२१ वीं शताब्दी के प्रारम्भ होते ही मोबाइल, इन्टरनेट व उस पर आधारित विभिन्न सामग्रियों का प्रयोग आज इतना बढ़ा कि उसके कारण पूरा विश्व बहुत छोटा सा लगने लगा है। एक समय था जब अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन चला था पर इन सब वैज्ञानिक उपलब्धियों के प्रयोग के लिये आज अंग्रेजी अति आवश्यक हो गयी है। ग्लोबलाइजेशन के प्रभाव में, युवाओं द्वारा विदेशों में पढ़ने के शौक व वहीं पर धनार्जन के कारण अंग्रेजी का प्रयोग अति आवश्यक ही है। आज के सभी बच्चे प्रायः कॉनवेन्ट स्कूल में पढ़रहे हैं, जिन्हें सड़सठ या उन्यासी समझ नहीं आता परन्तु सिक्सटी सेविन व सेविन्टी नाइन फौरन समझ में आ जाता है। बच्चे बाल्यावस्था से ही कम्प्यूटर का प्रयोग करने लगे हैं। एन्ड्रोइड मोबाइल के आ जाने से अब कम्प्यूटर सबके हाथ में है। वास्तविकता यह है कि बाबा-दादी को जितना पता नहीं, जितना नाती-पोतों को पता है। इन्टरनेट के इस युग में अन्य धर्मों व समाज की अपेक्षा जैन समाज/जैन दर्शन इन्टरनेट का इतना उपयोग नहीं कर पा रहा। जैनों की जो सामग्री नेट पर उपलब्ध भी है, वह प्रायः श्वेताम्बर परम्परा के अनुरूप ज्यादा है, दिगम्बर धर्मानुयायी इस मामले में पिछड़ रहे हैं। गूगल, याहू का प्रयोग बहुत सामान्य हो गया है। एक बटन दबाते ही सारी सामग्री उपलब्ध हो जाती है। जैन धर्म/दर्शन के शास्त्रोक्त व प्रचलित शब्दों को अंग्रेजी में जानना नेट के लिये आवश्यक हो गया है। इन्हीं सब आवश्यकताओं को देखते हुये परम पूज्य गणिनी प्रमुख आर्यिका शिरोमणि ज्ञानमती माताजी ने जिनकी सदैव दूरदृष्टि रहती है और जिनका उपयोग आत्मकल्याण के साथ-साथ समाज व धर्म के कल्याण के लिये भी सदैव तत्पर रहता है, उन्होंने सोचा कि आज के नवयुवकों व आज के वातावरण में यदि तीर्थंकरों की वाणी को जन-जन तक पहुँचाना है तो शास्त्रोक्त शब्दों का अंग्रेजीकरण करना आवश्यक ही होगा। जैन वाङ्मय प्रायः प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में उपलब्ध है, उनका हिन्दी अनुवाद तो बहुत किया गया है परन्तु अंग्रेजी अनुवाद बहुत कम हुये हैं, कम संख्या में उपलब्ध हैं और जो उपलब्ध भी हैं उनका सामान्य प्रयोग प्रायः इसीलिये नहीं हो पा रहा क्योंकि लोग शास्त्रोक्त शब्दों के अंग्रेजी शब्दों से परिचित नहीं है।
इस समस्या पर विचार करते हुये जब माताजी ने चिन्तन किया, परम पूज्य आर्यिका चंदनामती माताजी एवं भाई रवीन्द्र जी आदि से चर्चा की तो सभी ने इस समस्या के निराकरण हेतु ठोस कदम उठाने की आवश्यकता महसूस की। इन्हीं सब पुरुषार्थों के फल के रूप में ६०२ पृष्ठों का यह ‘‘भगवान महावीर हिन्दी अंग्रेजी जैन शब्दकोष’ नाम का ग्रन्थ हम सबके सामने उपलब्ध है। इस ग्रन्थ की प्रेरणास्रोत एवं वाचना प्रमुख परम पूज्य गणिनी प्रमुख आर्यिका शिरोमणि ज्ञानमती माताजी हैं। प्रज्ञाश्रमणी परम पूज्य आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ने इस ग्रन्थ को तैयार करने में महती भूमिका निभाते हुये शब्दों का संकलन एवं वाचना की। सहयोग के रूप में क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी एवं ब्र. भाई रवीन्द्र जी ने प्रमुख मार्गनिर्देशन किया। ब्र. स्वाति, वर्तमान में आर्यिका स्वर्णमती माताजी, श्री जीवन प्रकाश जैन, डॉ. अनुपम जैन इन्दौर, श्री कोमल चंद्र जैन इन्दौर एवं संघस्थ ब्र. बहिनों का सहयोग भी इस ग्रन्थ के निर्माण में उल्लेखनीय है।
रत्नत्रय का सामान्य अर्थ तीन रत्न होता है परन्तु जैन वाङ्मय का अध्ययन करने पर मात्र इतने अर्थ से काम नहीं चलेगा, वहाँ तो रत्नत्रय का अर्थ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यव्चारित्र करना पड़ेगा। इनको अंग्रेजी में क्या कहें तो माताजी ने सम्यग्दर्शन को Right Perception or Faith सम्यग्ज्ञान को Right Knowledge with Right Perception एवं सम्यव्चारित्र को Right Conduct-Involving into Spiritual Development कहा है। इनकी परिभाषा देते हुये सम्यग्दर्शन को िंहसादि रहित धर्म—अठारह दोष रहित देव—नग्र्रन्थ प्रवचन अर्थात् मोक्षमार्ग व गुरु में श्रद्धा होना अर्थात् मोक्षोपयोगी तत्त्वों के प्रति दृढ़विश्वास करना सम्यक्दर्शन है। जो ज्ञान वस्तु के स्वरूप को न्यूनता रहित, अधिकता रहित, विपरीतता रहित, संदेह रहित जैसे का तैसा जानता है, उसे सम्यग्ज्ञान कहते हैं अथवा वस्तु स्वरूप को यथार्थ रूप से जानना सम्यग्ज्ञान है। सम्यग्दर्शन सहित शुभ क्रियाओं में प्रवृत्ति, राग द्वेष को दूर कर समता भाव में रमना सम्यक््âचारित्र है। (पृष्ठ ५४७)।पूरे शब्दकोष में जो प्रक्रिया अपनाई गई है, उसमें सबसे पहले हिन्दी के शब्दों को दिया गया है, उसके बाद उसी शब्द को उसी लाइन में अंग्रेजी में रोमन भाषा में लिखा गया है। अगली लाइन में उसके अंग्रेजी शब्द दिये गये हैं तथा उसके बाद उसका हिन्दी अर्थ दिया गया है।
उदाहरण के लिये तप—Tapa Austerity, Penance इच्छाओं का निरोध करना, तप के द्वारा कर्मों की निर्जरा होती है। ६ बाह्य एवं ६ अभ्यंतर १२ प्रकार के तपों का पालन जैन साधु करते हैं। (पृ. २३२)। सम्पादकीय के पृष्ठ-१३ पर वर्णों और शब्दों को अंग्रेजी में किस प्रकार लिखा गया है, इसका विवेचन किया गया है, जो पाठकों को पढ़ना उचित ही रहेगा, जिससे शब्दकोष भलीभाँति समझ में आ सके। इस शब्दकोष को तैयार करने में
१. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष-पाँचों भाग,
२. तत्वार्थसूत्र अंग्रेजी अनुवाद जस्टिस जे. एल. जैनी,
३. बृहत् जैन शब्दार्णव,
४. जैन पुराण कोष,
५. आप्टे हिन्दी कोष,
६. लब्धिसार,
७. गोम्मटसार जीवकाण्ड एवं कर्मकाण्ड,
८. आक्सफोर्ड हिन्दी इंग्लिश डिक्शनरी,
९. आक्सफोर्ड इंग्लिश, इंग्लिश डिक्शनरी,
Jain Technical Terms Dr. Mohanlal Mehta,
12. Glossary of Jaina Terms Dr.N. L. Jain,
13. Sudha Sagar Hindi-English Jain Dictionary Dr. R. C. Jain.
के ग्रन्थों का उपयोग किया गया है। शब्दों की दृष्टि से देखें तो ‘अ’ से प्रारम्भ होने वाले शब्द सबसे ज्यादा हैं, ७६ पृष्ठ। दूसरे स्थान पर ‘‘स’’ से प्रारम्भ होने वाले शब्द ६८ पृष्ठों में हैं। तृतीय स्थान पर ‘‘प’’ से प्रारम्भ होने वाले शब्द ५७ पृष्ठों में हैं। चौथे ‘‘व’’ से प्रारम्भ होने वाले शब्द ४१ पृष्ठों में हैं। पांचवे ‘‘क’’ से प्रारम्भ होने वाले शब्द ४० पृष्ठों में हैं। सबसे कम ‘‘ट’’ वर्ग अर्थात् ट, ठ, ड, ढ, ण से प्रारम्भ होने वाले शब्द हैं। पाठकों की सुविधा की दृष्टि से कौन से शब्द किस पृष्ठ पर उपलब्ध हैं, यह जानकारी हम यहाँ दे रहे हैं। अ १ क १२९ च १८८ ट २२६ प ३१६ य ४३६ श ५०५ आ ७६ ख १६९ छ २०५ ठ, ड, ढ फ ३७३ र ४४४ श्र ५१९ इ ९५ ग १७१ ज २०७ ण २२७ ब ३७४ ल ४५६ ष ५२६ ई ९९ घ १८६ झ २२६ त २२८ भ ३८५ व ४६४ स ५२८ उ १०० थ २४७ म ४०३ ह ५९६ ऊ ११८ द २४८ ऋ ११९ ध २७४ ए १२१ न २८२ एै १२५ ओ १२६ औ १२७ कोष में विभिन्न शब्दों के साथ ही तीर्थंकरों, गणधर, आचार्य, मुनि, आर्यिका, तीर्थ, नगर, व्रत, पर्व, शास्त्र, क्षेत्र, यन्त्र, ऐतिहासिक महापुरुष, परीषह, तत्व, द्रव्य, पदार्थ, समुद्घात, नक्षत्र, ग्रह, आदि के नाम भी शामिल किये गये हैं।
उदाहरण के लिये— तीर्थंकर (आदिनाथ पृ.-८३, महावीर-४१७, पाश्र्वनाथ-३४२) गणधर (अग्निदेव-११, अग्निभूत-११, इन्द्रभूति-९६) आचार्य (अकम्पनाचार्य-५, पाण्डु-३३७, शान्तिसागर-५१०, धर्मसागर-२७७) मुनि (अमितसागर-५१, तरुणसागर-२३४) आर्यिका (ज्ञानमती-२२२, आदिमती-८३, विशुद्धमती-४८८) नगर (अंकलेश्वर-१, िंसहपुरी-५१२, हस्तिनापुर-५९९) शास्त्र (र. श्रावकाचार-४४४, पाण्डवपुराण-३३७, आत्मानुशासन-८२) पर्व (दशलक्षण-२५१, रक्षाबन्धन-४४४) कर्म (अन्तराय-४, ज्ञानवरणी-२२४, मोहनीय-४३५, नाम-२९३) तीर्थ (मक्सीपाश्र्वनाथ-४०५, िंसहपुरी-५१२, वाराणसी-४७५, महावीर जी-४१७) ग्रन्थ को तैयार करने में बहुत पुरुषार्थ किया गया है। वर्तमान के विद्वानों के लिये तो यह बहुत ही उपयोगी ग्रन्थ है क्योंकि वर्तमान के प्रायः अधिकांश विद्वानों को अंग्रेजी भाषा पर उतना कमाण्ड नहीं है। मैं जब २००८ में सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) दशलक्षण पर्व पर प्रवचन करने के लिये गया था तो वहाँ चूँकि अधिकांश श्रोता नवयुवक एवं अंग्रेजी पढ़े थे तो वह जिनागम के शब्दों को अंग्रेजी में जानना चाहते थे। संयोग से मैं यह ग्रन्थ वहाँ उस समय साथ ले गया था। यद्यपि मैंने उस ग्रन्थ का अभ्यास उस समय तक ज्यादा नहीं किया था परन्तु जब वे लोग पूछते थे तो मैं उन्हें इस ग्रन्थ से देखकर अंग्रेजी में बता देता था तो उन लोगों को बहुत प्रसन्नता होती थी और जब मैंने उन्हें बताया कि यह ग्रन्थ परम पूज्य गणिनी प्रमुख आर्यिका ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से आर्यिका चंदनामती माताजी ने तैयार किया है तो वे लोग माताजी का बड़ा उपकार स्वीकार करते थे कि उन्होंने इतना अत्यधिक पुरुषार्थ करके ऐसे ग्रन्थ की रचना की जो सदियों तक उनके इस कार्य को न केवल भारतवर्ष में ही अपितु सम्पूर्ण विश्व में इतना उपयोगी होगा। सभी की यह राय थी कि इस ग्रन्थ को याहू, गूगल, विकीपीडिया आदि पर पूरा लोड कर देना चाहिए। परम पूज्य आर्यिका चंदनामती माताजी ने अपनी विद्वत्ता से अनेकानेक ग्रन्थों की रचना की है, जिसमें यह विश्वकोष भी एक महत् उपयोगी ग्रन्थ है। विशेषतया आधुनिक युवा वर्ग के लिये तो इस ग्रन्थ की बहुत ही उपयोगिता है। माताजी के इस परम पुरुषार्थ के लिये हम सब उनके परम ऋणी हैं एवं उनका कोटि कोटि अभिवन्दन करते हैं।