मुनिसुव्रत जिन जन्म भू, पावन तीर्थ प्रसिद्ध
सिद्धक्षेत्र माना इसे, कई हुए हैं सिद्ध ||१||
चालीसा इस तीर्थ का, जग में मंगलकार
रोग,शोक, संकट टले , भरे पुण्य भण्डार ||२||
मुनिसुव्रत प्रभु जन्मथली है, राजगृही पावन नगरी है ||१||
सुर,नर,मुनिगण द्वारा वंदित, इन्द्रगणों के द्वारा पूजित ||२||
प्रांत बिहार जिला नालंदा , जहां पवित्र तीर्थ है अपना ||३||
सोमावति माँ रात्रि प्रहर में, देख रहीं थीं सोलह सपने ||४||
पिता सुमित्रराज हरषाये , धनदराज नित रतन लुटाएं ||५||
श्रावण कृष्णा दूज तिथी थी, गर्भ पधारे त्रिभुवनपति जी ||६||
वदि वैशाख दुवादशि जानो, जन्मकल्याणक बेला मानो ||७||
मुनिसुव्रत भगवान थे जन्में, तीन लोक की जनता हरषे ||८||
ऐरावत हाथी पर चढ़कर, सौधर्मेंद्र चला ले परिकर ||९||
त्रय प्रदक्षिणा नगरी की दे, शचि को भेजा प्रसूतिगृह में ||१०||
प्रथम दर्श प्रभुवर का पाया, तत्क्षण स्त्रीलिंग नशाया ||११||
प्रभु ने राज्यविभव को भोगा , पुनः विरागी हो सब छोड़ा ||१२||
जातिस्मृति से आई विरक्ती, लौकान्तिक सुर आ की स्तुति ||१३||
दशमी वदि वैशाख की प्यारी , जब जिनवर ने दीक्षा धारी ||१४||
नवमी वदि वैशाख की आई, श्री कैवल्यरमा प्रगटाई ||१५||
ग्राम ज्रम्भिका में था प्यारा, समवसरण का भव्य नजारा ||१६||
किन्तु दिव्यध्वनि नहीं खिरी थी,समवसरण रचना विघटी थी ||१७||
राजगृही में श्री विपुलाचल , प्रथम देशना का यह स्थल ||१८||
बड़ी ही सुन्दर इसकी घटना, शास्त्र कहें विपुलाचल महिमा ||१९||
समवसरण में सभा लगी थी किन्तु दिव्यध्वनि नहीं खिरी थी ||२०||
इन्द्र ने अवधिज्ञान से माना, गौतम को लाने की ठाना ||२१||
युक्ती से गौतम को लाया, समवसरण में मानी आया ||२२||
मानस्तम्भ से मान गलित था,प्रभु के चरण में नतमस्तक था ||२३||
शिष्यों के संग दीक्षा लेकर, गौतम ने पाया गणधर पद ||२४||
धर्मचक्र का हुआ प्रवर्तन, वह तिथि श्रावण कृष्णा एकम ||२५||
छ्यासठ दिन पश्चात वहाँ पर, दिव्यदेशना खिरी थी अनुपम ||२६||
दिव्यध्वनि प्रभु ने प्रगटाई , तब त्रैलोक्य धरा हरषाई ||२७||
जैन वाङ्मय आदि ग्रन्थ में, कई नाम इसके बतलाए ||२८||
गिरिव्रज,वसुमति, कुशाग्रपुर,अरु ऋषभपुरी भी यह कहलाए ||२९||
राजगृही में पञ्च पहाड़ी , जुड़ी अनेकों घटना प्यारी ||३०||
विपुलाचल,ऋषिगिरि आदिक से, कई मुनियों ने सिद्धी पाली ||३१||
जीवन्धर मुनि,विद्द्युत्चर मुनि, श्वेतसंदीव गंधमादन मुनि ||३२||
घाति-अघाती कर्म नशाये , शाश्वत सिद्धशिला को पाए ||३३||
इसीलिये यह सिद्धक्षेत्र है, श्रद्धा का यह केन्द्रबिंदु है ||३४||
राजा श्रेणिक आदि की नगरी, कई धार्मिक कथा हैं कहती ||३५||
इतिहासिक अरु राजनीति की , दृष्टि से यह महिमामय नगरी ||३६||
ज्ञानमती माँ यहाँ पधारीं , खड्गासन प्रतिमा पधरा दीं ||३७||
विपुलाचल पर्वत के नीचे, मानस्तम्भ है ऊंचा दीखे ||३८||
पर्वत पर दी ऊं की प्रतिमा , चित्र प्रदर्शनि बनी अनुपमा ||३९||
जय जय ज्ञानमती माता की , प्रणमूँ पावन राजगृही जी ||४०||
नमूँ बीसवें तीर्थकर , मुनिसुव्रत भगवान
चार-चार कल्याण से, है पवित्र यह धाम ||१||
इस तीरथ की अर्चना, आत्मा तीर्थ बनाय
आध्यात्मिक सुख सहज में,’इंदु’ हमें मिल जाय ||२||