प्रश्न १—भगवान शान्तिनाथ चौबीस तीर्थंकर में से कौन से नं. के तीर्थंकर हैं ?
उत्तर—भगवान शान्तिनाथ वर्तमान चौबीसी में सोलहवें तीर्थंकर हैं।
प्रश्न २—वे इस संसार में कौन से नं. के चक्रवर्ती के नाम से प्रसिद्ध हैं ?
उत्तर—पाँचवें चक्रवर्ती ।
प्रश्न ३—उनकी तीसरी पदवी क्या है ?
उत्तर—वे कामदेव के नाम से प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न ४—पाँच श्रुतकेवली मुनिराजों के नाम बताइये ?
उत्तर—सर्वश्री विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन एवं भद्रबाहु।
प्रश्न ५—किन्हीं ७ प्राचीन आचार्यों के नाम बताइये ?
उत्तर—विशाखाचार्य, कुन्दकुन्द आचार्य, अकलंकदेव, पूज्यपाद स्वामी, नेमिचन्द्राचार्य, प्रभाचन्द्र एवं जिनसेन।
प्रश्न ६—श्री शान्तिनाथ पुराण की रचना किसने की ?
उत्तर—पूज्य भट्टारक श्री सकलकीर्तिजी ने।
प्रश्न ७—वक्ता कैसा होना चाहिए ?
उत्तर—विद्वान, सम्यक्चारित्र से विभूषित, प्रखर बुद्धि, तपश्चरण से सुशोभित, स्पष्ट वचन वाला हो, संसार में जिनकी सच्ची कीर्ति फैल रही है ऐसे श्रेष्ठ गुणों से पूज्य आचार्य ही श्रेष्ठ वक्ता हैं।
प्रश्न ८—श्रोता कैसा होना चाहिए ?
उत्तर—जो गुरु की भक्ति करने में तत्पर हो, किसी त्रुटि पर हंसते नहीं हैं। क्षमा, शौच आदि गुणों से सुशोभित, अरहंत देव कथित वचन में दृढ़ श्रद्धान करते हैं, व्रत, शील, आर्जव, मार्दव, सत्य, शौच, त्याग, भोग, ऐश्वर्य, गांभीर्य,स्थैर्य, धैर्य, सौभाग्य, तप, पूजा से उत्पन्न होने वाले अनेक गुणों से इस संसार में शोभायमान हैं वही श्रेष्ठ श्रोता हैं।
प्रश्न ९—धर्म कथा का लक्षण क्या है ?
उत्तर—जिसमें जीवादि सात तत्वों, नव पदार्थों, चार दानों, चारों पुरुषार्थों का वर्णन हो, उत्तम दान, तप, शील, व्रत आदि कहे गए हों, उत्तम पुरुषों के संसार, शरीर तथा भोगों से वैराग्य प्रकट करने वाले कारण बतलाए गए हों, तीर्थंकरों की महिमा का वर्णन हो,त्रेसठ शलाका पुरुषों का वर्णन हो, तीनों लोकों के भेदों का वर्णन हो, संसार के शुभ—अशुभ पदार्थों तथा गृहस्थों की पुण्य वृद्धि कराने वाले श्रावकाचार का वर्णन हो उसको धर्म—कथा कहते हैं।
प्रश्न १०—विकथा किसे कहते हैं, यह कितने प्रकार की है ?
उत्तर—जिस कथा के द्वारा हिंसा—युद्ध आदि का वर्णन किया जाता हो वह विकथा है, जो चार प्रकार की है—१. स्त्रीकथा, २. राज्य कथा ३. भोजन कथा, ४. चोर कथा।
प्रश्न ११—मिथ्या कथाएं कौन सी हैं ?
उत्तर—जो कथाएं झूठी हों, जिनमें शील, दान, पूजा आदि का वर्णन न हो वह मिथ्या कथा है।
प्रश्न १२—जम्बूद्वीप कहाँ है ?
उत्तर—मध्यलोक में जम्बूद्वीप है।
प्रश्न १३—इसका व्यास कितना है ?
उत्तर—यह एक लाख योजन चौड़ा, गोल तथा लवण समुद्र से घिरा हुआ है।
प्रश्न १४—जम्बूद्वीप के बीचोंबीच क्या है ?
उत्तर—जम्बूद्वीप के मध्यभाग में एक लाख योजन ऊँचा सुमेरू पर्वत है।
प्रश्न १५—सुमेरू पर्वत वन्दनीय क्यों है ?
उत्तर—सुमेरू पर्वत तीर्थंकरों के जन्माभिषेक से अभिषिक्त होने से वंदनीय है।
प्रश्न १६—भरतक्षेत्र का व्यास कितना है ?
उत्तर—भरतक्षेत्र ५२६ योजन छ: कला चौड़ा है।
प्रश्न १७—भरतक्षेत्र में विजयार्ध पर्वत कहाँ है ?
उत्तर—भरतक्षेत्र के मध्यभाग में शुक्लध्यान के पुंज के समान उच्च तथा विराट विजयार्ध पर्वत शोभायमान है।
प्रश्न १८—विजयार्ध पर्वत का माप क्या है ?
उत्तर—विजयार्ध पर्वत २५ योजन ऊँचा, ५० योजन चौड़ा एवं सवा छ: योजन भूमि के भीतर है”
प्रश्न १९—विजयार्ध पर्वत में कितनी गुफाएं, कितनी श्रेणियाँ, कितने नगर एवं कितने ग्राम हैं ?
उत्तर—विजयार्ध पर्वत में दो गुफाएं, दो श्रेणियां हैं: दक्षिणश्रेणी में पचास व उत्तर श्रेणी में साठ ऐसे ११० नगर हैं, प्रत्येक नगर में १—१ करोड़ ग्राम हैं।
प्रश्न २०—वहाँ चैत्यालय कृत्रिम हैं अथवा अकृत्रिम ?
उत्तर—वहाँ चैत्यालय अकृत्रिम, रत्नजटित एवं स्वर्णमयी हैं।
प्रश्न २१—वहाँ पूजादि कौन करते हैं ?
उत्तर—वहाँ देवगण तथा विद्याधर व विद्याधरियाँ आकर पूजन व अभिषेक करते हैं।
प्रश्न २२—विजयार्ध पर्वत पर कितने वर्ण हैं ?
उत्तर—विजयार्ध पर्वत पर क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र ऐसे तीन वर्ण हैं।
प्रश्न २३—कौन सा धर्म वहाँ सदा विद्यमान है ?
उत्तर—जैनधर्म।
प्रश्न २४—विजयार्ध पर्वत पर चक्रवाल नगरी कहाँ है ?
उत्तर—विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में रथनूपुर चक्रवाल नाम की एक प्रसिद्ध नगरी है।
प्रश्न २५—उस नगरी के राजा का क्या नाम था ?
उत्तर—उस नगरी का स्वामी पुण्यवान तथा सम्पूर्ण गुणों का एकमात्र भण्डार ज्वलनजटी नाम का विद्याधर था।
प्रश्न २६—राजा ज्वलनजटी की महारानी का क्या नाम था ?
उत्तर—दिव्यतिलक नगर के चन्द्राभ राजा एवं सुभद्रा रानी की पुत्री वायुवेगा राजा ज्वलनजटी की महारानी थी।
प्रश्न २७—उन दोनों के पुत्र, पुत्रियों का क्या नाम था ?
उत्तर—उनके अर्ककीर्ति नामक पुत्र एवं स्वयंप्रभा नाम की पुत्री थी।
प्रश्न २८—राजा ज्वलनजटी के राज्य में कौन से दो मुनिराज पधारे ?
उत्तर—राजा ज्वलनजटी के राज्य के मनोहर उद्यान में जगन्नन्दन एवं अभिनन्दन नाम के दो चारण ऋद्धिधारी मुनिराज पधारे।
प्रश्न २९—राजा ज्वलनजटी को किस प्रकार सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ ?
उत्तर—जगन्नन्दन एवं अभिनन्दन मुनिराज के उपदेशामृत से राजा ज्वलनजटी को सम्यग्दर्शन प्राप्त हुआ।
प्रश्न ३०—राजा ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा का विवाह किसके साथ सम्पन्न हुआ ?
उत्तर—महाराजा प्रजापति के पुत्र त्रिपृष्ट के साथ स्वयंप्रभा का विवाह सम्पन्न हुआ।
प्रश्न ३१—त्रिपृष्ट किस पदवी का धारक था ?
उत्तर—त्रिपृष्ट प्रथम नारायण था।
प्रश्न ३२—राजा ज्वलनजटी ने त्रिपृष्ट को कौन सी विद्याएं सिद्ध करने को दीं?
उत्तर—सिंहवाहिनी एवं गरुड़वाहिनी ऐसी दो विद्याएं दीं।
प्रश्न ३३—अश्वग्रीव राजा कौन था ?
उत्तर—अश्वग्रीव राजा
प्रश्न ३४—अश्वग्रीव राजा के नगर में क्या अशुभ घटित हुआ ?
उत्तर—अश्वग्रीव राजा के नगर में उल्कापात हुआ, पृथ्वी दोलायमान हुई तथा दशों दिशाओं में आग लगने लगी।
प्रश्न ३५—उन घटनाओं एवं उनके शमन का उपाय शतबिन्दु मतिज्ञानी ने क्या बताया ?
उत्तर—उसने कहा कि अपने पराक्रम से जिसने सिन्धुदेश में सिंह को मारा है, आपके लिए भेजी हुई भेंट जिसने छीन ली है तथा राजा ज्वलनजटी ने आपको देने योग्य स्त्रीरत्न जिसे समर्पित किया है वह आप का अनिष्ट करेगा, उन्हें दूर करने का आप उपाय करें।
प्रश्न ३६—उपायस्वरूप राजा त्रिपृष्ठ नारायण से युद्ध करने का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर—युद्ध के परिणामस्वरूप राजा अश्वग्रीव त्रिपृष्ठ नारायण के द्वारा मरकर सातवें नरक चला गया।
प्रश्न ३७—चक्रवर्ती त्रिपृष्ट नारायण के सात रत्न कौन—कौन से थे ?
उत्तर—खड्ग, शंख, धनुष, शक्ति, दण्ड, चक्र एवं गदा।
प्रश्न ३८—मोक्षगामी विजय बलभद्र के कितने महारत्न थे ?
उत्तर—चार महारत्न थे—रत्नमाला, गदा, हल एवं मूसल।
प्रश्न ३९—विजय बलभद्र की कितनी रानियाँ थीं ?
उत्तर—आठ हजार।
प्रश्न ४०—त्रिपृष्ठ नारायण की कितनी रानियाँ थीं ?
उत्तर—सोलह हजार”
प्रश्न ४१—राजा ज्वलनजटी के पुत्र अर्ककीर्ति का विवाह किस राजकन्या के साथ हुआ ?
उत्तर—इन्द्रकान्त नगर के मेघवान राजा की मेघमाला रानी से उत्पन्न ज्योतिर्माला नाम की पुत्री से अर्ककीर्ति का विवाह हुआ।
प्रश्न ४२—उन दोनों के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—उन दोनों के पुत्र का नाम अमिततेज था।
प्रश्न ४३—अर्ककीर्ति की बहन का क्या नाम था ?
उत्तर—अर्ककीर्ति की बहन का नाम सुतारा था।
प्रश्न ४४—त्रिपृष्ठ नारायण एवं स्वयंप्रभा की पुत्र—पुत्रियों के क्या नाम थे ?
उत्तर—त्रिपृष्ठ महाराज के श्रीविजय एवं जयभद्र नाम के दो पुत्र एवं ज्योतिप्रभा नाम की एक पुत्री थी।
प्रश्न ४५—महाराज प्रजापति को वैराग्य कैसे हुआ और उन्होंने किनसे दीक्षा ली ?
उत्तर—संसार की विचित्रता का चिन्तवन कर महाराजा प्रजापति को वैराग्य हो गया और उन्होंने पिहितास्रव मुनि के पास जाकर दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ४६—मुनिराज प्रजापति ने किस प्रकार का तपश्चरण कर कौन से पद को प्राप्त किया?
उत्तर—मुनिराज ने घोर तपश्चरण कर प्रथम घातिया कर्मों का नाश कर केवलज्ञान एवं शेष चार अघातिया कर्मों का नाशकर मोक्षसुख को प्राप्त कर लिया।
प्रश्न ४७—महाराज ज्वलनजटी को कैसे वैराग्य हुआ ?
उत्तर—महाराजा प्रजापति के वैराग्य, दीक्षा व मोक्ष का समाचार जानकर उन्हें भी वैराग्य हो गया।
प्रश्न ४८—उन्होंने कौन से मुनिराज से दीक्षा धारण की और क्या पदवी प्राप्त की ?
उत्तर—उन्होंने अर्ककीर्ति को राज्य देकर जगन्नन्दन मुनि से दीक्षा ली और क्रमश: अष्ट कर्मों का नाश कर मोक्षसुख को प्राप्त कर लिया।
प्रश्न ४९—त्रिपृष्ट नारायण ने अपने पुत्र एवं पुत्री का विवाह कहाँ किया ?
उत्तर—त्रिपृष्ट नारायण ने अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज के साथ अपनी ज्योतिप्रभा नामक कन्या का विवाह किया तथा अर्ककीर्ति की पुत्री सुतारा को अपने पुत्र श्रीविजय की अर्धान्गिनी बना दिया।
प्रश्न ५०—त्रिपृष्ट नारायण अंत में मरकर कहाँ गया ?
उत्तर—त्रिपृष्ट नारायण अंत में मरकर सातवें नरक में गया।
प्रश्न ५१—बलभद्र विजय ने क्या किया ?
उत्तर—विजय बलभद्र ने राज्यभार श्रीविजय को एवं युवराज पद विजयभद्र को देकर सुवर्णकुम्भ मुनिराज से दीक्षा लेकर घोर तपश्चरण किया और अनगार केवली का पद प्राप्त किया।
प्रश्न ५२—महाराजा अर्ककीर्ति को वैराग्य कैसे हुआ ?
उत्तर—महाराजा अर्ककीर्ति को बलभद्र विजय के केवलीपद का समाचार सुनकर वैराग्य हुआ।
प्रश्न ५३—उन्होंने किनसे दीक्षा ली और किस पद को प्राप्त किया ?
उत्तर—उन्होंने विपुलमति नामक चारण मुनि से दीक्षा प्राप्त कर मुक्तिरूपी स्त्री को प्राप्त किया।
प्रश्न ५४—श्रीविजय के दरबार में किसने आकर क्या बताया ?
उत्तर—राजा श्रीविजय के दरबार में आकर कुण्डलपुर नगर के पुरोहित सुरगुरु के शिष्य ने यह बताया कि आज से सातवें दिन पोदनपुर के राजा के मस्तक पर वज्रपात होगा इसलिए इसका निवारण कीजिए।
प्रश्न ५५—राजा श्रीविजय ने उसका निवारण किस प्रकार किया ?
उत्तर—राजा श्रीविजय ने सिंहासन पर एक यक्ष का प्रतिबिम्ब स्थापित कर दिया और स्वयं भोगोपभोग सामग्री छोड़कर चैत्यालय में जाकर श्रीजिनबिम्ब की महापूजा की सुपात्रों को दान दिया, दीनों और अनाथों को करुणादान दिया तथा प्रतिदिन विघ्नों को दूर करने वाले धर्मध्यान में तत्पर रहने लगा।
प्रश्न ५६— सिंहासन पर यक्ष को विराजमान करने की सलाह राजा को किसने दी ?
उत्तर—मतिसागर नामक मन्त्री ने राजा को यह सलाह दी।
प्रश्न ५७—इसका प्रतिफल क्या निकला ?
उत्तर—धर्मसेवन के प्रभाव से सातवें दिन उस राज्यसिंहासन पर बैठी हुई यक्ष प्रतिमा के मस्तक पर अकस्मात् भीषण शब्द करता हुआ निष्ठुर प्रहार हुआ और राजा श्रीविजय बच गया। सभी मंत्रियों ने राजा का पुन: अभिषेक कर उन्हें राज्यसिंहासन पर आरुढ़ किया।
प्रश्न ५८—अष्टांग निमित्त कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—अन्तरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, व्यञ्जन, लक्षण, छिन्न एवं स्वप्न ये आठ निमित्त कहलाते हैं।
प्रश्न ५९—पाँच प्रकार के ज्योतिषी कौन से हैं ?
उत्तर—चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे ये पाँच प्रकार के ज्योतिषी हैं।
प्रश्न ६०—‘अन्तरिक्ष’ नामक निमित्तशास्त्र का अर्थ क्या है ?
उत्तर—पाँच प्रकार के ज्योतिषियों के उदय—अस्त से हार-जीत, वृद्धि—हानि, जीवन—मरण, हानि—लाभ, सुभिक्ष—दुर्भिक्ष, शुभ—अशुभ आदि अनेक बातों का कहना ‘अन्तरिक्ष’ नाम का निमित्तज्ञान है।
प्रश्न ६१—‘भौम’ नामक निमित्तज्ञान का अर्थ बताइए ?
उत्तर—पृथ्वी के स्थानों के भेदों को जानकर हानि—वृद्धि का ज्ञान करना तथा पृथ्वी के भीतर के रत्न आदि का निश्चय करना भौम नाम का निमित्तज्ञान कहलाता है।
प्रश्न ६२—‘अंग’, नामक निमित्तशास्त्र क्या कहता है ?
उत्तर—उंग—उपांगों को स्पर्श कर या देखकर जीवों के जीवन—मरण, रोग—आरोग्य, सुख—दु:ख आदि अंग एवं तीनों कालों में उत्पन्न हुए शुभ—अशुभों का निरूपण करना ‘अंग’ नामक निमित्तशास्त्र है।
प्रश्न ६३—‘स्वर’ नामक निमित्तशास्त्र क्या है ?
उत्तर—भेरी, मृदंग, वीणा आदि के शुभ—अशुभ स्वरों से तथा गर्दभ, पक्षी, हाथी आदि के स्वाभाविक सुस्वर—दु:स्वरों से प्राणियों के सब तरह के इष्ट—अनिष्टों को जान सकता है।
प्रश्न ६४—‘व्यञ्जन’ नामक निमित्तशास्त्र क्या कहता है ?
उत्तर—मस्तक मुख आदि में उत्पन्न हुए तिल—चिन्ह—घाव आदि से लक्ष्मी, स्थान, मान, लाभ—हानि आदि का जानना ‘व्यञ्जन’ नाम का निमित्तज्ञान कहलाता है।
प्रश्न ६५—‘लक्षण’ नाम का निमित्तज्ञान क्या है ?
उत्तर—श्रीवृक्ष, स्वस्तिक आदि शरीर पर उत्पन्न हुए एक सौ आठ लक्षणों से भोग—ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति का कथन करना ‘लक्षण’ नाम का निमित्तज्ञान है।
प्रश्न ६६—‘छिन्न’ निमित्तज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर—देव, मनुष्य तथा राक्षसों के भेद से वस्त्र, शास्त्र आदि में चूहे आदि के द्वारा छेद करने पर उसका फल कहना ‘छिन्न’ नाम का निमित्तज्ञान है।
प्रश्न ६७—‘स्वप्न’ नाम का निमित्तशास्त्र क्या कहता है ?
उत्तर—शुभ तथा अशुभ के भेद से स्वप्न दो प्रकार के हैं उन्हें सुनकर मनुष्यों को उनके फलाफल आदि का यथार्थ कथन करना ‘स्वप्न’ नाम का निमित्तज्ञान है।
प्रश्न ६८—राजा श्रीविजय ने अपनी माता के कहने से कार्यसिद्धि हेतु कौन सी विद्या सिद्ध की ?
उत्तर—आकाशगामिनी विद्या।
प्रश्न ६९—विद्या की सहायता से वह रानी सुतारा के साथ कहाँ गया ?
उत्तर—विद्या की सहायता से वह रानी सुतारा के साथ विमान में बैठकर क्रीड़ा करने के लिए ज्योतिर्वन गया।
प्रश्न ७०—रानी सुतारा का हरण किसने किया ?
उत्तर—रानी सुतारा का हरण चमरचञ्च नगर के विद्याधर राजा इन्द्राशनि के पुत्र अशनिघोष ने किया।
प्रश्न ७१—अशनिघोष ने रानी सुतारा का हरण किस प्रकार किया ?
उत्तर—रानी सुतारा के हरण हेतु अशनिघोष ने श्रीविजय को एक बनावटी हिरण दिखाया, श्रीविजय उस हिरण के पीछे गया तब अशनिघोष ने विद्या के प्रभाव से श्रीविजय का रूप बनाकर सुतारा को विमान में बिठा लिया और हरण करके ले गया।
प्रश्न ७२—रानी के न मिलने पर राजा श्रीविजय ने क्या किया ?
उत्तर—रानी सुतारा के न मिलने पर राजा श्रीविजय ने उसे ढूंढा वहां बैताली विद्या सुतारा का रूप धरकर खेदखिन्न बैठी मिली और स्वयं को सर्प द्वारा डसा बताकर मरणतुल्य हो गयी तब श्रीविजय भी उसके साथ मरने के लिए तैयार हो गया उसने लकड़ी की चिता बनाई और रानी के साथ उसमें बैठ गया।
प्रश्न ७३—उस समय राजा की रक्षा किसने और किस प्रकार की ?
उत्तर—उस समय उनकी रक्षा विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के सुन्दर नगर के राजा सम्भिन्न एवं उनके पुत्र द्वीपशिख ने की, उन्होंने विच्छेदिनी विद्या के बल से उस बैताली विद्या को मार भगाया और बैताली विद्या राजा को अपना असली रूप दिखाकर अदृश्य हो गयी।
प्रश्न ७४—रानी सुतारा का पता किसने बताया ?
उत्तर—रानी सुतारा का पता दोनों विद्याधरों ने बताया”
प्रश्न ७५—राजा श्रीविजय ने रानी सुतारा को किस प्रकार मुक्त कराया ?
उत्तर—राजा श्रीविजय ने राजा अमिततेज के पुत्र एवं सेना के साथ मिलकर राजा अशनिघोष से युद्ध किया, युद्ध में भ्रामरी विद्या का प्रयोग करके जब अशनि़घोष युद्ध करने लगा तब अमिततेज विद्याधर ने ‘महाज्वाला’ विद्या की सिद्धि कर उसका प्रयोग किया जिससे वह भागकर श्री जिनेन्द्रदेव के समवसरण में पहुँच गया, वहाँ पहुँचकर सबका वैर शान्त हो गया और अशनिघोष की माता ने सुतारा को लाकर राजा श्रीविजय को सौंप दिया।
प्रश्न ७६—अमिततेज विद्याधर ने जिनेन्द्रदेव से क्या पूछा ?
उत्तर—उन्होंने श्रीजिनेन्द्रदेव से तत्त्वार्थों का मर्म जानने के लिए धर्म का स्वरूप पूछा।
प्रश्न ७७—मिथ्यात्व के कितने भेद हैं ?
उत्तर—मिथ्यात्व के ५ भेद हैं—एकान्त, विपरीत, वैनयिक, संशय एवं अज्ञान।
प्रश्न ७८—बारह प्रकार का असंयम कौन सा है ?
उत्तर—पांचों इन्द्रिय तथा मन इन छ: को वश में न करना एवं त्रस—स्थावर के भेद से छ: प्रकार के जीवों की रक्षा न करना यह बारह प्रकार का असंयम है।
प्रश्न ७९—पन्द्रह प्रमाद कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—चार विकथा, चार कषाय, पांच इन्द्रिय, स्नेह एवं निद्रा ये पन्द्रह प्रमाद कहलाते हैं।
प्रश्न ८०—प्रमाद किसे कहते हैं ?
उत्तर—व्रतों में मल अथवा दोष उत्पन्न करने वाली मन—वचन—काय की प्रवृत्ति को प्रमाद कहते हैं।
प्रश्न ८१—कषाय किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो आत्मा को कसें, दुख देवें वह कषाय कहलाती हैं।
प्रश्न ८२—कषाय के कितने भेद हैं ?
उत्तर—अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ ये १६ कषाय हैं।
प्रश्न ८३—ये १६ कषाय क्रम—२ से किसका घात करती हैं ?
उत्तर—अनन्तानुबन्धी क्रोधादि सम्यग्दर्शन का, अप्रत्याख्यानरणीय क्रोधादि अणुव्रतों का, प्रत्याख्यानावरण क्रोधादि सकल संयम का एवं संज्वलन क्रोधादि यथाख्यात चारित का घात करते हैं।
प्रश्न ८४—नव नोकषाय कौन सी हैं ?
उत्तर—हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद तथा नपुंसकवेद ये नव नोकषाय हैं।
प्रश्न ८५—पच्चीस कषाय कौन सी हैं ?
उत्तर—अनन्तानुबन्धी आदि १६ कषायें और नव नोकषाय ये कुल मिलाकर २५ कषाय हैं।
प्रश्न ८६—योग किसे कहते हैं ?
उत्तर—मन—वचन काय के द्वारा आत्मा के प्रदेशों का जो परिस्पंदन होता है उसको योग कहते हैं।
प्रश्न ८७—योग के कितने और कौन—२ से भेद हैं ?
उत्तर—योग के पन्द्रह भेद हैं— चार प्रकार का मनोयोग, चार प्रकार का वचनयोग एवं सात प्रकार का काययोग।
प्रश्न ८८—चार प्रकार का मनोयोग कौन सा है ?
उत्तर—सत्य मनोयोग, असत्यमनोयोग, उभयमनोयोग एवं अनुभय मनोयोग ये चार प्रकार के मनोयोग हैं।
प्रश्न ८९—चार प्रकार का वचन योग कौन सा है ?
उत्तर—सत्यवचनयोग, असत्य वचनयोग, उभयवचनयोग एवं अनुभय वचनयोग ये सदा शुभाशुभ के देने वाले चार प्रकार के वचन योग हैं।
प्रश्न ९०—सात प्रकार के काययोग कौन से हैं ?
उत्तर—औदारिक काययोग, औदारिक मिश्रकाययोग, वैक्रियक काययोग, वैक्रियक मिश्र काययोग, आहारक काययोग, आहारक मिश्र काययोग एवं कार्मण काययोग ये सात प्रकार के ‘काययोग’ कहलाते हैं।
प्रश्न ९१—इनमें से कौन से योग ग्रहण करने और कौन से त्याग करने लायक हैं ?
उत्तर—इनमें से सत्य मनोयोग, सत्यवचनयोग, असत्य वचनयोग, उभय मनोयोग एवं उभय वचनयोग पाप को उत्पन्न करने वाले व त्यागने योग्य हैं।
प्रश्न ९२—बन्ध के कितने और कौन—२ से कारण हैं ?
उत्तर—बन्ध के ५ कारण हैं—मिथ्यात्व, अविरति,प्रमाद, कषाय तथा योग।
प्रश्न ९३—उपशम सम्यग्दर्शन की प्राप्ति जीव को किस प्रकार होती है ?
उत्तर—किसी योग्य समय काललब्धि आदि को प्राप्त कर तथा सम्यग्दर्शन का घात करने वाली सातों प्रकृतियों का उपशम कर सुमार्ग को दिखाने वाला उपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है ।
प्रश्न ९४—अप्रत्याख्यानावरण रूपी पाप कर्म के क्षयोपशम से किसकी प्राप्ति होती है ?
उत्तर—अप्रत्याख्यानावरण रूपी पापकर्म के क्षयोपशम से जीव बारह व्रतों को धारण करता है।
प्रश्न ९५—प्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम से क्या होता है ?
उत्तर—प्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम से जीव मुक्तिरूपी स्त्री को प्रसन्न करने वाले पूर्ण महाव्रतों को धारण करता है।
प्रश्न ९६—क्षायिक सम्यग्दर्शन कैसे प्राप्त होता है ?
उत्तर—सम्यग्दर्शन का घात करने वाली सातों प्रकृतियों का नाशकर यह जीव कर्मरूपी शत्रुओं का नाश करने वाला उत्तम एवं मोक्ष प्राप्त कराने में अति सक्षम क्षायिक सम्यग्दर्शन प्राप्त करता है।
प्रश्न ९७—अमिततेज विद्याधर ने जिनेन्द्र भगवान का उपदेश ग्रहण कर क्या धारण किया?
उत्तर—सम्यग्दर्शन एवं गृहस्थ धर्म के योग्य उत्तम व्रत।
प्रश्न ९८—उन्होंने भगवान से और क्या प्रश्न किया ?
उत्तर—उन्होंने भगवान से अपने पूर्व भव पूछे।
राजा श्रीषेण-प्रथम भव
प्रश्न ९९—धरणीजड़ ब्राह्मण कहाँ रहता था ?
उत्तर—जम्बूद्वीप के मंगलादेश की अलका नगरी में धरणीजड़ नामक ब्राह्मण रहता था।
प्रश्न १००—उसकी ब्राह्मणी का क्या नाम था ?
उत्तर—अग्रिला।
प्रश्न १०१—उसके कितने पुत्र थे ?
उत्तर—२ पुत्र थे—इन्द्रभूति, अग्निभूति।
प्रश्न १०२—कपिल किसका पुत्र था ?
उत्तर—कपिल धरणीजड़ ब्राह्मण एवं उसकी दासी का पुत्र था।
प्रश्न १०३—कपिल को वेद—वेदांग का ज्ञान कहां से हुआ ?
उत्तर—जब धरणीजड़ अपने दोनों पुत्रों को वेदादि पढ़ाता था तब कपिल भी उसे याद कर लेता था, कपिल के वेद पढ़ने के रहस्य को जानकर ब्राह्मण ने उसे घर से निकाल दिया किन्तु कपिल बाहर जाकर भी वेद—वेदांग का पारगामी हो गया।
प्रश्न १०४—रत्नसंचयपुर नगर कहाँ स्थित था और उसके राजा कौन थे ?
उत्तर—जम्बूद्वीप के मलय देश में रत्नसंचयपुर नगर है, उसके राजा का नाम श्रीषेण था।
प्रश्न १०५—राजा श्रीषेण की कितनी रानियाँ थीं ?
उत्तर—राजा श्रीषेण की दो रानियाँ थीं— सिंहनिन्दिता और अनिन्दिता।
प्रश्न १०६— सिंहनिन्दिता और अनिन्दिता के पुत्रों के क्या नाम थे ?
उत्तर—सिंहनिन्दिता के पुत्र का नाम इन्द्र और अनिन्दिता के पुत्र का नाम उपेन्द्र था।
प्रश्न १०७—दासीपुत्र कपिल का विवाह किसके साथ हुआ ?
उत्तर—दासीपुत्र कपिल का विवाह रत्नसंचयपुर के ब्राह्मण सात्यकी की पुत्री सत्यभामा के साथ हुआ।
प्रश्न १०८—सत्यभामा को उसके दासी पुत्र होने का पता किस प्रकार चला ?
उत्तर—रात्रि में कपिल की नीच चेष्टाओं को देखकर तथा धरणीजड़ ब्राह्मण को बहुत सा धन देकर विनयपूर्वक कपिल के कुल के बारे में पता कर लिया।
प्रश्न १०९—कपिल के दासीपुत्र होने के बारे में जानकर राजा ने क्या किया ?
उत्तर—राजा ने कपिल को गधे पर चढ़वाकर अपने राज्य से बाहर कर दिया।
प्रश्न ११०—सत्यभामा कहां रहने लगी ?
उत्तर—शीलव्रती सत्यभामा राजमहल में सुखपूर्वक रहने लगी।
प्रश्न १११—राजा श्रीषेण के राजमहल में आहारदान हेतु कौन से दो मुनिराज पधारे?
उत्तर—राजा श्रीषेण के राजमहल में अमितगति एवं अरिञ्जय नाम के दो आकाशगामी मुनिराज पधारे।
प्रश्न ११२—नौ प्रकार की भक्ति कौन सी हैं ?
उत्तर—पड़गाहन, उच्चासन, पादप्रक्षाल, पूजन, नमस्कार, मनशुद्धि, वचनशुद्धि, कायशुद्धि और आहार शुद्धि ये नव प्रकार की भक्ति कहलाती हैं।
प्रश्न ११३—दाता के सात गुण कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—श्रद्धा, शक्ति, निर्लोभ, भक्ति, ज्ञान, दया तथा क्षमा ये दाता के सात गुण हैं।
प्रश्न ११४—श्रेष्ठ आहार कौन सा है ?
उत्तर—जो विशुद्ध हो, प्रासुक हो, मिष्ट हो, कृत—कारित आदि दोषों से रहित हो, मनोज्ञ हो, छहों रसों से परिपूर्ण हो एवं ध्यान—अध्ययन आदि को बढ़ाने वाला हो उसे श्रेष्ठ आहार कहते हैं।
प्रश्न ११५—कौशाम्बी नगरी के राजा का क्या नाम था ?
उत्तर—राजा महाबल”
प्रश्न ११६—उनकी रानी का क्या नाम था ?
उत्तर—रानी श्रीमती।
प्रश्न ११७—रानी श्रीमती की पुत्री का क्या नाम था, उसका विवाह किसके साथ हुआ ?
उत्तर—रानी श्रीमती की श्रीकान्ता नाम की पुत्री थी जिसका विवाह राजा श्रीषेण और रानी सिंहनिन्दिता के पुत्र इन्द्र के साथ हुआ।
प्रश्न ११८—राजा महाबल ने अपनी पुत्री को भेंटस्वरूप क्या दिया ?
उत्तर—राजा महाबल ने अनन्तमती नामक रूपवती विलासिनी को स्नेहस्वरूप श्रीकान्ता को भेंट किया।
प्रश्न ११९—उसके कारण इन्द्र और उपेन्द्र का आपसी व्यवहार कैसा हो गया ?
उत्तर—अनन्तमती रूपवान उपेन्द्र पर आसक्त हो उसके साथ काम,भोग आदि करके भ्रष्ट हो गई और इसके लिए दोनों भाई परस्पर युद्ध करने लगे।
प्रश्न १२०—इन बातों का राजा श्रीषेण पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर—राजा श्रीषेण को अपनी आज्ञा भंग होने का बहुत दुख हुआ तथा पापकर्म के उदय से वह विषफल को सूंघकर मर गया।
भोगभूमिज आर्य – द्वितीय भव
प्रश्न १२१—राजा श्रीषेण मरकर कहाँ उत्पन्न हुआ ?
उत्तर—राजा श्रीषेण मरकर धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व मेरु के उत्तर दिशा की ओर उत्तरकुरु भोगभूमि में आर्य हुआ।
प्रश्न १२२— सिंहनिन्दिता रानी किस प्रकार मरी और कहाँ उत्पन्न हुई ?
उत्तर—रानी सिंहनिन्दिता भी उसी विषफल को सूंघकर मरी और दान के प्रभाव से उसी भोगभूमि में आर्या हुई।
प्रश्न १२३—रानी अनिन्दिता किस प्रकार मरण कर कहाँ उत्पन्न हुई ?
उत्तर—रानी की मृत्यु भी विषफल द्वारा हुई और वह भी दान के प्रभाव से स्त्रीलिंग छेदकर उसी भोगभूमि में आर्य हुई।
प्रश्न १२४—सत्यभामा मरकर कहाँ गई ?
उत्तर—सत्यभामा ब्राह्मणी भी प्राणों को त्यागकर धर्म के प्रभाव से उस अनिन्दिता के यहाँ आर्या हुई।
प्रश्न १२५—इन्द्र और उपेन्द्र के युद्ध का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर—युद्ध करते हुए इन्द्र और उपेन्द्र को पूर्व जन्म के स्नेह के कारण मणिकुण्डल विद्याधर ने आकर सम्बोधित किया और युद्ध से विरत किया।
प्रश्न १२६—उसने उन्हें युद्ध से किस प्रकार विरत किया ?
उत्तर—पूर्व भव का वर्णन करके उसने उन्हें युद्ध से विरत किया।
प्रश्न १२७—मणिकुण्डल विद्याधर कहाँ से आया था ?
उत्तर—मणिकुण्डल विद्याधर धातकीखण्ड में पूर्व मेरू सम्बन्धी पूर्व विदेह की पुष्कलावती देश की दक्षिण श्रेणी के आदित्याभनगर के राजा सुकुण्डली एवं रानी अमितसेना का पुत्र था और पुण्डरीकिणी नगरी में अतिप्रभ नामक केवली के समवसरण से आया था।
प्रश्न १२८—मणिकुण्डल का इन्द्र—उपेन्द्र से पूर्व जन्म का क्या सम्बन्ध था ?
उत्तर—इन्द्र और उपेन्द्र पूर्व जन्म में मणिकुण्डल के पुत्र थे और वह उनकी माता कनकमाला था।
प्रश्न १२९—कनकमाला किस राज्य के राजा की रानी थी ?
उत्तर—कनकमाला पुष्करद्वीप में विदेहक्षेत्र की वीतशोका नगरी के चक्रायुध राजा की रानी थी।
प्रश्न १३०—इन्द्र और उपेन्द्र पूर्व जन्म में किस पर्याय में थे ?
उत्तर—इन्द्र और उपेन्द्र पूर्वजन्म में उन राजा के कनकलता और पद्मलता नाम की दो पुत्रियां थीं।
प्रश्न १३१—अनन्तमती से इन्द्र व उपेन्द्र का पूर्वजन्म में क्या सम्बन्ध था ?
उत्तर—अनन्तमती पूर्व जन्म में राजा चक्रायुध की दूसरी विद्वन्मती रानी की पद्मावती नाम की पुत्री थी, जो पुण्योदय के प्रभाव से सौधर्म स्वर्ग में अप्सरा हुई और वहाँ से च्युत हो अनन्तमती विलासिनी हुई।
प्रश्न १३२—रानी कनकमाला आदि ने किस प्रकार स्त्रीलिंग का विनाश किया ?
उत्तर—कनकमाला ने अपनी दोनों पुत्रियों के साथ गणिनी आर्यिका श्री अमितसेना के पास जाकर सम्यग्दर्शन एवं गृहस्थों के व्रत अंगीकार किये जिसके फलस्वरूप वे सौधर्म स्वर्ग में देव हुए पुन: मणिकुण्डल विद्याधर तथा इन्द्र उपेन्द्र हुए।
प्रश्न १३३—मणिकुण्डल के द्वारा सम्बोधन पाकर दोनों भाइयों ने क्या किया ?
उत्तर—दोनों ने अपनी निन्दा कर सुधर्म मुनिराज के पास जाकर दीक्षा लेकर घोर तपश्चर्या की और मोक्ष को प्राप्त किया।
प्रश्न १३४—अनन्तमती मरणकर कहाँ गई ?
उत्तर—अनन्तमती भी श्राविका के सम्पूर्ण व्रतों को धारण कर स्वर्ग में उत्पन्न हुई।
प्रश्न १३५—कल्पवृक्ष कितने प्रकार के होते हैं, उनके नाम बताइये ?
उत्तर—कल्पवृक्ष १० प्रकार के होते हैं—१. मद्यांग, २. तूर्यांग, ३. भूषणांग, ४. मालांग, ५. दीपांग, ६. ज्योतिरंग, ७. गृहांग, ८. भोजनांग, ९. पात्रांग, १०. वस्त्रांग।
प्रश्न १३६—मद्यांग कल्पवृक्ष क्या प्रदान करता है ?
उत्तर—मद्यांग जाति के वृक्ष मधु, मैरेय, सीधु, अरिष्ट, आस्रव आदि सुगन्धित तथा अमृत के समान अनेक प्रकार के रसों को देते हैं।
प्रश्न १३७—इन्हें मद्य संज्ञा क्यों दी ?
उत्तर—यह मद्य—शराब नहीं है किन्तु इसमें कामोद्दीन की सामार्थ्य है इसलिए इसे उपचार से मद्य कहते हैं।
प्रश्न १३८—तूर्यांग कल्पवृक्ष क्या देता है ?
उत्तर—भेरी, नगाड़े, घण्टा, शंख, मृदंग, झल्लरी, तालकाहला आदि वाद्य यन्त्र देते हैं।
प्रश्न १३९—भूषणांग कल्पवृक्ष क्या देते हैं ?
उत्तर—भूषणांग जाति के वृक्ष हार, केयूर, नूपुर, कुण्डल, करधनी, कंकण तथा मुकुट आदि आभूषण देते हैं।
प्रश्न १४०—मालांग कल्पवृक्ष क्या देते हैं ?
उत्तर—नागकेसर, चम्पा आदि सब ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले फूलों की अनेक प्रकार की मालाएँ देते हैं।
प्रश्न १४१—दीपांग जाति के कल्पवृक्ष क्या देते हैं ?
उत्तर—ये वृक्ष प्रतिदिन मणिमय दीपों से शोभायमान होते हैं एवं नये पत्तों, फूलों—फलों से जलते हुए दीपकों के समान जान पड़ते हैं।
प्रश्न १४२—ज्योतिराङ्ग कल्पवृक्ष क्या देते हैं ?
उत्तर—ये वृक्ष सदा देदीप्यमान होते हुए प्रकाश प्रदान करते हैं एवं करोड़ों सूर्यों के समान सब दिशाओं को प्रकाशित करते रहते हैं।
प्रश्न १४३—गृहांग कल्पवृक्ष क्या देते हैं ?
उत्तर—गृहांग जाति के वृक्ष मण्डप, ऊँचे—२ राजभवन, राजदरबार, चित्रशाला, नृत्यशाला आदि देने में समर्थ होते हैं।
प्रश्न १४४—भोजनांग जाति के कल्पवृक्ष क्या देते हैं ?
उत्तर—भोजनांग जाति के वृक्ष अमृत के समान स्वादिष्ट, पौष्टिक एवं छहों रसों से भरपूर भोजन आदि सुन्दर आहार देते हैं।
प्रश्न १४५—आहार कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर—आहार चार प्रकार का होता है—अशन, पान, खाद्य और सद्य।
प्रश्न १४६—रस कितने प्रकार के और कौन—२ से हैं ?
उत्तर—रस छ: होते हैं—कड़वा,कषायला,चरपरा,मीठा,खट्टा एवं नमकीन।
प्रश्न १४७—पात्रांग कल्पवृक्ष क्या करते हैं ?
उत्तर—पात्रांग जाति के वृक्ष सोने एवं रत्नों से बने हुए भृंगार, कचक्र, कलशा, थाली, करवा आदि बर्तन दिया करते हैं।
प्रश्न १४८—वस्त्रांग कल्पवृक्ष क्या देते हैं ?
उत्तर—वस्त्रांग जाति के वृक्ष कोमल, बारीक एवं बहुमूल्य रेशमी दुपट्टा एवं पहनने के लिए कपड़े देते हैं।
प्रश्न १४९—ये कल्पवृक्ष किस प्रकार के हैं ?
उत्तर—ये कल्पवृक्ष न तो वनस्पति हैं, न ही देवों द्वारा निर्मित हैं, ये पृथ्वीकायिक हैं,अनादिनिधन हैं तथा स्वभाव से ही फल देने वाले हैं।
प्रश्न १५०—भोगभूमि की पृथ्वी कैसी है ?
उत्तर—भोगभूमि में मूंगा, सोना, हीरा, चन्द्रमा एवं नीलरत्न आदि से सुशोभित रहने वाली पाँचों रंग की सुगन्धित पृथ्वी है।
प्रश्न १५१—वहाँ प्राणी किस प्रकार से जन्म लेता है और क्या पान करता है ?
उत्तर—वहाँ पर उत्पन्न होने के बाद प्राणी सात दिन तक अपना मुंह ऊपर को किए हुए पड़े रहते हैं एवं अपने अंगूठे से उत्पन्न दिव्य रस का पान किया करते हैं। वे गर्भ में भी नौ महीने तक रत्नों से बने हुए घर के सामन रहते हैं फिर सुख से उत्पन्न होते हैं, उनका जन्म युगलिया होता है।
प्रश्न १५२—वे किस प्रकार वृद्धि को प्राप्त करते हैं ?
उत्तर—वे सात दिनों तक पृथ्वी पर रेंकते हैं, तीसरे सप्ताह में उठ खड़े होते हैं, मीठे शब्द करते हैं, चौथे सप्ताह में पैरों को स्थिर रखते हैं, पांचवें सप्ताह में कला, ज्ञान आदि गुणों से पूर्ण हो जाते हैं छठवें सप्ताह में पूर्ण यौवन प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न १५३—उनकी मृत्यु किस प्रकार होती है ?
उत्तर—युगलिया के जन्म के बाद माता को छींक आकर और पिता को जम्भाई आकर उनकी मृत्यु हो जाती है।
प्रश्न १५४—उनकी आयु कितनी होती है ?
उत्तर—उनकी आयु तीन पल्य की होती है।
प्रश्न १५५—भोगभूमि के जीव मरकर कहाँ जाते हैं ?
उत्तर—भोगभूमि में उत्पन्न होने वाले सब आर्य पात्र दान से उत्पन्न महासुखों का उपभोग कर मन्द कषाय रूप भावों से मरकर स्वर्ग जाते हैं।
श्रीप्रभदेव – तृतीय भव
प्रश्न १५६—श्रीषेण का जीव आर्य मरकर कहाँ जन्मा ?
उत्तर—श्रीषेण का जीव मरकर सौधर्म स्वर्ग के श्रीनिलय विमान में श्रीप्रभ नामक देव हुआ।
प्रश्न १५७— सिंहनिन्दिता का जीव मरकर कहाँ गया ?
उत्तर— सिंहनिन्दता का जीव मरकर उसी स्वर्ग के उसी विमान में विद्युत्प्रभा नाम की देवी हुई।
प्रश्न १५८—अनिन्दिता का जीव मरकर कहाँ गया ?
उत्तर—अनिन्दिता का जीव उसी सौधर्म स्वर्ग में विमलप्रभ नाम का देव हुआ।
प्रश्न १५९—सत्यभामा ब्राह्मणी का जीव मरकर कहाँ गया ?
उत्तर—सत्यभामा ब्राह्मणी का जीव उसी विमान में शुक्लप्रभा नाम की देवी हुई।
प्रश्न १६०—उन चारों जीवों की आयु कितनी थी ?
उत्तर—पाँच पल्य।
प्रश्न १६१—श्रीप्रभ देव आयु पूर्ण कर कहाँ गया ?
उत्तर—श्रीप्रभ देव मरकर अर्ककीर्ति के राजा का अमिततेज नामक पुत्र हुआ।
प्रश्न १६२—रानी सिंहनिन्दिता का जीव विद्युत्प्रभा देवी मरकर कहाँ जन्मी ?
उत्तर—राजा अमिततेज की रानी ज्योतिप्रभा हुई।
प्रश्न १६३—सत्यभामा ब्राह्मणी का जीव शुक्लप्रभा देवी कहां जन्मीं ?
उत्तर—वह सुतारा के रूप में जन्मीं।
प्रश्न १६४—विमलप्रभ देव स्वर्ग से चयकर कहां जन्मा ?
उत्तर—राजा श्रीविजय के रूप में जन्मा।
प्रश्न १६५—कपिल ब्राह्मण का जीव मरकर कहाँ जन्मा ?
उत्तर—कपिल ब्राह्मण का जीव रथभूतरमण वन में कौशिक तपस्वी का मृगशृंङ्ग नाम का पुत्र हुआ। पुन: अशनिधर विद्याधर हुआ।
विद्याधर अमिततेज – चतुर्थ भव
प्रश्न १६६—नौ भव पूर्व भगवान शान्तिनाथ किस पर्याय में थे ?
उत्तर—राजा अमिततेज के रूप में थे।
प्रश्न १६७—माता आसुरी ने उनके पूर्व भवों को जानकर क्या किया ?
उत्तर—माता आसुरी ने भगवान के वचनानुसार कर्मों का नाश करने वाली जिनदीक्षा ग्रहण कर ली।
प्रश्न १६८—श्रीविजय की माता ने क्या किया ?
उत्तर—श्रीविजय राजा की स्वयंप्रभा माता ने दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न १६९—रानी सुतारा ने क्या किया ?
उत्तर—रानी सुतारा भी वैराग्य भाव धारण कर कर्मों का नाश करने वाला तपश्चरण करने लगी।
प्रश्न १७०—अमिततेज विद्याधर के घर आहारार्थ कौन से मुनि पधारे ?
उत्तर—दमवर नामक चारणऋद्धिधारी मुनि पधारे।
प्रश्न १७१—क्या राजा ने उन्हें आहारदान दिया ?
उत्तर—हाँ, राजा ने बड़ी भक्ति से मुनि को पड़गाहन कर मधुर आहारदान दिया।
प्रश्न १७२—उस आहारदान का क्या फल निकला ?
उत्तर—उस दान के फल राजा के घर में पंचाश्चर्य प्रकट हो गए।
प्रश्न १७३—राजा अमिततेज एवं श्रीविजय धर्मोपदेश सुनने के लिए कौन से मुनिराज के पास गए ?
उत्तर—अमरगुरु एवं देवगुरु मुनिराज के पास।
प्रश्न १७४—राजा अमिततेज एवं श्रीविजय को कौन से मुनिराज से अपनी १ माह की आयु ज्ञात हुई ?
उत्तर—श्री विपुलमति एवं विमलमति मुनिराज से।
प्रश्न १७५—अपनी एक माह की आयु जानकर दोनों ने क्या किया ?
उत्तर—राजा अमिततेज ने अपने पुत्र अर्कतेज को एवं श्रीविजय ने अपने पुत्र श्रीदत्त को राज्य दे दिया और स्वयं आष्टाह्निक महापूजा करके चन्दन नामक वन में नन्दन मुनि से जिनमुद्रा धारण कर ली और जीवनपर्यन्त आहार का त्यागकर धर्मध्यान में लीन हो गए।
रविचूल देव – पांचवां भव
प्रश्न १७६—अमिततेज मुनिराज प्राणों का त्याग कर कहाँ जन्में ?
उत्तर—अमिततेज विद्याधर प्रायोपगमन सन्यास धारण कर प्राण त्यागकर आनत स्वर्ग के नन्द्यावर्त विमान में ऋद्धिधारी रविचूल नाम के देव हुए।
प्रश्न १७७—राजा श्रीविजय का जीव मरकर कहां गया ?
उत्तर—श्रीविजय भी सन्यास विधि से प्राण त्याग कर उसी स्वर्ग के स्वस्तिक विमान में मणिचूल नाम के देव हुए।
प्रश्न १७८—वहाँ के जिनमन्दिर कितने योजन प्रमाण हैं ?
उत्तर—वहाँ के जिनमन्दिर १०० योजन लम्बे, ५० योजन चौड़े तथा पचहत्तर योजन ऊँचे हैं।
प्रश्न १७९—उनका शरीर कितने हाथ का था ?
उत्तर—साढ़े तीन हाथ का।
प्रश्न १८०—उनकी आयु कितनी थी ?
उत्तर—बीस हजार वर्ष”
प्रश्न १८१—वे मानसिक आहार कब लेते थे ?
उत्तर—एक हजार वर्ष बाद।
प्रश्न १८२—वे कितने पक्ष के बाद उच्छ्वास लेते थे ?
उत्तर—बीस पक्ष के बाद।
अपराजित बलभद्र – छठां भव
प्रश्न १८३—प्रभाकरी नगरी कहाँ स्थित है ?
उत्तर—जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में वत्सकावती नाम का मनोहर नगर है, वहीं प्रभाकरी नगरी है।
प्रश्न १८४—उसका व्यास कितना है ?
उत्तर—वह नगरी १२ योजन लम्बी एवं ९ योजन चौड़ी है।
प्रश्न १८५—उस नगरी के राजा—रानी का क्या नाम था ?
उत्तर—राजा स्तमितसागर एवं रानी वसुन्धरा।
प्रश्न १८६—रविचूल देव का जीव स्वर्ग से चयकर कहां जन्मा ?
उत्तर—रविचूल नामक देव स्वर्ग से चयकर अपराजित नाम का पुत्र हुआ।
प्रश्न १८७—मणिचूल देव का जीव स्वर्ग से चयकर कहाँ जन्मा ?
उत्तर—मणिचूल देश उसी राजा की दूसरी रानी अनुमती से अनन्तवीर्य नाम का पुत्र हुआ।
प्रश्न १८८—उन दोनों का कौन सा पद प्राप्त था ?
उत्तर—उन्हें क्रमश: नारायण व बलभद्र का पद प्राप्त था।
प्रश्न १८९—राजा स्तमितसागर ने पुत्रों को युवा देखकर क्या किया ?
उत्तर—उन्होंने पुत्रों को योग्य जानकर अपराजित को राजा बना दिया तथा अनन्तवीर्य को युवराज बना दिया और स्वयं स्वयंप्रभ तीर्थंकर के समवसरण में जाकर दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न १९०—दीक्षा के पश्चात् उसने क्या देखकर क्या निदान किया ?
उत्तर—स्तमितसागर मुनि ने एक दिन धरणेन्द्र की विभूति को देखकर वैसा ही निदान कर लिया और बड़ी ऋद्धि के पद को नष्ट कर सामान्य भोग प्रदान करने वाले धरणेन्द्र पद को प्राप्त किया।
प्रश्न १९१—उन नारायण व बलभद्र के यहाँ कौन सी दो रूपवती नर्तकियाँ थीं ?
उत्तर—बर्बरी एवं चिलातिका।
प्रश्न १९२—नृत्य देखते समय अचानक क्या घटना हुई ?
उत्तर—नारायण एवं बलभद्र नृत्य में लीन थे तभी नरकगामी, क्रूर नारद वहां आए और स्वयं के योग्य आदर—सत्कार न पाकर क्रोधित हो बदला लेने का निश्चय किया।
प्रश्न १९३—उसने बदला किस प्रकार से लिया ?
उत्तर—कलहप्रिय नारद सभा से निकलकर शिवमन्दिर नगर में पहुँचा और राजा दमितारि से दोनों अप्सराओं की सुन्दरता का वर्णन कर उन्हें दमितारि के राज्य का शोभा बनाने को कहा और युद्ध में तत्पर कर दिया।
प्रश्न १९४—राजा दमितारि ने नर्तकियों की प्राप्ति हेतु क्या किया ?
उत्तर—उसने अपना दूत अपराजित एवं अनन्तवीर्य के पास भेजा।
प्रश्न १९५—राजा अपराजित एवं अनन्तवीर्य ने क्या किया ?
उत्तर—दोनों ने राज्य का भार मन्त्रियों को सौंपकर स्वयं नर्तकियों का भेष धारण किया और शिवमन्दिर में जाकर राजा दमितारि को प्रसन्न किया।
प्रश्न १९६—राजा दमितारि ने उन्हें किस कार्य में नियुक्त किया ?
उत्तर—राजा दमितारि ने उनको अपनी पुत्री कनकश्री को नृत्यकला सिखाने हेतु नियुक्त किया।
प्रश्न १९७—कन्या कनकश्री नारायण अनन्तवीर्य में किस प्रकार आसक्त हुई और कहाँ गई ?
उत्तर—एक दिन दोनों भाइयों ने नारायण अनन्तवीर्य के गुणों से भरा गाथा काव्य सुनाया जिससे वह उसमें आसक्त हो गयी, पुन: अनन्तवीर्य के दर्शन की इच्छा प्रकट करने पर उन्होंने अपना असली रूप उन्हें दिखा दिया और नर्तकी के भेष में उसे आकाशमार्ग से ले उड़े।
प्रश्न १९८—कनकश्री के लुप्त होने पर राजा दमितारि ने क्या किया ?
उत्तर—राजा ने दूतों को पकड़ने के लिए अपने योद्धा भेजे किन्तु योद्धाओं को अपनी ओर आते देख बलभद्र ने नारायण को उस कन्या के साथ दूर भेज दिया और स्वयं युद्ध किया, तब दमितारि को बड़ा क्रोध आया और वह वहाँ आकर युद्ध करने लगा तब अनन्तवीर्य को भी क्रोध आ गया, दोनों में युद्ध हुआ, दमितारि ने अपना चक्ररत्न चला दिया पर चक्ररत्न अनन्तवीर्य की ३ प्रदक्षिणा कर उसी के हाथ पर आकर रुक गया और उसी चक्र ने दमितारि को मृत्युलोक पहुँचा दिया।
प्रश्न १९९—विमान से जाते हुए बलभद्र व नारायण के साथ क्या घटना घटी ?
उत्तर—उनका विमान अचानक रुक गया, ज्ञात करने पर उन्हें नीचे मानस्तम्भ एवं कीर्तिधर जिनेन्द्र का समवसरण दिखाई दिया अत: उन्होंने नीचे जाकर उनके दर्शन किए।
प्रश्न २००—र्कीतिधर जिनेन्द्र पूर्वावस्था में किसके पुत्र एवं किसके पिता थे ?
उत्तर—कीर्तिधर जिनेन्द्र शिवमन्दिर के राजा कनकपुंज की रानी जयदेवी के पुत्र एवं राजा दमितारि के पिता थे।
प्रश्न २०१—कनकश्री रानी ने र्कीतिधर जिनेन्द्र ने क्या पूछा ?
उत्तर—अपने पूर्व भव पूछे।
प्रश्न २०२—कीर्तिधर जिनेन्द्र ने उसे क्या बताया ?
उत्तर—कीर्तिधर जिनेन्द्र ने बताया कि पूर्व भव में वह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मनोहर शंख के देविल वैश्य की बन्धुश्री स्त्री से श्रीदत्ता नाम की पुत्री थी, उसकी दो बहरी, कुबड़ी,कानी और लंगड़ी बहनें थीं जिसका पालन-पोषण वह स्वयं करती थी। एक दिन उसने सर्वयश मुनिराज की वन्दना कर अहिन्साणुव्रत एवं श्रावक धर्म धारण किया,पुन: सुव्रता नामक गणिनी आर्यिका को आहारदान दिया किन्तु आर्यिका के वमन कर देने पर उसकी निन्दा की, व्रतों के पालन से वह सौधर्म स्वर्ग में सामानिक देवी हुई पुन: राजा दमितारि एवं रानी मन्दिरमालिनी नाम की देवी हुई।
प्रश्न २०३—अनन्तवीर्य नारायण के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—अनन्तसेन।
प्रश्न २०४—राजा दमितारि के पुत्रों एवं कनकश्री के भाइयों का क्या नाम था ?
उत्तर—सुघोष एवं विद्युन्दृष्ट।
प्रश्न २०५—अनन्तसेन एवं दमितारि के पुत्रों की लड़ाई किस प्रकार हुई ?
उत्तर—राजा दमितारि के पुत्र शिवमन्दिर नगर के बाहर आए तथा पिता के शत्रु को देख अनन्तसेन से लड़ने लगे,उस समय बलभद्र और नारायण ने आकर उसको मार गिराया।
प्रश्न २०६—भाइयों की मृत्यु का समाचार सुनकर कनकश्री ने क्या किया ?
उत्तर—भाइयों की मृत्यु का समाचार सुनकर कनकश्री भोगों की इच्छा त्यागकर वैराग्य को प्राप्त हुई तथा स्वयंप्रभ तीर्थंकर के समवसरण में पहुँचकर सुप्रभा नामक गणिनी से दीक्षा धारण कर कठिन तपश्चरण किया।
प्रश्न २०७—उस आयु को पूर्ण कर वह कहाँ जन्मीं ?
उत्तर—उस आयु को पूर्णकर वह सौधर्म स्वर्ग में उत्तम देव हुई।
प्रश्न २०८—राजा अपराजित की पुत्री और पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर—राज अपराजित की पत्नी का नाम रानी विजया और पुत्री का नाम सुमति था।
प्रश्न २०९—उसने कौन से मुनि को आहारदान दिया और उस दान का क्या फल निकला ?
उत्तर—उसने दमवर नामक चारण मुनि को यथायोग्य आहारदान दिया और दान के प्रभाव से उसके घर पंचाश्चर्य वृष्टि हुई।
प्रश्न २१०—यह सुनकर बलभद्र ने क्या किया ?
उत्तर—यह सुनकर पुण्यवान बलभद्र पुत्री को देखने के लिए आया और उसे युवा देखकर उसके स्वयंवर का आयोजन किया।
प्रश्न २११—स्वयंवर मण्डप में क्या घटना घटी ?
उत्तर—स्वयंवर मण्डप में एक सुन्दर देवी आकाशमार्ग से आई और उसे पूर्वभव का स्मरण कराकर वैराग्य उत्पन्न करवा दिया।
प्रश्न २१२—उस देवी एवं सुमति कन्या का पूर्व जन्म से क्या सम्बन्ध था ?
प्रश्न २१६—उसकी आयु कितने सागर थी ?
उत्तर—बीस सागर।
प्रश्न २१७—राजा अनन्तवीर्य मरकर कहां गया ?
उत्तर—राजा अनन्तवीर्य आरम्भ परिग्रह आदि अशुभ कर्मों का उपार्जन करने के कारण रौद्रध्यानपूर्वक मरकर नरक में गया।
प्रश्न २१८—नरक में कौन—कौन से ज्ञान होते हैं ?
उत्तर—कुमति, कुश्रुत, कुअवधिज्ञान।
प्रश्न २१९—उस नारकी को कैसी वेदना थी ?
उत्तर—उस नारकी को वहां असह्य वेदना थी जिसे केवली भगवान के अलावा और कोई नहीं बता सकता है।
प्रश्न २२०—अनन्तवीर्य के निधन होने पर बलभद्र ने क्या किया ?
उत्तर—अनन्तवीर्य के निधन पर बलभद्र अपराजित को गहरा दुख हुआ किन्तु संसार की विचित्रता जानकर संसार से विरक्त हो उसने राज्य अनन्तवीर्य के पुत्र अनन्तसेन को दे दिया और स्वयं यशोधर मुनिराज के पास जाकर दीक्षा धारण कर ली और कठोर तपश्चरण किया।
अच्युत स्वर्ग में इंद्र – सातवाँ भव
प्रश्न २२१—उस आयु को पूर्ण कर वे कहाँ जन्में ?
उत्तर—उस आयु को पूर्ण कर समाधिपूर्वक अपने प्राणों का त्याग कर वे अच्युत नामक सोलहवें स्वर्ग में अच्युतेन्द्र हुए।
प्रश्न २२२—उस देव का वैभव कैसा था ?
उत्तर—अच्युत स्वर्ग में अतुलनीय वैभव था, कल्पना मात्र से ही वहां भोगों की प्राप्ति हो जाती थी, यौवन सदा नवीन बना रहता था, समस्त ऋद्धियों का वहां भण्डार था और वे इन्द्र सदा वैराग्य भावना का चिन्तवन करते हुए अकृत्रिम चैत्यालयों की वन्दना किया करते थे।
प्रश्न २२३—उनका आहार कैसा था ?
उत्तर—बाईस हजार वर्ष पूर्ण होने पर वह अमृतमय उत्कृष्ट एवं तृप्तिदायक मानसिक आहार ग्रहण करता था।
प्रश्न २२४—अनन्तवीर्य के जीव को स्वयं में जाकर किसने सम्बोधित किया ?
उत्तर—राजा स्तमितसागर के जीव धरणेन्द्र देव ने।
प्रश्न २२५—पूर्ण धर्म की प्राप्ति कैसे होती है ?
उत्तर—मुनियों के व्रत पालन करने से।
प्रश्न २२६—एकदेश धर्म की प्राप्ति कैसे होती है ?
उत्तर—गृहस्थों के व्रत पालन करने से।
प्रश्न २२७—आगम किसे कहते हैं ?
उत्तर—संसार भर के समस्त तत्त्वों को प्रकट करने वाला जिनागम ही आगम है।
प्रश्न २२८—सच्चा स्नेह कौन सा है ?
उत्तर—धर्मात्माओं से प्रेम करने के अतिरिक्त अन्य कोई स्नेह नहीं है।
प्रश्न २२९—सच्चा सुख कहाँ है ?
उत्तर—मोक्ष में।
प्रश्न २३०—दान कौन सा श्रेष्ठ हैं ?
उत्तर—सुपात्र दान।
प्रश्न २३१—पूजा कौन सी उत्तम है ?
उत्तर—श्री जिनेन्द्रदेव की पूजा।
प्रश्न २३२—सात तत्व कौन से हैं ?
उत्तर—जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष।
प्रश्न २३३—नि:शंकित अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर—देव, गुरु, तत्व, धर्म आदि में शंका नहीं करना नि:शंकित अंग है।
प्रश्न २३४—नि:कांक्षित अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर—इहलोक एवं परलोक सम्बन्धी आकांक्षा नहीं करना नि:कांक्षित अंग है।
प्रश्न २३५—निर्विचिकित्सा अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर—मुनियों के शरीर को देखकर ग्लानि नहीं करना निर्विचिकित्सा अंग है।
प्रश्न २३६—अमूढ़दृष्टि अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर—देव, गुरु, धर्म, तत्व, दान तथा श्रीजिनेन्द्र देव के पूजन में दृढ़ श्रद्धान करना अमूढ़दृष्टि अंग है।
प्रश्न २३७—उपगूहन अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर—श्री जिनेन्द्र देव के पवित्र शासन में बालक या अशक्त लोगों से किसी प्रकार का दोष लग जाने पर उसे प्रकट न कर उसको छिपाना उपगूहन अंग है।
प्रश्न २३८—स्थितिकरण अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर—किसी के व्रत, चारित्र या सम्यग्दर्शन से चलायमान होने पर, डिगने पर उसको अपने धर्म में दृढ़ करना स्थितिकरण अंग है।
प्रश्न २३९—वात्सल्य अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर—अपने साधर्मियों में गुरु में, धर्मात्मा मनुष्यों में, शास्त्रों के मर्मज्ञों में बछड़े से सद्य:प्रसूता गाय के समान प्रेम करना वात्सल्य अंग है।
प्रश्न २४०—प्रभावना अंग किसे कहते हैं ?
उत्तर—मिथ्या मतों को दूर कर तपश्चरण, दान, पूजा एवं हृदय की शुद्धि के द्वारा जैनधर्म की प्रभावना करना प्रभावना अंग है।
प्रश्न २४१—सम्यग्दर्शन के २५ मलदोष कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—आठ मद, शंकादि आठ दोष, छ: अनायतन और तीन मूढ़ता ये २५ मल दोष हैं।
प्रश्न २४२—आठ मद कौन से हैं ?
उत्तर—जाति, कुल, ऐश्वर्य, रूप, ज्ञान, तप बल एवं बड़प्पन ये आठ मद हैं।
प्रश्न २४३—छ: अनायतन किसे कहते हैं ?
उत्तर—मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान एवं मिथ्याचारित्र ये छ: अनायतन हैं।
उत्तर—इन्द्र, चक्रवर्ती आदि के पदों को देने वाले तथा सुखों के कारण सम्यग्दर्शन को निर्दोष रीति से स्वीकार करने वाला पुण्यात्मा है।
प्रश्न २४६—धरणेन्द्र के सम्बोधन से उस नारकी ने क्या किया ?
उत्तर—धरणेन्द्र के सम्बोधन से उस नारकी ने सम्यग्दर्शन ग्रहण कर लिया।
वज्रायुध चक्रवर्ती – आठवां भव
प्रश्न २४७—गगनवल्लभ नगर कहाँ स्थित है ?
उत्तर—जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विजयार्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी में गगनवल्लभ नामक नगर है।
प्रश्न २४८—उस नगर के राजा—रानी कौन थे ?
उत्तर—राजा मेघवाहन एवं रानी मेघमालिनी।
प्रश्न २४९—उन दोनों के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—मेघनाद।
प्रश्न २५०—राजा अनन्तवीर्य का जीव नरक से चयकर कहाँ जन्मा ?
उत्तर—राजा मेघवाहन के पुत्र मेघनाद के रूप में जन्मा।
प्रश्न २५१—मेघनाद कहाँ और कौन सी विद्या सिद्ध कर रहा था?
उत्तर—मेघनाद मन्दराचल पर्वत के नन्दनवन में जाकर मन्त्र पूजा के द्वारा ‘प्रज्ञप्ति’ नाम की विद्या सिद्ध कर रहा था।
प्रश्न २५२—उस समय वहां किसने आकर क्या सम्बोधित किया ?
उत्तर—उस समय अच्युत स्वर्ग के इन्द्र अच्युतेन्द्र ने आकर पूर्व जन्म की याद दिलाकर वैराग्य प्राप्त करा दिया।
प्रश्न २५३—वैरागी मेघरथ ने क्या किया ?
उत्तर—वैरागी मेघरथ ने सुरामरगुरु नामक मुनिराज के पास पहुँचकर दीक्षा धारण कर लिया।
प्रश्न २५४—मुनिराज मेघरथ पर किसने, कब उपसर्ग किया ?
उत्तर—एक दिन मुनिराज मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रतिमायोग धारण कर विराजमान हुए तब पूर्व भव के अश्वग्रीव का अनुज सुकण्ठ, जो उस भव में दुष्ट असुर था, ने क्रोधित हो कष्टदायक उपसर्ग किया।
प्रश्न २५५—उस समय मुनिराज ने क्या किया ?
उत्तर—उस समय मुनिराज ने घोर उपद्रवों को जीतकर अपने मन को आत्मध्यान में लगाया और मेरूवत अचल रहे।
प्रश्न २५६—उस समय उस असुर ने क्या किया ?
उत्तर—वह असुर लज्जित एवं विवश होकर अदृश्य हो गया।
प्रश्न २५७—मुनिराज ने आयु के अंत में क्या किया और कहाँ गए ?
उत्तर—मुनिराज ने अपनी आयु अल्प जानकर सन्यास धारण कर लिया और अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र हुए।
प्रश्न २५८—प्रतीन्द्र ने अपने उपकार का बदला किस प्रकार दिया ?
उत्तर—प्रतीन्द्र ने स्वर्ग में अवधिज्ञान से वहाँ के इन्द्र द्वारा किए गए उपकार का स्मरण किया और उन्हें नमस्कार कर उनकी पूजा की।
प्रश्न २५९—रत्नसंचयपुर नगर कहाँ है ?
उत्तर—जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह में मंगलावती देश के आर्यखण्ड में रत्नसंचयपुर नगर है।
प्रश्न २६०—उस नगरी की लम्बाई, चौड़ाई कितनी है ?
उत्तर—उस नगरी की लम्बाई १२ योजन एवं चौड़ाई ९ योजन है।
प्रश्न २६१—नगरी का वैभव कैसा है ?
उत्तर—उस अकृत्रिम नगरी में १००० उच्च मनोहर द्वार हैं, ५०० लघु द्वार हैं, १००० चौहारे हैं, १२ हजार राजमार्ग हैं एवं अनेक रत्नमय जिनालय हैं।
प्रश्न २६२—उस नगरी के राजा—रानी कौन थे ?
उत्तर—उस नगरी के राजा क्षेमंकर एवं रानी कनकचित्रा थीं।
प्रश्न २६३—उसके पुत्र का क्या नाम था और वो कहाँ से च्युत होकर आया था ?
उत्तर—राजा क्षेमंकर के पुत्र का नाम वज्रायुध था, वह अच्युत स्वर्ग का इन्द्र अपनी आयु पूर्ण कर आया था।
प्रश्न २६४—वज्रायुध कितने ज्ञान का धारी था ?
उत्तर—वज्रायुध मति, श्रुत, अवधि इन तीन ज्ञान का धारी था।
प्रश्न २६५—उसकी रानी का क्या नाम था ?
उत्तर—रानी लक्ष्मीवती।
प्रश्न २६६—उन दोनों के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—उन दोनों के सहस्रायुध नाम का पुत्र था।
प्रश्न २६७—सहस्रायुध की महारानी का क्या नाम था ?
उत्तर—राजा सहस्रायुध की महारानी का नाम श्रीषेणा था।
प्रश्न २६८—उन राजदम्पत्ति के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—उनके शान्तिकनक नामक पुत्र था।
प्रश्न २६९—राजा वज्रायुध की परीक्षा करने के लिए कौन, क्यों आया ?
उत्तर—राजा वज्रायुध की सम्यग्दर्शनादि की दूसरे ईशान स्वर्ग में इन्द्र द्वारा प्रशंसा सुनकर विचित्रशूल नामक देव उनकी परीक्षा करने के लिए आया।
प्रश्न २७०—उस देव ने राजा की किस प्रकार परीक्षा ली और राजा ने क्या किया ?
उत्तर—उस देव ने राजा की परीक्षा के लिए एकान्तवाद का आश्रय लेकर कई प्रश्न किए पर राजा ने देव की जिज्ञासा शान्त करने के लिए अनेकान्तवाद का आश्रय लेकर उसे प्रत्युत्तर दिया जिससे देव अपना रूप प्रकट कर राजा की पूजा स्तुति कर स्वर्ग को चला गया।
प्रश्न २७१—शुद्ध निश्चयनय से जीव कैसा है और व्यवहारनय से कैसा ?
उत्तर—शुद्ध निश्चयनय से जीव केवलज्ञान एवं केवलदर्शन से अभिन्न है परन्तु व्यवहारनय से यह मतिज्ञानी और श्रुतज्ञानी है।
प्रश्न २७२—राजा क्षेमंकर को वैराग्य कैसे हुआ ?
उत्तर—काललब्धि प्राप्त होने पर उन्हें वैराग्य हुआ।
प्रश्न २७३—राजा क्षेमंकर को वैराग्य होने पर किसने आकर उनकी अनुमोदना की ?
उत्तर—लौकान्तिक देवों ने आकर उनके वैराग्य की अनुमोदना की।
प्रश्न २७४—लौकान्तिक देवों के स्वर्ग जाने के पश्चात् भावी तीर्थंकर क्षेमंकर ने क्या किया?
उत्तर—उन्होंने अपार विभूति के साथ वज्रायुध कुमार का राज्याभिषेक कर उनको अपना राज्य पद दे दिया एवं स्वयं दीक्षा धारण करने के लिए प्रस्तुत हुए।
प्रश्न २७५—दीक्षा के पश्चात् क्षेमंकर मुनिराज ने क्या किया ?
उत्तर—दीक्षा के पश्चात् क्षेमंकर मुनिराज ने घोर तपश्चरण किया और क्रमश: क्षपकश्रेणी पर आरुढ़ होकर मोहशत्रु का संहारकर घातिया कर्मों का एक साथ विनाश कर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया।
प्रश्न २७६—राजा वज्रायुध अपनी रानियों के साथ क्रीड़ा हेतु कहाँ गए थे ?
उत्तर—देवरमण नामक वन में।
प्रश्न २७७—उस समय किस शत्रु ने क्या बदला लिया ?
उत्तर—उस समय एक विद्याधर आया और एक विशाल शिला से उस क्रीड़ा सरोवर को ढक दिया एवं नागपाश से उसको बांध दिया।
प्रश्न २७८—उस समय राजा वज्रायुध ने क्या किया ?
उत्तर—उस समय राजा वज्रायुध ने अपने हाथ की हथेली से ही उस शिला को दबाया जिससे उस विशाल शिला के सैकड़ों टुकड़े हो गए, यह देखकर वह दुष्ट विद्याधर भाग गया।
प्रश्न २७९—विद्याधर की राजा वज्रायुध से क्या शत्रुता थी ?
उत्तर—यह विद्याधर राजा वज्रायुध का पूर्व जन्म का शत्रु था जो पहले दमितारि विद्याधर का पुत्र विधुदृष्ट था।
प्रश्न २८०—नगर में आगमन के पश्चात् क्या अद्भुत घटना घटी ?
उत्तर—षट्खण्ड की राज्यलक्ष्मी को प्रदान करने वाला चक्ररत्न उनकी आयुधशाला में प्रकट हुआ था।
प्रश्न २८१—राजा वज्रायुध के दिग्विजय के पश्चात् उन्हें कितनी निधियाँ और कितने रत्न प्राप्त हुए ?
उत्तर—नौ निधियाँ और चौदह रत्न।
प्रश्न २८२—चक्रवर्ती वज्रायुध की कितनी रानियाँ थीं ?
उत्तर—९६ हजार”
प्रश्न २८३—उनकी आज्ञा का पालन कितने राजा करते थे ?
उत्तर—३२ हजार मुकुटबद्ध राजा।
प्रश्न २८४—कितने घोड़े और कितने हाथी थे ?
उत्तर—१८ करोड़ घोड़े और ८४ लाख हाथी।
प्रश्न २८५—भोगों को भोगने के चक्रवर्ती और क्या करते थे ?
उत्तर—वे सदा धर्म की प्राप्ति तथा मोक्ष का समागम कराने वाला प्रोषधोपवास करते थे तथा दान पूजन आदि भी करते थे।
प्रश्न २८६—सम्राट वज्रायुध के राजदरबार में कौन सी घटना घटी ?
उत्तर—एक दिन सम्राट वज्रायुध के दरबार में एक घबराया हुआ विद्याधर, क्रोधित विद्याधरी और उनके पीछे—पीछे वृद्ध विद्याधर न्याय मांगने हेतु आए।
प्रश्न २८७—वृद्ध विद्याधर ने क्या कहा ?
उत्तर—वृद्ध विद्याधर ने कहा कि—कच्छ नामक मनोहर देश के विजयार्धनगर में शुक्लप्रभ नगर है वहां इन्द्रदत्त एवं यशोधरी विद्याधर एवं विद्याधारी रहते थे, उनका मैं वायुवेग पुत्र हूँ, मेरी पत्नी सुकान्ता से वह शान्तिमती पुत्री हुई जो मुनिसागर पर्वत पर विद्या सिद्धि के लिए गई थी”उसी समय यह दुष्ट कामातुर विद्या सिद्धि में विघ्न डालने के लिए गया पर मेरी पुत्री को उसी समय विद्या सिद्ध हो गयी तब यह पापी प्राणभय से आपके पास आया है और पीछे—पीछे मेरी पुत्री तथा
प्रश्न २८८—अवधिज्ञानी सम्राट ने क्या न्याय किया ?
उत्तर—अवधिज्ञानी सम्राट ने उन्हें पूर्वजन्म की घटना सुनाकर शांत कर दिया।
प्रश्न २८९—विंध्यसेन कहां का राजा था ?
उत्तर—विंध्यसेन जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र में गान्धार देश के विंध्यपुरी नगर का राजा था।
प्रश्न २९०—उसकी रानी एवं पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—उसकी रानी का नाम सुलक्षणा एवं पुत्र का नाम नलिनकेतु था।
प्रश्न २९१—धनदत्त कौन था, उसकी आर्या का क्या नाम था ?
उत्तर—धनदत्त उसी नगर का धनी वैश्य था उसकी पत्नी का नाम श्रीदत्ता था।
प्रश्न २९२—उनकी पुत्र एवं पुत्रवधू का क्या नाम था ?
उत्तर—सुदत्त एवं प्रीतिंकरा।
प्रश्न २९३—प्रीतिंकरा का अपहरण किसने और क्यों किया ?
उत्तर—बन विहार के लिए गई सुन्दरी प्रीतिंकरा पर कामासक्त हो नलिनकेतु ने उसका बलपूर्वक अपहरण कर लिया।
प्रश्न २९४—इस घटना से सुदत्त के मन पर क्या असर हुआ ?
उत्तर—पत्नी के वियोग से शोकाकुल सुदत्त अपनी निन्दा करने लगा और संसार, शरीर, भोगों से विरक्त हो सुदत्त नामक तीर्थंकर के समीप जाकर संयम धारण कर लिए।
प्रश्न २९५—मुनि सुदत्त का जीव आयु पूर्ण कर कहाँ गया ?
उत्तर—मुनि सुदत्त का जीव कठोर तपश्चरण कर प्राण त्याग कर ईशान स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव हुआ।
प्रश्न २९६—सुकच्छ देश कहाँ स्थित है?
उत्तर—विजयार्ध पर्वत की श्रेणी में सुकच्छ देश है।
प्रश्न २९७—महेन्द्रविक्रम कहाँ के राजा थे, उनकी रानी का क्या नाम था ?
उत्तर—महेन्द्रविक्रम कांचनतिलकनगर के विद्याधर राजा थे उसकी रानी का नाम अनलवेगा था।
प्रश्न २९८—ईशान स्वर्ग से च्युत हो वह देव कहाँ जन्मा ?
उत्तर—वह देव स्वर्ग से चयकर उन दोनों के यहाँ अजितसेन नाम का पुत्र हुआ।
प्रश्न २९९—राजपुत्र नलिनकेतु की वैराग्य कैसे हुआ एवं उसने क्या किया ?
उत्तर—राजपुत्र नलिनकेतु को उल्कापात देखकर आत्मज्ञान उदित हुआ और चारित्र धारण की कामना करता हुआ वह सीमंकर मुनिराज के समीप गया और दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ३००—दीक्षा धारण करने के पश्चात् उन्होंने कैसा तप किया और क्या पदवी पाई ?
उत्तर—दीक्षा धारण करने के पश्चात् उन्होंने घोर तपश्चरण किया और केवलज्ञानी होकर पुन: अघातिया कर्मों का भी नाशकर मोक्षपद में विराजमान हो गए।
प्रश्न ३०१—प्रीतिंकरा ने क्या किया ?
उत्तर—प्रीतिंकरा ने अपने दुराचरण की निन्दा की और सुव्रता नामक आर्यिका के पास जाकर संयम धारण कर चन्द्रायण तप किया जिसके पुण्यस्वरूप वह ईशान स्वर्ग में उत्पन्न हुई।
प्रश्न ३०२—ईशान स्वर्ग से चयकर वह कहाँ जन्मी ?
उत्तर—ईशान स्वर्ग से चयकर वह वायुवेग विद्याधर की पुत्री शान्तिमती हुई।
प्रश्न ३०३—जिसने विद्यासिद्धि के समक्ष विघ्न उपस्थित किया वह विद्याधर किसका जीव था ?
उत्तर—वह विद्याधर सुदत्त वैश्य का जीव था।
प्रश्न ३०४—अपने पूर्व जन्म का वृतांत सुनकर शान्तिमती विद्याधरी ने क्या किया ?
उत्तर—वह संसार से विरक्त हो गई और क्षेमंकर तीर्थंकर के समवसरण में जाकर उसके वचनामृत का पान किया, पुन: सुलक्षणा नामक गणिनी आर्यिका के पास पहुँचकर दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ३०५—उस आयु को पूर्णकर वह कहाँ जन्मी ?
उत्तर—ईशान स्वर्ग में देव हुई।
प्रश्न ३०६—अजितसेन एवं वायुवेग विद्याधर ने क्या किया ?
उत्तर—उन दोनों ने संयम धारण कर घोर तपश्चरण किया और दिव्य केवलज्ञान प्राप्त किया।
प्रश्न ३०७—राजा मेघवाहन कहाँ का राजा था ?
उत्तर—राजा मेघवाहन रूपाचल पर्वत की दक्षिण श्रेणी में शिवमंदिर नामक सुन्दर नगर का राजा था।
प्रश्न ३०८—उसकी रानी एवं पुत्री का क्या नाम था ?
उत्तर—उसकी रानी का नाम विमला एवं पुत्री का नाम कनकमाला था।
प्रश्न ३०९—कनकमाला का विवाह किसके साथ हुआ ?
उत्तर—कनकमाला का विवाह राजा सहस्रायुध के पुत्र कनकशान्ति के साथ हुआ।
प्रश्न ३१०—कनकशान्ति की दूसरी रानी का नाम क्या था और वह किसकी पुत्री थी ?
उत्तर—कनकशान्ति की दूसरी रानी बसन्तसेना सत्वोकसार नगर के राजा जयसेन एवं रानी जयसेना की पुत्री थी।
प्रश्न ३११—राजा कनकशान्ति ने कहाँ और कौन से मुनिराज के दर्शन किए ?
उत्तर—राजा कनकशान्ति ने वनविहार (रानियों के साथ) के लिए जाते समय विमलप्रभ मुनि के दर्शन किए।
प्रश्न ३१२—कुमार कनकशान्ति ने मुनि के दिव्य उपदेश सुन क्या विचार किया और क्या किया ?
उत्तर—उसे मुनि के वचन सुनकर वैराग्य हो गया और संसार की असारता का विचार कर उसने दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ३१३—दोनों रानियों ने क्या किया ?
उत्तर—दोनों रानियाँ भी विमलमती नामक गणिनी आर्यिका के समीप पहुँचकर आर्यिका हो गयीं।
प्रश्न ३१४—कायोत्सर्ग मुद्रा में विराजमान मुनिराज कनकशान्ति पर उपसर्ग का प्रयास किसने किया ?
उत्तर—बसन्तसेना रानी के भ्राता चित्रचूल ने पूर्व भव के वैर के कारण उपसर्ग करने का विचार किया।
प्रश्न ३१५—मुनि की रक्षा किसने की ?
उत्तर—मुनिराज के तपश्चरण के प्रभाव से पुण्यवान विद्याधर राजाओं ने उसे ललकारा जिससे वह पापी वहाँ से पलायन कर गया।
प्रश्न ३१६—अगले दिन मुनि का आहार कहाँ हुआ और क्या आश्चर्य प्रकट हुआ ?
उत्तर—मुनिराज का आहार रत्नपुर नगर के राजा रत्नसेन के महल में हुआ और दान के प्रभाव से राजा के प्रागंण में देवों ने रत्नवृष्टि की और पंचाश्चर्य प्रकट किए।
प्रश्न ३१७—क्या चित्रचूल ने पुन: उपसर्ग किया ?
उत्तर—हाँ, वे मुनिराज सुरनिपात नामक वन में प्रतिमायोग धारण कर विराजमान थे उस समय पूर्व वैरी चित्रचूल ने भयंकर उपसर्ग करना प्रारम्भ किया।
प्रश्न ३१८—क्या मुनिराज उस उपसर्ग से चलायमान हुए ?
उत्तर—नहीं, उन्होंने तो स्वयं को आत्मध्यान में लवलीन कर घातिया कर्मों का नाश कर दिव्य केवलज्ञान प्राप्त किया।
प्रश्न ३१९—यह देख उस विद्याधर के ऊपर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर—वह दुर्जन विद्याधर उनकी क्षमा के सम्मुख निस्तेज हो गया और अरहन्त देव की शरण में आ गया।
प्रश्न ३२०—अपने पौत्र को केवलज्ञान प्राप्त हुआ सुनकर वज्रायुध चक्रवर्ती ने क्या किया?
उत्तर—अपने पौत्र को केवलज्ञान प्राप्त हुआ सुनकर वज्रायुध चक्रवर्ती ने ‘आनन्द’ नाम की गम्भीर भेरी बजवाई और बन्धु-बान्धवों के साथ समवसरण में जाकर उन तीर्थंकर भगवान की स्तुति की।
प्रश्न ३२१—चक्रवर्ती के द्वारा धर्मोपदेश की प्रार्थना करने पर भगवान ने उन्हें क्या उपदेश दिया ?
उत्तर—अपने पितामह का उपकार करने के निमित्त से उन तीर्थंकर भगवान ने धर्म का स्वरूप प्रकट करते हुए सारहीन संसार का स्वरूप भी बतलाया।
प्रश्न ३२२—उसे सुनकर चक्रवर्ती ने क्या विचार किया ?
उत्तर—अरहन्त भगवान का उपदेश सुनकर राजा वज्रायुध संसार से विरक्त हो गया। संसार की असारता का पुन:—पुन: चिन्तवन कर उनका वैराग्य द्विगुणित हुआ और उन्होंने पुत्र सहस्रायुध को भव्य समारोहपूर्वक राज्य सौंपकर क्षेमंकर तीर्थंकर के समवसरण में पहुंचकर मुनिदीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ३२३—मुनियों के कितने मूलगुण होते हैं, क्या कष्ट आने पर वे उसका त्याग कर सकते हैं ?
उत्तर—मुनियों के २८ मूलगुण होते हैं, जिन्हें प्राण नाश होने पर भी वे नहीं त्यागते हैं क्योंकि ये मूलगुण ही समस्त गुणों के मूलभूत हैं।
प्रश्न ३२४—उन मुनिराज ने कैसा तपश्चरण किया ?
उत्तर—उन मुनिराज ने कठोर तपश्चरण किया और सिद्धगिरि पर्वत पर प्रतिमायोग धारण कर स्थित हो गए, उनकी काया पर भयंकर सर्प भी चढ़ जाते थे और बहुत से सर्पों ने तो बॉबी बना ली थी, उनके ऊपर बेले चढ़ गई थीं।
प्रश्न ३२५—अश्वग्रीव के पुत्र रत्नकण्ठ एवं रत्नायुध आगे जाकर क्या बने ?
उत्तर—अतिबल एवं महाबल नाम के व्यन्तर देव बने।
प्रश्न ३२६—वज्रायुध मुनिराज पर उपसर्ग किसने किया ?
उत्तर—उन्हीं व्यन्तर देवों ने मुनिराज पर भयंकर उपसर्ग किया।
प्रश्न ३२७—मुनिराज वज्रायुध की रक्षा किसने की ?
उत्तर—रम्भा और तिलोत्तमा नाम की दो देवियों ने मुनिराज वज्रायुध की रक्षा की।
प्रश्न ३२८—दि. मुनियों की निन्दा करने एवं कष्ट देने से क्या होता है ?
उत्तर—दि. मुनियों की निन्दा करने से भव—भव में उसकी निन्दा होती है तथा कष्ट देने से नरक में अपार कष्ट उठाना पड़ता है।
प्रश्न ३२९—क्या सहस्रायुध राजा ने भी दीक्षा ली ?
उत्तर— हाँ,सहस्रायुध को किसी कारण से वैराग्य हो गया और उसने अपना राज्यवैभव शतबल को सौंपकर पिहितास्रव मुनि के पास जाकर मुनि दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ३३०—सहस्रायुध मुनिराज योग के अन्त में कहाँ गए और क्या किया ?
उत्तर—सहस्रायुध मुनि योग के अन्त में वज्रायुध मुनि के पास पहुँचे, दोनों ने कठिन तपश्चरण करते हुए आयु का अन्त जान वैभार पर्वत पर पहुँचकर मृत्यु पर्यन्त सन्यास धारण कर लिया।
प्रश्न ३३१—आयु पूर्ण कर वे कहाँ जन्मे ?
उत्तर—वे दोनों ही अपने प्राण त्याग कर सौमनस नामक अधो विमान में अहमिन्द्र हुए।
अहमिन्द्र – नवम भव
प्रश्न ३३२—अहमिन्द्रों का वैभव कैसा है ?
उत्तर—अहमिन्द्रों की विभूति एक सी होती है, प्रविचार रहित हैं, सभी चतुर होते हैं, सबका समान पद होता है, भोगोपभोग सामग्री, ऋद्धियाँ, मान—सम्मान सब समान होते हैं, परस्पर प्रेम रखते हैं, हृदय शुद्ध रहते हैं” विषाद रहित, मदरहित, सदा सन्तुष्ट व सुखी रहते हैं।
प्रश्न ३३३—उनके शरीर की अवगाहना कितनी है ?
उत्तर—डेढ़ हाथ प्रमाण।
प्रश्न ३३४—उनकी आयु कितनी हैं ?
उत्तर—२९ सागर।
प्रश्न ३३५—कितने वर्ष बाद वे देव उच्छ्वास लेते हैं ?
उत्तर—उन्तीस हजार वर्ष व्यतीत होने पर उच्छ्वास लेते हैं।
राजा मेघरथ- दशवां भव
प्रश्न ३३६—पुष्कलावती देश कहाँ स्थित है ?
उत्तर—जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश है।
प्रश्न ३३७—उस देश के मध्य में क्या है ?
उत्तर—पुण्डरीकणी नामक शुभ नगरी है।
प्रश्न ३३८—उस पुण्डरीकणी नगरी में कौन से राजा राज्य करते थे ?
उत्तर—उस पुण्डरीकणी नगरी में घनरथ नामक तीर्थंकर राज्य करते थे।
प्रश्न ३३९—उनके उत्पन्न होने के कितने महीने पूर्व कुबेर ने रत्नवृष्टि की ?
उत्तर—छ: माह तक।
प्रश्न ३४०—उन तीर्थंकर का गर्भ एवं जन्मकल्याणक किसने मनाया ?
उत्तर—इन्द्र परिकर ने स्वर्ग से आकर मनाया।
प्रश्न ३४१—घनरथ तीर्थंकर की रानी का क्या नाम था ?
उत्तर—मनोहरा
प्रश्न ३४२—वज्रायुध का जीव स्वर्ग से चयकर कहाँ जन्मा ?
उत्तर—वज्रायुध का जीव स्वर्ग से चयकर उन राजा—रानी का मेघरथ नाम का पुत्र हुआ।
प्रश्न ३४३—सहस्रायुध का जीव स्वर्ग से चयकर कहां गया ?
उत्तर—घनरथ तीर्थंकर की एक अन्य रानी मनोरमा के गर्भ से सहस्रायुध का जीव स्वर्ग से चयकर दृढ़रथ नाम का पुत्र हुआ।
प्रश्न ३४४—कुमार मेघरथ को जन्म से कितने ज्ञान थे ?
उत्तर—तीन ज्ञान थे—मति, श्रुत, अवधि।
प्रश्न ३४५—कुमार मेघरथ की रानियों के क्या नाम थे ?
उत्तर—प्रियमित्रा एवं मनोरमा।
प्रश्न ३४६—दृढ़रथ का विवाह किसके साथ हुआ ?
उत्तर—सुमति नामक राजकन्या के साथ हुआ।
प्रश्न ३४७—मेघरथ की प्रियमित्रा रानी से उत्पन्न पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—नन्दिवर्धन कुमार।
प्रश्न ३४८—रानी सुमति के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—वरसेन कुमार।
प्रश्न ३४९—प्रियमित्रा की दासी क्या लाई और क्या कहा ?
उत्तर—प्रियमित्रा की दासी सुषेणा धनकुण्ड नामक कुक्कुट को लाई और सबको दिखाकर बोली कि जो इसको पराजित कर देगा, उसे एक हजार मुद्राएं मिलेंगी।
प्रश्न ३५०—सुषेणा की इस गर्वोक्ति को सुनकर किसने क्या किया ?
उत्तर—सुषेणा की उस गर्वोक्ति को सुनकर छोटी रानी की दासी कांचना धनकुण्ड कुक्कुट से लड़ाने के लिए वज्रतुंड नामक कुक्कुट को लाई,उन दोनों कुक्कुटों में युद्ध शुरू हो गया।
प्रश्न ३५१—घनरथ तीर्थंकर ने कुक्कुटों का युद्ध क्यों देखा ?
उत्तर—घनरथ तीर्थंकर ने भव्य जीवों को समझाने के लिए एवं अपने पुत्र की महिमा प्रकट करने के लिए पुत्र–पौत्रादिकों के संग कुक्कुटों का युद्ध देखा।
प्रश्न ३५२—घनरथ तीर्थंकर ने अपने पुत्र मेघरथ से क्या जिज्ञासा की ?
उत्तर—उन्होंने पूछा—इन दोनों का युद्ध क्यों हो रहा है ? क्या पूर्व जन्म की शत्रुता इसका कारण है?
प्रश्न ३५३—मेघरथ ने उसका क्या उत्तर दिया ?
उत्तर—उन्होंने उन दोनों की पूर्व जन्म की शत्रुता की कथा बताई।
प्रश्न ३५४—पूर्व जन्म में वे दोनों कुक्कुट कौन थे ?
उत्तर—पूर्व जन्म में वे जम्बूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र के रत्नपुर नगर में भद्र और धन नाम के निरक्षर वैश्य पुत्र थे और एक बैल के लिए लड़ते—२ मर गए।
प्रश्न ३५५—लड़ते—२ मरने से वे कहाँ—२ जन्में ?
उत्तर—आर्तध्यान से मरने के कारण वे श्वेतकर्ण और ताम्रकर्ण नाम के हाथी हुए, पुन: लड़ते हुए मरकर अयोध्या के नन्दिमित्र ग्वाले के भैसों के झुण्ड में भैंसे हुए, वहां भी लड़कर मरे और उसी नगर के राजपुत्रों के यहाँ मेढ़े हुए, वहाँ भी लड़कर मरे और अब कुक्कुट हुए।
प्रश्न ३५६—अपने पूर्व जन्म को जानकर कुक्कुटों ने क्या किया ?
उत्तर—दोनों ने अपनी निन्दा कर अनशन व्रत धारण किया ,अनेक परीषहों को सहन करते हुए शुभध्यानपूर्वक प्राणों का त्याग किया और भूतारण्य और देवारण्य नामक वनों में क्रमश: ताम्रचूल एवं कनकचूल नामक व्यन्तर जाति के देव हुए।
प्रश्न ३५७—देवपद प्राप्त करने के बाद उन्होंने क्या किया ?
उत्तर—देवपद प्राप्त करने के बाद उन्होंने राजा मेघरथ के पास आकर उन्हें प्रणाम किया, स्तुति एवं पूजा की तथा एक ऋद्धियों से शोभायमान विमान बनाकर राजकुमार मेघरथ को आकाश मार्ग से ले जाकर समग्र लोकालोक दिखाया।
प्रश्न ३५८—ऐरावत क्षेत्र कैसा है ?
उत्तर—भरतक्षेत्र के समान।
प्रश्न ३५९—मध्यलोक में मेरु सहित सात पर्वतों द्वारा विभाजित कितने क्षेत्र हैं ?
उत्तर—सात क्षेत्र हैं—भरत, हैमवत,हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत, ऐरावत।
प्रश्न ३६०—कुल पर्वत कितने हैं ?
उत्तर—छ: हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रूक्मी और शिखरी।
उत्तर—महापद्म, पद्म, तिगिञ्छ, केशरी, महापुण्डरीक, पुण्डरीक, निषध, देवकुरु, सूर्य, सुसम, विद्युत्प्रभ, नीलवाक, उत्तरकुरु, चन्द्र, ऐरावत और माल्यवान ये १६ सरोवर हैं।
प्रश्न ३६३—इन सरोवर पर कौन निवास करता है ?
उत्तर—इनमें प्रारम्भ के छ: सरोवर पर श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी ये छ: सौधर्म और ईशान इन्द्र की नियोगिनी व्यन्तर देवियाँ रहती हैं और बाकी पर नागकुमार देव निवास करते हैं।
उत्तर—क्षेमा, क्षेमपुरी, अरिष्टा, अरिष्टपुरी, खड्गा, मंजूषा, औषधि, पुण्डरीकणी, सुसीमा, कुण्डला, अपराजिता, प्रभाकरी, अंकावती, पद्मावती, शुभा, रत्नसंचयपुरी, अश्वपुरी, सिंहपुरी, महापुरी, विजयपुरी, अरजा, अशोका, वीतशोका, विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, चक्रपुरी, खड्गपुरी, अयोध्या और अवध्या ये ३१ राजधानियाँ हैं।
प्रश्न ३६९—मनुष्य लोक कितने योजन प्रमाण है ?
उत्तर—४५ लाख योजन प्रमाण।
प्रश्न ३७०—राजकुमार मेघरथ के दरबार में कौन से दो विद्याधर बैठे थे और यह बात किसने बताई ?
उत्तर—मेघरथ के दरबार में विजयार्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी में कनकपुर नगर के विद्याधर गरुड़वेग की रानी घृतिषेणा के पुत्र देवतिलक एंव चन्द्रतिलक आए थे, यह बात मेघरथ ने स्वयं बताई।
प्रश्न ३७१—वह दोनों किस प्रयोजन से वहाँ आए थे ?
उत्तर—वे दोनों अपने पूर्वजन्म के पिता के स्नेहवश वहाँ उनकी जानकारी प्राप्त करने आए थे।
प्रश्न ३७२—देवतिलक व चन्द्रतिलक वन्दना हेतु कहाँ गए थे ?
उत्तर—दोनों भाई देववन्दना हेतु सिद्धकूट चैत्यालय में गए थे वहाँ अवधिज्ञानी चारणऋद्धिधारी मुनियों को देखकर उन्हें नमस्कार किया, मुनि के द्वारा दिए गए धर्मोपदेश को सुनकर उन्होंने अपने पूर्वभव पूछे।
प्रश्न ३७३—उन्होंने मुनिराज से क्या प्रश्न किया ?
उत्तर—उन्होंने मुनिराज से पूछा कि हम दोनों ने पूर्व जन्म में कौन सा तप आदि किया था जिससे दोनों को विद्याधर की विभूति प्राप्त हुई।
प्रश्न ३७४—मुनिराज ने उन्हें क्या उत्तर दिया ?
उत्तर—मुनिराज ने कहा कि—धातकीखण्ड द्वीप के पूर्व मेरू की उत्तर दिशा में ऐरावत क्षेत्र में तिलकपुर नगर है जहाँ अभयघोष नामक धर्मात्मा राजा रहते थे, उनकी सुवर्णतिलका रानी से विजय एवं जयन्त नाम के दो पुत्र थे। उसी देश के विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में मन्दर नगर में शंख विद्याधर की जया रानी से पृथ्वीतिलका नाम की पुत्री थी, जिसका विवाह अभयघोष के साथ हुआ” राजा अभयघोष एक वर्ष तक उसमें आसक्त रहा इसलिए दुखी सुवर्णतिलका ने अपनी दूती चञ्चलिका से राजा को सुन्दर एवं मनोहर उद्यान के अवलोकनार्थ बुलाया, राजा जब दासी के अनुरोध पर जाने लगे तब पृथ्वीतिलका ने उन्हें बहुत रोका किन्तु राजा चले गए, इधर पृथ्वीतिलका को गहरा विषाद हुआ, उसने नारी जीवन को पराधीन जानकर सुमति नामक गणिनी आर्यिका से उत्तम दीक्षा धारण कर ली। एक दिन अभयघोष राजा ने दमवर मुनिराज को पड़गाहन कर आहार दिया तब उनके आंगन में पंचाश्चर्यवृष्टि हुई। उस पंचाश्चर्य को देखकर राजा को वैराग्य हो गया और उन्होंने राज्य का त्याग कर दोनों पुत्रों के साथ अनङ्गसेन मुनि से दीक्षा ले ली और घोर तपश्चरण कर अभयघोष ने तो तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया और तीनों ही समाधिपूर्वक शरीर छोड़ अच्युत स्वर्ग में इन्द्र हुए, वहाँ २२ सागर की आयु भोगकर तुम दोनों राजपुत्र हुए हो एवं राजा अभयघोष १६वें स्वर्ग गए।
प्रश्न ३७५—देवतिलक व चन्द्रतिलक द्वारा अपने पिता अभयघोष के बार में पूछने पर मुनिराज ने क्या कहा ?
उत्तर—मुनिराज ने कहा कि पुष्कलावती देश की पुण्डरिकिणी नगरी में हेमांगद राजा की रूपवती सुन्दरी मेघमालिनी रानी थी, अभयघोष का जीव सोलहवें [[स्वर्ग]] से चयकर उनका पुत्र घनरथ नामक तीर्थंकर हुए हैं।
प्रश्न ३७६—पूर्वभव के अपने पिता के जीव को पाकर उन दोनों ने क्या किया ?
उत्तर—दोनों ने तीर्थंकर भगवान घनरथ एवं राजकुमार मेघरथ को नमस्कार किया और भक्तिपूर्वक बारम्बार उनकी पूजा एवं स्तुति की।
प्रश्न ३७७— पूर्व जन्म की घटनाओं को सुनकर उन दोनों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर—पूर्व जन्म की घटनाओं को सुनकर दोनों विद्याधरों को संसार, शरीर एवं भोगों से वैराग्य हो गया और उन्होंने गोवर्धन मुनिराज के पास जाकर जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण कर ली और घोर तपश्चरण कर दिव्य केवलज्ञान प्राप्त किया फिर अन्तर्मुहूर्त में ही अनन्त सुख में जाकर विराजमान हो गए।
उत्तर—सम्यग्दर्शन की विशुद्धि होना दर्शनविशुद्धि है।
प्रश्न ३८०—विनयसम्पन्नता भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर—मन—वचन—काय से मुनियों की विनय करना विनयसम्पन्नता भावना है।
प्रश्न ३८१—शीलव्रतेष्वनतिचार भावना क्या कहती है ?
उत्तर—व्रत एवं शीलों का अतिचार रहित पालन करना।
प्रश्न ३८२—अभीक्ष्णज्ञानोपयोग भावना का क्या अर्थ है ?
उत्तर—अपना उपयोग सदा ज्ञानमय बनाए रखना।
प्रश्न ३८३—संवेग भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर—संसार एवं शरीर से ग्लानि प्रकट करने वाली संवेग भावना है।
प्रश्न ३८४—शक्तितस्त्याग भावना का क्या मतलब है ?
उत्तर—शक्ति के अनुसार दान, त्याग आदि करना।
प्रश्न ३८५—शक्तितस्तप भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर—शक्तितस्तप भावना का अर्थ शक्ति के अनुसार बारह प्रकार का तपश्चरण करना है।
प्रश्न ३८६—साधु समाधि भावना क्या करती है ?
उत्तर—धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान को प्रकट करने वाली साधुसमाधि भावना है।
प्रश्न ३८७—वैय्यावृत्ति भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर—मुनियों की सेवा—सुश्रूषा करना वैय्यावृत्य भावना है।
प्रश्न ३८८—अर्हत्भक्ति भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर—अरहंत भगवान की भक्ति करना।
प्रश्न ३८९—आचार्यभक्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर—आचार्य की भक्ति करना।
प्रश्न ३९०—बहुश्रुतभक्ति भावना क्या है ?
उत्तर—मोक्षमार्गदिग्दर्शक उपाध्याय की भक्ति करना।
प्रश्न ३९१—प्रवचनभक्ति भावना क्या कहती है ?
उत्तर—शास्त्रों में अविचल भक्ति रखना।
प्रश्न ३९२—आवश्यकापरिहाणि भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर—षट् आवश्यकों का पूर्ण रीति से पालन करना।
प्रश्न ३९३—मार्गप्रभावना भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर—जैनधर्म के प्रभाव—माहात्म्य को प्रकट करने वाली मार्गप्रभावना भावना है।
प्रश्न ३९४—वात्सल्य भावना किसे कहते हैं ?
उत्तर—गुणों की खान साधर्मियों से वात्सल्य रखना सोलहवीं वात्सल्य भावना है।
प्रश्न ३९५—इन सबमें कौन सी मुख्य भावना है जो तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध कराती है ?
उत्तर—यदि केवल सम्यग्दर्शन की विशुद्धि ही प्राप्त हो जाए तो वह बलवती भावना तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध कराती है।
प्रश्न ३९६—कामज्वर किससे नष्ट हो सकता है ?
उत्तर—कामज्जर ब्रह्मचर्य रूपी औषधि से नष्ट हो सकता है।
प्रश्न ३९७—राजा घनरथ को वैराग्य उत्पन्न होते ही किसने आकर उनकी अनुमोदना की ?
उत्तर—लौकान्तिक देवों ने।
प्रश्न ३९८—चतुर्निकाय के देवों ने आकर दीक्षाकल्याणक किस प्रकार मनाया ?
उत्तर—चारों निकाय के देव अपने—२ चिन्हों से युत हो भक्ति भाव से आए और विपुल विभूति से घनरथ तीर्थंकर का अभिषेक किया तथा दिव्य आभरणों से उनकी पूजा की।
प्रश्न ३९९—घनरथ तीर्थंकर ने दीक्षा से पूर्व क्या किया ?
उत्तर—उन्होंने राजा मेघरथ का राज्याभिषेक किया।
प्रश्न ४००—राजा घनरथ ने दीक्षा के बाद कैसा तपश्चरण किया ?
उत्तर—महामुनि घनरथ ने घोर तपश्चरण कर दिव्य केवलज्ञान प्राप्त कर लिया।
प्रश्न ४०१—राजा मेघरथ ने किस प्रकार से राज्य संचालन किया ?
उत्तर—राजा मेघरथ न्यायपूर्वक राज्य करते हुए सत्पात्रों को दान, भगवत् पूजा, प्रोषधोपवास आदि करते थे।
प्रश्न ४०२—राजा मेघरथ जब रानियों के संग क्रीड़ा करने देवरमण उद्यान गए उस समय क्या घटना घटी ?
उत्तर—राजा मेघरथ ने वन का अवलोकन कर विविध क्रीड़ाएँ कीं और अपनी रानियों के साथ चन्द्रकान्त शिला पर विराजमान हो गए, उसी समय विमान से एक विद्याधर अपनी विद्याधरी के साथ जा रहा था, विमान को रुका देख नीचे मेघरथ से व्याप्त शिला देखी और उसके नीचे घुसकर क्रोधपूर्वक अपने हाथों से बलपूर्वक उसे उठाने लगा।
प्रश्न ४०३—उस समय राजा मेघरथ ने क्या किया ?
उत्तर—मेघरथ राजा ने उस शिला को अपने पैर के अंगूठे से दबाकर विद्याधर को त्रस्त कर दिया, उसका करुण क्रन्दन सुन विद्याधारी विमान से उतरकर अपने पति के प्राणों की भीख मांगने लगी, तब राजा मेघरथ ने अपने पैर का अंगूठा हटा लिया।
प्रश्न ४०४—रानी प्रियमित्रा ने यह देखकर क्या जिज्ञासा प्रकट की ?
उत्तर—उन्होंने कहा कि हे नाथ ! यह विद्याधर कौन है एवं इसने ऐसा क्यों किया”
प्रश्न ४०५—राजा मेघरथ ने क्या किया ?
उत्तर—राजा मेघरथ ने उसके पूर्व जन्म की घटना सुनाई।
प्रश्न ४०६—विद्याधर इस भव में किसका पुत्र था ?
उत्तर—विद्याधर मनोहर विजयार्ध पर्वत पर स्थित अलकापुरी नगरी के राजा विद्युद्दृंष्ट की रानी अनिलवेगा का पुत्र सिंहरथ था।
प्रश्न ४०७—वह किसकी वन्दना करने गया था ?
उत्तर—वह श्री मतिवाहन तीर्थंकर की वन्दना करने गया था।
प्रश्न ४०८—विद्याधर पूर्व भव में कौन था ?
उत्तर—धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व मेरु की उत्तरदिशा में स्थित ऐरावत क्षेत्र के शंखपुर नगर में राजा राजगुप्त एवं रानी शंखिला रहते थे, एक दिन वे दोनों सर्वगुप्त मुनिराज की वन्दना के लिए शंख पर्वत पर गए, मुनिराज के मुख से जिनगुणसम्पत्ति व्रत के बारे में सुनकर उस व्रत का पालन किया, रानी ने भी वह व्रत किया। एक दिन द्वारापेक्षण कर राजा राजगुप्त ने घृतिषेण मुनि का पडगाहन कर उन्हें प्रासुक आहार दिया, दान के प्रभाव से उनके घर पंचाश्चर्य वृष्टि हुई। पुन: अपनी आयु स्वल्प जान उन्होंने समाधिगुप्त मुनिराज से [[दीक्षा]] लेकर सन्यास धारण कर प्राणों का त्याग किया और ब्रह्म स्वर्ग में इन्द्र हुआ, पुन: वहां से चयकर सिंहरथ विद्याधर हुआ।
प्रश्न ४०९—शंखिका का जीव कहां गया ?
उत्तर—शंखिका का जीव भी देव हुआ।
प्रश्न ४१०—वहाँ से चयकर वह कहाँ जन्मा ?
उत्तर—वहां से चयकर वह विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी के अवस्वालपुर नगर के राजा इन्द्रकेतु की रानी सुप्रभावती की मदनवेगा नामक पुत्री और इसकी विद्याधरी हुई है।
प्रश्न ४११—इस पूर्वभव का वृतान्त सुनकर उन दम्पत्ति ने क्या किया ?
उत्तर—उस घटना को सुन संसार, शरीर और भोगों से विरक्त हो विद्याधर ने सुवर्णतिलक पुत्र को राज्य सौंप घनरथ तीर्थंकर के समीप जाकर दीक्षा ले ली तथा मदनवेगा विद्याधरी ने प्रियमित्रा नाम की आर्यिका के पास जाकर दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ४१२—राजा मेघरथ उपवास करके कहां विराजमान हुए ?
उत्तर—राजा मेघरथ नन्दीश्वर द्वीप की पूजा कर उपवास किए हुए विराजमान थे।
प्रश्न ४१३—उस समय प्राणरक्षा हेतु कौन उनके समीप आया ?
उत्तर—उस समय भय से घबराया थर—थर कांपता एक कबूतर प्राण रक्षा हेतु वहाँ आया।
प्रश्न ४१४—उसके पीछे—कौन आया ?
उत्तर—एक दुष्ट वृद्ध गीध पक्षी वहाँ आया।
प्रश्न ४१५—उसने राजा मेघरथ से क्या कहा ?
उत्तर—उसने राजा मेघरथ से दीन स्वर में कहा—हे देव ! मैं अत्यन्त दुर्बल हूँ, क्षुधा की तीव्र ज्वाला से मेरी काया विदग्ध हो रही है यह कबूतर जो आपकी शरण में आया है, मेरा भक्ष्य है, आप दानवीर हैं, इसे मुझे दे दीजिए, अगर मुझे इसे आप नहीं देंगे तो बस मुझे यहीं पर मृत समझिए।
प्रश्न ४१६—गीध की याचना सुनकर मेघरथ का अनुज दृढ़रथ क्या बोला ?
उत्तर—गीध की याचना सुनकर दृढ़रथ ने मेघरथ से उसके पूर्व जन्म के बारे में पूछा।
प्रश्न ४१७—पूर्व जन्म में गिद्ध कौन था और कबूतर कौन ?
उत्तर—पूर्व जन्म में वे दोनों जम्बूद्वीप के मेरू पर्वत की उत्तर दिशा में ऐरावत क्षेत्र के पद्मिनीखेट नगर के सागरसेन वणिक एवं उसकी पत्नी अमितमती के पुत्र धनमित्र एवं नन्दिषेण थे, जो धन के लिए लड़ते—२, आर्तध्यान से मरकर पक्षी हुए।
प्रश्न ४१८—गिद्ध के पीछे आने वाले देव को देख दृढ़रथ ने क्या पूछा ?
उत्तर—राजा से दृढ़रथ ने उस देव का भी पूर्व भव पूछा।
प्रश्न ४१९—देव पूर्व भव में क्या था ?
उत्तर—देव दमितारि के पुत्र हेमरथ का जीव था जो पहले सोम नामक तापस की पत्नी श्रीदत्ता से चन्द्र नाम का पुत्र हुआ पुन: अज्ञानपूर्वक तपस्या करने से आयु पूर्णकर ज्योतिर्लोक में नीच ज्योतिषी देव हुआ। ईशान स्वर्ग में इन्द्र द्वारा राजा मेघरथ के दान की प्रशंसा सुनकर ईर्ष्यावश परीक्षा लेने हेतु वहां आया था।
प्रश्न ४२०—दान किसे कहते हैं ?
उत्तर—अनुग्रह या उपकार करने के लिए अपना धन या अन्य कोई पदार्थ दूसरे को देना दान है।
प्रश्न ४२१—दान कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर— दान २ प्रकार का होता है – स्वउपकार, परोपकार।
प्रश्न ४२२—स्वउपकार किसे कहते हैं ?
उत्तर—दान देने से विशेष पुण्य बन्ध होता है, इससे जो यश फैलता है वह अपना उपकार कहलाता है।
प्रश्न ४२३—परोपकार किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस दान से याचक पात्र के प्राणों की रक्षा होती है वह परोपकार कहलाता है।
प्रश्न ४२४—सद्गृहस्थों को आहारदान किसे देना चाहिए ?
उत्तर—उत्तम पात्रों को देना चाहिए।
प्रश्न ४२५—दानयुक्त आहार कैसा होना चाहिए ?
उत्तर—दानयुक्त आहार कृत, कारित आदि दोषों से रहित, मनोहर, निर्दोष, प्रासुक, शुभ, पीड़ा न उत्पन्न करने वाला होना चाहिए, उसे विधिपूर्वक दिया जाना चाहिए।
प्रश्न ४२६—उत्तम पात्रों को और क्या—क्या दान देना चाहिए ?
उत्तर—औषधिदान, ज्ञानदान व शास्त्रदान।
प्रश्न ४२७—दान योग्य औषधि कौन सी हैं ?
उत्तर—हिंसा आदि पाप कर्मों से रहित, रोग—क्लेश आदि का उपशम करने वाली औषधि दान योग्य है।
प्रश्न ४२८—दान योग्य शास्त्र कौन से हैं ?
उत्तर—सर्वज्ञ प्रणीत, पदार्थों के सत्यार्थ स्वरूप का वर्णन करने वाले, दीपक के सदृश समस्त तत्वों को प्रकाशित करने वाले, अज्ञान का निवारण करने वाले, ज्ञान के कारण, धर्म का उपदेश देने वाले, पूर्वापर विरुद्धता आदि दोषों से रहित एवं गुणों को प्रकट करने के साधन के समान शास्त्र होने चाहिए।
प्रश्न ४२९—उत्तम सत्पात्र कौन हैं ?
उत्तर—निग्रन्थ मुनिराज।
प्रश्न ४३०—पात्र दान का फल क्या है ?
उत्तर—भोगभूमि की प्राप्ति।
प्रश्न ४३१—सुपात्रों को दान देकर सम्यग्दृष्टि जीव कहां जाता है ?
उत्तर—सोलहवें स्वर्ग में।
प्रश्न ४३२—कु—दान कौन सा है ?
उत्तर—मांस या सुवर्ण आदि का दान कुदान है।
प्रश्न ४३३—कुदान देने वाला किस आयु का बंध करता है ?
उत्तर—नरकायु।
प्रश्न ४३४—राजा मेघरथ का कथानक सुनकर ज्योतिषी देव ने क्या चिन्तन किया ?
उत्तर—राजा मेघरथ का कथानक सुनकर ज्योतिषी देव ने उनकी स्तुति की और स्वर्ग चला गया।
प्रश्न ४३५—गीध और कबूतर ने क्या किया ?
उत्तर—दोनों ने शत्रुता त्याग दी और व्रत धारण कर सन्यासपूर्वक अपने प्राण त्याग कर देवारण्य वन में सुरूप और अतिरूप नामक देव हुए।
प्रश्न ४३६—देव बनकर उन्होंने सर्वप्रथम क्या किया ?
उत्तर—अपने अवधिज्ञान से सम्पूर्ण वृतान्त जानकर उन्होंने मेघरथ की भक्ति वन्दना एवं प्रशंसा की।
प्रश्न ४३७—राजा मेघरथ के महल में कौन से मुनिराज आहार हेतु पधारे ?
उत्तर—मुनि दमवर।
प्रश्न ४३८—आहार ग्रहण के पश्चात् क्या आश्चर्यकारी घटना हुई ?
उत्तर—महल में रत्नवृष्टि एवं पंचाश्चर्य वृष्टि हुई।
प्रश्न ४३९—राजा मेघरथ की स्तुति किसने और कहां की और उनकी परीक्षा लेने कौन आया?
उत्तर—ईशानेन्द्र ने स्वर्ग में राजा मेघरथ की परीक्षा ली, उस व्याख्या को सुनकर अतिरूपा एवं सुरूपा नाम की दो देवियाँ उनकी परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी पर आई ।
प्रश्न ४४०—उन्होंने राजा की परीक्षा किस प्रकार ली ?
उत्तर—राजा मेघरथ नन्दीश्वर पर्वत पर प्रोषधोपवास कर प्रतिमायोग धारण कर लीन थे, उन देवियों ने उन पर असह्य तथा भीषण उपसर्ग करना प्रारम्भ कर दिया, विभिन्न प्रकार की निन्द्य चेष्टाएँ की तथा क्रूर शब्द आदि उपद्रव किया।
प्रश्न ४४१—क्या वे राजा मेघरथ को डिगा सकीं ?
उत्तर—नहीं, राजा मेघरथ ने अपना चित्त जिनेन्द्र चरणों में लगाया और मेरुवत् निश्चल रहे।
प्रश्न ४४२—उसे देखकर देवियों ने क्या किया ?
उत्तर—दोनों ने परस्पर विचार कर मेघरथ को प्रणाम किया और स्तुति कर स्वर्ग लौट गईं।
प्रश्न ४४३—रानी प्रियमित्रा के रूप की प्रशंसा किसने की और उनके रूप को देखने कौन आया ?
उत्तर—ईशानेन्द्र ने स्वर्ग में रानी प्रियमित्रा के रूप की चर्चा की जिसे सुनकर रतिवेगा एवं रतिषेणा नाम की देवांगनाएँ उनके रूप के अवलोकनार्थ पृथ्वी पर आई।
प्रश्न ४४४—क्या उन्हें रानी के दर्शन हो सके ?
उत्तर—जब वे पृथ्वी पर आईं तब रानी के स्नान का समय था, उन्होंने पहले रानी के उस रूप को देखा पुन: वैश्य कन्या के रूप में रानी की आज्ञा पाकर उन्हें अलंकारित अवस्था में देखा।
प्रश्न ४४५—उन देवियों ने रानी से क्या कहा ?
उत्तर—उनने कहा कि आपके देह की कान्ति जो स्नान के पूर्व थी अब वैसी नहीं रही।
प्रश्न ४४६—इस सत्यासत्य का निर्णय रानी ने किससे किया ?
उत्तर—महाराज मेघरथ से।
प्रश्न ४४७—निर्णय सुनकर देवियों ने क्या किया ?
उत्तर—देवियों ने अपना वास्तविक रूप प्रकटकर अपने आने का रहस्य बताया और संसार की क्षणभंगुरता का विचारकर रानी को सम्मानित करते हुए स्वर्ग लौट गई।
प्रश्न ४४८—रानी के शोक को देख महाराज ने क्या किया ?
उत्तर—रानी को शोकातुर देख महाराज ने उन्हें संसार की असारता के बारे में प्रेमपूर्वक समझाया और स्वयं संसार, शरीर, भोगों से विरक्त हो गए।
प्रश्न ४४९—वैरागी राजा मेघरथ किससे दर्शनार्थ गए और क्या किया ?
उत्तर—राजा मेघरथ अपने कुटुम्ब के साथ घनरथ तीर्थंकर के समवसरण में गए और उनकी वन्दना कर उनसे श्रावकोचित क्रियाएँ पूछीं।
प्रश्न ४५०—बारह व्रत कौन से हैं ?
उत्तर—पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये १२ व्रत हैं।
प्रश्न ४५१—ग्यारह प्रतिमाओं का पालन करने वाला क्या प्राप्त करता है ?
उत्तर—वह सोलहवें स्वर्ग को प्राप्त होता है और अनुक्रम से मोक्ष जाता है।
प्रश्न ४५२—तीन प्रकार की क्रियाएँ कौन सी हैं ?
उत्तर —गर्भान्वय क्रिया, दीक्षान्वय क्रिया तथा कर्त्रन्वय क्रिया।
प्रश्न ४५३—गर्भान्वन क्रिया किसे कहते हैं और वह कितनी हैं ?
उत्तर—गर्भाधान से लेकर निर्वाण पर्यन्त जो क्रियाएं सम्यग्दर्शन पूर्वक की जाती हैं वह गर्भान्वय क्रियाएं हैं, उनकी संख्या ५३ है।
प्रश्न ४५४—दीक्षान्वय क्रिया किसे कहते हैं ?
उत्तर—अवतार से लेकर मोक्ष प्राप्त होने तक मुक्तिसिद्ध करने वाली क्रियाएं दीक्षान्वय हैं। ये ४८ हैं।
प्रश्न ४५५—कर्त्रन्वय क्रियाएं किसे कहते हैं ?
उत्तर—सद्गृहित्व से लेकर सिद्ध पर्यन्त ७ कर्त्रन्वय क्रियाएं हैं।
प्रश्न ४५६—महाराजा मेघरथ ने दीक्षा से पूर्व क्या किया ?
उत्तर—उन्होंने नगर लौटकर अपने दृढ़रथ भाई को राजा बनने को कहा।
प्रश्न ४५७—क्या दृढ़रथ ने उसे स्वीकार किया ?
उत्तर—नहीं, उन्होंने भी वैरागी हो दीक्षा लेने का निश्चय किया।
प्रश्न ४५८—उस समय राजा मेघरथ ने क्या किया ?
उत्तर—उस समय राजा ने अपने पुत्र मेघनाद को राज्य दे दिया और भाई तथा अनेक राजाओं के साथ तीर्थंकर धनरथ के समीप दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ४५९—उनके साथ कितने हजार राजाओं ने दीक्षा ली ?
उत्तर—प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग एवं ध्यान।
प्रश्न ४६५—अनशन तप किसे कहते हैं ?
उत्तर—चारों प्रकार के आहार का त्याग करना अनशन (उपवास) तप है।
प्रश्न ४६६—अवमौदर्य तप किसे कहते हैं ?
उत्तर—तपश्चरण पालन करने के लिए अपनी क्षुधा से कुछ कम आहार लेना अवमौदर्य तप है।
प्रश्न ४६७—वृत्तपरिसंख्यान तप क्या है ?
उत्तर—आहार लेने के लिए एक ही घर जाने का नियम या एक ही गली में जाने का नियम अथवा चौराहे तक जाने का नियम इस प्रकार विलक्षण नियम पालन करने का नाम वृत्तपरिसंख्यान तप है।
प्रश्न ४६८—रस परित्याग तप क्या है ?
उत्तर—इन्द्रियों को वश में करने के लिए दूध, दही, तेल, घी, मिष्ठान, नमक इन छ: रसों का त्याग करना रस परित्याग व्रत है।
प्रश्न ४६९—विविक्त शैय्यासन किसे कहते हैं ?
उत्तर—पशु, पक्षी, नारी आदि से रहित गुफा आदि एकान्त स्थान में शयन—आसन करना विविक्त शय्यासन तप है”
प्रश्न ४७०—कायक्लेश तप किसे कहते हैं ?
उत्तर—व्युत्सर्ग के द्वारा अथवा वृक्ष के नीचे आतापन योग धारण कर जो दु:ख सहन किया जाता है उसे कायक्लेश तप कहते हैं।
प्रश्न ४७१—प्रायश्चित्त तप का क्या अर्थ है ?
उत्तर—पापों का नाश करने वाली आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक, कायोत्सर्ग, तप, छेद, परिहार, उपस्थान एवं श्रद्धान यह दस प्रकार का पापों को शुद्ध करने वाला प्रायश्चित्त कहलाता है।
प्रश्न ४७२—विनय तप किसे कहते हैं ?
उत्तर—ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप आदि के द्वारा बुद्धिमानों की तथा मुनि—गणधरों आदि की मन—वचन—काय की शुद्धिपूर्वक विनय करना विनय तप है।
प्रश्न ४७३—वैय्यावृत्त तप किसे कहते हैं ?
उत्तर—कर्मों को नष्ट करने के लिए सज्जनों को आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ज्ञानि, गण, कुल, संघ, साधु एवं मनोज्ञ इन दश प्रकार के मुनियों की सेवा सुश्रूषा करना वैय्यावृत्ति है।
प्रश्न ४७४—स्वाध्याय तप क्या है ?
उत्तर—इन्द्रियों को दमन करने के लिए मन—वचन काय की शुद्धिपूर्वक वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, धर्मोपदेश आदि पांच प्रकार का स्वाध्याय करना चाहिए।
प्रश्न ४७५—कायोत्सर्ग किसे कहते हैं ?
उत्तर—धीर—वीर पुरुषों को मोक्षप्राप्ति के लिए अपनी शक्ति के अनुसार बाह्य- आभ्यन्तर परिग्रहों का त्याग करना कायोत्सर्ग है।
प्रश्न ४७६—कायोत्सर्ग को और क्या कहा है ?
उत्तर—मोक्षरूपी रमणी का जनक।
प्रश्न ४७७—ध्यान के कितने भेद हैं ?
उत्तर—ध्यान के ४ भेद हैं—आर्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान।
प्रश्न ४७८—शुक्लध्यान के कितने भेद हैं ?
उत्तर—४ भेद हैं—पृथक्त्ववितर्क विचार, एकत्ववितर्क विचार, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाती और व्युपरतक्रिया निवृत्ति।
प्रश्न ४७९—ये चारों प्रकार के शुक्लध्यान कैसे हैं ?
उत्तर—ये चारों प्रकार के महाध्यान समस्त कर्मरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि के समान हैं।
प्रश्न ४८०—पांच प्रकार की समिति कौन सी हैं ?
उत्तर—ईर्या, भाषा, एषणा, आदान निक्षेपण और व्युत्सर्ग ।
प्रश्न ४८१—परीषह कितनी होती हैं उनके नाम क्या हैं ?
प्रश्न ४८२—मुनि मेघरथ ने तीर्थंकर नामक प्रकृति का बंध कहां किया ?
उत्तर—तीर्थंकर घनरथ के पादमूल में।
प्रश्न ४८३—इस प्रकृति का क्या महत्त्व है ?
उत्तर—तीर्थंकर नामकर्म की महिमा अनन्त है, यह अतिशय पुण्य का योग है, मनुष्य, देव, विद्याधर सब इसे नमस्कार करते हैं तथा यह तीनों लोकों को सुशोभित करने का निमित्त है।
प्रश्न ४८४—आचार्य किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो स्वयं पंचाचारों को पालें तथा शिष्यों से पलवाते हैं वे आचार्य हैं।
प्रश्न ४८५—पंचाचार किसे कहते हैं ?
उत्तर—ज्ञान, दर्शन, तप, चारित्र तथा वीर्य ये पंचाचार हैं।
प्रश्न ४८६—उपाध्याय किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो स्वयं श्रुतज्ञानरूपी अमृत का पान करते हैं एवं भव्यों को उस श्रुतज्ञानरूपी अमृत का पान करवाने के लिए सदैव उद्यत रहते हैं वे उपाध्याय हैं।
प्रश्न ४८७—मुनिराज मेघरथ का आहार कहाँ हुआ ?
उत्तर—श्रीपुर नगर के राजा श्रीषेण के यहाँ उनका आहार हुआ।
प्रश्न ४८८—आहार के समय क्या आश्चर्य घटित हुआ ?
उत्तर—पंचाश्चर्य की वृष्टि हुई।
प्रश्न ४८९—उनका दूसरा आहार कहाँ हुआ और क्या आश्चर्य प्रकट हुआ ?
उत्तर—उनका दूसरा आहार पुण्डरीकिणी नगरी के राजा सिंहसेन के यहाँ हुआ और वहाँ भी पंचाश्चर्य वृष्टि हुई।
प्रश्न ४९०—मुनिराज मेघरथ ने कहाँ तपस्या प्रारम्भ की ?
उत्तर—नभस्तलतिलक पर प्रायोपगमन सन्यास लिया।
प्रश्न ४९१—उनके साथ और कौन था ?
उत्तर—उनके अनुज दृढ़रथ मुनिराज।
प्रश्न ४९२—प्रायोपगमन किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिसमें प्राय: चारों आराधनाओं तथा तीनों रत्नत्रयों का आराधन प्राप्त हो उसको प्रायोपगमन कहते हैं, अथवा जिस शुभ प्रायोपगमन में पहले हिन्सा आदि से उत्पन्न हुए समस्त पापों के समूह प्राय: नष्ट हो जाएं उसको प्रायोपगमन कहते हैं अथवा जिसमें मनुष्य के निवास स्थान से पृथक् होकर वन में जाना पड़े वह प्रायोपगमन है।
प्रश्न ४९३—इस जीव के लिए सबसे दुर्लभ वस्तु क्या है ?
उत्तर—इस जीव को मनुष्य जन्म, श्रेष्ठकुल, निरोगी काया, पूर्ण आयु तथा उत्तम धर्म की प्राप्ति उत्तरोत्तर दुर्लभ है।
प्रश्न ४९४—चार प्रकार का धर्मध्यान कौन सा है ?
उत्तर—आज्ञाविचय, अपायविचय, विपाकविचय और संस्थानविचय।
सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र – ग्यारहवां भव
प्रश्न ४९५—मुनिराज अपनी आयु पूर्ण कर कहाँ जन्में ?
उत्तर—मुनिराज आत्मध्यान से प्राणों का त्यागकर रत्नत्रय के फल से ‘सर्वार्थसिद्धि’ नामक विमान में जाकर जन्में।
प्रश्न ४९६—इस विमान को और क्या कहते हैं ?
उत्तर—अनुत्तर विमान।
प्रश्न ४९७—सर्वार्थसिद्धि विमान की दूरी सिद्धशिला से कितनी है ?
उत्तर—सर्वार्थसिद्धि विमान सिद्धशिला से मात्र १२ योजन नीचे हैं तथा अन्य विमानों से ऊपर है।
प्रश्न ४९८—यह विमान किस प्रकार का है ?
उत्तर—यह विमान एक लाख योजन चौड़ा है, सूर्यमण्डल के समान है तथा समस्त पटलों के अंत में चूड़ा रत्न के समान है।
प्रश्न ४९९—अहमिन्द्र कहाँ—कहाँ विहार करते हैं ?
उत्तर—अहमिन्द्रों का परक्षेत्र में विहार कभी नहीं होता क्योंकि शुक्ल लेश्या के प्रभाव से उन्हें अपनी वस्तु के भोगों में ही सन्तोष रहता है।
प्रश्न ५००—अहमिन्द्रों का शरीर कैसा होता है ?
उत्तर—एक हाथ ऊँचा महादेदीप्यमान, उत्तम, समचतुरस्र संस्थान से अत्यन्त मनोज्ञ शरीर होता है।
प्रश्न ५०१—मुनि दृढ़रथ आयु पूर्ण कर कहाँ जन्में ?
उत्तर—सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुए।
प्रश्न ५०२—दोनों अहमिन्द्रों की आयु कितनी थी ?
उत्तर—३३ सागर।
प्रश्न ५०३—लेश्या कौन सी थी ?
उत्तर—उत्कृष्ट शुक्ल लेश्या।
प्रश्न ५०४—उनका आहार कैसा था ?
उत्तर—तेतीस हजार वर्ष व्यतीत होने पर वे दोनों तृप्तिदायक अमृतमय मानसिक दिव्य आहार ग्रहण करते थे।
प्रश्न ५०५—वे उच्छ्वास कितने अन्तराल पर लेते थे ?
उत्तर—तेतीस पक्ष अर्थात् साढ़े सोलह मास व्यतीत होने पर वे दोनों ही अहमिन्द्र स्वल्प उच्छ्वास लेते थे।
भगवान शान्तिनाथ — बारहवां भव
प्रश्न ५०६—हस्तिनापुर नगरी कहाँ स्थित है ?
उत्तर—जम्बूद्वीप के आर्यखण्ड में भारतवर्ष है वहाँ कुरुजांगल नामक देश में हस्तिनापुर नामक नगरी है।
प्रश्न ५०७—हस्तिनापुर नगरी की चारों दिशाओं में कौन निवास करते हैं ?
उत्तर—हस्तिनापुर नगरी के चतुर्दिक स्थित बाह्यवर्ती उद्यान समतुल्य जन्तु रहित वनों में ध्यानादिक की सिद्धि के लिए कामना रहित योगी एवं चतुर मुनि निवास किया करते हैं।
प्रश्न ५०८—वहाँ के निवासी कैसे हैं ?
उत्तर—वहाँ के निवासी धर्मात्मा, दानी, सुन्दर, धीर—वीर, शीलव्रतों का पालन करने वाले सम्यक्ज्ञानी एवं सम्यग्दृष्टि हैं।
प्रश्न ५०९—उस राज्य के राजा—रानी कौन थे ?
उत्तर—उस राज्य के महाराजा अजितसेन एवं रानी प्रियदर्शना थीं।
प्रश्न ५१०—उनके पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर—कुमार विश्वसेन।
प्रश्न ५११—महाराजा विश्वसेन कितने ज्ञान के धारी थे ?
उत्तर—तीन ज्ञान के धारी।
प्रश्न ५१२—उनकी रानी का नाम क्या क्या था ?
उत्तर—उनकी रानी का नाम ऐरादेवी था।
प्रश्न ५१३—ऐरादेवी किसकी पुत्री थीं ?
उत्तर—ऐरादेवी गान्धार देश के गान्धार नगर के महाराज अजितञ्जय एवं महारानी अजिता की पुत्री थीं।
प्रश्न ५१४—वह कौन से स्वर्ग से चयकर आई थीं ?
उत्तर—सानत्कुमार स्वर्ग से।
प्रश्न ५१५—उन्हें महाराज विश्वसेन ने कौन सा पद दिया था ?
उत्तर—पट्टरानी पद।
प्रश्न ५१६—राजा मेघरथ का जीव अहमिन्द्र की आयु पूर्ण कर कहां गया ?
उत्तर—वह स्वर्ग से चयकर महारानी ऐरादेवी के गर्भ में अवतीर्ण हुए।
प्रश्न ५१७—उनके गर्भ में आने से कितने माह पूर्व ऐरादेवी के आंगन में रत्नवृष्टि हुई ?
उत्तर—छ: माह पूर्व से।
प्रश्न ५१८—वह रत्नवृष्टि किसने और किसकी आज्ञा से की ?
उत्तर—वह रत्नवृष्टि धनकुबेर ने सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से की।
प्रश्न ५१९—उन्होंने गर्भ में आने में कितने माह तक रत्नवृष्टि की ?
उत्तर—जन्म से छ: माह पूर्व से जन्म तक अर्थात् लगातार १५ माह तक रत्नवृष्टि की।
प्रश्न ५२०—सौधर्म इन्द्र ने माता ऐरादेवी की सेवा के लिए कितनी और कौन सी देवियों को नियुक्त किया ?
उत्तर—सौधर्म इन्द्र ने षट् कुलपर्वतों पर निवास करने वाली श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बुद्धि एवं लक्ष्मी ऐसी छ: देवियों को नियुक्त किया।
प्रश्न ५२१—छहों देवियों ने माता का गर्भशोधन किस प्रकार किया ?
उत्तर—श्रीदेवी ने भगवान की माता में लक्ष्मी का, ह्री ने लज्जा का, धृति ने धैर्य का, कीर्ति ने स्तुति का, बुद्धि देवी ने ज्ञान का, लक्ष्मी देवी ने सम्पदा का रूप स्थापन किया।
प्रश्न ५२२—महारानी ऐरादेवी ने कब और कितने स्वप्न देखे ?
उत्तर—महारानी ऐरादेवी ने रात्रि के पिछले प्रहर में भगवान के जन्म को सूचित करने वाले श्रेष्ठतमप्रदायक सोलह स्वप्न देखे।
प्रश्न ५२३—वह सोलह स्वप्न क्या थे ?
उत्तर—(१) ऐरावत हाथी, (२) वृषभ, (३) सिंह, (४) लक्ष्मी, (५) दो मालाएँ, (६) चन्द्रमा, (७) सूर्य, (८) सुवर्णमय कलश, (९) सरोवर में तैरती दो मछलियाँ, (१०) जल से परिपूर्ण सरोवर, (११) समुद्र (लहरों वाला), (१२) सिंहासन, (१३) देव विमान, (१४) नागेन्द्र भवन, (१५) रत्नों की महाराशि, (१६) मुखकमल में प्रवेश करता गजराज।
प्रश्न ५२४—महाराज मेघरथ का जीव कौन से स्वर्ग से चयकर कौन सी तिथि में माता के गर्भ में आए ?
उत्तर—भाद्रपद कृष्णा सप्तमी के दिन भरणी नक्षत्र में राजा मेघरथ का जीव सर्वार्थसिद्धि विमान से चयकर महादेवी ऐरा के पवित्र गर्भ में आए।
प्रश्न ५२५—महारानी ऐरादेवी ने उन स्वप्नों का फल किससे प्राप्त किया ?
उत्तर—महाराजा विश्वसेन से।
प्रश्न ५२६—पर्वताकार विशालकाय गजराज देखने का फल क्या था ?
उत्तर—उसका फल था—ऐरादेवी का वह पुत्र महान् यशस्वी तीर्थंकर पुत्र होगा, वह राज्य करेगा, समस्त संसार उसकी पूजा करेगा एवं वह तीनों लोकों का परम उपकारी होगा।
प्रश्न ५२७—घनघोर हुंकार करता हुआ उत्तुंग वृषभ देखने का फल क्या था ?
उत्तर—वह तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ होगा एवं संसार में धर्मरूपी रथ को चलाने में सर्वश्रेष्ठ होगा।
प्रश्न ५२८—सिंह को देखना क्या सूचित करता है ?
उत्तर—सिंह को देखने से उसमें अनन्त शक्ति होगी एवं समस्त अशुभ कर्मरूपी गजराजों का मद निवारण करने के लिए एवं उनका विनाश करने के लिए वह सिंह के सदृश समर्थ होगा।
प्रश्न ५२९—ऐरावत गजराजों के द्वारा जलाभिषिक्त लक्ष्मी को देखने का फल क्या है ?
उत्तर—लक्ष्मी के देखने से सब इन्द्रों के द्वारा क्षीरसागर के जल से मेरूपर्वत के ऊपर उसका महान ऋद्धियों को सूचित करने वाला महाभिषेक होगा।
प्रश्न ५३०—लटकती हुई दो मालाएं देखने का फल क्या है ?
उत्तर—दो मालाओं को देखने से वह अनेक प्रकार के सुखप्रदायक धर्मतीर्थ का कर्ता होगा।
प्रश्न ५३१—पूर्ण चन्द्रमा देखने का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर—पूर्ण चन्द्रमा को देखने से वह जीवों को प्रसन्न करने वाला एवं समस्त संसार को आनन्द देने वाला होगा एवं धर्मरूपी अमृत की महावृष्टि से भव्य प्राणी रूपी धान्यों को सींचने वाला होगा।
प्रश्न ५३२—उदय होता हुआ सूर्य देखने का फल क्या है ?
उत्तर—सूर्य के देखने से संसार के समस्त रूपों पर विजय पाने वाला होगा, सूर्य समतुल्य कान्ति होगी। वह कामदेव, रूपवान एवं तीर्थंकर होगा तथा दिव्य परमाणुओं से उसकी देह की रचना होगी।
प्रश्न ५३३—दो सुन्दर मत्स्य देखने का फल क्या है ?
उत्तर—दो मत्स्यों को देखने से मनुष्यलोक तथा स्वर्गलोक के समस्त सुख उसे प्राप्त होंगे तथा उसका हृदय सम्पूर्ण जीवों पर दया करने वाला होगा।
प्रश्न ५३४—अमृत से परिपूर्ण दो कुम्भ देखने का अर्थ क्या है ?
उत्तर—दो कलशों को देखने से उसे अखण्ड निधियाँ प्राप्त होंगी, वह धर्मरूपी अमृत से भरपूर होगा, तीर्थंकर होगा, अनेक ऋद्धियों से सुशोभित होगा एवं समवसरण की विभूति उसे प्राप्त होगी।
प्रश्न ५३५—स्वच्छ जल से परिपूर्ण एवं पद्म पुष्पों से शोभायमान सरोवर का देखना क्या दर्शाता है ?
उत्तर—सरोवर को देखने से उसकी काया पर एक सौ आठ लक्षण तथा नौ सौ व्यञ्जन होंगे, वह कला, विज्ञान में चतुर होगा।
प्रश्न ५३६—रत्नों से परिपूर्ण समुद्र देखने का क्या अर्थ है ?
उत्तर—समुद्र के देखने से वह अनन्त दर्शन, अनन्तज्ञान तथा अनन्तवीर्य का धारक होगा तथा रत्नत्रय आदि रत्नों की खानि होगा।
प्रश्न ५३७—स्वर्णनिर्मित सिंहासन का देखना क्या सूचित करता है ?
उत्तर—सिंहासन के देखने से वह जगत्गुरु जिनेन्द्र भगवान इन्द्र, नरेन्द्र आदि के द्वारा मान्य होगा तथा समस्त भोगों का स्थान साम्राज्य प्राप्त करेगा।
प्रश्न ५३८—स्वर्ग से आता हुआ विमान देखने का फल क्या है ?
उत्तर—देवों के द्वारा पूज्य वह तीर्थंकर भगवान धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति करने हेतु स्वर्ग से आकर अवतार लेंगे।
प्रश्न ५३९—पृथ्वी विदीर्ण कर निकलता हुआ नागेन्द्र भवन देखने का मतलब क्या है ?
उत्तर—नागेन्द्र का भवन देखने से उसके समस्त संसार को प्रकट करने वाला अवधिज्ञान होगा तथा इहलोक व परलोक सम्बन्धी हित—अहित के ज्ञान में वह निपुण होगा।
प्रश्न ५४०—रत्नराशि का समूह देखने का फल क्या है ?
उत्तर—रत्नराशि के देखने से वह तीर्थंकर अनन्त गुणों की खानि होगा तथा विश्वविश्रुत नररत्न होगा।
प्रश्न ५४१—निर्धूम अग्नि का देखना क्या दर्शाता है ?
उत्तर—निर्धूम अग्नि के देखने से वह तीर्थंकर भगवान अपने शुक्लध्यान रूपी अग्नि से कर्मरूपी ईंधन के प्रचण्ड समूह को भस्मीभूत करने में अवश्य समर्थ होगा।
प्रश्न ५४२—मुख में गजराज को प्रवेश करते देखना क्या सूचित करता है ?
उत्तर—उसका फल यह था कि महारानी ऐरादेवी के पवित्र गर्भ में तीर्थंकर ने अवतार ले लिया है।
प्रश्न ५४३—भगवान के गर्भावतरण का स्वर्गों में क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर—भगवान के गर्भावरण के प्रभाव से इन्द्रों के आसन प्रकम्पित हो उठे तथा उनके मुकुट स्वयं ही कुछ नत हो गए।
प्रश्न ५४४—चतुर्निकाय के देवों के यहाँ भगवान के गर्भावतरण पर क्या आश्चर्य प्रकट हुए ?
उत्तर—व्यन्तर देवों के यहाँ स्वयमेव भेरीनाद होने लगा, ज्योतिर्लोक में तुमुल सिंहनाद होने लगा और भवनवासी देवों के यहाँ स्वयमेव शंखध्वनि होने लगी।
प्रश्न ५४५—भगवान का गर्भकल्याणक मनाने हेतु हस्तिनापुरी में कौन—२ से देवगण आए ?
उत्तर—चतुर्निकाय के देव अपनी सेना, परिकर आदि के साथ आए।
प्रश्न ५४६—भगवान का गर्भकल्याणक सौधर्म इन्द्र ने किस प्रकार मनाया ?
उत्तर—सर्वप्रथम सौधर्म इन्द्र ने अपने परिकर के साथ आकर माता के गर्भ में विराजमान भगवान की तीन प्रदक्षिणा दीं फिर दिव्य वस्त्राभरणों से भगवान के माता—पिता की पूजा कर ‘आनन्द’ नाम का उत्तम नाटक किया और माता की सेवा हेतु दिक्कुमारियों को नियुक्त कर अपने—स्थान को चला गया।
प्रश्न ५४७—नवम मास समीप आने पर दिक्कुमारियों ने क्या प्रारम्भ किया ?
उत्तर—उन्होंने माता से विशेष काव्य चर्चा करना प्रारम्भ किया।
प्रश्न ५४८—इस संसार में सत्पुरुष कौन है ?
उत्तर—जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पदार्थों को सिद्ध कर मोक्ष में जा विराजमान हुआ है वही सत्पुरुष या सज्जन है।
प्रश्न ५४९—इस संसार में कायर पुरुष कौन है ?
उत्तर—जो इन पुरुषार्थों को सिद्ध नहीं करता वही कायर है।
प्रश्न ५५०—कौन से मनुष्य सिंह के समान समझे जाते हैं ?
उत्तर—जो इन्द्रियों के संग—संग कामदेव रूपी दुर्धर हस्ती को परास्त करते हैं वे ही मनुष्य सिंह कहलाते हैं।
प्रश्न ५५१—इस संसार में नीच पुरुष कौन हैं ?
उत्तर—जो मनुष्य सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान, सम्यग्चारित्र, धर्म एवं तप को अपनाकर भी उन्हें त्याग देते हैं वे नीच हैं।
प्रश्न ५५२—विद्वान कौन हैं ?
उत्तर—जो शास्त्रों का अध्ययन कर पाप, मोह तथा अशुभ कार्य में प्रवृत्ति नहीं करते हैं तथा विषयों में आसक्त नहीं होते हैं वे ही व्रती विद्वान कहलाते हैं।
प्रश्न ५५३—इस संसार में मूर्ख कौन हैं ?
उत्तर—जो शास्त्रों का ज्ञान रखते हुए एवं उनका मनन करते हुए भी पाप, मोह, इन्द्रियों की आसक्ति एवं कुमार्ग को नहीं त्यागते हैं वे ही संसार में मूर्ख हैं।
प्रश्न ५५४—इस संसार में जन्मान्ध कौन हैं ?
उत्तर—जो तीर्थंकर परमदेव, धर्म, गुरु एवं शास्त्रों के दर्शन नहीं करते वे जन्मान्ध हैं तथा जो कामान्ध हैं वे विशेष रूप से जन्मान्ध हैं।
प्रश्न ५५५—इस संसार में बधिर कौन हैं ?
उत्तर—जो अरहन्त देव के द्वारा वर्णित शास्त्रों को तथा धर्मोपदेश के हितकारक वाक्यों को नही सुनते हैं, वे ही बधिर कहलाते हैं।
प्रश्न ५५६—इस संसार में लंगड़े कौन हैं ?
उत्तर—जो प्रमादी न तो तीर्थयात्रा करते हैं, न किसी धर्मकार्य में तत्पर होते हैं और न ही मुनियों को नमस्कार करते हैं वे ही लंगड़े गिने जाते हैं।
प्रश्न ५५७—गूंगे कौन हैं ?
उत्तर—जो शास्त्रों के ज्ञाता होते हुए भी अवसर आने पर हित—मित एवं प्रिय वचन नहीं कहते हैं, वे गूंगे कहलाते हैं।
प्रश्न ५५८—इस संसार में विवेकी कौन हैं ?
उत्तर—जो देव—कुदेव, धर्म—अधर्म, पात्र—अपात्र तथा शास्त्र—कुशास्त्र का विचार करते हैं वे ही विवेकी हैं।
प्रश्न ५५९—इस संसार में अविवेकी कौन है ?
उत्तर—जो गुरु—कुगुरु, बन्ध—मोक्ष, तथा पुण्य—पाप का विचार नहीं करते वे ही अविवेकी हैं।
प्रश्न ५६०—धीर—वीर कौन हैं ?
उत्तर—जो मन, इन्द्रिय, काम तथा परीषह—कषाय आदि से परास्त नहीं होते वे धीर—वीर कहलाते हैं।
प्रश्न ५६१—अधीर कौन हैं ?
उत्तर—जो कामदेव रूपी योद्धा के द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर चारित्र रूपी युद्धक्षेत्र से तत्काल ही पलायन कर जाते हैं वे ही अधीर कहलाते हैं।
प्रश्न ५६२—इस संसार में पूज्य तथा प्रशंसनीय कौन हैं ?
उत्तर—जो घोर परीषह तथा उपसर्गों के आने पर भी ग्रहण किए हुए शुभ चारित्र को नहीं त्यागते, वे ही प्रशंसनीय हैं।
प्रश्न ५६३—इस संसार में निन्द्य कौन हैं ?
उत्तर—जो कामदेव रूपी शत्रु से पीड़ित होकर ग्रहण किए हुए तप, चारित्र तथा संयम आदि को त्याग देते हैं, वे निन्द्य हैं।
प्रश्न ५६४—रात्रि में जागरण करने वाले कौन हैं ?
उत्तर—जो ज्ञानरूपी सूर्य को हृदय में धारण कर एवं मोहरूपी रात्रि का नाशकर आत्मा का ध्यान करते हैं, वे ही रात्रि में जागरण करने वाले कहलाते हैं।
प्रश्न ५६५—निद्रामग्न कौन कहलाते हैं ?
उत्तर—जो मोहरूपी निद्रा के वशीभूत हुए हृदय में विराजमान ज्ञानरूपी सूर्य को नहीं पहचान पाते हैं एवं न आत्मा के ध्यान को ही जानते हैं वे ही निद्रामग्न कहलाते हैं।
प्रश्न ५६६—इस संसार में गुणी कौन हैं ?
उत्तर—जो सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र एवं तप से विभूषित हैं तथा मुक्तिरूपी रमणी के प्रिय हैं एवं आत्मा का हित करने वाले हैं वे ही गुणी कहलाते हैं।
प्रश्न ५६७—निर्गुणी कौन हैं ?
उत्तर—जो सम्यग्दर्शन, चारित्र, दान, शील, तप तथा श्रीजिनपूजा से रहित हैं वे निर्गुणी कहलाते हैं।
प्रश्न ५६८—जन्म किनका सफल है ?
उत्तर—जिन धीर पुरुषों ने रत्नत्रयादि के द्वारा मोक्ष को अपने वश में कर लिया है, उन्हीं का जन्म सफल है।
प्रश्न ५६९—निष्फल जन्म किसका है ?
उत्तर—जो तप, चारित्र, व्रत, दान, पूजा आदि नहीं करते, उन्हीं का जन्म इस संसार में निष्फल है।
प्रश्न ५७०—शीघ्र करने योग्य कार्य कौन सा है ?
उत्तर—कर्मों का नाश करने वाले एवं संसार को पूर्ण करने वाले तप, धर्म, व्रत, दान, पूजा, परोपकार आदि कार्यों को यथाशीघ्र करना चाहिए।
प्रश्न ५७१—मनुष्यों के लिए कठिन शल्य क्या है ?
उत्तर—जो जीव हिंसादिक पाप व अनाचार का गुप्त रीति से सेवन करते हैं वही उनके लिए कठिन शल्य के समान चुभता रहता है।
प्रश्न ५७२—संसार में अत्यन्त दुर्लभ मनुष्य कौन है ?
उत्तर—जो कभी दूसरे की निन्दा नहीं करते हैं एवं आत्मध्यान, अध्ययन आदि आत्मा के कार्यों में सदैव तत्पर रहते हैं, ऐसे ही मनुष्य संसार में दुर्लभ हैं।
प्रश्न ५७३—पक्षपात कहाँ करना चाहिए ?
उत्तर—धर्म में, साधर्मी पुरुषों में, शास्त्र में, श्रीजिनप्रतिमा में, श्री जिनचैत्यालय में एवं भगवान श्रीजिनेन्द्रदेव के वर्णित सत्यमार्ग में पक्षपात अवश्य करना चाहिए।
प्रश्न ५७४—मध्यस्थ भाव कहाँ रखना चाहिए ?
उत्तर—संसार में जो पुरुष रागी हैं, द्वेषी हैं, तीव्र मिथ्यात्व रूपी पिशाच से ग्रस्त हैं एवं दुष्ट हैं उनके प्रति सदैव मध्यस्थ भाव रखना चाहिए।
प्रश्न ५७५—अहर्निश क्या चिन्तवन करना चाहिए ?
उत्तर—अहर्निश धर्मध्यान का, संसार की असारता का शास्त्रों की आज्ञा का, मोक्ष प्राप्ति का, तप करने का एवं राग को घटाने का चिन्तवन सर्वदा करना चाहिए।
प्रश्न ५७६—इस संसार में उत्तम रमणी कौन है ?
उत्तर—जो शीलवती रमणी श्री तीर्थंकर देव सदृश नर रत्नों को उत्पन्न करती है वह रमणी ही सर्वोत्तम है।
प्रश्न ५७७—जो नित्य रमणी में आसक्त होते हुए भी अनासक्त हैं, जो कामी होते हुए भी विरक्त हैं, जो लोभ रहित होकर भी अत्यन्त ही लोभी है एवं जो कभी स्नान न करने पर भी पवित्र रहता है, वह कौन है ?
उत्तर—जो नित्य रमणी में आसक्त रहते हुए भी अनासक्त है, जो कामी अर्थात् काम्य पदार्थ मोक्ष की सिद्धि करने वाला है इसलिए वह राग द्वेष युक्त होता हुआ भी विरक्त है, जो लाभरहित होने पर भी मुक्ति की कामना करता है इसलिए वह लोभी है, कभी स्नान न करने पर भी सदा पवित्र रहता है वह मुनि है।
प्रश्न ५७८—गुप्त रीति से देवियों के साथ मात की सेवा और कौन करता था ?
उत्तर—शचि इन्द्राणी।
प्रश्न ५७९—भगवान का जन्म किस तिथि और किस नक्षत्र में हुआ ?
उत्तर—भगवान का जन्म ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी के दिवस प्रात:काल भरणी नक्षत्र में हुआ।
प्रश्न ५८०—भगवान के जन्म लेते ही स्वर्गों में क्या आश्चर्य हुआ ?
उत्तर—भावी तीर्थंकर के उत्पन्न होते ही स्वर्ग में समुद्र की गर्जना के सदृश प्रचण्ड घण्टानाद होने लगा, बिना प्रयास के विशालकाय नगाड़े बजने लगे, सुगन्धित वायु चलने लगी, कल्पवृक्षों से पुष्पवृष्टि होने लगी, इन्द्रों के आसन अकस्मात् कम्पित होने लगे, इन्द्रों के मुकुट स्वयमेव झुक गए।
प्रश्न ५८१—उन आश्चर्यों को देख इन्द्र को क्या ज्ञात हुआ ?
उत्तर—उन आश्चर्यों को देख इन्द्र ने अपने अवधिज्ञान से भगवान का जन्म होना जान लिया और जन्मकल्याणक के लिए सन्नध हो गए।
प्रश्न ५८२—भगवान के जन्मकल्याणक में कौन—कौन से देव गए ?
उत्तर—चतुर्निकाय के देव अपनी देवांगनाओं एवं विशाल सेना के साथ गए।
प्रश्न ५८३—सौधर्म इन्द्र की सेना कैसी थी ?
उत्तर—सौधर्म इन्द्र की सेना में सर्वप्रथम वृषभ, फिर रथ, अश्व, गज, नृत्य करने वाले गन्धर्व एवं सेवकवर्ग क्रम से थे।
प्रश्न ५८४—वृषभों की सेना कितनी थी ?
उत्तर—वृषभों की सेना सप्त प्रकार की थी, प्रथम सेना में ८४ लाख वृषभ, द्वितीय में एक करोड़ अड़सठ लाख वृषभ, तृतीय में छत्तीस लाख वृषभ, चतुर्थ में छ: करोड़ बहत्तर लाख वृषभ, पंचम में तेरह करोड़ चवालीस लाख वृषभ, षष्ठ में छब्बीस करोड़ अठासी लाख वृषभ, सप्तम में तिरेपन करोड़ अड़सठ लाख वृषभ थे।
प्रश्न ५८५—अन्य सेना कितनी थी ?
उत्तर—अन्य सेना भी वृषभों की सेना के समान ही थी।
प्रश्न ५८६—इन्द्र के ऐरावत गजराज की रचना किसने की ?
उत्तर—नागदत्त नामक आभियोग्य जाति के देवों के अधिपति ने ऐरावत गजराज की रचना की।
प्रश्न ५८७—वह गजराज कैसा था ?
उत्तर—उस गजराज ऐरावत के ३२ मुख थे, ८—८ दांत थे, प्रत्येक दांत पर एक—एक सरोवर था, प्रत्येक सरोवर में एक—एक मनोहर कमलिनी थी, प्रत्येक कमलिनी पर ३२ पद्मपुष्प थे, एक—एक पद्म पर बत्तीस दल थे, प्रत्येक दल पर श्रीजिनेन्द्र भगवान की मंदस्मित मुद्रा में छवि थी एवं उनमें प्रत्येक पर बत्तीस अप्सराएं नृत्य कर रही थीं।
प्रश्न ५८८—कल्पवासी में दश प्रकार के देव कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत एवं पिशाच।
प्रश्न ५९२—शचि इन्द्राणी ने माता के प्रसूतिगृह में जाकर क्या किया ?
उत्तर—शचि ने जगत्गुरु भगवान की कई प्रदक्षिणाएँ देकर उन्हें नमस्कार किया, पुन: माता की स्तुति कर उन्हें मायामयी निद्रा में सुलाकर एक मायामयी शिशु को रखकर भगवान को लाकर सौधर्म इन्द्र को सौंप दिया।
प्रश्न ५९३—अष्ट मंगल द्रव्य कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—छत्र, ध्वजा, कलश, चमर, सुप्रतिष्ठ, भृंगार, दर्पण एवं पंखा।
प्रश्न ५९४—सौधर्म इन्द्र ने भगवान के रूप को कितने नेत्र बनाकर देखा ?
उत्तर—१००० नेत्र।
प्रश्न ५९५—सौधर्म इन्द्र ने भगवान का जन्माभिषेक कहां पर किया ?
उत्तर—सुमेरूपर्वत की पाण्डुकशिला पर।
प्रश्न ५९६—सुमेरू पर्वत का विस्तार कितना है ?
उत्तर—सुमेरू पर्वत धरातल के नीचे एक हजार योजन विस्तृत है और धरातल के ऊपर निन्यानवें सहस्र योजन ऊँचा है। उसकी चौड़ाई भूतल के समीप १०,०००० योजन है एवं वनों से सुशोभित मस्तक पर एक हजार योजन है।
प्रश्न ५९७—सुमेरू पर्वत की चूलिका का विस्तार कितना है ?
उत्तर—सुमेरू पर्वत की चूलिका मूल में १२ योजन चौड़ी, शिखर पर ४ योजन चौड़ी, मध्य में आठ योजन चौड़ी एवं नीचे से ऊपर तक चालीस योजन ऊँची है।
प्रश्न ५९८—तीर्थंकर भगवान का जन्माभिषेक कहाँ होता है ?
उत्तर—सुमेरू पर्वत की पाण्डुकशिला पर।
प्रश्न ५९९—वह पाण्डुकशिला कहाँ स्थित है ?
उत्तर—वह पाण्डुक शिला ईशान दिशा में स्थित है।
प्रश्न ६००—पाण्डुकशिला का विस्तार कितना है ?
उत्तर—पाण्डुकशिला १०० योजन लम्बी, ५० योजन चौड़ी एवं ८ योजन ऊँची हैं।
प्रश्न ६०१—वह शिला किस आकार की है ?
उत्तर—वह शिला शाश्वत है एवं अर्धचन्द्राकार है।
प्रश्न ६०२—उस शिला के मध्य भाग में क्या है ?
उत्तर—पूर्वमुखी रत्नजटित सिंहासन।
प्रश्न ६०३—उसके आजू—बाजू क्या हैं ?
उत्तर—उसके आजू—बाजू भी दो सिंहासन हैं।
प्रश्न ६०४—उन सिंहासनों का प्रयोग कौन करता है ?
उत्तर—उन सिंहासनों पर खड़े होकर सौधर्म और ईशान इन्द्र भगवान का अभिषेक करते हैं।
प्रश्न ६०५—मध्य सिंहासन का क्या प्रयोग है ?
उत्तर—मध्य सिंहासन पर ही तीर्थंकर भगवान को विराजमान कर क्षीरसागर के जल से इन्द्रगण उनका जन्माभिषेक करते हैं।
प्रश्न ६०६—उस सिंहासन का विस्तार कितना है ?
उत्तर—५०० धनुष ऊँचा एवं २५० धनुष चौड़ा।
प्रश्न ६०७—भगवान का प्रथम अभिषेक किसने किया ?
उत्तर—सौधर्म इन्द्र ने।
प्रश्न ६०८—जिन कलशों में क्षीरसागर से जल लाया जा रहा था, उनका विस्तार कितना था ?
उत्तर—स्वर्णमयी वह कलश १ योजन चौड़ा, आठ योजन गहरा, मणियों से व्याप्त था।
प्रश्न ६०९—अभिषेक करने हेतु इन्द्रगण किस प्रकार खड़े थे ?
उत्तर—वे जल लाकर अभिषेक करने हेतु मेरूपर्वत से लेकर क्षीरसागर तक पंक्तिबद्ध खड़े थे।
प्रश्न ६१०—गन्धोदक से भगवान का अभिषेक कर इन्द्रों ने क्या घोषणा की ?
उत्तर—गन्धोदक से भगवान का अभिषेक कर संसार की शान्ति के लिए इन्द्रों ने उच्च स्वर में शांति की घोषणा की।
प्रश्न ६११—देवों ने उस गन्धोदक का क्या किया ?
उत्तर—देवों ने अपनी आत्मा को शांत करने के लिए उस गंधोदक को पहले मस्तक पर लगाया, फिर सम्पूर्ण देह पर लगाया एवं शेष भेंट स्वरूप स्वर्ग को ले गए।
प्रश्न ६१२—भगवान के जन्माभिषेक के पश्चात् इन्द्र—इन्द्राणी ने क्या किया ?
उत्तर—अभिषेक समाप्त होने पर इन्द्राणी ने बालक भगवान का श्रृंगार किया और इन्द्र ने विक्रिया से हजार नेत्र बनाकर भगवान का रूप निरखा।
प्रश्न ६१३—क्या कुण्डल पहनाने हेतु इन्द्राणी ने भगवान का कर्णछेदन किया ?
उत्तर—नहीं, भगवान के कर्णों में जन्मजात छिद्र थे इसलिए इन्द्राणी ने उनमें सूर्य—चन्द्र के समतुल्य कांतिवान मनोहर कुण्डल पहनाए।
प्रश्न ६१४—भगवान का अलंकार कर इन्द्रगण कहां गए ?
उत्तर—भगवान के श्रृंगार एवं स्तुति आदि के बाद इन्द्रगण वापस हस्तिनापुर नगरी आए एवं जिनशिशु को माता—पिता को सौंपकर भगवान के माता—पिता की स्तुति की पुन: वहाँ भी जन्मकल्याणक मनाते हुए आनन्द नामक नाटक एवं ताण्डव नृत्य कर सौधर्म इन्द्र अपने परिकर के साथ स्वर्ग चले गए।
प्रश्न ६१५—भगवान का नामकरण किसने और क्या किया ?
उत्तर—भगवान का ‘शांतिनाथ’ नामकरण सौधर्म इन्द्र ने किया।
प्रश्न ६१६—तीर्थंकर की प्रतिमा में चिन्ह क्यों होते हैं ?
उत्तर—ऊनकी पहचान के लिए।
प्रश्न ६१७—उनके चिन्ह का निर्धारण कौन, कैसे करता है ?
उत्तर—भगवान के चिन्ह का निर्धारण सौधर्म इन्द्र उनके दाहिने पैर के अंगूठे में बने चिन्ह को देखकर करता है।
प्रश्न ६१८—राजा विश्वसेन की दूसरी रानी का क्या नाम था ?
उत्तर—रानी यशस्वती।
प्रश्न ६१९—दृढ़रथ कुमार का जीव सर्वार्थसिद्धि से चयकर कहाँ जन्मा ?
उत्तर—दृढ़रथ का जीव सर्वार्थसिद्धि से चयकर महाराज विश्वसेन एवं रानी यशस्वती का पुत्र चक्रायुध हुआ।
प्रश्न ६२०—भगवान शान्तिनाथ के संग क्रीड़ा करने कौन आता था ?
उत्तर—स्वर्ग से देवगण बालक का रूप धरकर भगवान शांतिनाथ के संग क्रीड़ा करते थे।
प्रश्न ६२१—भगवान शांतिनाथ के जन्म से कितने ज्ञान थे ?
उत्तर—मति, श्रुत एवं अवधि ऐसे तीन ज्ञान थे।
प्रश्न ६२२—भगवान शांतिनाथ ने आठ वर्ष की आयु में किनसे, कितने व्रत ग्रहण किए थे ?
उत्तर—भगवान ने आठ वर्ष की अल्पायु में गृहस्थ धर्म पालन की अभिलाषा से पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये द्वादश व्रत स्वयं धारण किए।
प्रश्न ६२३—भगवान शान्तिनाथ की आयु किने वर्ष की थी ?
उत्तर—एक लाख वर्ष।
प्रश्न ६२४—उनके शरीर की अवगाहना कितनी थी ?
उत्तर—चालीस धनुष प्रमाण।
प्रश्न ६२५—भगवान शांतिनाथ कितने अतिशयों से युक्त थे ?
उत्तर—३४ अतिशय—जन्म के १०, देवकृत १४ एवं केवलज्ञान के १० अतिशय।
प्रश्न ६२६—उनकी काया का संस्थान क्या था ?
उत्तर—समचतुरस्र संस्थान।
प्रश्न ६२७—भगवान शांतिनाथ के शरीर में कितने लक्षण एवं कितने व्यञ्जन थे ?
उत्तर—भगवान शांतिनाथ के शरीर में १०८ लक्षण एवं ९०० व्यञ्जन थे।
प्रश्न ६२८—भगवान शांतिनाथ ने कुमार अवस्था में कितने वर्ष व्यतीत किए ?
उत्तर—२५ हजार वर्ष।
प्रश्न ६२९—उनका राज्याभिषेक किसने, कब, किसकी आज्ञा से किया ?
उत्तर—उनका राज्याभिषेक कुमारावस्था के २५ हजार वर्ष बीतने पर महाराजा विश्वसेन ने इन्द्र की आज्ञा से किया।
प्रश्न ६३०—भगवान शांतिनाथ ने कितने हजार वर्ष तक महामण्डलेश्वर राज्यलक्ष्मी का सुख भोगा ?
उत्तर—२५ हजार वर्ष तक।
प्रश्न ६३१—उनके यहाँ चौहद रत्नों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर—२५ हजार वर्ष तक महामण्डलेश्वर राजलक्ष्मी के अनुपम सुख को भोगने के बाद पृथ्वी को वश में करने वाले चक्र आदि १४ रत्न उनके यहाँ प्रकट हुए थे।
प्रश्न ६३३—आयुधशाला में कौन से रत्न प्रगट हुए थे ?
उत्तर—चक्र, छत्र, खड्ग एवं दण्ड ये चार रत्न आयुधशाला में प्रकट हुए थे।
प्रश्न ६३४—श्रीगृह में कितने रत्न उत्पन्न हुए थे ?
उत्तर—कांकिणी, चर्म एवं चूड़ामणि ये तीन रत्न श्रीगृह में उत्पन्न हुए थे।
प्रश्न ६३५—हस्तिनापुर में कौन से रत्न उत्पन्न हुए थे ?
उत्तर—पुरोहित, शिलावट, सेनापति एवं गृहपति ये चार रत्न हस्तिनापुरी में उत्पन्न हुए थे।
प्रश्न ६३६—विजयार्ध पर्वत पर कौन से रत्न उत्पन्न हुए और उन्हें किसने लाकर दिया ?
उत्तर—कन्या, गज और अश्व ये तीन रत्न विजयार्ध पर्वत पर उत्पन्न हुए जिन्हें विद्याधरों ने लाकर भगवान को समर्पित किया।
प्रश्न ६३७—नव निधियाँ कहाँ प्रकट हुईं एवं उन्हें किसने अर्पण किया ?
उत्तर—नव निधियाँ नदी एवं समुद्र के संगम पर प्रकट हुई थीं जो कि उनके पुण्य कर्म के उदय से गणबद्ध जाति के व्यन्तर देवों ने लाकर भगवान को भक्तिपूर्वक अर्पण की थीं।
प्रश्न ६३८—भगवान शांतिनाथ ने कितने वर्ष में षट्खण्ड पृथ्वी को जीता ?
उत्तर—८०० वर्ष में।
प्रश्न ६३९—षट्खण्ड पृथ्वी को जीतकर वे क्या कहलाए ?
उत्तर—चक्रवर्ती।
प्रश्न ६४०—चक्रवर्ती के कितनी हजार रानियाँ होती हैं ?
उत्तर—९६ हजार।
प्रश्न ६४१—चक्रवर्ती का वैभव कैसा है ?
उत्तर—चक्रवर्ती के ८४ लाख हाथी, १८ करोड़ घोड़े, १४ रत्न, नवनिधियाँ, ८४ करोड़ पदातिक थे, बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजा उनके चरणों में शीश झुकाते थे, बत्तीस हजार नाटक होते थे, बत्तीस हजार देश थे, बहत्तर हजार नगर थे, छियानवे करोड़ ग्राम थे, निन्यानवे हजार द्रोणमुख, अड़तालीस हजार पत्तन थे, सोलह हजार खेट थे, छप्पन अंतरद्वीप थे, १४ हजार सम्वाहन थे, २८ हजार दुर्ग थे, २८ हजार म्लेच्छ राजा उनकी सेवा में रहते थे, उनकी पाकशाला में एक करोड़ हण्डे थे, एक लाख हल थे, तीन करोड़ गाएं थीं, सात सौ कुक्षवास् (निवास) थे।
प्रश्न ६४२—नव निधियाँ कौन—कौन सी हैं, नाम बताइये ?
उत्तर—काल, महाकाल, नैसर्प, पाण्डुक, पद्म, माणव, पिङ्गल, शङ्ख एवं सर्वरत्न।
प्रश्न ६४३—काल निधि का क्या कार्य है ?
उत्तर—काल निधि से लौकिक शब्द प्रकट करने वाली वस्तुएँ निकला करती थीं।
प्रश्न ६४४—महाकाल निधि क्या प्रदान करती है ?
उत्तर—महाकाल निधि असि, मषि आदि षट्कर्मों के योग्य सर्वप्रकारेण साधन प्रदान करती थी।
प्रश्न ६४५—नैसर्प निधि का क्या कार्य है ?
उत्तर—शैय्या, आसन, गृह आदि नैसर्प निधि से प्राप्त होते हैं।
प्रश्न ६४६—पाण्डुक निधि से क्या होता है ?
उत्तर—धान्य तथा षट् रसों की उत्पत्ति पाण्डुक निधि से होती है।
प्रश्न ६४७—पद्म निधि क्या प्रदान करती है ?
उत्तर—पद्म निधि रेशमी वस्त्र, दुपट्टा आदि वस्त्रों को प्रदान करती है।
प्रश्न ६४८—शंख निधि क्या प्रदान करती है ?
उत्तर—शास्त्रों की उत्पत्ति तथा सुवर्ण आदि की प्राप्ति भी इसनिधि से होती है।
प्रश्न ६४९—पिंगल निधि से क्या मिलता है ?
उत्तर—पिंगल निधि चक्रवर्ती के लिए सर्वप्रकार के दिव्य आभरण प्रदान करती है।
प्रश्न ६५०—माणव निधि का क्या कार्य है ?
उत्तर—नीतिशास्त्र सम्बन्धी निर्देश माणव निधि से प्राप्त होते हैं।
प्रश्न ६५१—सर्वरत्न निधि का देती है ?
उत्तर—चक्रवर्ती एवं धर्मचक्री के सर्वरत्न नाम की निधि से महानील तथा अन्य भी अनेक बहुमूल्य रत्नों के ढेर प्रगट होते हैं।
प्रश्न ६५२—चक्रवर्ती के गोपुर का क्या नाम था ?
उत्तर—सर्वतोभद्र।
प्रश्न ६५३—सेना के लिए कौन सा शिविर था ?
उत्तर—नन्द्यावर्त नामक विराट शिविर था ”
प्रश्न ६५४—उनके राजप्रासाद का क्या नाम था ?
उत्तर—वैजयन्त।
प्रश्न ६५५—उनकी सभा का क्या नाम था ?
उत्तर—दिक्स्वस्तिका।
प्रश्न ६५६—मणि निर्मित छड़ी का क्या नाम था ?
उत्तर—सुविधि।
प्रश्न ६५७—सर्व दिशाओं में पर्यवेक्षण हेतु कौन सा भवन था ?
उत्तर—गिरिकूट नामक गगनचुम्बी भवन एवं वर्धमान नामक मनोहर दर्शनीय भवन था।
प्रश्न ६५८—ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में रहने वाले भाण्डागार का क्या नाम था ?
उत्तर—धर्मान्तक नामक धारागृह ग्रीष्म ऋतु में एवं गृहकूटक नामक भाण्डागार वर्षा में निवास हेतु था।
प्रश्न ६५९—सदैव अक्षय रहने वाले भाण्डागार एवं कोठार का क्या नाम था ?
उत्तर—पुष्करावर्त नामक श्वेत चूने से पुता कुबेरकान्त नामक भाण्डारक एवं जिसमें किसी वस्तु का अभाव न हो ऐसा वसुधारक नाम का कोठार था।
प्रश्न ६६०—उनके स्नानागार का क्या नाम था ?
उत्तर—जीमूत।
प्रश्न ६६१—उनके शिविर एवं माला का क्या नाम था ?
उत्तर—देवरम्या नामक मनोहर शिविर एवं रत्नमाल नामक देदीप्यमान माला थी।
प्रश्न ६६२—उनकी शैय्या, सिंहासन , छत्र एवं चंवर का क्या नाम था ?
उत्तर—सिंहवाहिनी शैय्या, अनुत्तर नाम उच्च सिंहासन ,उपमा नामक शुभ चंवर एवं सूर्यप्रेम नामक छत्र था।
प्रश्न ६६३—उनके कवच, धनुष एवं रथ का क्या नाम था ?
उत्तर—उनके अभेद नामक सुन्दर कवच, वज्रकाण्ड नामक धनुष एवं अजितञ्जय नाम का मनोहर रथ था।
प्रश्न ६६४—चक्रवर्ती के बाण, प्रचण्ड शक्ति, भाला, रत्नदण्ड एवं छुरी का क्या नाम था ?
उत्तर—चक्रवर्ती के अमोघ नामक बाण, वज्रतुण्डा नामक प्रचण्ड शक्ति, सिंहारक नामक शूल (भाला),सिंहानख नामक रत्नदंड एवं मणियों की मूढ़ वाली लौहवाहिनी छुरी थी।
प्रश्न ६६५—चक्रवर्ती के खड्ग एवं चंवर का क्या नाम था ?
उत्तर—चक्रवर्ती के सौनन्द नामक खड्ग एवं सुदर्शन नामक चक्र था।
प्रश्न ६६६—उनके चर्मरत्न का क्या नाम था और उनकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर—चक्रवर्ती के चण्डवेग नामक प्रचण्ड तथा वज्रमय नामक दिव्य चर्मरत्न था जिसमें कभी जल प्रवेश नहीं कर सकता था।
प्रश्न ६६७—मणिरत्न एवं कांकिणी का क्या नाम था ?
उत्तर—चूड़ामणि नामक मणिरत्न एवं चिन्ताजननी नामक कांकिणी थी।
प्रश्न ६६८—चक्रवर्ती के सेनापति, पुरोहित, गृहपति एवं स्थपति का क्या नाम था ?
उत्तर—अयोध्या नाम का सेनापति, बुद्धिसागर नामक पुरोहित, कायवृद्धि नामक गृहपति एवं भद्रमुख नाम का स्थपति रत्न था।
प्रश्न ६६९—स्थपतिरत्न का क्या कार्य था ?
उत्तर—स्थपतिरत्न वास्तुविद्या में अत्यन्त प्रवीण था तथा सुन्दर भवन निर्माण में दक्ष था।
प्रश्न ६७०—चक्रवर्ती के गजराज एवं अश्व का क्या नाम था ?
उत्तर—चक्रवर्ती के विजयपर्वत नामक विशालकाय श्वेतपट्ट गजराज एवं पवनञ्जय नामक उत्तुंग तथा पवन वेग से गमन करने वाला अश्व था।
प्रश्न ६७१—भगवान शान्तिनाथ की रमणीरत्न का क्या नाम था और उसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर—भगवान शान्तिनाथ के पास सुभद्रा नामक रमणीरत्न था जिसकी उपमा संसार में कहीं नहीं की जा सकती है। वह अत्यन्त विदुषी,स्वभाव से मधुर, मनोहर एवं दिव्य रूपवान थी।
प्रश्न ६७२—इसके अतिरिक्त और क्या विभूति चक्रवर्ती के पास थी ?
उत्तर—चक्रवर्ती शान्तिनाथ के आनन्दिनी नामक द्वादश भेरी, विजयघोष नामक द्वादश पटहा, गम्भीरवर्त नाम के २४ शंख, ४८ करोड़ पताकाएं, महाकल्याणक नामक शुभ दिव्यासन, विद्युत्प्रभ नामक मणिकुण्डल, रत्नमयी विषमोचिका नामक पादुकाएं, वीरांगद नामक कंगन, अमृतगर्भ नामक आहार, अमृतकल्प नामक औषधि एवं अमृत नामक रसीला द्रव्य दिव्यपान था।
प्रश्न ६७३—दश प्रकार के भोगोपभोग कौन से हैं ?
उत्तर—रत्न, निधि, रानियाँ पुर, शैय्या, आसन, सेना, नाट्य, भाजन, भोज्य तथा वाहन ये दश प्रकार के भोगोपभोग हैं।
प्रश्न ६७४—अमृतगर्भ नामक आहार की क्या विशेषता है ?
उत्तर—अमृतगर्भ नामक आहार स्वादिष्ट सुगन्धित एवं अत्यन्त रसीला होता है जिसे चक्रवर्ती के अतिरिक्त अन्य कोई पचा नहीं सकता है।
प्रश्न ६७५—भगवान शान्तिनाथ को वैराग्य किस निमित्त से हुआ ?
उत्तर—दर्पण में अपनी दो छाया देखकर भगवान शांतिनाथ ने अवधिज्ञान से जान लिया कि वे उनके पूर्व जन्म की दो पर्याय हैं और उन्हें वैराग्य हो गया।
प्रश्न ६७६—उन्होंने किस प्रकार का विचार और चिन्तवन किया ?
उत्तर—उन्होंने सोचा कि जिस प्रकार यह छाया चञ्चल है उसी प्रकार राज्य पद, सम्पत्ति, आयु, रानियाँ आदि समस्त वैभव क्षणभंगुर हैं, तदनन्तर उन्होंने वैराग्य को दृढ़ करने हेतु द्वादश अनुप्रेक्षाओं का चिंतन किया।
प्रश्न ६७७—द्वादश अनुप्रेक्षा कौन—कौन सी हैं ?
उत्तर—अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधिदुर्लभ एवं धर्म ये द्वादश अनुप्रेक्षा हैं।
प्रश्न ६७८—संवर को आचार्यों ने और क्या संज्ञा दी है ?
उत्तर—इसे जीव का परम मित्र माना गया है।
प्रश्न ६७९—निर्जरा कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर—निर्जरा दो प्रकार की होती है—(१) सविपाक निर्जरा, (२) अविपाक निर्जरा।
प्रश्न ६८०—सविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ?
उत्तर—जिस प्रक्रिया के द्वारा कर्म अपने फल प्रदान कर नष्ट हो जाते हैं वह सविपाक निर्जरा है जो संसार में समस्त जीवों के होती है।
प्रश्न ६८१—अविपाक निर्जरा का लक्षण बताइये ?
उत्तर—तप, संयम, ध्यान, परीषहजय एवं श्रुतज्ञान के द्वारा बिना फल दिये जो कर्म नष्ट हो जाते हैं वह अविपाक निर्जरा है।
प्रश्न ६८२—अविपाक निर्जरा किनको होती है ?
उत्तर—अविपाक निर्जरा पाप कर्मों का संवर करने वाले मुनियों के ही होती है।
प्रश्न ६८३—कर्मों की निर्जरा करना क्या कहलाता है ?
उत्तर—कर्मों की निर्जरा मुक्तिरूपी कन्या की जननी है, नरक रूपी गृह की अर्गला है, स्वर्ग प्राप्ति के लिए सीढ़ियों की पंक्ति है एवं सुख की खान है।
प्रश्न ६८४—लोक के कितने भेद हैं ?
उत्तर—लोक के तीन भेद हैं—ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक एवं अधोलोक।
प्रश्न ६८५—सात नरकों के बिलों की संख्या कितनी है ?
उत्तर—८४ लाख बिल हैं।
प्रश्न ६८६—द्वादश अनुप्रेक्षाओं को अपने हृदय में धारण करने वाले क्या पदवी करते हैं ?
उत्तर—वे तीनों लोकों के नाथ बन जाते हैं, उनको सर्वप्रकारेण लक्ष्मी स्वयं उपलब्ध हो जाती है, समग्र पदार्थ स्वत: प्राप्त हो जाते हैं, ज्ञान—चारित्र आदि समस्त धार्मिक गुण स्वयमेव उत्पन्न हो जाते हैं एवं अंत में वह वैराग्य एवं मुक्तिरूपी रमणी को प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न ६८७—भगवान शान्तिनाथ के वैराग्य को जान उसकी अनुमोदना हेतु कौन आए ?
उत्तर—लौकान्तिक देव।
प्रश्न ६८८—लौकान्तिक देव और किस संज्ञा से जाने जाते हैं ?
उत्तर—वे देवर्षि, ब्रह्मचारी, निर्मल हृदय, एकावतारी, प्रवीण, एकादश अंग तथा चतुर्दश पूर्व के पारगामी एवं दिव्य मूर्ति धारी कहलाते हैं।
प्रश्न ६८९—लौकान्तिक देव के कितने भेद हैं नाम बताइये ?
उत्तर—लौकान्तिक देव आठ हैं—सारस्वत, आदित्य, वन्हि, अरूण, गर्दतोय, दुषित, अव्याबाध और अरिष्ट।
प्रश्न ६९०—भगवान शांतिनाथ जब वनगमन हेतु प्रस्तुत हुए उस समय कौन आया ?
उत्तर—भगवान शांतिनाथ जब अपना राज्य त्यागकर वनगमन के लिए प्रस्तुत हुए, जब चारों निकाय के देव एवं इन्द्र अपने—अपने वाहन एवं देवांगनाओं के संग गीत, नृत्य आदि करते हुए नगर के बाह्य वन में आए और भगवान का दीक्षाकल्याणक उत्सव सम्पन्न किया।
प्रश्न ६९१—देवों ने उस उत्सव में सर्वप्रथम क्या किया ?
उत्तर—देवों ने सर्वप्रथम क्षीरसागर के जल से भरे स्वर्ण कलशों से भगवान का महाभिषेक किया पुन: दिव्य माला, आभूषण आदि से भगवान को विभूषित किया।
प्रश्न ६९२—भगवान शान्तिनाथ ने अपना राज्य किसे सौंपा ?
उत्तर—अपने पुत्र नारायण को।
प्रश्न ६९३—भगवान शांतिनाथ दीक्षा लेने हेतु कौन सी पालकी में आरूढ़ हुए?
उत्तर—सर्वार्थसिद्धि नामक पालकी में आरूढ़ हुए।
प्रश्न ६९४—भगवान शांतिनाथ के वनगमन से कौन शोकाकुल हो उठा ?
उत्तर—उनकी समस्त रानियाँ।
प्रश्न ६९५—उन रानियों को किसने और किस प्रकार रोका ?
उत्तर—उन रानियों को विज्ञ पुरुषों ने मधुर वचनों में समझाकर रोका और कहा कि—आगे मत जाइये, आगे जाने के लिए प्रभु की अनुमति नहीं है।
प्रश्न ६९६—भगवान शांतिनाथ ने कितने वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की ?
उत्तर—७५ हजार वर्ष की उम्र में।
प्रश्न ६९७—भगवान शान्तिनाथ ने कौन से वन में दीक्षा ली ?
उत्तर—सहस्राम्र नामक वन में।
प्रश्न ६९८—भगवान शांतिनाथ ने कौन सी तिथि में दीक्षा ग्रहण कर ली ?
उत्तर—भगवान शांतिनाथ ने ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी के दिन सन्ध्याकाल के समय भरणी नक्षत्र में दीक्षा धारण की।
प्रश्न ६९९—इन्द्र ने भगवान शांतिनाथ के लुंचन किए हुए केशों को कहाँ रखा और कहाँ निक्षेपित किया?
उत्तर—इन्द्र ने उन्हें रत्नमंजूषा में रखा और क्षीरसागर में निक्षेपित कर दिया।
प्रश्न ७००—भगवान शान्तिनाथ के संग कितने राजाओं ने दीक्षा ली ?
उत्तर—एक हजार राजाओं ने।
प्रश्न ७०१—भगवान शांतिनाथ ने दीक्षा लेने के बाद कितने उपवास के बाद पारणा की ?
उत्तर—छ: उपवास के बाद।
प्रश्न ७०२—भगवान शांतिनाथ का प्रथम आहार कहाँ हुआ ?
उत्तर—भगवान शांतिनाथ का प्रथम आहार मन्दरपुर के महाराजा सुमित्र में यहाँ हुआ।
प्रश्न ७०३—दान के प्रभाव से महाराज सुमित्र के घर क्या आश्चर्य घटित हुआ ?
उत्तर—महाराज सुमित्र के राजप्रांगण में देवों ने रत्नों की वर्षा की।
प्रश्न ७०४—उत्तम गृह कौन सा है ?
उत्तर—जहाँ मुनिराज अपनी काया की रक्षा हेतु आहारार्थ पधारें वह घर उत्तम है।
प्रश्न ७०५—कौन सा गृह निष्प्रयोजन है ?
उत्तर—जिस गृह प्रांगण में आहार के निमित्त मुनिराज नहीं पधारते, वह गृह निष्प्रयोजन है।
प्रश्न ७०६—कौन से गृहस्थ धन्य हैं ?
उत्तर—इस संसार में वे ही गृहस्थ धन्य हैं, जो पात्रों को सर्वदा अनेक प्रकार का दान देते रहते हैं।
प्रश्न ७०७—कौन से गृहस्थ पापी कहलाते हैं ?
उत्तर—जो गृहस्थ मुनियों को कभी दान नहीं देते हैं वे पापी ही हैं।
प्रश्न ७०८—दान से क्या—क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर—दान से इहलोक में लक्ष्मी, सम्मान एवं कीर्ति प्राप्त होती है; उसी प्रकार परलोक में भी स्वर्ग—मोक्ष के अपार सुख प्राप्त होते हैं।
प्रश्न ७०९—पञ्च स्थावर कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति से पञ्च स्थावर हैं।
प्रश्न ७१०—पञ्च महाव्रत कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत, एवं परिग्रह त्याग महाव्रत।
प्रश्न ७११—शल्य कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर—शल्य तीन प्रकार की होती हैं—माया, मिथ्या और निदान।
प्रश्न ७१२—भगवान शान्तिनाथ मोक्ष प्राप्ति के लिए कहाँ विराजमान हुए ?
उत्तर—भगवान शांतिनाथ मोक्ष प्राप्ति के लिए षट्दिवसीय उपवास धारण कर नन्द्यावर्त वृक्ष के तले दृढ़ासन से विराजमान होकर ध्यान करने लगे।
प्रश्न ७१३—सिद्धों के ८ गुण कौन—कौन से हैं ?
उत्तर—अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तवीर्य, अनन्तसुख, सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अव्याबाध तथा अगुरुलघु ये सिद्धों के अष्टगुण हैं।
प्रश्न ७१४—भगवान शांतिनाथ ने कर्मों की कितनी प्रकृतियाँ नष्ट कीं और किसकी प्राप्ति की ?
उत्तर—भगवान शांतिनाथ ने कर्मों की त्रेसठ प्रकृतियाँ नष्ट करके नौ केवल लब्धियाँ प्राप्त कीं।
प्रश्न ७१६—भगवान शांतिनाथ ने छद्मस्थ अवस्था के कितने वर्ष व्यतीत किए ?
उत्तर—षोडश वर्ष”
प्रश्न ७१७—भगवान शान्तिनाथ को केवलज्ञान कौन सी तिथि में हुआ ?
उत्तर—पौष शुक्ला एकादशी को सायंकाल में।
प्रश्न ७१८—भगवान शांतिनाथ को केवलज्ञान प्रकट होते ही इन्द्रों ने क्या किया ?
उत्तर—भगवान शांतिनाथ को दिव्य केवलज्ञान प्रकट होते ही इन्द्रगण अपने—अपने निकायों के देवों के संग अपने सिंहासन से उठे तथा कई पग आगे चलकर भगवान को परोक्ष में नमस्कार किया।
प्रश्न ७१९—भगवान शांतिनाथ के दिव्य समवसरण की रचना किसने किसकी आज्ञा से की ?
उत्तर—सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से भक्तिपूर्वक कुबेर ने आकर समवसरण की रचना की।
प्रश्न ७२०—भगवान शान्तिनाथ के समवसरण का विस्तार कितना था ?
उत्तर—भगवान शान्तिनाथ का समवसरण चार योजन लम्बा एवं दो कोस चौड़ा गोलाकार इन्द्रनील महामणियों से निर्मित एक पीठ मध्य में था।
प्रश्न ७२१—उस पीठ के चारों ओर क्या था ?
उत्तर—एक उत्तुंग धूलिशाल था जो पंचवर्णी रत्नों की धूलि से निर्मित था।
प्रश्न ७२२—समवसरण की चार वीथिकाओं में क्या था ?
उत्तर—चारों दिशाओं में मानस्तम्भ थे।
प्रश्न ७२३—उन मानस्तम्भों की क्या महिमा थी ?
उत्तर—उनको दूर से देखते ही मिथ्यादृष्टि का मान खण्डित हो जाता है।
प्रश्न ७२४—समवसरण में कितनी भूमियाँ थीं ?
उत्तर — ८ भूमियां
प्रश्न ७२५—आठवीं भूमि में कितने कोठे (कक्ष) थे ?
उत्तर—आठवीं भूमि में १२ कोठे थे।
प्रश्न ७२६—उन १२ कोठों में किस कोठे में कौन बैठता था ?
उत्तर—प्रथम कोठे में मुनिराज, द्वितीय में कल्पवासिनी देवियाँ, तृतीय में आर्यिका एवं श्राविकाएँ, चतुर्थ में ज्योतिषी देवों की देवांगनाएँ, पंचम में व्यन्तर देवियाँ, षष्ठ में भवनवासी देवियाँ, सप्तम में भवनवासी देव, अष्टम में व्यन्तर देव, नवम में ज्योतिषी देव, दशम में कल्पवासी देव, ग्यारहवें में मनुष्य एवं १२वें कोठे में पशुगण थे।
प्रश्न ७२७—भगवान की दिव्यध्वनि कैसी है ?
उत्तर—ऊँकारमयी दिव्यध्वनि।
प्रश्न ७२८—भगवान की दिव्यध्वनि कितनी लघुभाषा में खिरती है ?
उत्तर—७०० लघुभाषा।
प्रश्न ७२९—कितनी महाभाषाएँ हैं ?
उत्तर—१८ महाभाषा।
प्रश्न ७३०—भगवान शांतिनाथ की दिव्यध्वनि खिरते समय क्या विशेषता हुई ?
उत्तर—भगवान शान्तिनाथ की दिव्यध्वनि खिरते समय न तो उनकी मुखमुद्रा में किसी प्रकार का परिवर्तन हुआ एवं न ही जिह्वा, ओष्ठ आदि का किंचित् भी हलन—चलन हुआ।
प्रश्न ७३१—तत्व कितने होते हैं, नाम बताइये ?
उत्तर—तत्व सात होते हैं—जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा एवं मोक्ष।
प्रश्न ७३२—जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर—जीव के २ भेद हैं—संसारी एवं मुक्त।
प्रश्न ७३३—संसारी जीव के कितने भेद हैं ?
उत्तर—संसारी जीव के २ भेद हैं—त्रस एवं स्थावर।
प्रश्न ७३४—सिद्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो अष्ट कर्मों से रहित हैं, अष्ट गुणों से सुशोभित हैं, जगत्बंधु हैं, सुखसागर में निमग्न हैं एवं लोक के ऊपर निवास करते हैं वे सिद्ध या मुक्त कहलाते हैं।
प्रश्न ७३५—जीवों की कितनी और कौन—कौन सी जातियाँ हैं ?
उत्तर—चौरासी लाख जातियाँ हैं—पृथ्वीकायिक—७ लाख, जलकायिक- ७ लाख, अग्निकायिक—७ लाख, वायुकायिक—७ लाख, नित्यनिगोद—७ लाख, इतर निगोद—७ लाख, वनस्पति—१० लाख, दो इन्द्रिय—२ लाख, तीन इन्द्रिय—२ लाख, चार इन्द्रिय—२ लाख, नारकी ४ लाख, तिर्यञ्च—४ लाख, देव—४ लाख एवं मनुष्य—१४ लाख।
प्रश्न ७३६—आयु, काया आदि के भेद से इन जीवों की संख्या कितनी है ?
उत्तर—आयु, काया आदि के भेद से इन जीवों की कुल संख्या एक सौ साढ़े निन्यानवे कोटि बताई है।
प्रश्न ७३७—संज्ञी पंचेन्द्रिय के कितने और कौन—२ से प्राण होते हैं ?
उत्तर—५ इन्द्रिय, मन, वचन, काय, आयु एवं श्वासोच्छ्वास ये दस प्राण संज्ञी पंचेन्द्रिय के होते हैं।
प्रश्न ७३८—असंज्ञी पंचेन्द्रिय के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर—मन के बिना असंज्ञी पंचेन्द्रिय के ९ प्राण होते हैं।
प्रश्न ७३९—चार इन्द्रिय के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर—मन और कर्ण के बिना चार इन्द्रिय के ८ प्राण होते हैं।
प्रश्न ७४०—तीन इन्द्रिय के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर—तीन इन्द्रिय के ७ प्राण होते हैं—स्पर्शन, रसना, घ्राण, वचन, काय, आयु, श्वासोच्छ्वास।
प्रश्न ७४१—दो इन्द्रिय जीव के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर—दो इन्द्रिय जीव के छ: प्राण होते हैं—स्पर्शन, रसना, वचन, काय, आयु और श्वासोच्छ्वास।
प्रश्न ७४२—एकेन्द्रिय जीव के कितने प्राण होते हैं ?
उत्तर—एकेन्द्रिय के ४ प्राण होते हैं—स्पर्शन, काय, आयु और श्वासोच्छ्वास।
प्रश्न ७४३—पर्याप्ति कितनी और कौन—सी हैं ?
उत्तर—पर्याप्ति छ: हैं—आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन।
प्रश्न ७४४—संज्ञी पंचेन्द्रिय के कितनी पर्याप्ति होती हैं ?
उत्तर—छहों पर्याप्ति।
प्रश्न ७४५—असंज्ञी पंचेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय एवं चार इन्द्रिय जीवों के कितनी पर्याप्ति हैं ?
उत्तर—मन बिना पांच पर्याप्ति होती हैं।
प्रश्न ७४६—एकेन्द्रिय जीव के कितनी पर्याप्ति हैं ?
उत्तर—एकेन्द्रिय जीव के भाषा और मन के बिना चार पर्याप्ति होती हैं।
उत्तर—गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व, संज्ञी एवं आहार ये १४ मार्गणा हैं।
प्रश्न ७४९—इनसे क्या होता है ?
उत्तर—इनके द्वारा जीवों के ज्ञाता विद्वान उन जीवों की पहचान करते हैं।
प्रश्न ७५०—चौदह जीवसमास कौन से हैं ?
उत्तर—संज्ञी पंचेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, द्विइन्द्रिय, एकेन्द्रिय सूक्ष्म एवं एकेन्द्रिय बादर ये सात, पर्याप्ति एवं अपर्याप्ति के भेद से १४ जीवसमास हैं।
प्रश्न ७५१—जीव का क्या स्वरूप है ?
उत्तर—जो संसार में पहले भी जीवित था, वर्तमान में भी जीवित है एवं आगे भी सर्वदा जीवित रहेगा उसको जीव कहते हैं।
प्रश्न ७५२—संसारी जीव के वैभाविक गुण कौन से हैं ?
उत्तर—मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान, कुअवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान, चक्षुज्ञान, अचक्षुदर्शन एवं अवधिदर्शन ये समस्त संसारी जीवों के रहने वाले वैभाविक गुण हैं।
प्रश्न ७५३—संसारी जीवों के स्वाभाविक गुण कौन से हैं ?
उत्तर—केवलज्ञान एवं केवलदर्शन ये संसारी जीव के दो स्वाभाविक गुण हैं।
प्रश्न ७५४—मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले के लिए कौन सा द्रव्य उपादेय हैं ?
उत्तर—मोक्ष की अभिलाषा रखने वाले जीवों को मोक्ष प्राप्त करने के लिए राग—द्वेष आदि सर्व विकारों को नष्ट कर यह जीव द्रव्य ही उपादेय (ग्रहण करने योग्य) होता है।
प्रश्न ७५५—अजीव द्रव्य कौन–कौन से हैं ?
उत्तर—धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं पुद्गल ये पांच अजीव द्रव्य हैं।
प्रश्न ७५६—धर्मद्रव्य का क्या लक्षण है ?
उत्तर—जीवों के चलने में जो सहकारी होता है वह धर्मद्रव्य है, जैसे—मत्स्य को चलने में जल सहकारी है। धर्मद्रव्य नित्य है, अमूर्त है एवं गुणी है।
प्रश्न ७५७—आकाश द्रव्य का कार्य क्या है और उसके कितने भेद हैं ?
उत्तर—जो जीवादि द्रव्यों को स्थान दे वह आकाश द्रव्य है उसके दो भेद हैं—लोकाकाश, अलोकाकाश।
प्रश्न ७५८—लोकाकाश किसे कहते हैं ?
उत्तर—जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म एवं काल ये पांच द्रव्य जितने आकाश में व्याप्त हैं उसको लोकाकाश कहते हैं।
प्रश्न ७५९—अलोकाकाश किसे कहते हैं ?
उत्तर—उसके आगे चतुर्दिक जो अनन्त आकाश का विस्तार हुआ है उसको अलोकाकाश कहते हैं।
प्रश्न ७६०—व्यवहार काल किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो द्रव्यों के नवीन रूप से प्राचीन रूप में परिवर्तन होने का कारण है एवं जो घड़ी—घण्टा दिन रूपी है उसको व्यवहार काल कहते हैं।
प्रश्न ७६१—निश्चयकाल किसे कहते हैं ?
उत्तर—आकाश के एक—एक प्रदेश पर काल का एक—२ परमाणु रत्नों की राशि के समतुल्य पृथक् -पृथक स्थित है, उन समस्त असंख्यात कालाणुओं को निश्चयकाल कहते हैं।
प्रश्न ७६२—इनमें से कौन सा अजीव द्रव्य कितने प्रदेशीय है ?
उत्तर—धर्म अधर्म, जीव एवं लोकाकाश के असंख्यात प्रदेश हैं, पुद्गल के प्रदेश अनेक प्रकार हैं–संख्यात—असंख्यात—अनन्त हैं परन्तु काल का एक ही परमाणु है।
प्रश्न ७६३—काल के अतिरिक्त शेष को क्या कहते हैं ?
उत्तर—द्रव्यकाल।
प्रश्न ७६४—पंचास्तिकाय किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो स्पर्श, रस, गन्ध एवं वर्ण सहित हैं वे ही धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं पुद्गल पंचास्तिकाय हैं।
प्रश्न ७६५—पुद्गल किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो मूर्त हैं उसको पुद्गल कहते हैं।
प्रश्न ७६६—भावास्रव किसे कहते हैं ?
उत्तर—आत्मा के जिन भावों से कर्म आते हैं उनको भावास्रव कहते हैं।
प्रश्न ७६७—द्रव्यास्रव किसे कहते हैं ?
उत्तर—कर्मों के आने को द्रव्यास्रव कहते हैं।
प्रश्न ७६८—भाव बन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर—जीवों के जिन रागादिक परिणामों से प्रतिसमय कर्म बंधते रहते हैं उनको भाव बन्ध कहते हैं।
प्रश्न ७६९—द्रव्य बन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर—जीव के प्रदेश एवं कर्म परमाणुओं का परस्पर जो सम्बन्ध होता है उसको द्रव्य बन्ध कहते हैं।
प्रश्न ७७०—द्रव्य बन्ध के कितने भेद हैं ?
उत्तर—द्रव्य बन्ध के ४ भेद हैं—प्रकृति बन्ध, प्रदेश बन्ध, स्थिति बन्ध एवं अनुभाग बन्ध।
प्रश्न ७७१—प्रकृति बन्ध एवं प्रदेश बन्ध किस प्रकार होता है ?
उत्तर—प्रकृतिबंध एवं प्रदेशबंध जीवों की मन, वचन, काय की क्रिया से होता है।
प्रश्न ७७२—स्थिति बन्ध एवं अनुभाग बन्ध कैसे होता है ?
उत्तर—कषायों से होता है।
प्रश्न ७७३—संवर के कितने भेद हैं ?
उत्तर—संवर के दो भेद हैं—द्रव्य संवर, भाव संवर।
प्रश्न ७७४—भाव संवर किसे कहते हैं ?
उत्तर—जो आत्मा का परिणाम कर्मों के आस्रव को निषेध करने वाला है उसको भाव संवर कहते हैं।
प्रश्न ७७५—द्रव्य संवर किसे कहते हैं ?
उत्तर—कर्मों का निषिद्ध हो जाना द्रव्य संवर है।
प्रश्न ७७६—भाव संवर के कारण क्या हैं ?
उत्तर—पंच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति, दस धर्म, द्वादश अनुप्रेक्षा, द्वादश परीषहजय एवं पांच प्रकार का संयम या चारित्र ये समस्त भाव संवर में कारण हैं।
प्रश्न ७७७—निर्जरा कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर—निर्जरा दो प्रकार की होती है—सविपाक निर्जरा, अविपाक निर्जरा।
प्रश्न ७७८—सविपाक निर्जरा किसे कहते हैं ?
उत्तर—सविपाक निर्जरा कर्मों के उदय से होती है, बिना प्रयत्न के होती है, समस्त जीवों के होती हैं अत: त्याज्य है।
प्रश्न ७७९—अविपाक निर्जरा क्या है ?
उत्तर—अविपाक निर्जरा तपश्चरण से होती है, मुनियों को ही होती है अत: ग्रहण करने योग्य है।
प्रश्न ७८०—मोक्ष किसे कहते हैं ?
उत्तर—रत्नत्रय के द्वारा प्रयत्नपूर्वक जो जीव पुद्गल का सम्बन्ध पृथक् हो जाता है, समस्त कर्मों का नाश हो जाता है वह मोक्ष है।
प्रश्न ७८१—पाप का फल क्या है ?
उत्तर—नरक में उत्पन्न होना, क्षुद्र पशु—पक्षियों में उत्पन्न होना, नेत्रहीन—बधिर होना, विकलांग होना, रूग्ण व कुशील होना, निम्न जाति व निम्न कुल में जन्म लेना, कुरूपी व समस्त को अप्रिय लगने वाला होना, कुमरण होना, दरिद्री या निन्द्य या कातर अथवा नीच होना, कुमाता या कुपिता या दुष्टा स्त्री अथवा शत्रु अथवा शत्रु समभ्राता, कुपुत्र या कुशील कन्या या कपटी मित्र या दुष्ट सेवक अथवा अशुभ भवन आदि अनिष्टकारी पदार्थों का संयोग होना, अशुभ परिणाम होना, मुख से दुर्वचन उच्चरित करना, भ्राता- बन्धु आदि इष्ट पदार्थों का वियोग होना, इन सबको संसार में पापों का फल समझना चाहिए।
प्रश्न ७८२—पुण्य का फल क्या है ?
उत्तर—पाप के उल्लिखित कारणों के विपरीत कार्य करना, व्रतों का पालन करना, उत्तम क्षमा आदि दश धर्मों का पालन करना, तपश्चरण—नियम—यम पालन करना, महापात्रों को चार प्रकार का दान देना, भगवान श्री जिनेन्द्र की पूजा करना, धर्मोपदेश देना, संवेग वैराग्य आदि का चिन्तवन करना, कायोत्सर्ग धारण करना, शुभ ध्यान करना, ध्यान अध्ययन आदि करना, पञ्च परमेष्ठियों के मंत्रों का जाप्य करना, भगवान श्री जिनेन्द्रदेव की भक्ति करना, पापों के भय से सदाचार का पालन करना, विनयपूर्वक मुनियों की सेवा करना एवं धर्मात्माओं के संग वात्सल्य भाव धारण करना इत्यादि कार्यों से तथा अन्य भी ऐसे ही कार्यों से इस संसार में प्राणियों को तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि की विभूतिप्रदायक एवं सुख का सागर महापुण्य उत्पन्न होता है।
प्रश्न ७८३—मुनिराज कितने प्रकार का चारित्र धारण करते हैं ?
उत्तर—तेरह प्रकार का।
प्रश्न ७८४—निश्चय चारित्र किसे प्राप्त होता है ?
उत्तर—जो बुद्धिमान अपनी आत्मा का ही ध्यान करता है उसको निश्चय चारित्र प्राप्त होता है।
प्रश्न ७८५—भगवान की दिव्यध्वनि सुनकर अनेक जीवों ने क्या किया ?
उत्तर—अनेक जीवों ने धर्म का स्वरूप ज्ञातकर वैराग्यपूर्वक दीक्षा धारण कर ली।
प्रश्न ७८६—द्वादशांग की रचना किसने की ?
उत्तर—भगवान की दिव्यध्वनि सुनकर अनेक ऋद्धियों तथा चारों ज्ञान को धारण करने वाले प्रकाण्ड विद्वान एवं प्रमुख गणधर ने समस्त संसार को उपकार करने के अभिप्राय से भगवान से अर्थ ज्ञात कर पद्य रूप में विस्तारपूर्वक द्वादश अंगों की विवेचना रचित की।
प्रश्न ७८७—भगवान शान्तिनाथ के प्रथम गणधर कौन थे ?
उत्तर—गणधर चक्रायुध।
प्रश्न ७८८—भगवान शान्तिनाथ के श्रीविहार से क्या अतिशय प्रकट हुआ ?
उत्तर—भगवान शान्तिनाथ जिस प्रदेश में भी विहार करते थे वहाँ १००—१०० योजन तक सुभिक्ष रहता था एवं ईति—भीति समग्र नष्ट हो जाती थी।
प्रश्न ७८९—क्या भगवान केवलज्ञान के पश्चात् कवलाहार करते थे ?
उत्तर—भगवान का मोहनीय कर्म नष्ट हो गया था, इसलिए उनके कवलाहार नहीं था, वे नोकर्म वर्गणाओं से ही तृप्त थे।
प्रश्न ७९०—क्या भगवान शान्तिनाथ के केवलज्ञान के पश्चात् चार मुख थे ?
उत्तर—नहीं, चूंकि देव, मनुष्य, पशु आदि समग्र प्राणी जगत्गुरु भगवान को सर्व दिशाओं में अपनी ओर ही मुख किए हुए देखते थे अर्थात् तीर्थंकर भगवान चतुर्मुख विराजमान थे इसलिए उनके दर्शन चारों दिशाओं में होते थे।
प्रश्न ७९१—भगवान के चरण जहाँ—जहाँ पड़ते थे वहाँ देवगण क्या करते थे ?
उत्तर—भगवान के चरण जहाँ—जहाँ पड़ते थे वहीं पर देवगण उत्तम केशर से सुशोभित दो सौ पच्चीस कमलों की रचना कर देते थे।
प्रश्न ७९२—भगवान शांतिनाथ कितने प्रातिहार्य से सुशोभित थे ?
उत्तर—८ प्रातिहार्य से।
प्रश्न ७९३—भगवान शांतिनाथ के समवसरण में कितने श्रुतकेवली थे ?
उत्तर—८०० श्रुतकेवली।
प्रश्न ७९४—ध्यान एवं अध्ययन में प्रवृत्त शिक्षकों की संख्या कितनी थी ?
उत्तर—४१ हजार ८००
प्रश्न ७९५—अवधिज्ञानी मुनि कितने थे ?
उत्तर—३०००
प्रश्न ७९६—आयु का कितना समय शेष रहने पर भगवान कहाँ जाकर विराजमान हुए ?
उत्तर—आयु का मात्र १ माह शेष रहने पर भगवान शांतिनाथ सम्मेदशिखर पर जाकर विराजमान हुए।
प्रश्न ७९७—भगवान शांतिनाथ के केवलज्ञान का समय कितना था ?
उत्तर—सोलह कम पच्चीस हजार वर्ष।
प्रश्न ७९८—सर्वप्रथम उन्होंने कितनी प्रकृतियों का क्षय किया ?
उत्तर—७० प्रकृतियों का
प्रश्न ७९९—द्वितीय चरण में उन्होंने कितनी और कौन—२ सी प्रकृतियों का क्षय किया ?
उत्तर—द्वितीय चरण में शेष त्रयोदश (१३) प्रकृतियों का उन्होंने क्षय किया, वे १3 प्रकृतियाँ हैं—आदेय, मनुष्यगति, मनुष्य गत्यानुपूर्वी, पंचेन्द्रिय जाति, यशकीर्ति, पर्याप्ति, त्रस, बादर, सुभग, मनुष्यायु, उच्च गोत्र, साता वेदनीय तथा तीर्थंकर नामकर्म।
प्रश्न ८००—भगवान शान्तिनाथ कौन सी विधि एवं नक्षत्र में मोक्ष गए ?
उत्तर—भगवान शान्तिनाथ ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी के दिवस भरणी नक्षत्र में रात्रिकाल के प्रथम चरण में मोक्ष गए।
प्रश्न ८०१—भगवान शान्तिनाथ कहाँ से मोक्ष पधारे ?
उत्तर—सम्मेदशिखर पर्वत से।
प्रश्न ८०२—उनकी अन्तिम पूजा करने कौन आए ?
उत्तर—समस्त इन्द्रादिक देवगण।
प्रश्न ८०३—भगवान शांतिनाथ की पवित्र काया का अग्नि संस्कार किसने किया ?
उत्तर—भगवान शांतिनाथ की पवित्र काया को बहुमूल्य पालकी में विराजमान कर चन्दन, अगुरु, कपूर आदि सुगन्धित द्रव्यों के संग आदर से ले जाकर अग्निकुमार देवों के संग इन्द्र ने मुकुट से प्रगट हुई अग्नि से उस काया को भस्म कर दिया।
प्रश्न ८०४—भगवान शांतिनाथ ने कितने जन्मों तक अनेक विभूतियों की प्राप्ति कर मोक्षपद को प्राप्त किया ?
उत्तर—बारह भवों तक।
प्रश्न ८०५—भगवान शान्तिनाथ की जन्मभूमि हस्तिनापुर में और कौन—कौन से तीर्थंकर जन्में ?
उत्तर—भगवान कुन्थुनाथ एवं भगवान अरहनाथ।
प्रश्न ८०६—ये दोनों तीर्थंकर कितनी पदवी के धारक थे ?
उत्तर—ये दोनों तीर्थंकर भी तीन पदवी के धारक थे—तीर्थंकर, चक्रवर्ती एवं कामदेव।
प्रश्न ८०७—तीनों तीर्थंकर के कितने—२ कल्याणक हस्तिनापुर में हुए ?
उत्तर—चार कल्याणक।
प्रश्न ८०८—वर्तमान में हस्तिनापुर तीर्थ किस कारण से प्रसिद्धि को प्राप्त है ?
उत्तर—विश्व की अद्वितीय रचना जम्बूद्वीप के निर्माण के कारण हस्तिनापुर प्रसिद्धि को प्राप्त है।
प्रश्न ८०९—उस रचना निर्माण की प्रेरणा किसने दी ?
उत्तर—परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने।
प्रश्न ८१०—पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी कौन हैं ?
उत्तर—पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी एवं प्रथम बाल ब्रह्मचारिणी आर्यिका माता हैं।
प्रश्न ८११—उनका जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर—उनका जन्म उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले के अन्तर्गत टिकैतनगर नामक ग्राम में हुआ।
प्रश्न ८१२—उनके माता—पिता का क्या नाम था ?
उत्तर—उनके गृहस्थावस्था के माता—पिता का नाम श्रीमती मोहिनी देवी एवं श्री छोटेलाल जी था
प्रश्न ८१३—उनके कितने भाई बहन हैं ?
उत्तर—उनकी ८ बहनें एवं ४ भाई हैं।
प्रश्न ८१४—उनमें से कितने त्यागमार्ग पर निकले हैं ?
प्रश्न ८१५—क्या उनकी गृहस्थावस्ता की माता ने भी दीक्षा ली ?
उत्तर—हाँ, उन्होंने भी पति की सुन्दर समाधि करवाने के पश्चात् सन् १९७२ में आर्यिका दीक्षा लेकर रत्नमती माताजी नाम प्राप्त किया।
प्रश्न ८१६—गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के दीक्षागुरू कौन हैं ?
उत्तर—बीसवीं शताब्दी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शान्तिसागर महाराज के प्रथम पट्टशिष्य आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज।
प्रश्न ८१७—पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के प्रेरणा से हस्तिनापुर में और क्या—२ निर्माण हुआ है ?
उत्तर—कमल मन्दिर, ध्यान मन्दिर, ऊँकार मन्दिर, वासुपूज्य मन्दिर,तीनमूर्ति मन्दिर,सहस्रकूट मन्दिर,आदिनाथ मंदिर, नवग्रह शांति मन्दिर, तेरहद्वीप जिनालय इत्यादि अनेक रचनाएँ माताजी की प्रेरणा से बनी हैं।
प्रश्न ८१८—उनकी प्रेरणा से और कौन—२ से तीर्थों का निर्माण एवं जीर्णोद्धार हुआ है ?
उत्तर—इलाहाबाद प्रयाग में तपस्थली तीर्थ का निर्माण, भगवान महावीर जन्मभूमि कुण्डलपुर में नंद्यावर्त महल का निर्माण, भगवान मुनिसुव्रतनाथ जन्मभूमि राजगृही में मुनिसुव्रतनाथ मंदिर का निर्माण एवं विपुलाचल पर्वत की तलहटी में मानस्तम्भ निर्माण, गौतम गणधर निर्वाणभूमि में गौतम स्वामी मंदिर का निर्माण, मांगीतुंगी (महा.) में सहस्रकूट मन्दिर का निर्माण एवं १०८ फुट उत्तुंग विशालकाय मूर्ति निर्माण, शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या में तीन चौबीसी मन्दिर, समवसरण मन्दिर एवं समस्त टोकों का जीर्णोद्धार कर भव्य मंदिर का निर्माण ,शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर में भगवान ऋषभदेव मन्दिर का निर्माण एवं आचार्य श्री शांतिसागर धाम का निर्माण,काकन्दी में भगवान पुष्पदंतनाथ जन्मभूमि का निर्माण,सारनाथ में भगवान श्रेयांसनाथ मूर्ति का निर्माण,भद्दिलपुर में भगवान श्री शीतलनाथ जिनमंदिर का निर्माण इत्यादि
प्रश्न ८१९—उनकी प्रेरणा से और क्या विकास कार्य हुए हैं ?
उत्तर—राजधानी दिल्ली—प्रीतिविहार में भगवान ऋषभदेव कमल मन्दिर का निर्माण, मेरठ कमलानगर में विद्यमान बीस तीर्थंकर एवं २४ तीर्थंकर कमल मन्दिर रचना का निर्माण, टिकैतनगर में चमत्कारिक भगवान महावीर मन्दिर का निर्माण आदि
प्रश्न ८२०—शाश्वत जन्मभूमि कौन सी हैं ?
उत्तर—अयोध्या तीर्थ ।
प्रश्न ८२१—शाश्वत निर्वाणभूमि कौन सी हैं ?
उत्तर—सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र।
प्रश्न ८२२—जब शाश्वत जन्मभूमि अयोध्या है तो वर्तमान में २४तीर्थंकर भगवान हस्तिनापुर आदि तीर्थों पर क्यों जन्में और अलग—अलग स्थानों से निर्वाण पधारे ?
उत्तर—हुण्डावसर्पिणी कालदोष के कारण।
प्रश्न ८२३—वर्तमान में कितने तीर्थंकर अलग—अलग स्थानों पर जन्में ?
उत्तर—१९ तीर्थंकर अलग—२ स्थानों पर जन्में।
प्रश्न ८२४—वर्तमान में तीर्थंकरों की कितनी जन्मभूमियाँ हैं ?
उत्तर—१६ जन्मभूमियाँ
प्रश्न ८२५—वर्तमान में २४ तीर्थंकरों की निर्वाणभूमियाँ कितनी हैं ?
उत्तर—पाँच—कैलाश पर्वत, सम्मेदशिखर, गिरनारजी, चम्पापुरी एवं पावापुरी।