-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती
तर्ज—दमादम मस्त कलन्दर……..
कलश हाथों में लेकर, करूँ अभिषेक प्रभू पर,
तीर्थंकर प्रभु करना कृपा अब मुझ पर, हे प्रभु मुझ पर-२
जयति जय जिनवर जिनवर-२।।टेक.।।
जयरामा सुग्रीव के नन्दन, तीर्थंकर जिन सूर्य को वन्दन।
जन्म लिया तो सुरगण आये हे जिनवर, नवम जिनेश्वर-२।।
कलश……।।१।।
काकन्दी नगरी के राजा, दीक्षा ले तुम बने मुनिराजा।
फिर मुनिचर्या बतलाई हे जिनवर, नवम जिनेश्वर-२।।
कलश……।।२।।
पुष्पदन्त प्रभु नाम तुम्हारा, त्यागा तुमने वैभव सारा।।
तप कर केवलज्ञान हो पाया हे जिनवर, नवम जिनेश्वर-२।।
कलश……।।३।।
सम्मेदगिरि से शिवपद पाया, घाति-अघाती कर्म जलाया।
सिद्धशिला को प्राप्त किया हे जिनवर, नवम जिनेश्वर-२।।
कलश……।।४।।
गणिनी ज्ञानमती माता की, मिली प्रेरणा प्रभु उत्सव की।
‘चन्दनामती’ तभी खुशियाँ छाईं हे जिनवर, नवम जिनेश्वर-२।।
कलश……।।५।।