तर्ज—सुमेरु गिरि पर मस्तकाभिषेक…..
ऋषभगिरि पर मस्तकाभिषेक,
ऋषभदेव जिनराज का-ऋषभदेव जिनराज का।।टेक.।।
पूर्व दिशा में सूरज जैसे।।हो…..ऽऽ
मरुदेवी मां के सुत वैसे।।हो…..ऽऽ
नाभिराय के लाल का,
ऋषभदेव जिनराज का।।ऋषभगिरि पर ……..।।१।।
तीर्थंकर बन तीर्थ चलाया।।हो…..ऽऽ
धर्म तीर्थ का अर्थ बताया।।हो…..ऽऽ
तभी खुला शिवमार्ग था,
ऋषभदेव जिनराज का।।ऋषभगिरि पर ……..।।२।।
आदिनाथ की सुन्दर प्रतिमा।।हो…..ऽऽ
कहती मानो निज गुण गरिमा।।हो…..ऽऽ
अभिषव उन भगवान का,
ऋषभदेव जिनराज का।।ऋषभगिरि पर ……..।।३।।
ज्ञानमती माताजी के मन में।।हो…..ऽऽ
इक विचार आया चिन्तन में।।हो…..ऽऽ
उत्सव हो जिननाथ का,
ऋषभदेव जिनराज का।।ऋषभगिरि पर ……..।।४।।
प्रभु के तन पर बहती धारा।।हो…..ऽऽ
लगे ‘‘चन्दना’’ क्षीर की धारा।।हो…..ऽऽ
न्हवन करो भगवान का,
ऋषभदेव जिनराज का।।ऋषभगिरि पर ……..।।५।।