तर्ज-सपने में …………..
जिनवर का महामस्तकाभिषेक निराला है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।टेक.।।
जब जल की धारा पड़ती, चन्दा के किरण सम लगती।
शीतल हो जाती धरती, पावन होते नरतन भी।।
हैं पुण्यवान वे जो करते जलधारा हैं।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।१।।
जब दूध से न्वहन करें हम, क्षीरोदधि स्मरण करें हम।
ऊपर से नीचे बहती, तब दुग्धमयी हो धरती।।
प्रभु तन पर कर लो तुम भी दूध की धारा है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।२।।
जब दही की धारा पड़ती, मोती की लड़ियाँ लगती।
सर्वौषधि कलश ढुराएं, हम तन को स्वस्थ बनाएँ।।
केशर से प्रभु का रंग केशरिया प्यारा है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।३।।
करो शांतिधारा प्रभु पर, हो जावे शांति धरा पर।
‘‘चंदनामती’’ जिन भक्ती, सबके भवकल्मष हरती।।
कलियुग में प्रभु भक्ती ही एक सहारा है।
क्या सुन्दर लगती पंचामृत की धारा है।।४।।