तर्ज-दमादम मस्त कलन्दर…………..
कलश हाथों में लेकर, करूँ अभिषेक प्रभू पर,
आदिनाथ प्रभु करना कृपा अब मुझ पर, हे प्रभु मुझ पर-२
जयति जय आदिजिनेश्वर-२ ।।टेक.।।
नाभिराय मरुदेवी के नंदन, तीर्थंकर जिनसूर्य को वंदन।
असि मसि आदि क्रिया बतलाई हे जिनवर, आदिजिनेश्वर-२ ।।१।।
नगरि अयोध्या के तुम राजा, दीक्षा लेकर बने मुनिराजा।
फिर मुनिचर्या बतलाई हे जिनवर, आदिजिनेश्वर-२।।२।।
वैâलाशगिरि से शिवपद पाया, तप करके सब कर्म जलाया।
मुक्तिगमन की विधि बतलाई हे जिनवर, आदिजिनेश्वर-२।।३।।
आदिनाथ का उत्सव आया, मांगीतुंगी में अवसर पाया।
ज्ञानमती जी की पे्ररणा पाई हे जिनवर, आदिजिनेश्वर-२।।४।।
न्हवन करो सब ऋषभप्रभू का, महामहोत्सव है इन प्रभु का।
‘‘चंदनामती’’ तभी खुशियाँ हैं छाईं हे जिनवर, आदिजिनेश्वर-२।।५।।