तर्ज—जिस गली में……
चल पड़े जिस तरफ दो कदम मात के,
कोटि पग चल पड़े उस तरफ देश के।
पड़ गई दृष्टि जिस तीर्थ पर मात की,
कोटि दृष्टी में वे छा गए देश की।। टेक.।।
मुक्तिपथ पर चली जब वो कच्ची कली,
फूल बन बालसतियों की बगिया खिली। फूल बन……
क्वांरी कन्याओं के खुल गए रास्ते,
कोटि पग चल पड़े उस तरफ देश के।। चल पड़े……।।१।।
लेखनी ने लिखे सैकड़ों ग्रंथ जब,
अन्य माताओं ने भी लिखे ग्रंथ तब।। अन्य माताओं……
ज्ञानज्योति के अब खुल गए रास्ते,
कोटि पग चल पड़े उस तरफ देश के।। चल पड़े……।।२।।
तीर्थ उद्धार की प्रेरिका बन गईं,
मंत्र ‘अर्हम्’ की ये देशना बन गईं। मंत्र अर्हम्……
दे गईं नव कृती रास्ते रास्ते,
कोटि पग चल पड़े उस तरफ देश के।। चल पड़े……।।३।।
पार्श्वप्रभु के महोत्सव की दी प्रेरणा,
जन्मभूमि बनारस में उत्सव मना। जन्मभूमि……
ऐसे उत्सव चलें सब शहर ग्राम में,
कोटि पग चल पड़े उस तरफ देश के।। चल पड़े……।।४।।
‘‘चन्दनामति’’ ये चैतन्य तीरथ बनीं,
जैन संस्कृति की सचमुच ये कीरत बनीं। जैन……
भक्त इनके सदा भक्ति में नाचते,
कोटि पग चल पड़े उस तरफ देश के।। चल पड़े……।।५।।