तर्ज—धीरे-धीरे बोल……
ज्ञानमती माताजी की वाणी सुन लो।।
वाणी सुन लो, जिनवाणी सुन लो।।
जनवाणी भव भव में सुनी, जिनवाणी सुनकर ना गुनी।।
ज्ञानमती माताजी……।।टेक.।।
ज्ञान के मोती का हैं ये भण्डार
ज्ञान की ज्योती इनमें भरी अपार।
वीरसिंधु से दीक्षा ली स्वीकार,
पुन: ज्ञानमति नाम किया साकार।।
मुझे ज्ञान दो, विज्ञान दो,
जनवाणी भव-भव में सुनी, जिनवाणी सुनकर ना गुनी।।
ज्ञानमती माताजी……।।१।।
जग में है अंधियारी काली रात,
उसमें दे आलोक तुम्हारी बात।
स्वारथ के सब बंधु भ्रात औ तात,
वैâसे छोडूँ मोह बताओ मात।।
मुझे ज्ञान दो, विज्ञान दो,
जनवाणी भव-भव में सुनी, जिनवाणी सुनकर ना गुनी।।
ज्ञानमती माताजी……।।२।।
आतम तत्त्व बताना इनका काम,
हम मानें तो पाएँगे निजधाम।
सार्थक हो ‘‘चन्दना’’ हमारा नाम,
मिल जावे जब अपना आतमराम।।
मुझे ज्ञान दो, विज्ञान दो,
जनवाणी भव-भव में सुनी, जिनवाणी सुनकर ना गुनी।।
ज्ञानमती माताजी……।।३।।