस्तक में प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन, फिरोजाबाद एवं पं. श्री शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी के लेख हैं।) २. आगम में बताई गई एवं परम्परा मान्य भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) के विकास हेतु मेरा बहुत शुभाशीर्वाद है।’’
३. ‘‘हमारे पूर्वाचार्यों द्वारा बताई गई सदियों से पूजित भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर तो वर्तमान के नालंदा जिले में है उसके विकास हेतु आप सबको बहुत शुभाशीर्वाद। मैंने पूर्व में आपके द्वारा पे्रषित साहित्य पर भी अपना आशीर्वाद भिजवा दिया था। यह बहुत अच्छा काम है, आप सब उत्साह से करें एवं धर्म का संरक्षण करें।’’
(डॉ. अनुपम जैन, इंदौर से सलुम्बर (राजस्थान) में सितम्बर २००२ में हुई चर्चा)
४. ‘‘हमें दिगम्बर जैन ग्रंथों को ही प्रमाण मानना चाहिए न कि श्वेताम्बर व जैनेतर ग्रंथों को। २६०० वर्षों से नालंदा के निकट स्थित कुण्डलपुर की ही जन्मभूमि के रूप में पूजा-अर्चना होती आ रही है। हमें अनावश्यक व अश्रद्धा उत्पन्न करने वाले नये मात्र ५० वर्षीय वैशाली को भगवान महावीर की जन्मभूमि के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए। हमें अनपेक्षित भूगोल और इतिहास के पचड़ों से भ्रमित नहीं होना चाहिए और पूर्ण श्रद्धा कायम रखकर कुण्डलपुर का अपेक्षित विकास करना चाहिए।
५. ‘‘परम्परा से माने गए तीर्थों पर विवाद नहीं करना चाहिए।’’
६. ‘‘हमने तो नालंदा के पास स्थित महावीर जन्मभूमि की ही वंदना की है एवं हम तो इसे ही मानते हैं। इसके अलावा अन्य किसी जन्मभूमि की चर्चा भी नहीं करना चाहिए, वरना श्रद्धा बँटती है।’’
७. ‘‘महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर के बारे में आपके द्वारा प्रेषित सामग्री, पुस्तवेंं, पत्र-पत्रिकाएं प्राप्त हुर्इं। भगवान की जन्मभूमि एवं निर्वाणभूमि के बारे में विवाद उचित नहीं है। मैंने गृहस्थावस्था में एवं दीक्षा के बाद भी भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) की वंदना की है। वही वास्तविक जन्मभूमि है।
८. ‘‘दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों एवं परम्परा से मान्य जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) का विकास होना चाहिए। यह कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है। ’’
९. ‘‘नालंदा जिले में स्थित महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में भगवान महावीर का भव्य स्मारक बनना चाहिए।’’
१०. ‘‘मेरे गुरु आचार्यश्री विमलसागर जी के सामने सम्मेदशिखर के स्थान पर कोल्हुवा (गया) पहाड़ को निर्वाणभूमि निरूपित किया गया तो उन्होंने स्पष्ट आदेश दिया कि परम्परा से मान्य तीर्थों के साथ छेड़छाड़ उचित नहीं। यही बात भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) के बारे में भी सत्य है। गुरु आज्ञानुसार मैं तो परम्परामान्य जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा) को ही स्वीकार करता हूँ।’’
११. ‘‘जन्मभूमि के मामले में विवाद उचित नहीं। जो जन्मभूमि परम्परा एवं श्रद्धा से मान्य है वही ठीक है। सब मिलकर उसका विकास करो। यही हमारा आशीर्वाद है।’’’
१२. ‘‘अपने तीर्थों का निर्णय हमें दिगम्बर जैन शास्त्रों के आलोक में ही करना चाहिए। कुण्डलपुर तो जगत विख्यात है इसमें विवाद क्यों?’’’
१३. ‘‘हमने अपने गृहस्थावस्था में ५ बार सम्मेदशिखर की यात्रा की। एक बार श्री सुपाश्र्वसागर मुनि महाराज के साथ गये। दीक्षा के पश्चात् मुनि श्री श्रेयांससागर जी महाराज के संघ के साथ गये। तब बिहार प्रान्त के सभी क्षेत्रों के दर्शन किए। पावापुरी में गृहस्थावस्था में निर्वाण लाडू चढ़ाया किन्तु तब वैशाली का नाम सुना हो, ऐसा स्मरण में नहीं है न कभी वहाँ पहुँचे। हाँ, भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर (नालंदा), नवादा, गुणावां जाकर दर्शन किए लेकिन श्वेताम्बर शास्त्रीय उल्लेखों ने अनेक जैनेतर विद्वानों, लेखकों को यह कल्पना करने में सहायता दी कि भगवान का जन्म वैशाली में होना चाहिए। शासन का सहयोग मिलने से यह परिस्थिति थोड़ी मजबूत हुई। बिहार शासन द्वारा प्रकाशित तथा वैशाली में वैशाली महोत्सव मनाने से प्रचार हुआ। उक्त अंग्रेजी रचना में महावीर को वैशाली का नागरिक कहा है। इससे भले ही वैशाली में उत्सव मनाएं किन्तु दिगम्बर परम्परा से जन्मभूमि कुण्डलपुर में ही जन्मोत्सव मनेगा। हमें अपने धर्म एवं सम्प्रदाय का स्वाभिमान रखना चाहिए। आज तक ५० सालों में कुछ लोगों से जो भूल हुई है, उसे सुधारना चाहिए, यह विद्वानों एवं धनवालों का कत्र्तव्य है।’’
१४. ‘‘आपके द्वारा भेजी गई सामग्री (भगवान महावीर जन्मभूमि-मनीषियों की दृष्टि में पुस्तक एवं अन्य लेख आदि) एवं पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने के बाद माताजी ने कहा है कि भगवान महावीर की जन्मभूमि वास्तव में कुण्डलपुर ही है वैशाली नहीं। आपके द्वारा भेजी गई सामग्री का माताजी ने अच्छा अध्ययन किया है।
१५. ‘‘मेरा स्पष्ट मत है कि आगम सम्मत एवं परम्परा में कुण्डलपुर (नालंदा) ही जन्मस्थली मान्य की जानी चाहिए।’’
१६. ‘‘एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि कुण्डलपुर (नालंदा) या वैशाली। कुण्डलपुर तो सदैव आगमसम्मत रहा है। वैशाली कभी तीर्थ नहीं बन पाई। पूज्य ज्ञानमती माताजी को मेरा समर्थन एवं वंदामि।’’