तर्ज-तू कितनी अच्छी……..
तू कितनी निस्पृह है, तू कितनी निश्छल है, ज्ञानमति माता है।
ओ माँ………ओ माँ…….
तेरी जो कृतियाँ हैं, अमर स्मृतियाँ हैं, सुरभि जगत्राता हैं।
ओ माँ………ओ माँ…..।।टेक.।।
मन मेरा इतना चंचल है-२
तुम्हीं ने चंचलता वो, अपने मन की रोकी है
तू कितनी शीतल है, तू कितनी सुन्दर है, ज्ञानमति माता है।
ओ माँ………ओ माँ…….।।१।।
अज्ञान तिमिर जो पैâला है-२
तुम्हीं ने ज्ञानकिरण से निज पर को अवलोका है।
तू कितनी ज्ञानी है, तू कितनी ध्यानी है, ज्ञानमति माता है।
ओ माँ………ओ माँ…….।।२।।
माँ ब्याही कन्या होती है-२
तुम्हारे सम दीक्षा लेकर, जग की माँ होती है
तू कितनी सच्ची है, तू कितनी भोली है, ज्ञानमति माता है।
ओ माँ………ओ माँ…….।।३।।
सागर मोती सी शीतलता-२
तू ही गंगा सम औ पूर्णिमा सी तुझमें निर्मलता।
तू कितनी प्यारी है, तू जग से न्यारी है, ज्ञानमति माता है।
ओ माँ………ओ माँ…….।।४।।