तर्ज-आने से जिसके………
ज्ञानमती माँ आईं, प्रभु जी के द्वार,
मांगीतुंगी में छाईं खुशियाँ अपार।
मूरत सुहानी है श्री ऋषभप्रभो, छवि अति प्यारी है- श्री ऋषभप्रभो…।।टेक.।।
मोक्षस्थल ऋषियों का मांगीतुंगी गिरी है उन्नत,
निन्यानवे कोटि मुनिवर, सिद्धी प्राप्त किया है यहीं पर।
श्री पद्म तथा श्रीशैल प्रभो, यहाँ उनकी निशानी है। श्री ऋषभप्रभो……
छवि अति प्यारी है, श्री ऋषभप्रभो।।१।।
ज्ञानमती माता ने, जब चातुर्मास रचाया,
भगवन हैं पर्वत में, ये उनके ध्यान में आया।
रवीन्द्रकीर्ति, चन्दनामती के, श्रम की कहानी है। श्री ऋषभप्रभो…..
छवि अति प्यारी है, श्री ऋषभप्रभो।।२।।
महाराष्ट्र की जनता ने महाभाग्य है पाया,
ज्ञानमती जी के संघ का है महाविहार कराया।
पंचकल्याणक है आया, सबने जाने की ठानी है-श्री ऋषभप्रभो…….
छवि अति प्यारी है, श्री ऋषभप्रभो।।३।।
पर्वत पर प्रभु प्रगटे, इकसौ आठ फिट के ऊँचे,
ऐसा लगता है कि फिर से चौथाकाल हो जैसे।
चामुण्डराय बने अभिनव, रवीन्द्रकीर्ति स्वामी हैं, श्री ऋषभप्रभो…….
छवि अति प्यारी है, श्री ऋषभप्रभो।।४।।
ज्ञानमती माता की, दिव्य अमृत घड़ी यह आई,
शत वर्षों तक आशिष, मिले भक्ति भावना लाई।
ऋषभगिरि पर चल के ‘मालती’ किस्मत जगानी है, श्री ऋषभप्रभो……
छवि अति प्यारी है, श्री ऋषभप्रभो।।५।।