सिंहपुरी जी तीर्थ को ,नमन है बारम्बार
चालीसा उस तीर्थ का , देवे सौख्य अपार ||१||
श्री श्रेयांस जिनेश जी, सुनते सबकी पीर
जो नमते श्रद्धा सहित, हो जाते भव तीर ||२||
तीर्थ बनारस निकट है प्यारा, सिंहपुरी जी तीरथ न्यारा ||१||
बड़ी मनोरम कथा है उसकी, जैनधर्म की महिमा कहती ||२||
हुए करोड़ों वर्ष यहाँ पर, जन्में श्री श्रेयांस जिनेश्वर ||३||
सारनाथ भी यह कहलाया, सचमुच सार सभी ने पाया ||४||
है प्राचीन दिगंबर मंदिर, ढाई फिट प्रभु प्रतिमा सुन्दर ||५||
बड़ी कलात्मक वह वेदी है, बगल में नन्दीश्वर जिन भी है ||६||
वह भूगर्भ से प्राप्त हुआ है, किन्तु न अब अधिकार वहाँ है ||७||
पुष्पोद्यान बड़ा ही प्यारा, सरकारी अधिकार है सारा ||८||
इक स्तूप बड़ा ही प्यारा , जिनशासन की कथा है कहता ||९||
बनवाया सम्राट अशोक ने, श्री श्रेयांसनाथ स्मृति में ||१०||
सिंहद्वार है ठीक सामने, सिंहचतुष्क हैं स्तंभों में ||११||
सिंह के नीचे धर्मचक्र है , अंकित बैल व अश्व मूर्ति है ||१२||
भारत में है राजचिन्ह ये, लोकमान्यता है प्रचलन में ||१३||
सिक्के पर भी देखो उसको, लाट अशोक की कहते जिसको ||१४||
सुनो और तीर्थंकर महिमा, यह नगरी थी दिव्य अनुपमा ||१५||
हुए करोड़ों वर्ष पूर्व जब, विष्णुमित्र राजा रहते तब ||१६||
रानी नंदा देखें सपने , गर्भ में प्रभुवर आकर तिष्ठे ||१७||
ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी की तिथि में, इन्द्र गर्भकल्याणक करते ||१८||
फाल्गुन वदि ग्यारस तिथि प्यारी, तीन लोक में खुशियाँ भारी||१९||
सुरपति मेरु सुदर्शन जाकर, करता जन्मन्हवन जिनशिशु पर ||२०||
कर उपभोग राज्यवैभव का, प्रभु के मन वैराग्य जगा था ||२१||
ऋतु बसंत को नशते देखा ,राज्यविभव सब त्याग किया था ||२२||
लौकांतिक सुर जय-जय करते, सिद्ध नमः कह प्रभु दीक्षा लें ||२३||
फाल्गुन वदि ग्यारस शुभ तिथि में, तपकल्याणक सुरगण करते ||२४||
माघ वदी नवमी जब आई, तब कैवल्यरमा प्रगटाई ||२५||
सुन्दर समवसरण की रचना , करें धनद आकाश अधर मा ||२६||
बारह सभा में बैठे प्राणी , सुनते हैं जिनवर की वाणी ||२७||
गिरि सम्मेदशिखर कहलाया, मोक्षधाम प्रभुवर ने पाया ||२८||
गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान जहां पर, वह स्थल है पूज्य धरा पर ||२९||
पुरातत्व की हुई खुदाई , जैन मूर्तियां कई इक पाईं ||३०||
बना पर्यटन स्थल सुन्दर, यात्रीगण आते हैं प्रतिक्षण ||३१||
ज्ञानमती माँ यहाँ पधारीं, उनने नव योजना बना दी ||३२||
बनी सवा ग्यारह फुट प्रतिमा, श्याम वर्ण जिनमूरत महिमा ||३३||
पञ्चकल्याणक उत्सव भारी, आते बहुत वहाँ नर-नारी ||३४||
मूर्ति बड़ी रमणीक जगह पर, हरियाली का दृश्य है सुन्दर ||३५||
प्रभु श्रेयांसनाथ धर्मस्थल , माताजी ने नाम दिया तब ||३६||
जो वाराणसि तीरथ आते, तीर्थ और दो सहज में पाते ||३७||
चन्द्रपुरी और सिंहपुरी की, तीर्थवन्दना अघमल धोती ||३८||
जय तीर्थंकर जन्मभूमि की, जय जय जय हो चौबिस जिन की ||३९||
जय हो ज्ञानमती जी माता , मम जीवन की हरो असाता ||४०||
नमन पूज्य उन तीर्थ को , जन्में जहां भगवान
गर्भ,जन्म,तप,ज्ञान अरु, पाया है निर्वाण ||१||
उन तीर्थों की वंदना, हरे रोग अरु शोक
आध्यात्मिक सुख भी मिले, भरे आत्मनिधि तोष ||२||
चालीसा चालीस दिन, पढ़ो भव्य मन लाय
‘इंदु’ मिले मुक्तीरमा , आत्मा तीर्थ कहाए ||३||